पिछले साल कोरोना जब तक देश में घुस नहीं गया, हालात बद से बदतर नहीं हुए तब तक सरकार, मीडिया और लोगों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया

सर्वप्रिया सांगवान, पत्रकार

 

उसके बाद अचानक लॉकडाउन ही किया गया और भारत ने एक और त्रासदी देखी.

उसके बाद धीरे-धीरे कोरोना को लेकर लोग एकदम सामान्य हो गए. इसमें सबसे बड़ी भूमिका सरकारी प्रोग्राम और चुनावों ने निभायी.

पहले अगस्त में अयोध्या में राम मंदिर के शिलान्यास के बाद लोगों की भीड़ की तस्वीरें सामने आयी. मीडिया में भी ये ख़बर नहीं आ पायी कि इस दिन के बाद वहाँ कितने कोरोना केस मिले.

फिर बिहार में चुनाव हुए. जब वहाँ लोगों से पूछा जाता तो कहते कि ‘कोई कोरोना नहीं है, चुनाव हो रहे हैं, रैली हो रही हैं’. वहाँ कई जगह तो टेस्ट भी फ़र्ज़ी हो रहे थे.

जब लोगों तक सही जानकारी ही नहीं पहुँचेगी तो वे तो वही कहेंगे जो दिख रहा है.

किसान आंदोलन शुरू हुआ, तब वहाँ भी लोगों ने कहा कि ‘चुनाव तो करवा रहे हैं लेकिन यहाँ कोरोना का डर दिखा रहे हैं.’

फिर पश्चिम बंगाल के साथ बाक़ी कुछ राज्यों में भी चुनाव हो रहे हैं, रैली हो रही हैं. ऐसा लगता है कि इस बीमारी को लेकर लोगों का रवैया सबसे ज़्यादा इसी वजह से बिगड़ा है क्योंकि सबके पास यही एक बात थी कहने को. अगर नेता का ही रवैया ढीला दिखेगा तो जनता कैसे गंभीर होगी?

जिस देश में अब तक लोग स्वास्थ्य को लेकर गम्भीर नहीं, जागरूक नहीं, पर्याप्त के क़रीब भी संसाधन नहीं, वहाँ आम लोग भी इसको लेकर ऐसे पोस्ट लिख देते हैं जैसे कि कुछ है ही नहीं, सब साज़िश है या बहाना है.

हाँ, इस देश में टीबी से भी हर साल कई मृत्यु होती हैं लेकिन क्या वो इसलिए होती हैं कि इस बीमारी का इलाज नहीं या इसलिए कि लोगों तक इलाज पहुँचता नहीं या इसलिए कि लोगों को परवाह नहीं?

औनिंदयो चक्रवर्ती ने सही लिखा है कि टीबी को लेकर डर नहीं है क्योंकि लोगों को लगता है कि हो भी गया तो बच जाएँगे. वैसे भी ये तो ‘ग़रीबों की बीमारी’ है. लेकिन कोरोना आपकी जेब नहीं देखता. अगर अस्पताल में ऑक्सीजन नहीं है तो नहीं है. बेड नहीं है तो नहीं है.

ऐसी महामारी में सबसे ज़्यादा पारदर्शिता की ज़रूरत है. जैसी स्थिति है, वही सरकार को और वही मीडिया को बतानी चाहिए. अगर आपके पास संसाधन नहीं है तो वही बताइए. आपने किस अस्पताल में क्या संसाधन जोड़ा है, वही बताइए.

पिछले एक साल में क्या तैयारी की है जनता के पैसे से, वो बताइए. अगर स्थिति ठीक नहीं है, बेक़ाबू है तो वही बताइए. ज़रूरी बात- सनसनीख़ेज़ मत बनाइए, गंभीरता से बताइए.

लोग पैनिक से नहीं मर रहे, संसाधन के अभाव में मर रहे हैं.


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