सिरपुर महोत्सव में बौद्ध धम्म और संस्कृति का किया अनादर
सुभाषसिरपुर एक बौद्ध धर्म की बहुत बड़ी विरासत है जिसको देश और विश्व पटल तक लाने का 2017 से भरपूर प्रयास किया गया लेकिन जब हाल ही में सिरपुर महोत्सव हुआ तो उसके पीछे बहुत सारी ऐसी बातें हैं जिससे हम सबका सर शर्म से झुक जाता है।

उदाहरण के तौर पर जब सिरपुर का महोत्सव किया जाना था उस पर जो पहली मीटिंग रखी गई ज्यादातर लोगों ने जिनका बौद्ध धर्म से लेना देना नहीं है उन्होंने यह निर्णय लिया कि हम सिरपुर महोत्सव लिखेंगे ना (ना) की सिरपुर बौद्ध महोत्सव।
इस पर कुछ लोगों द्वारा जोर शोर से आपत्ति जाहिर की गई और वह मीटिंग से उठकर भी चले गए, जो लोग कार्यक्रम करा रहे थे उन्होंने कम से कम मीटिंग के बाद 10 दिन का समय लिया फिर उसके बाद अपनी इज्जत बचाने के लिए बौद्ध महोत्सव लिखने के लिए राजी हुए।
ऐसा प्रतीत होता है कि लोगों को बौद्ध धर्म और बाबा साहब के मिशन से कोई लेना देना नहीं है सिर्फ अपनी दुकान चलाना चाहते हैं।
दूसरी बात- लिखा गया कि यह एक अंतरराष्ट्रीय बौद्ध महोत्सव है लेकिन हैरानगी कि यह बात रही कि पूरे 3 दिन के अंदर कोई एक भी अंतरराष्ट्रीय स्तर के भिक्खु और भिक्खुनी उपस्थित नहीं थे जिससे कि हम पूरे देश को यह बता सकें कि यह एक अंतरराष्ट्रीय स्तर का महोत्सव था।
भंते सुरई ससाई को बहुत ही मजबूरी में आमंत्रित किया गया। वह पिछले सालों से नागार्जुन फाउंडेशन के अंतर्गत कार्यक्रम के एक संयोजक थे। इसी कारण से लोग उन्हें बुलाना नहीं चाह रहे थे।
तीसरी बात- महोत्सव कार्यक्रम के घोषणा के बाद रातों रात दो संगठन तैयार किए गए जिसका उन्होंने कहीं पर भी यह जिक्र नहीं किया अपने पाम्पलेट में की इसका रजिस्ट्रेशन नंबर क्या है।
चौथी बात- हैरानगी कि यह रही 40 से 50 भिक्खु तैयार किए गए जिसमें सिर्फ कुछ ही सही मायने में संपूर्ण रुप से भंते बोल सकते है अन्यथा ज्यादातर सामनेर भी नहीं थे और ना ही उनके अंदर पंचशील बुद्ध वंदना के बारे में जानकारी थी बाकी की चीजें तो बहुत दूर की बात है और उनका भी यह अनादर किया गया की उनको अपने हाल पर छोड़ दिया गया और फिर उनको वहां से निकाल दिया गया।
खाने-पीने का इंतजाम भी वहां के स्थानीय और नागार्जुन फाउंडेशन के आयोजक नंदेश्वर और उनकी पत्नी द्वारा किया गया क्योंकि वह यह सब चीजें नहीं देख पाए थे और फिर ज्यादातर भिक्खु छत्तीसगढ़ छोड़कर भी चले गए वह लोग महोत्सव तक भी नहीं रुके।
पांचवी बात- स्टेज के ऊपर पिछले 3 सालों से अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम के अंदर बाबासाहब का फोटो लगाया जाता था और उनकी भी वंदना और फूल अर्पण किए जाते थे। इस बार लोगों ने जानबूझकर बाबा साहब अंबेडकर का फोटो नहीं लगाया और ना ही 3 दिन तक किसी ने ओपन स्टेज के ऊपर कोई चर्चा की गई।
जो भी सिरपुर गये दबाव डाला गया और उनसे रसीद कटवाई गई, जो कि एक यह बहुत ही शर्मनाक बात है।
3 दिन तक कुछ लोग यह इंतजार करते रहे कोई भिक्खु ओपन स्टेज पर वक्ता के रूप में बौद्ध धर्म के ऊपर बातें करेंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ सिर्फ एक या दो को छोड़कर वह भी उनके आग्रह करने पर कि हमें बोलना है तब जाकर उनको मौका दिया गया।
गौर करने वाली बात यह है कि सिरपुर में कॉलेज ऑफ हायर स्टडीज ऑफ बुद्धिज़्म को लेकर 2017 से भरपूर कोशिश रही हैं, क्योंकि सिरपुर एक ऐसी जगह है जहां पर आप कंस्ट्रकशन नहीं कर सकते हैं, इसलिए सिरपुर में ही एक कॉलेज बने जो सिर्फ बुद्धिज़्म से ही संबंधित हो।
छठवी बात की बुद्धिस्ट स्कॉलर्स जिन लोगों ने बौद्ध धम्म कि शिक्षा प्राप्त की है और क्वालिफाइड हैं, विश्वविद्यालय से उन्हीं को ही आमंत्रित किया जाता है लेकिन इस बार सिर्फ दो से तीन ऐसे वक्ता मिले जिन्होंने अपनी बात रखी।
मैं आपको अंत में एक बात जरूर बताना चाहूंगा ऐसा प्रतीत होता है कि बहुजन समाज का वोट एक पार्टी विशेष की तरफ बदलने की कोशिश की जा रही है इस पर विचार करना होगा।
जो लोग 2021 में विश्वविद्यालय खोलने की बात करते हैं उनको मैं ध्यान दिलाना चाहूंगा कि 2019 में जब नई शिक्षा नीति (New Education Policy ) पर काम करना था विरोध करना था उन लोगों ने नई शिक्षा नीति को समर्थन दिया है जो कि एक बहुजन समाज की कमर तोड़ने वाली बात है...!
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