यह मानव के विकास के समस्त काल से चली आ रही चिकित्सा पद्धतियों का ही विकसित रूप है
मेडिकल फील्ड पर डॉ के बी बंसोड़े कर रहे हैं विवेचना
डॉ के बी बंसोड़ेआधुनिक चिकित्सा पद्धति एक विकसित चिकित्सा पद्धति है। जिसे एलोपैथी के नाम से भी जाना जाता है। यह मानव के विकास के समस्त काल से चली आ रही चिकित्सा पद्धतियों का ही विकसित रूप है। इसलिये आधुनिक युग के समस्त भौतिकी शास्त्र/रसायनशास्त्र/जीवविज्ञान/भौगोलिक/जेनेटिक्स वगैरह के आविष्कार का इस्तेमाल करके आज की स्तिथि में आये हैं। जैसे अनेक प्रकार के मशीनों का इस्तेमाल, बीमारी की विभिन्न प्रकार की पहचान के लिये, एवम उपचार के लिये सामान्यतया प्रचुर प्रयोग किया जाता है।

1 कोरोना काल में आजकल लोगों का सवाल यह है कि बीमारी की वजह से उनके नाक में किसी भी प्रकार की सुगंध या दुर्गंध का अहसास नहीं हो रहा है।तथा इसके अलावा मुँह में कोई स्वाद भी नही आ रहा है ।
दरअसल इसका कारण यह है कि, बुखार के समय शरीर का जब तापमान बढ़ जाता है, तब हमारे मश्तिष्क में एक ग्रंथि होती है, जो कि हमारे शरीर के तापमान को एक नियंत्रित स्तिथि में रखने का प्रयास करती है। अत्यधिक तापमान बढ़ने पर उसके कार्यप्रणाली पर जरा दुष्प्रभाव पड़ जाता है।
चूँकि शरीर के समस्त मांसपेशियों को भी जब इस बढ़े तापमान का सामना करना पड़ता है, तो इसका दुष्प्रभाव मश्तिष्क पर तथा ब्रेन के न्यूरॉन्स पर भी पड़ता है। इसी कारण अक्सर मुँह का स्वाद या नाक के सूंघने की तांत्रिक पर भी थोड़ा सा असर आ जाता है ।
यह एक अस्थायी (टेम्परेरी) घटना होती है, जब बुखार आना बंद हो जाता है, तब यह अपने आप ही ठीक हो जाता है। आजकल यह कुछ ज्यादा समय के लिये भी हो जाता है। लेकिन यह परमानेंट समस्या बिल्कुल नही है।
चूंकि इसका कोई विशेष उपचार नहीं होता है, इसलिये घबराने जैसे बात नहीं होनी चाहिये।
इसके अलावा भी कई बार बुखार के अत्यधिक बढ़ जाने पर जब तंत्रिका तंत्र पर दुष्प्रभाव पड़ता है तो छोटे बच्चों को अक्सर झटके (कँवल्शन्स) भी आते हैं। बड़े या वयस्क भी अत्यधिक तापमान के कारण बड़बड़ाने भी लग जाते हैं। यह भी एक टेम्परेरी या अस्थायी घटना है ।
इसे दवा देकर ठीक किया जा सकता है, तथा इसका प्राथमिक उपचार यह है कि मरीज के सभी कपड़े शरीर से हटाकर गीले कपड़े से पोछा लगातार लगाना चाहिये, जब तक कि शरीर का तापमान 100°f से कम ना हो जाये।
2 आजकल कुछ लोग बताते हैं कि चूंकि कोरोना की बीमारी फैली हुई है, इसलिये किसी भी स्तिथि में कूलर या एयरकंडीशनर का प्रयोग नहीं करना चाहिये।
यह भी गलत अवधारणा है
मानव ने अपनी सहूलियत के लिये अत्यधिक गर्मी से बचाव का उपाय छत बनाकर, हाथ से हिलाने वाले पंखों का आविष्कार करके एवम आगे जब बिजली (Electricity) से चलित पंखे, कूलर या एयरकंडीशनर का उपयोग करना सीखा है। वैसे ही जैसे अत्यधिक ठंड से बचने के लिये हम गर्म कपड़ों या अन्य उपकरणों का इस्तेमाल करते हैं।
जो सही है। जीवन रक्षक है
तो कुलमिलाकर इस कोरोना क्राइसिस के समय भी हमें पंखे, कूलर तथा एयरकंडीशनर का उपयोग बेहिचक करना चाहिये। यह आवश्यक भी है।
लेकिन हमें कूलर या एयरकंडीशनर का इस्तेमाल करते समय यह ध्यान अवश्य देना चाहिये कि हमें अपने शरीर के तापमान को सामान्य स्तिथि में रखने के लिये इनका उपयोग करना होता है। अक्सर लोग एयरकंडीशनर को जरूरत से ज्यादा ही कम तापमान पर चलाते हैं और गर्मी में कंबल ओढ़कर सोते हैं। जो गलत है।
मेडिकल टर्मिनोलॉजी में हाइपोथर्मिया (शरीर का तापमान सामान्य से कम हो जाना) या हाइपरथर्मिया (शरीर का तापमान सामान्य से अधिक होना) कहते हैं। लगातार हाइपोथर्मिया या हाइपरथर्मिया का बने रहना भी शरीर की आंतरिक क्रियाप्रणाली पर बेहद विपरीत प्रभाव डालता है। इससे बचना ही जरूरी है।
ठंडे प्रदेश में लोग अत्यधिक ठंड से बीमार हो जाते हैं। उसी प्रकार अत्यधिक गर्मी से भी लोग बीमार होते हैं। इसलिये दोनों प्रकार के तापमान यानी अत्यधिक ठंड या अत्यधिक गर्मी से बचने के विभिन्न उपाय अपने दैनिक जीवन में प्रयोग में लाने से हमारी कार्यक्षमता भी बढ़ जाती है, तथा हम बिना बीमार पड़े स्वस्थ रहकर अपना जीवन सुरक्षित बिता सकते हैं।
3 अक्सर लोग आधुनिक युग में दैनिक जीवन में उपयोग में लाई जाने वाली तकनीकियों या मशीनों के प्रयोग की आलोचना करते मिल जाते हैं। हालांकि खुद उनका उपयोग वे बड़े मजे से करते हैं लेकिन नसीहतें दूसरों को देते रहते हैं।
ऐसे लोग अक्सर प्राचीन कालीन इस्तेमाल की विधियों का गुणगान करते रहते हैं, जो कि बड़ा ही हास्यस्पद भी है। अभी भी लोग चूल्हे पर लकड़ियों के भोजन के स्वादिष्ट होने की बढ़ाई करते मिल जायेंगे, लेकिन उनके खुद के घर गैस सिलेंडर, माइक्रोवेव ओवन और हीट इंडक्शन के बिना खाना बनता ही नही होगा।
इसी तरह वे लोग तुलसी गिलोय वगैरह के इस्तेमाल की सलाह भी धड़ल्ले से देते हैं। यानी वे आधुनिक चिकित्सा पद्धति के विरोध में प्राचीन पद्धतियों के गुणगान करते मिल जाते हैं।
तो उदाहरणों पर जोर ना देते हुवे आपको मैं यह बताना आवश्यक समझता हूं कि आधुनिक चिकित्सा पद्धति एक विकसित चिकित्सा पद्धति है। जिसे एलोपैथी के नाम से भी जाना जाता है। यह मानव के विकास के समस्त काल से चली आ रही चिकित्सा पद्धतियों का ही विकसित रूप है।
इसलिये आधुनिक युग के समस्त भौतिकी शास्त्र/रसायनशास्त्र/जीवविज्ञान/ भौगोलिक/जेनेटिक्स वगैरह के आविष्कार का इस्तेमाल करके आज की स्तिथि में आये हैं। जैसे अनेक प्रकार के मशीनों का इस्तेमाल, बीमारी की विभिन्न प्रकार की पहचान के लिये, एवम उपचार के लिये सामान्यतया प्रचुर प्रयोग किया जाता है।
उसी तरह जांच के लिये सिटी स्कैन, MRI Scan, PET Scan, एक्स रे, पैथोलॉजी जांच के लिये माइक्रोस्कोप का उपयोग, विभिन्न प्रकार के रसायनों का उपयोग दवाइयों के लिये, वगैरह के इस्तेमाल से बीमारी ठीक की जा सकती है।
हृदय की पतली नलिकाओं में जब वे बन्द हो जाती है, तो स्टंट्स का उपयोग करके खोल दी जाती है। हड्डियों के जल्द से जल्द जोड़ने के लिये हड्डियों में रॉड डालना आसान हो गया है। इसे समझना होगा, तथा आधुनिकता को स्वीकारना ही होगा।
प्राचीनकालीन अवधारणाओं तथा उपचार पद्धतियों की अपनी लिमिटेशन है, उसे स्वीकारना चाहिये।
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