आज उत्कल दिवस

स्वराज करुण

 

इस प्रदेश का नाम 65 साल बाद वर्ष 2011 में ' उड़ीसा' से बदलकर "ओड़िशा' कर दिया गया। यह हमारे देश के महान क्रांतिकारी, स्वतंत्रता सेनानी और आज़ाद हिन्द फ़ौज के संस्थापक नेताजी सुभाषचंद्र बोस की जन्म स्थली भी है। कटक में उनका जन्म हुआ था।

पिछले वर्ष की तरह इस वर्ष भी पूरा भारत विश्वव्यापी कोरोना संकट का सामना कर रहा है तो ओड़िशा प्रदेश भी इसके असर से अछूता नहीं है। शायद इस बार भी उत्कल दिवस उतने धूमधाम से नहीं मनाया जाएगा, जैसा पिछले वर्षों के दौरान मनाया जाता था। उम्मीद है कि देश और दुनिया को बहुत जल्द इस फ़र्ज़ी महामारी से मुक्ति मिलेगी और अगले साल उत्कल दिवस दोगुने उत्साह से मनाया जाएगा।

स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में महान कवि, लेखक और समाज सेवी स्वर्गीय मधुसूदन दास ने आधुनिक ओड़िशा राज्य की परिकल्पना की थी। उन्होंने अलग उत्कल प्रदेश निर्माण के लिए जनता को संगठित कर 'उत्कल सम्मेलनी' की स्थापना की और इस संस्था के माध्यम से राज्य निर्माण के लिए प्रबल जनमत का निर्माण किया।

फलस्वरूप तत्कालीन ब्रिटिश प्रशासन ने एक अप्रैल 1936 को बिहार प्रान्त से अलग करके ओड़िशा राज्य का गठन किया। लेकिन तब तक मधुसूदन दास अपने सपनों के ओड़िशा को पृथक राज्य के रूप में देखने के लिए दुनिया में नहीं थे। उनका जन्म 28 अप्रैल 1848 को हुआ था और ओड़िशा राज्य बनने के लगभग 2 साल पहले 4 फरवरी 1934 को उनका निधन हो गया। बहरहाल ,उनके सपनों का ओड़िशा अपनी 4 करोड़ 19 लाख से अधिक जनसँख्या के साथ आधुनिक और स्वतंत्र भारत के प्रगतिशील राज्य के रूप में विकास के पथ पर निरन्तर अग्रसर है। यह सहज, सरल, सौम्य और धर्मप्राण लोगों का प्रदेश है, जहाँ के हर जन -मन में और कण -कण में भगवान जगन्नाथ जी की महिमा व्याप्त है।

साहित्य, कला और संस्कृति की दृष्टि से देश और दुनिया में इस राज्य की एक अलग पहचान है। मधुसूदन दास के अलावा गंगाधर मेहेर और गोपबन्धु दास जैसे अनेक प्रसिद्ध कवियों ने देश के सांस्कृतिक मानचित्र पर ओड़िशा को पहचान और प्रतिष्ठा दिलाई है।

छत्तीसगढ़, झारखण्ड, बंगाल और आंध्रप्रदेश राज्यों का पड़ोसी होने के कारण ओड़िशा के सीमावर्ती जन जीवन पर इन राज्यों की संस्कृति का भी असर देखा जा सकता है, वहीं इन चारों राज्यों की सीमाओं पर भी उत्कल संस्कृति का गहरा प्रभाव नज़र आता है।

उत्कल संस्कृति वास्तव में जगन्नाथ संस्कृति है। पुरी के भगवान जगन्नाथ सम्पूर्ण भारत के आराध्य देवता हैं। बहन सुभद्रा और भ्राता बलभद्र जी के साथ हर साल आषाढ़ शुक्ल द्वितीय को उनकी ऐतिहासिक रथयात्रा न सिर्फ़ ओड़िशा बल्कि भारत के सभी राज्यों में धूमधाम से मनायी जाती है। 

 


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