डॉक्टर नहीं, दवा नहीं, ऑक्सीजन नहीं, इंजेक्शन नहीं, अस्पताल नहीं सिर्फ है तो....

पत्रकार बादल सिंह ठाकुर की आपबीती

बादल सिंह ठाकुर

 

ये लो बेड.. बेड कैसा होता है..?? ठीक ऐसा ही ना पलंग.. गद्दा.. तकिया का बना हुआ... ये रहा ... आँख से देख लो..

एक 68 वर्षीय पेशेंट को ऑक्सीजन सपोर्ट की जरूरत पड़ गयी... सब जगह काल किया.. रायपुर स्वास्थ्य अधिकारी तक ने कह दिया 'कोई व्यवस्था नहीं है'... बेड नहीं है... ऑक्सीजन नहीं है...

एक टिप मिली आयुर्वेदिक कॉलेज में ऑक्सीजन मिल सकता है... पहुंचा तो गेट में ताला जड़ा है.. साफ मना किया गया कोई व्यवस्था नहीं है.. ले जाओ पेशेंट को... जैसे तैसे अंदर घुसा तो हाल ये है... पीछे बेड और हाथ में ऑक्सीजन...

दरअसल साथियों बेड की दिक्कत ना कभी थी ना होगी..
दिक्कत है!! स्वास्थ्य कर्मचारियों की और डॉक्टर्स की..
जो कोढ़ हो चुके सिस्टम के पास उपलब्ध नहीं है...

300 से ज्यादा पेशेंट है इस कैम्पस में तकरीबन 100 बेड अभी भी खाली है... जो सामने आंख में दिखा.. 40 से 50 ऑक्सीजन सिलेंडर पैक रखें हैं...

अब सवाल उठता है कि क्या प्रशासन ईलाज नहीं मुहैया कराना चाहती... नहीं!! ऐसा नहीं है... व्यवस्था कोविड पेशेंट के लिए ही है... लेकिन इस व्यवस्था को चलाने वाला ड्राइवर याने की डॉक्टर और स्वास्थ्यकर्मी की कमी है.. यहां 4 डॉक्टर्स ड्यूटी पर हैं और केवल 3 वार्ड ब्वॉय.. कॉलिंग टीम, सिक्योरिटी मिलाकर 10 लोगों की टीम होगी जो रात ड्यूटी कर रही है... डॉक्टर्स अनाउंसमेंट करके बता दे रहे हैं... वार्ड ब्वॉय फलाना पेशेंट को वहां ले जाओ... वार्ड ब्वॉय फलाना पेशेंट को ऑक्सीजन लगाओ... उसका रिफिल चेंज करो...

ना पेशेंट को छू रहे हैं... ना पेशेंट को चेक कर रहे हैं... वो कमरे से निकलने की जहमत ही नहीं उठा रहे हैं... आखिर कितनी ड्यूटी और कब तक?? है तो माटी के बने इंसान ही...

हमें मैन पावर की आवश्यकता है...

N-440 स्ट्रेन ज्यादा घातक सिद्ध हो रहा है.. 15'5 दिन बुखार नहीं उतर रहा... मिनटों में ऑक्सीजन लेवल गिर जा रहा है...

ये बात जीतने जल्दी मान लो उतना ठीक रहेगा कि प्रशासन ने घुटने टेक दिये हैं...

अब समय है साथ खड़े होने का.. कोसते रहोगे तो सिर्फ कोसते ही रह जाओगे... आलोचक होना सही है लेकिन सामने खड़े होना भी जरूरी है...

जितना ज्यादा हो सके अपने आस पास मदद पहुंचाए.. कोरोना से डरे नहीं.. मैं हाल ही में कोविड की चपेट में आया था.. इसने तकलीफ तो बहुत दिया लेकिन सबक भी दिया कि.. अभी और लड़ सकते हैं।

कोरोना से लड़ने डॉक्टर बनने की जरूरत नहीं है.. इंसान बनने की जरूरत है।
जिंदा बच जाएंगे तो फिर सिस्टम से भी लड़ लेंगे..

पूरा प्रदेश आज राजधानी की तरफ देख रहा है कि मेरा इलाज यहां हो सकता है.. लेकिन राजधानी का आदमी अपने शहर में ही अनजाना सा भटक रहा है।

रायपुर की सड़क केवल सुनसान नहीं.. यह सड़क आज मायूस है..
मदद करो!

लेखक तोपचंद डॉट कॉम में मैनेजिंग एडिटर हैं।
 


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