डॉ. बी.आर. अम्बेडकर एक अद्भुत एवं अलौकिक शक्ति

बी.एस.जागृत, भारतीय बौद्ध महासभा

 

भारतरत्न डॉ. बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर जब विदेश से उच्च शिक्षा प्राप्त कर भारत लौटे, तो उनके मस्तिष्क में चौबीस घंटे यह विचार उत्पन्न होते रहे कि विदेशों में ज्ञान और शिक्षा के सामने नतमस्तक होते हैं, मानवता की पूजा होती है और इस देश में मानवता की नहीं, मंदिरों की पूजा होती है और मानवता से भेदभाव के कारण उन्होंने यह सोचा कि मेरे छह करोड़ दलितों का क्या होगा? और उन्होंने सामाजिक और शिक्षा में क्रांति लाने के लिये शंखनाद फूंका। वे जानते थे कि शिक्षा के क्रांति के बिना आर्थिक क्रांति संभव नहीं।

मनुष्य अपने जीवनकाल में मानवीय स्वतंत्रता को सबसे मजबूत कड़ी के रूप में देखना चाहता है और इसके बिना सामाजिक स्वतंत्रता भी नहीं मिल सकती और उसके बिना शिक्षा में क्रांति नहीं आ सकती। शिक्षा में क्रांति के बिना आर्थिक स्वतंत्रता में परिवर्तन नहीं लाया जा सकता और जब आर्थिक परिस्थितियां सामान्य हो जाये तो निश्चित ही समाज में समता, स्वतंत्रता, बंधुता और न्याय के लिये सबको समान और अवसर बराबर प्राप्त होंगे।

शिक्षा के माध्यम से ही जीवन के प्रत्येक पहलू की लड़ाई जीती जा सकती है। बंदूक और गोली की आवश्यकता नहीं, हिंसा से सर्वनाश होता है, आर्थिक क्षति भी बहुत होती है। डॉ. बी.आर. अम्बेडकर जी ने संविधान में आर्टिकल 14, 15, 16, 17, 20, 21, 26, 27, 28, 29, 30, 42, 46, 50, 51, 121, 340, 341, 342 के माध्यम से गरीब पिछड़े और असहाय नागरिकों के जीवन में वोट के स्वतंत्र अधिकार के साथ सभी प्रकार के अधिकार नागरिकों को प्रदत्त किये।

डॉ. बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर द्वारा संविधान में मानव के हर विकास और उन्नति के लिए अलग-अलग योजनायें, नियम तथा अध्याय और आर्टिकल के माध्यम से मनुष्य को स्वतंत्र रूप से लोकतांत्रिक अधिकार तथा उसकी समता एवं पूर्ण स्वतंत्रता के लिए मनुष्य को हर क्षेत्र में मजबूत बनाने तथा मानव का सर्वांगीण विकास हो सके और आपसी मतभेद, भेदभाव, जाति तथा वर्ण व्यवस्था संविधान के माध्यम से समाप्त की जाये, ऐसे सर्वश्रेष्ठ संविधान का निर्माण किया है एवं अधिकार प्रदत्त किये हैं। 

डॉ. बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर के विचारों को भारतवर्ष में जनमानस तक प्रचार प्रसार के माध्यम से पहुंचाने का कार्य राजनीतिक जनप्रतिनिधि ने नहीं किया। क्योंकि अधिकतर जनप्रतिनिधि बाबा साहेब के साहित्य का अध्ययन नहीं किये, अधिकांश जनप्रतिनिधियों ने संविधान का बिल्कुल अध्ययन नहीं किया और न ही विकास और उन्नति के लिये जिन योजनाओं को संविधान में दी है उनका पालन भी नहीं किया।

अधिकतर लोग ऐशो-आराम में अपना समय गुजारे, किसी भी राजनीतिक प्रतिनिधि ने अपने जिम्मेदारी का निर्वहन नहीं किया, यदि जनप्रतिनिधि संविधान का 50 प्रतिशत भी अध्ययन कर प्रावधानों का पालन कड़ाई से कराये जाते तो शायद अमेरिका से भी अधिक प्रगतिशील राष्ट्र भारत होता। अत्यधिक जनप्रतिनिधि निष्ठावान नहीं रहे और अपनी सम्पत्ति की प्रगति में लगे रहे और सविधान के प्रति और राष्ट्र के प्रति निष्ठा नहीं होने के कारण नैतिक कर्तव्यों को संवैधानिक बल नहीं मिल सका।

डॉ. बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर के द्वारा लिखी गई अनेकों पुस्तकें बड़े आसानी से बाजारों में मिल रही है, उनके विचारों को पढऩा, गंभीर चिंतन करना और चिंतन के माध्यम से उनके विचारों को जनमानस तक पहुंचाने की आज हर प्रतिनिधि की नैतिक जिम्मेदारी बनती है। डॉ. बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर को केवल संविधान निर्माता तक सीमित रखने में बहुत बड़ी भूल होगी, वास्तव में उन्होंने भारत गणराज्य के डी.एन.ए. की रचना रची थी, वे चाहते थे कि मेरा देश शीघ्र अतिशीघ्र विकास करे और देश से गरीबी दूर हो।

उनके उच्चकोटि के विचारों के कारण ही उन्हें ‘सिम्बॉल ऑफ द नॉलेज’ की उपाधि दीं गई। आज विश्व के 127 राष्ट्रों में डॉ. बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर के ऊपर अनुसंधान जारी है।

इन परिस्थितियों में हम भारत गणराज्य के निवासियों का पूर्ण कर्तव्य है कि डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर के मानवतावादी विचार को जन-जन तक फैलायें और उन्होंने जो सपना देखा था और उसकी शुरूवात की थी वह है प्रबुद्ध भारत का निर्माण, इसकी शुरूवात उन्होंने स्वयं 14 अक्टूबर 1956 को बौद्ध धम्म की दीक्षा लेकर मात्र चार दिवस में ग्यारह लाख लोगों को बौद्ध धम्म की दीक्षा देकर शुरू की।

हमारी पूर्ण नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि उनके विचारों को समझे, गंभीर चिंतन करें और उनके मिशन को आगे बढ़ाने में हर बौद्ध अनुयायियों को बढ़-चढक़र आगे आना चाहिए और उनके प्रबुद्ध भारत के मिशन में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए। 


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