राजकुमार चौधरी के छत्तीसगढ़ी गजल

छत्तीसगढ़ी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर

द कोरस टीम

 

            1

    खावत हावे जे मन,  नंग्गत के माल मितान।
    गोंह गों ले फूलगे,  अब ऊंकर गाल मितान।।

    चतुरा मन के घर, चौबीस घंटा चढ़े तेलई,
    हमर चुल्हा मा रहिथे, राजे  हड़ताल मितान।

    नेता, बैपारी, अफसर,  इंकरे हाथ कटारी हे,
    गरीब जनता के रोज,  होथे हलाल मितान।

    पद पाइस, जन का पाइन, इंकरो जाड़ बुतागे,
    देखत हन अब उंकरे, बड़ बिगड़े चाल मितान।


    जेन समझथें, वो समझे, आएँ हें अम्मर खाके,
    हमर मुड़ी मा तो हर पल, ठाढ़े काल मितान।

             2

    तरिया मा काबर तँय, तँउरे बर नई सीखे।
    दौलत बने जोरे अऊ, बउरे बर नई सीखे।।

    दू अक्कड़ धनहा ला, बेच डारे औने-पौने,
    पुरखा के चिनहा ला, जतने बर नई सीखे।

    फरे आमा ला फकत, दुरिहा ले देखत हस,
    कूद-कूद के डारा ला, अमरे बर नई सीखे।

    भुँजागे जम्मो खेत, थोरिक पानी तो पलोते,
    दूसर के मुँही ला घलो, फोरे बर नई सीखे।

    गरूआ कस दूसर के, तँय सहिथस गारी-मार,
    एक्को बेर ठेंगा धरके,  बिफरे  बर नई सीखे।

    पीरा के परबत ला बोहे,   भले  रेंगथस तँय,
    बने करे, ककरो आगू मा कंदरे बर नई सीखे।

3

    नदी सुख गे हे, कछार मा जीयत हन।
    हम मन जिनगी ला, उधार मा जीयत हन।।

    रिहिस जुवानी तभे, चघे के जोम करन,
    अब तो उम्मर के उतार मा जीयत हन।

    सबो जिनिस ले मनखे हर, सस्ता होगे,
    घाटा ला सहि के, बजार मा जीयत हन।

    होगे बड़ नुकसान, सुखगे धान हमर,
    हम कइसे कहि दन, तिहार मा जीयत हन।

    अपन रिहिन ते मन तो मुँह फेरिन जम्मो,
    भइगे अब तुँहरे  दुलार  मा  जीयत हन।

    चारो कोती दुख - पीरा  हर लहरावत हे,
    अब  संसो के बीच  धार  मा जीयत हन।

            4

    इही हाथ मजबूत हथौड़ा, सबर दिन पोटारे हन,
    जांगर टोर कमा के संगी, हमी पसीना गारे हन।।

    सकलावत हे धनहा डोली, गाँव सहर सब मिंझरत हे,
    नई बाँचीस छईंहा रूखचा के, जंगल हमी उजारे हन।

    बूड़े  कतको साहब मन,  भस्टाचार  के दहरा मा,
    पानी चहा पिया-पिया के, आदत हमी बिगाड़े हन।

    खोर गली मा रोज्जे हबरय, नेता बन चिरकुटहा मन,
    धोखा खाके अपन मुड़ी मा हम उन ला बइठारे हन।

    गुनत हवन खलिहाये मा, कतका पान गवाँ डारेन,
    कपट करइया बर हिरदे के राचर हमी उघारे हन।

    लूटे के  मनमाने, जब्बर होड़,  इंहा  माते रहिथे,
    भागत हे जे संदूक धर के, तउने ला लड़हारे हन।

    दिया बुतावत हवे धरम के कचरा कर दिन पापी मन,
    जिनकर चाला दानव कस हे, उंकरे पाँव पखारे हन।

 5

    दिखथँय जइसन रूप मा, जनाय नहीं कोनो हर।
    कतको कहिबे सच ला, पतियाय नहीं कोनो हर।।

    मनखे ले जादा हे,  फकत  पइसा के मान इँहा,
    तीन मा  गरीब ला,   बइठाय  नहीं  कोनो हर।

    सबे इंहा  ढुलमुल हे, बिन पेंदी के लोटा कस,
    जानत रहिथें  भेद  ला, बताय  नहीं कोनो हर।

    गीता के  किरिया  खवई, अब  तो रसम होगे,
    सिरतों   निरदोस ला, बचाय  नहीं  कोनो हर।

    पूछ लिहीं  हालचाल, बर - बिहाव के पहिली,
    ठलहा संग  बेटी ला,  भँवराय  नहीं कोनो हर।

    बिकास के गंगा  बोहाये बर,  सबे पागा बाँधे हें,
    गिरे परे ला  ‘रौना’ इंहा, उचाय  नहीं कोनो हर।


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