झिटकुमिटकी: आदिवासी प्रेमी युगल की प्रेमकथा
दीप्ति ओग्रेअभी तक प्यार में केवल हीर-राँझा, रोमियो-जूलियट और सोहनी-महिवाल के किस्सों को ही आपने सुना होगा। और इन्हें ही अपना आदर्श मानकर प्रेम के समंदर में गोते भी लगाते होंगे। आज मैं आपको हमारे छत्तीसगढ़ के अमर प्रेमी युगल के बारे में बताती हूँ।

जिसे यहाँ के लोग अपना आदर्श मानते हैं, जिन्होंने प्रेम के लिए अपनी जान दे दी। जी हाँ, आदिवासियों का आदर्श प्रेमी युगल झिटकु मिटकी हैं, जिन्होंने अपने सच्चे प्रेम की खातिर कई सालों पहले जान दे दी थी।
प्रेम का खुमार केवल हाई सोसाइटी या फिर बड़े शहरों में नहीं, बल्कि आदिवासी अंचलों में भी बखूबी देखा जा सकता है। आज भले ही प्यार का संदेश देने वाले संत वेलेन्टाइन के जन्मदिन को शहरों में चमक-दमक के साथ मनाने की परंपरा चल पड़ी है, लेकिन आदिवासी भी इस मामले में पीछे नहीं हैं।
उनके यहाँ प्यार के लिए प्राण न्योछावर करने की उदात्त परंपरा सदियों से चली आ रही है। इसका उदाहरण 'झिटकु-मिटकी' पूरा करते है।
झिटकु और मिटकी की यह पुरानी अमर प्रेमगाथा बस्तर जिले के विकासखंड विश्रामपुरी के पेंड्रावन गाँव की है। इसके अनुसार गोंड आदिवासी का एक किसान पेंड्रावन में निवास करता था।
उसके सात लड़के और मिटकी नाम की एक लड़की थी। सात भाइयों में अकेली बहन होने के कारण वह भाइयों की बहुत प्यारी और दुलारी थी।
मिटकी के भाई इस बात से सदैव चिंतित रहते थे कि उनकी प्यारी बहन जब अपने पति के घर चली जाएगी तो वे उसके बिना नहीं रह पाएँगे, इस कारण भाइयों ने एक ऐसे व्यक्ति की तलाश शुरू की जो शादी के बाद भी उनके घर पर रह सके। वर के रूप में उन्हें झिटकु मिला, जो भाइयों के साथ काम में हाथ बँटाकर उसी घर में रहने को तैयार हो गया।
गाँव के समीप एक नाला बहता था, जहाँ सातों भाई और झिटकु पानी की धारा को रोकने के लिए छोटा-सा बाँध बनाने के प्रयास में लगे थे। दिन में वे लोग बाँध बनाते थे और शाम को घर चले जाते थे, लेकिन हर रात पानी बाँध की मिट्टी को तोड़ देता और उनका प्रयास व्यर्थ हो जाता था। एक रात एक भाई ने सपने में देखा कि इस कार्य को पूर्ण करने के लिए देवी बलि माँग रही है।
अंधविश्वास के आधार पर उन्होंने इस बात के लिए हामी भर ली और बलि के लिए झिटकु का चयन कर लिया। एक रात उन्होंने उसी बाँध के पास झिटकु की हत्या कर दी।
बहन को जब मालूम हुआ तो उसने भी झिटकू के वियोग में बाँध के पानी में कूदकर अपने जीवन को समाप्त कर लिया। इस बलिदान की कहानी जंगल में आग की तरह सभी गाँवों में फैल गई।
इस प्यार और बलिदान से प्रभावित होकर ग्रामीण आदिवासी झिटकू और मिटकी को देवतुल्य मानते है। और आज ये नाम कला रूप में आपको बस्तर के कोने-कोने में दिखेंगे।
वर्तमान समय में प्रेम ने कला का रूप ले लिया है जो इसे और अमर करती है।
यदि 14 फरवरी को मैं कोंडागांव नहीं गई होती तो झिटकू और मिटकी से मिल नही पाती 2021 का प्रेमदिवश मेरे लिए अच्छा रहा इतनी अच्छी कहानी हाथ लग गई।
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