प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण स्थल ओनाकोना
डॉ. अशोक आकाशछत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से करीब एक सौ दस किलोमीटर दूर धमतरी जगदलपुर राष्टीय राजमार्ग पर राजाराव पठार से करीब तीन किलोमीटर पूर्व दिशा में बालोद जिला के अंतिम छोर गंगरेल जलाशय के तट में स्थित ग्राम ओनाकोना हमारे छत्तीसगढ़ अंचल के लिए एक जाना पहचाना नाम है। अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए विख्यात ग्राम ओनाकोना में पूरे छत्तीसगढ़ अंचल के सैलानियों का आगमन होता है। इस स्थल पर नवनिर्मित मंदिर एवं उसकी भव्यता देखते बनती है।

गंगरेल जलाशय के डुबान क्षेत्र होने के कारण इसकी भव्यता और भी निखर कर सामने आती है। जलाशय का लबालब पानी और जंगल की सुरम्य मनमोहकता लोगों के आकर्षण का केंद्र बिंदु है।
गॉव का नामकरण बसावट एवं आजीविका के साधन
ओनाकोना गांव का नाम शायद इसीलिए पड़ा होगा कि यह गांव बियाबान जंगल के एक कोने पर स्थित है जहां यह दुनिया से बिल्कुल अलग थलग जान पड़ता है। शायद इसीलिये इसका नाम ओनाकोना पड़ा होगा। इस बस्ती की बसावट पहाड़ी ढलान में जंगल की तलहटी पर सड़क के दोनो किनारे पठार है, बस उसी में यह बस्ती बसी हुई है। इस बस्ती में लोग अपने जीवन यापन के लिए पूरी तरह जल जंगल और जमीन से जुड़े हुए हैं। इसके आसपास कोई बड़ी बस्ती भी नहीं है इसलिए यह दुनिया से कटा-कटा सा महसूस होता है। यहां के निवासियों का जीवन पूरी तरह से जल जंगल और जमीन पर आश्रित है शायद यहां के लोग मत्स्य पालन और आखेट के माध्यम से अपनी आजीविका का निर्वहन करते होंगे। महुआ, तेंदूपत्ता इमली आदि अन्य वन्य सम्पदा इनकी आजीविका के साधन होंगे, क्योंकि कोई बड़ी उपजाऊ जमीन यहां पर नहीं है, जहां से हम उपज की आशा कर सकें।गंगरेल जलाशय के पटाव एवं डुबान क्षेत्र में सब्जी भाजी की खेती की जाती है। खेती के साथ यहां आने वाले पर्यटकों के नौकायन से भी यहां के लोग अपनी आजीविका चलते है।
ओनाकोना में निर्माणाधीन मंदिर
ओनाकोना स्थित निर्माणाधीन मंदिर फुटान परिवार द्वारा बनवाई जा रही है जो कि बहुत सुंदर बनाई जा रही है। इस मंदिर की भव्यता की तुलना कहीं-कहीं खजुराहो की शिल्प शैली और कहीं कहीं फणीनागवंशी राजा के समय की मूर्ति शिल्पशैली से मिलती है। गौतम बुद्ध, सूर्य, चन्द्रमा, नाग, सिंहासन में विराजमान राजा की मूर्ति की भव्यता मंदिर के पृष्ठभाग को सुशोभित कर रहे हैं। मंदिर के अग्र भाग में नर्तक एवं नर्तकियों की विभिन्न शैली में उकेरी गयी मूर्तियॉ बरबस ही दर्शकों का ध्यान आकर्षित कर देती है। वास्तुकला की विभिन्न शैलियों के समायोजन से यह मंंदिर तीन खंड में निर्मित किया जा रहा है। यह भव्य मंदिर भगवान शंकर को समर्पित मंदिर है जिसके पूर्व पश्चिम एवं उत्तर में एक एक दरवाजा है। मंदिर के तीनों दरवाजे एवं दिशा, मंदिर निर्माण में वास्तुशिल्प के महत्व को रेखॉकित करता है। यहां की शिल्प शैली नव निर्मित अन्य मंदिर की शैली से भिन्न है।
निर्माणाधीन मंदिर की भव्यता
भगवान शंकर को समर्पित यह मंदिर वास्तुकला की दृष्टि से आज के निर्माण कार्य को चुनौती देती प्रतीत होती है। मंदिर के चारों तरफ नर्तकियों, नायक और नायिका की विभिन्न मुद्रा में मूर्ति उकेरी गयी है। मंदिर के अंदर नायक नायिका साथ ही पक्षियों की भी सुंदर सुंदर आकृतियॉ है। मंदिर की ऊंचाई भव्यता एवं कलात्मकता आधुनिक काल में निर्मित अन्य मंदिरों से भिन्न है। यह अपनी भव्यता के लिए अभी से विख्यात हो चुकी है। रोज इस गांव में सैलानियों का आना जाना लगा रहता है। सुबह से लेकर शाम तक सैलानी आते जाते रहते हैं। मंदिर निरीक्षण करते, तट की मनोरम शोभा निहारते, नौकायन करते, युवा जोड़े यहॉ बरबस ही आकृष्ट हो जाते हैं। मंदिर के निचले भाग में युवा जोड़ों की मादक शैली में विभिन्न मुद्रा युवा सैलानियों के लिये आकर्षण का केन्द्र बिंदु है।दूर पहाड़ों की शोभा दर्शनीय है जो कि हर किसी को बार बार आने प्रेरित करता है। वर्षा ऋतु में यहॉ की शोभा अधिक रमणीय होती होगी। जंगल की हरियाली और विशाल जल क्षेत्र का नजारा देखते बनता होगा।
निर्माणाधीन सड़क पर बहुत कठिन परिस्थिति में हम आगे बढ़ते हुए आदिवासी तीर्थ राजाराव पठार पहुंचे। यहां प्रति वर्ष दस दिसंबर को भव्य बीर मेला लगता है। शहीद वीरनारायण सिंह की त्याग बलिदानी और गौरव गाथा के आठ दिवसीय पर्व में आठ से दस लाख लोगों की उपस्थिति रहती है। यहीं से दायॉ रास्ता अंगारमोती गउ घाट और बायां रास्ता ओनाकोना के लिये इंगित किया गया है। कुछ ही मिनट के अंतराल में हम ढलान उतर कर ओनाकोना गांव पहुंच गये।
वनश्री उद्यान की सुरम्यता
अभी यहां तक बिजली नहीं पहुंच पाया है इसके बावजूद सौर पंप के माध्यम से बारह महीने तरह तरह की खेती की जाती है। बिजली उपलब्ध हो जाने पर भविष्य में वहां समुन्नत खेती की आधारशिला खड़ी की जा सकती है। वहां काम करने वालों से हमें पता चला कि घने जंगल के बीच इस हरे भरे उद्यान वनश्री में नीलगाय, जंगली सुअर हर रात हमला होता है।बालोद जिले में भ्रमण के दौरान चंदा हाथी के बाईस एवं पच्चीस सदस्यी दल ने दो बार हमला बोल फसलों को तबाह तो किया ही, सोलर पंप उखाड़ दिये थे, कटीले बाड़ को भी तहस नहस कर दिया था। हमने देवश्री उद्यान के सुरम्य वातावरण में कुछ समय गुजारे और समय की नजाकत को देखते हुए सबसे इजाजत लेकर आगे बढ़े। हमारी लालसा थी, जब इतनी दूर आ गए हैं तो मंदिर दर्शन किया जाए। देव जोशी जी के साथ हम मोटरसाइकिल से ओनाकोना की तरफ गए।
ओनाकोना में मंदिर दर्शन
मंदिर तक पहुंचने के लिए हमें गांव की संकरी गली से होकर गुजरना पड़ा। छोटा सा गांव और गांव के बहुत सीधे और सरल लोग सब बहुत अच्छा लगा। पूछने पर बहुत ही तहजीब से हमें मंदिर तक जाने का रास्ता उन्होंने बताया, हम मंदिर तक पहुंचे। मंदिर का निर्माण कार्य अभी रुका हुआ है, गर्भगृह में शिवलिंग रखने का स्थान बन चुका है। इतना बड़ा निर्माण कार्य है कि इसे बनाने में वर्षों का समय लगा होगा और धन भी बहुत ज्यादा उसमे खर्च किया गया है। लोगों से पता चला धमतरी निवासी गट्टी फुटान द्वारा लगभग दो करोड़ रुपये की लागत से यह भव्य मंदिर निर्मित की जा रही है। इस मंदिर के कारण यहॉ का प्राकृतिक सौंदर्य एवं सुरम्य नजारा पूरे छत्तीसगढ़ में अपनी उज्ज्वल कीर्ति बिखेर रहा है। यह मनोरम स्थल अपने आप में विशेष महत्व रखता है।
सहेजने सरकार की सहभागिता जरूरी
धीरे-धीरे हम गोधूलि वेला की ओर अग्रसर हो रहे थे। सूरज पश्चिम प्रस्थान की ओर था, जिससे यहॉ की सुरम्यता और चहल पहल बढ़ चुकी थी। इससे इस पावन स्थल में सूर्योदय कैसा होता होगा यह अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है। सामने बांध और वनाच्छादित पहाड़ियों की रौनक देखने लायक थी। रास्ते पर जंगल के दोनों तरफ पेड़ पौधों पर खिले फूल एवं कलियों की मादक सुगंध से मन प्रफुल्लित रहा। इस फागुन महीने में वासंती जंगल का सौंदर्य धरती को स्वर्ग बना देता है। जंगल रहेगा तब यह सौंदर्य रहेगा और जल रहेगा तब कल रहेगा।
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