तिहार के नांव म झन होय जल-जंगल के नास
गनपत, रायपुरहोरी तिहार ल परेम, भाईचारा अउ मेलजोल के तिहार कहे जाथे । फेर का करबे अब तिहार के रंग- रूप ह बिगड़त जावत हे। मनखे ह ए तिहार ल दारू, गांजा अउ भांग के बना लेहे। त दूसर डाहर हर साल तिहार के नाम म कतको पेड़मन के बलि चड़हत जावत हे अउ पीये बर पानी नइ हे फेर रंग घोर के रिकोवत हन।

एक डाहर परियावरन ल बचाय बर लकड़ी के चूल्हा नइ जलाय बर काहत हे त दूसर डाहर मनखे ह आसथा के नांव म भारी संख्या म पेड़ ल काट के जंगल के नास करत ।
एक डाहर पानी बचाय के आंदोलन चलत हे त दूसर डाहर तिहार के नांव म करोड़ो लीटर पानी ल फोकट म उलचत हे। ए ह गुने के गोठ आय।
का कोनो माइलोगिन ल जला के जसन मनाना उचित हे। हमर देस के संसकिरिति के रग-रग म मया-दुलार समाय हे।
फेर अइसन काकरो मउत म उच्छाह मनाना कतेक जायज हे।
भारी संख्या म लकड़ी ल नइ जला के अपन आस-पास पड़े कचरा ल सकेल के जलाना चाही। ए दिन कसम खाना चाही कि सबो बुराई ल तियाग के भाईचारा, सदभावना अउ परेम ल अपनाबो।
देस भर म परंपरा के नांव म परियावरन के साथ खिलवाड़ होवत हे। अपन आप ल जागरूक कहइया मनखे ह घलो ए दिन होलिका दहन बर जंगल अउ दूसर जगह ले लकड़ी सकेल के जलाथे। आज धीरे धीरे जंगल के नास होवत हे। एकर ले कई परकार के जीव- जंतु नंदावत घलो हे।
पेड़ -पौधा के हरियाली के नामो-निसान मेटावत हे। फेर हमन काबर परियावरन अउ खुद के नुकसान करे म अड़े हाबन। गांव हो या सहर सबो जगह होली के दहन करके खुसी मनाथन।
एकर बर कई पेड़मन के बलि देवा जथे। लकड़ी के जले ले हवा ह दूसित हो जाथे । एकर ले मनखे ल सांस ले म बड़ दिक्कत जाथे अउ फेफड़ा ले संबंधित कई बीमारी घलो हो जाथे। उहीं जले राख अउ लकड़ी ह तरिया-नदिया के पानी ल खराब कर देथे।
एक बात अउ समझ नइ आय कि हमन 8 मार्च के बड़ जोरसोर ले महिला दिवस मनाथन अउ माइलोगिनमन के सम्मान करथन।
ओकर बाद मार्च में ही एक महिला होलिका ल जला के खुसी मनाथन । ये कइसन समाज आय। ऐकर हमर अवइया पीढ़ी ल महिला के परति नफरत करे के सीख देवत हन।
हमन ल ए जुन्ना रूढ़ी-परंपरा ल छोड़ के परियावरन अउ समाज ल बचाय के कसम खाना चाही।
अब होलिका दहन बंद करके होलिका चमन के नांव ले जगह जगह पेड़ लगावन अउ महिलामन के परति परेम के संदेस देवत हरियाली फैलावन। अइसन होतीस त कतेक सुघ्घर लागतीस।
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