दैनिक स्वदेश के वरिष्ठ प्रबंधक पन्नालाल गौतम नहीं रहे

गिरीश पंकज

 

दैनिक स्वदेश के वरिष्ठ प्रबंधक पन्नालाल गौतम (72 वर्ष) नहीं रहे। यह खबर मेरे लिए भी पीड़ादायक है। गौतम से मेरा संबंध चालीस साल पुराना रहा। जब मैंने 1979 में दैनिक युगधर्म ज्वाइन किया, तब पन्नालाल जी वहां कैशियर थे।  

जब तक मैं युगधर्म में था, तब तक उनसे लगभग रोज मुलाकातें होती थी।  बाद में मैं दूसरे अखबार में काम करने चला गया, फिर भी अक्सर प्रेस क्लब या अन्य स्थलों में पन्नालाल से आत्मीय मुलाकातें होती रहीं। फिर एक ऐसा दौर आया, जब गौतम स्वदेश से जुड़ गए और मैं भी स्वदेश में संपादक होकर पहुंचा। महीनों वहां रहा और फिर लगातार गौतम जी से वही आत्मीय मुलाकाते होने लगीं।  

गौतम अपनी विचारधारा के स्वदेश के साथ जुड़े रहे । मुसीबतों के बीच भी कभी उन्होंने स्वदेश का दामन नहीं छोड़ा। वित्तीय संकटों का समाधान करने के लिए वे निरंतर प्रयास करते रहे और मुसीबतों को हँस कर झेल जाया करते थे। और कोई होता तो सुविधाजनक जगह की तलाश करता, मगर अपनी विचारधारा के साथ प्रतिबध्द रहने वाले गौतम ने न तो युगधर्म का साथ छोड़ा, न स्वदेश को।

युगधर्म जब तक निकलता रहा, तब तक गौतम उसके  साथ जुड़े रहे । युगधर्म बंद हो गया तो उसके बाद स्वदेश शुरू हुआ , तो गौतम जी स्वदेश से जुड़ गए और अंतिम सांस तक स्वदेश को ही अपना घर समझकर अपनी सेवा देते रहे ।

जब मैं स्वदेश का संपादक था, तब मैंने देखा, तमाम विषम परिस्थितियों के बावजूद वे स्वदेश की प्रसार संख्या बढ़ाने में लगे रहे और कहां से विज्ञापन की व्यवस्था हो सकती है, इस दिशा में दौंड जी के साथ लगे रहे।  

ऐसे निष्ठावान लोग कम दिखाई देते हैं। वे स्वदेश  में नौकरी नहीं कर रहे थे। वरन स्वदेश को जी रहे थे।  

स्वदेश को अपना अखबार समझ कर दिन रात एक कर रहे थे।  ऐसे समर्पित लोग इस दुनिया में बहुत कम होते हैं।

पन्नालाल का जाना स्वदेश के लिए भी एक बड़ी क्षति है क्योंकि ऐसे समर्पित व्यक्ति किसी भी संस्थान को आगे बढ़ाने में सहायक होते हैं। अब उनके जैसा व्यक्तित्व मिल पाना बहुत कठिन है।

इसलिए आज संपूर्ण भावना के साथ मैं गौतम को याद कर रहा हूं और उन्हें शत-शत नमन कर रहा हूं । 


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