मैं प्रथम बार रायपुर आया हूं
उत्तम कुमारडॉ. भीमराव आंबेडकर के लेखानों में कहीं भी उनके छत्तीसगढ़ आगमन का उल्लेख नहीं मिलता है। स्थानीय आंदोलनकारियों व जानकारों का माने तो डॉ. आंबेडकर छत्तीसगढ़ प्रवास में आए थे। इस संबंध में नकुल ढीढी के पोता विरेन्द्र ढीढी, डॉ. आरके सुखदेवे, विरेन्द्र कुर्रे, वीएस चिवुरकर, तामस्कर टंडन, रिती देशलहरे, अर्जुन सिंह ठाकुर, सुनील बांद्रे, जीपी कुरीदम, आरसी पाटिल, संगीता पाटिल, सरकार, जांबुरकर, प्रभुत्व पाटिल, दाऊराम रत्नाकर, वीआर डडसेना, नरेन्द्र बंसोड़ व एतेश्वर बंसोड़ जैसे दसियों लोगों से संपर्क स्थापित कर आंबेडकर के छत्तीसगढ़ प्रवास पर तथ्य इकट्ठा करने कोशिश की है।

जिसमें सफलता ही हाथ लगी है। नकुल ढीढी के पोता विरेन्द्र ढीढी ने बताया कि सन् 1944-45 के आसपास गुरू मुक्तावन दास के ऊपर लगे एक केस के सिलसिले में अंबेडकर रायपुर आए थे। उनके प्रकरण पर मुकदमा लडऩा चाहते थे। लेकिन बाद में किसी कारणवश वे केस नहीं लड़ पाए और फिर मुक्तावन रिहा हो जाते है।
एक पुस्तक ‘सतनाम दर्शन’ जिसे टीआर खूंटे ने लिखा है, उसमें उल्लेख है कि 1916 में नकुल ढीढी ने अंबेडकर से संपर्क कर सलाह-मशविरा कर घासीदास जयंती कार्यक्रम आयोजित किया था। इसके बाद रायपुर के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. आरके सुखदेवे ने अपने पिता जेआर सुखदेवे जो राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त शिक्षक थे, के द्वारा लिखित एक पर्चा को कई दिनों के परिश्रम से तलाशने के बाद मेरे तरफ बढ़ाते हुए कहा कि -पर्चा इस प्रकार है- ‘बाबा साहब का रायपुर शुभागमन’। कहा जाता है कि सन् 1923 से ही छत्तीसगढ़ में डॉ. अंबेडकर पर चर्चा प्रारंभ हो गई थी।
अछूतोद्धार व उनके जागरण के लिए झींका के दाऊ चोवाराम महिश्वर, राजनांदगांव के बंशीलाल रामटेके, माहूद के मिलिन्द रंगारी, टटेंगा के दाऊ तानू साव, दाऊ हेमराज वासनिक, धमतरी के ज्योति साव वैदे, कांकेर के जयराम, अंतागढ़ के गोमती साव ने अंबेडकर के मागदर्शन मेें छत्तीसगढ़ में कार्य प्रारंभ कर दिया था। छोटी-बड़ी सभाओं का आयोजन कर आंबेडकर के संदेश को लोगों तक पहुंचाया जाता था। डॉ. अंबेडकर के सत्याग्रह आंदोलनों में महासमुंद के सतनामी समाज से नकुल ढीढी व टिकरी के किसुनदास महंत ने अपना हाथ बंटाया था।
उस समय डॉ. अंबेडकर द्वारा प्रकाशित पत्रिका ‘जनता’ छत्तीसगढ़ के कोने-कोने में पहुंचता था। जब वे श्रम मंत्री बने तब गुरू मुक्तावनदास, दाऊ चोवाराम, बंशीलाल रामटेके के अथक प्रयास से डॉ. अंबेडकर ने रायपुर आने का निमंत्रण स्वीकार किया। राजनांदगांव में उनके मार्गदर्शन में समता सैनिक दल का गठन हुआ था। 14 दिसंबर 1945 को राजनांदगांव रेलवे स्टेशन व रायपुर का स्प्रे मैदान सभा स्थल उनके आगमन के उपलक्ष्य में सज-धज कर तैयार हो गया था। लोग दूर-दराज से पैदल चलकर व बैलगाडिय़ों में बैठकर उनके कार्यक्रम सुनने व उन्हें साक्षात देखने हजारों की संख्या में उमड़ पड़े थे।
राजनांदगांव पहुंचने पर छत्तीसगढ़ की धरती में उनका पहला स्वागत किया गया। उनके साथ गुरू मुक्तावनदास व बंशीलाल रामटेके थे। रायपुर पहुंचने पर दाऊ चोवाराम के नेतृत्व में उनका भव्य स्वागत किया गया। लोगों ने बाबा साहब के नारे लगाने लगे। पूरे शहर को दुल्हन की तरह सजाया गया था। डॉ. अंबेडकर अपने साथ विशाल समूह के साथ माधव राव सप्रे हाईस्कूल (जो पहले लारी स्कूल के नाम से जाना जाता था) के प्रांगण में पहुंचे। उस समय रायपुर में ध्वनि प्रसारण यंत्र नहीं था। यंत्र नागपुर से मंगाए गए थे। सभा स्थल में लोगों के पांव रखने की जगह नहीं थी।
डॉ. आंबेडकर धीरे-धीरे मंच पर चढ़े। उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा कि ‘मैं प्रथम बार रायपुर आया हूं। ’ उन्होंने आगे कहा कि आप शिक्षित बनो, संघर्ष करो व संगठित हो ।’ उन्होंने आगे कहा कि जिस तरह स्वतंत्रता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है, उसी तरह मानव समानता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है। हमें राजनीतिक अधिकार प्राप्त करने के लिए आपसी भेदभाव भूलाना पड़ेगा। बिना राजनीतिक अधिकार के हमारा जीना अस्तित्वहीन रहेगा। जैसा कि आप देखते रहे हैं। हजारों वर्षो से गुलामों से भी बदतर जीवन हमारे पूर्वज जीते आए हैं। आप एक पार्टी के तले आओ।
उन्होंने अपने मत को प्रखर ढंग से रखते हुए कहा कि बहुत सारे लोगों को दास की स्थिति से बाहर लाना चाहता हूं। आप लोगों के हाथ में शासन की बागडोर रखना चाहता हूं। आजादी व राष्ट्रीय संघर्ष में स्वतंत्रता की ज्यादा आवश्यकता दलितों की है। मैं अपने करोड़ों अछूत कहे जाने वाले लोगों के सर्वांगीण उत्कर्ष के लिए अपने जीवन के अंतिम सांस तक लड़ता रहूंगा। अपना अधिकार लेकर रहूंगा। अब समय आ गया है निकट भविष्य में हमें पूर्ण रूप से स्वतंत्रता मिलेगी। देश स्वतंत्र होने वाला है। मुसलमान देश के विभाजन में लगे हैं।
मैं भारत के टुकड़े नहीं चाहता, मैं पृथक स्थान नहीं चाहता, सारे भारतवासी एक रहें। भारत में 6 करोड़ दलित (सन् 1945) हैं, उनके विषय में राष्ट्रीय नेताओं को सोचना है। अपने अधिकार और आजादी के लिए एक इंच भी पीछे नहीं हटूंगा। उन्होंने कहा कि आजादी के बाद हमारी जिम्मेदारी अधिक बढ़ जाएगी। इसका सदा ध्यान रखना पड़ेगा। कोई पीछे न रहे, सबको साथ लेकर चलना है।
गुरू मुक्तावन दास निर्दोष बरी हुए
एक पुस्तक हाथ लगी है। जिसका शीर्षक ‘छत्तीसगढ़ राज्य और सतनामी समाज, लेखक-केआर मार्कंडेय, प्रकाशक-तामस्कर टंडन है।’ इस पुस्तक के अनुसार सतनामी समाज के प्रमुख व्यक्ति मूलचंद धृतलहरे ग्राम-थनौद वाले ने अपने एक स्मरण में बताया था कि महंत किसुन दास 1950 में सीपी एंड बरार राज्य में ऑल इंडिया शेड्यूल कास्ट फेडरेशन के उपाध्यक्ष बनाए गए थे। इस संगठन को डॉ. आंबेडकर ने गठित किया था। यह संगठन दलितों का महासंघ था। उन्हीं दिनों छत्तीसगढ़ में डॉ. आम्बेडकर के विचार प्रमुखता के साथ फैल रहे थे।
किसुन दास गेंड्रे के मित्र केजूराम खापर्डे के जरिए बाबू हरिदास आवड़े ने आम्बेडकर से संपर्क किया था। आम्बेडकर ने समाज के धर्मगुरू मुक्तावन दास के मुकदमे की पैरवी की थी। जिसमें मुक्तावन दास की रिहाई सुनिश्चित हुई। इसके बाद वे डॉ. अम्बेडकर के अनुयायी हो गए थे। जिसमें उद्धृत है कि आम्बेडकर सन् 1946 में छत्तीसगढ़ आए। गुरू गोसाई मुक्तावन दास ने उनका स्वागत किया। महंत किसुनदास अपना यज्ञोपवित उतार फेंक आम्बेडकर के दलित आंदोलन के समर्थक हो गए। ये तथ्य किसुन दास गेंड्रे के जीवन परिचय में लिखा हुआ है।
इस जीवनी में गुरू मुक्तावन दास की रिहाई प्रमाणिक लगती है जो और एक दूसरे घटना से स्पष्ट होगा। वहीं आम्बेडकर की छत्तीसगढ़ प्रवास के संबंध में तिथियों को लेकर शंका उत्पन्न करता है। क्योंकि पुस्तक में तिथि व स्थान का वर्णन नहीं है। नकुल ढीढी की जीवनी के अनुसार ढीढी ने 1951 में शेड्यूल कास्ट फेडरेशन छत्तीसगढ़ ईकाई का गठन किया। आम्बेडकर के सानिध्य में रहे। वे रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के संस्थापक सदस्य थे।
राम बहादुर एन शिवराज, दादा साहब गायकवाड़, विदर्भवादी आम्बेडकरी नेता कर्मवीर हरिदास आवड़े, बैरिस्टर बीडी खोब्रागड़े, बीसी काम्बले, देवीदास वासनिक, हरिशचंद रामटेके के साथ उन्होंने कार्य किया। वे भीम पत्रिका जालंधर के प्रख्यात संपादक एवं समता सैनिक दल के अखिल भारतीय अध्यक्ष एलआर बाली, बौद्ध भिक्षु डॉ. आनंद कौशाल्यायन से संबंध रखते थे। बाद में अंबेडकरवादी हो गए एवं बौद्ध धर्म ग्रहण किया।
बाबू हरिदास आवड़े की जीवनी से
वे अम्बेडकरवादी थे। समता सैनिक दल के सदस्य थे। सतनामी समाज के धर्मगुरू मुक्तावन दास को अपने सियासी जीवन में किसी हत्या के आरोप में फांसी की सजा सुनाया जाना तय था। तब उन्होंने आम्बेडकर से संपर्क कर इस मामले में पैरवी करने के लिए निवेदन किया। जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकृति प्रदान की। अंतत: उस मुकदमें गुरू गोसाई मुक्तावन दास निर्दोष बरी हुए।
दक्षिण कोसल में अक्टूबर 2014 को छप चुकी है।
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