गुम इतिहास :  वीरांगना कुईली

पीयूष कुमार

 

कुईली के पैदा होने के कुछ ही समय बाद खेतों मे घुस आए पशुओं को भगाने के समय उनकी मां की मृत्यु हो गयी। तब पेरियमुदन बेटी कुईली के साथ शिवगंगा की राजधानी में आ गए, जहां रानी वेलु नचियार का शासन था। यहां वे मोची का काम करके अपना गुज़ारा करने लगे। वे छोटी कुईली को उसकी मां की वीरता की कहानियां सुनाते थे जिसका उसके बालमन पर गहरा असर पड़ा। 

पेरियमुदन जल्द ही राजपरिवार के मोची बन गए। उन्हें और कुईली को महल में आने-जाने की अनुमति थी। ऐसे में रानी वेलु नचियार कुईली से रोज़ मिलने लगी और वह रानी की करीबी बनती गयी। कुईली ने अपने साहसी मिजाज के चलते उसने कई तरह के अस्त्र-शस्त्र चलाने सीखे और विभिन्न युद्ध कलाओं में पारंगत हो गई। एक रात जब रानी सो रही थी तो एक हत्यारे ने उन्हें मारने की कोशिश की।

तब कुईली जो वहीं सो रही थी, हत्यारे से लड़कर रानी की जान बचाने में सफल हुई। ऐसा करते हुए वह खुद घायल हुई। इसी तरह एक बार कुईली को पता चला कि उसके अपने गुरु रानी को मारने का षड्यंत्र कर रहे हैं तो उसने खुद अपने गुरु की ही हत्या कर दी! यह सब देखकर रानी वेलु नचियार अत्यंत प्रभावित हो गई और उन्होंने कुईली को अपना अंगरक्षक बना लिया।

रानी वेलु नाचियार के राज्य पर अंग्रेजों की नजर थी। वे चाहते थे कि शिवगंगा पर कब्ज़ा करने में कुईली उनकी मदद करे। उन्होंने कुईली को अपने साथ शामिल करने की कोशिश की पर असफल रहे। तब ब्रिटिश सेना ने शिवगंगा के दलित समुदाय पर हमला कर दिया ताकि अपने समुदाय के लोगों की तकलीफ देखकर कुईली अंग्रेज़ों से हाथ मिला ले।

जब रानी को यह बात पता चली, उन्होंने कुईली को अपना सेनापति बना दिया ताकि वह अपने लोगों की रक्षा के लिए अंग्रेजों से लड़ सके। कुईली इतिहास में पहली दलित महिला बनी जिसने सेना का नेतृत्व किया हो। अपने साहस और शौर्य के लिए उन्हें ‘वीरमंगई’ (वीरांगना) जैसे नामों से जाना जाने लगा।

18 वीं सदी के उत्तरार्ध में रानी वेलु नाचियार ने मैसूर के टीपू सुल्तान, उनके पिता हैदर अली और शिवगंगा के मरुदु पांडियर भाईयों के साथ अंग्रेजों के ख़िलाफ़ जंग में शामिल हुईं। उनकी सेना की महिला विंग का कुईली ने नेतृत्व किया। इन युद्धों में कुईली के पिता पेरियमुदन भी शामिल थे। शिवगंगा किला अंग्रेज़ों के कब्ज़े में था जो हमेशा ब्रिटिश सैनिकों से घिरा रहता था और किसी को अंदर जाने की अनुमति नहीं थी।

पूरे साल में सिर्फ़ नवरात्रि के आखिरी दिन, जब महिलाओं को विजयादशमी की पूजा करने के लिए किले के अंदर देवी राजराजेश्वरी अम्मा के मंदिर में जाने की अनुमति थी। सेनापति कुईली ने इसी मौके का फ़ायदा उठाया और एक नई रणनीति बनाई।
1780 में विजयादशमी के दिन कुईली अपनी महिला विंग के साथ शिवगंगा किले में घुस गई। सारी महिला सैनिक साधारण स्त्रियों के वेश में थी।

उन्होंने अपनी टोकरियों में फूल और प्रसाद के साथ अपने हथियार छिपाए थे। अंदर जाते ही कुईली किले के उस कमरे में चली गई जहां अंग्रेज़ों का शस्त्रागार था। इसके बाद उन्होंने वह किया जिसकी कल्पना तब तक किसी ने नहीं की थी। कुईली ने अपने शरीर पर बहुत सारा तेल और घी डलवा लिया था। अंग्रेजी शस्त्रागार जहां गोला बारूद जमा रखा था, वहां पहुंचते ही उन्होंने अपने हाथ में लिए दीपक से खुद को आग के हवाले कर दिया।

इस आग से शस्त्रागार एक बड़े विस्फोट के साथ नष्ट हो गया और वीरांगना कुईली ने इस तरह अपना बलिदान दिया। बलिदान के इस रूप में वे अपने तरह की वे पहली बलिदानी थीं। बिना हथियारो के अंग्रेजों को रानी वेलु नचियार  ने उन्हें आसानी से हरा दिया और शिवगंगा किले पर जीत हासिल कर ली। 
 


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  • 28/03/2021 Dr yaspal singh nirala

    बेहतरीन लेख इतिहासिक

    Reply on 30/03/2021
    धन्यवाद Dr yaspal singh nirala जी