किसी औरत को जलाकर मनाए जाने वाला त्योहार कभी उत्सव हो नहीं सकता
उत्तम कुमारमुझे भी कहानी बहुत पसंद है। अक्सर बचपन में मैं अपने बड़े बुजुर्गों से कहानियां सुनाने के लिए जिद करता था और कहानी सुनकर ही चैन की नींद सो पाता था। आज जबकि यह संभव नहीं कहानियों के लिये पुस्तक पढ़ता हूं।

और चाहता हूं कि आप भी कहानियां पढ़ें। आपने तो होली पर तरह-तरह की कहानियां सुन रखी होगी। और उन कहानियों पर विश्वास भी करते होंगे। आज मैं भी एक कहानी आपको सुनाना चाहता हूं।
भारत में निवासरत मूलनिवासी कहते हैं कि यह सच्ची कहानी है। अगर कहानी वास्तविक और तथ्यपरक इसकी जानकारी तो होनी ही चाहिए। अगर आपको कहानी सुनने की चाहत है तो होली दहन से पूर्व यह कहानी आपको आपके करतूत से बचा सकती र्है।
होलिका दहन की सच्चाई पर से पर्दा उठाते हुए इस कहानी को भी सुने ले, हो सकता है आने वाले पीढिय़ों को आप सच बताने सुनाने में सफल हो।
भारत की कई पीढ़ी सिर्फ काल्पनिक तथा लोकगाथा के रूप में दंतकथा सुनती आईं है सच सुनने की आदत नहीं है। बहरहाल कहानी शुरू करते हैं -
प्राचीन काल में लखनऊ के समीप हिरण्यकश्यप नामक राजा राज करता था। अनार्य होने के कारण वह आर्य नायकों विष्णु, राम, हरि का घोर विरोधी था।
इसलिए उसके राज्य को हरिद्रोही कहा जाता था, जो आज हरदोई कहलाता है। हिरण्यकश्यप का पुत्र व्यसनों में पडक़र आवारा हो गया था। सुधार के तमाम प्रयास विफल हो जाने पर राजा ने उसे घर से निकाल दिया था।
राजा के विरोधियों ने मौका पाकर उसे अपने साथ मिला लिया। अब वह आवारा मंडली के साथ रहने लगा। जैसा कि आमतौर पर होता है प्रहलाद की बुआ होलिका का स्नेह उसके प्रति फिर भी बना रहा, वह रोज शाम को राजा की नजर बचाकर आंचल में छिपाकर उसे खाना खिलाने जाने लगी।
एक दिन जब वह खाना लेकर गयी तो प्रहलाद व उसके दोस्त नशे में धुत थे। दोस्तों ने होलिका के साथ व्याभिचार किया। भेद खुल जाने के भय से होलिका को मार डाला। सबूत मिटाने के लिए लाश को रातों रात जलाया गया।
इसके लिए रात में जहां से जिस रूप में लकड़ी मिली जैसे किसी को खाट, किसी को चौकी, दरवाजा, छप्पर आदि वे उसे लाश पर डालते चले गये और आग लगा दी। होली की लकड़ी एकत्र करने के लिए लगभग वही प्रक्रिया आज भी जारी है तथा नशे का भी प्रचलन है।
जब राजा को इस बात का पता चला तो उसने प्रहलाद समेत पूरी आवारा मंडली को गिरफ्तार करवा लिया। हिरण्यकश्यप न्यायप्रिय राजा था। अपराध में अपने पुत्र के शामिल होने के कारण उसने स्वयं न्याय न कर मामला न्याय पंचायत को सौंप दिया।
न्याय पंचायत ने फैसला दिया कि अबला नारी को मारना कायरता है अत: दोषी लोग वीर नहीं अ-वीर हैं, कायर हैं। इसलिए इनको कायरता का टीका (अबीर) लगाकर मुंह काला करके गधे पर बैठाकर गले में जूते चप्पल की माला डाली जाय और नगर में घुमाया जाय।
आज भी अक्सर ऐसा जुलूस निकाला जाता है जिसे लोग होली की बारात कहते हैं।
समय बीतता गया लोग घटना को भूलते चले गये। दोषियों ने इसे उल्टा रूप देकर कलंक का टीका सभी के माथे पर लगा दिया।
हमारे पूर्वजों ने कायरों के माथे पर कलंक का टीका लगाया था, आज हम उसे सम्मान समझकर खुद लगा रहे हैं। फैसला आपके हाथ हैं कि आप कायर बनें या फिर शेर।
इस कहानी को सुनने के बाद हमें यह सीख मिलती है कि होली समय व धन की बर्बादी है। जो धन आप होली पर रंग, तेल, साबुन, पानी व रंग की बर्बादी पर खर्च करते हैं उसे अपने बच्चों की शिक्षा व परवरिश पर खर्च करें।
होली के नाम पर एक ही दिन में लाखों टन लकड़ी व्यर्थ में फूंक दी जाती है जिससे वातावरण में जहरीली गैसें भर जाती है। कृपया लकड़ी व पर्यावरण को आने वाली पीढ़ी के लिए सुरक्षित रखें।
रंगों से अक्सर चर्म रोग हो जाते हैं इनसे बचें। तथा अंतिम सीख यह कि नशा करना एवं जुआ खेलना एक सामाजिक अपराध है जिससे घर बर्बाद होते हैं। होली पर इससे बचें।
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28/03/2021
Dr yaspal singh nirala
बेहतरीन सत्य लेख,
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