जिंदगी एक रंगमंच है और हम लोग इस रंगमंच के कलाकार
हरजिंदर सिंह मोटिया की कविता
सुशान्त कुमारविलियम शेक्सपियर ने कहा था कि जिंदगी एक रंगमंच है और हम लोग इस रंगमंच के कलाकार। सभी लोग जीवन को अपने- अपने नजरिये से देखते है। कोई कहता है जीवन एक खेल है, कोई कहता है जीवन ईश्वर का दिया हुआ उपहार है, कोई कहता है जीवन एक यात्रा है, कोई कहता है जीवन एक दौड़ है और बहुत कुछ।

दोस्तों जीवन में हमारे पास अपने लिए मात्र 35 सौ दिन (9 वर्ष और 6 महीने) ही होते हैं!
वर्ल्ड बैंक ने एक इन्सान की औसत आयु 78 वर्ष मानकर यह आकलन किया है जिसके अनुसार हमारे पास अपने लिए मात्र 9 वर्ष और 6 महीने ही होते हैं।
इस आकलन के अनुसार औसतन 29 वर्ष सोने में, 3-4 वर्ष शिक्षा में, 10'2 वर्ष रोजगार में, 9'0 वर्ष मनोरंजन में, 15'8 वर्ष अन्य रोजमर्रा के कामों में जैसे खाना पीना, यात्रा, नित्यकर्म, घर के काम इत्यादि में खर्च हो जाते है।
इस तरह हमारे पास अपने सपनों को पूरा करने व कुछ कर दिखाने के लिए मात्र 35 सौ दिन अथवा 84 हजार घंटे ही होते है!
लेकिन वर्तमान में ज्यादातर लोग निराशामय जिंदगी जी रहे हैं और वे इंतजार कर रहे होते हैं कि उनके जीवन में कोई चमत्कार होगा, जो उनकी निराशामय जिंदगी को बदल देगा।
सबसे पहले हमें इस गलत धारणा/सोच को बदलना होगा कि हमारे साथ वही होता है जो भाग्य में लिखा होता है।
वैज्ञानिकों के अनुसार भौंरे का शरीर बहुत भारी होता है, इसलिए विज्ञान के नियमों के अनुसार वह उड़ नहीं सकता।
लेकिन भौंरे को इस बात का पता नहीं होता एवं वह यह मानता है कि वह उड़ सकता है इसलिए वह उड़ पाता है।
मनुष्य का जीवन एक प्रकार का खेल है और मनुष्य इस खेल का मुख्य खिलाड़ी। यह खेल मनुष्य को हर पल खेलना पड़ता है।
चाहे खुश होकर खेले या दुखी होकर... जब खेलना ही है हर हाल में तो खुश होकर खेलो यार! मनुष्य दिन में 60 हजार से 90 हजार विचारों के साथ रहता है।
यानी हर पल मनुष्य एक नए दोस्त या दुश्मन का सामना करता है ।
मनुष्य का जीवन विचारों के चयन का एक खेल है। मनुष्य को विचारों के चयन में बड़ी सावधानी बरतनी पड़ती है क्योंकि मनुष्य के दुश्मन, मनुष्य को ललचाते हैं और मनुष्य को लगता है कि वही उसके दोस्त हैं।
जो लोग इस खेल को खेलना सीख जाते है वे सफल हो जाते है और जो लोग इस खेल को समझ नहीं पाते वे बर्बाद हो जाते हैं।
जाने माने रंगकर्मी हरजिंदर सिंह मोटिया रंगमंच और रंगकर्म से लबरेज और इससे परे जिंदगी और ख्याली दुनिया रचने की कमीनेपन और जद्दोजहद को अपनी कविता ‘अभिनय’ में उतारा है।
खेलता रहा नाटक
लिखता रहा कविता, कहानी
पढ़ता रहा साहित्य
लिखता रहा आलोचना
होना चाहिए था मुझे नाटककार
पर बन गया मैं पत्रकार
मेरे चाहने या न चाहने से
कुछ होता हैं भला
मां कहती थी
सब कुछ भाग्य में लिखा होता हैं
हर चीज जीवन की निर्धारित होती हैं।
आदमी के हाथ में कुछ नहीं होता।
मां थी, उसे झूठा कहना
उसके विशवास को तोडऩा
न मुझे सिखाया गया
न मुझ में उस विशवास को
तोडऩे का साहस था।
शायद इसलिए मै...
मौन रहकर मां की आस्था
और विशवास से
लड़ता रहा
उससे प्यार करने का
उसकी उम्मीदों पर खरा उतने का
अभिनय करता रहा...
भाई होने का अभिनय करता रहा
बेटा होने का अभिनय करता रहा
पति होने का अभिनय करता रहा
बाप होने का अभिनय करता रहा
देश का नागरिक, समाज का ठेकेदार
गरीबों का मसीहा, दुनिया तक को बदलने का
अभिनय करता रहा...
सच तो ये है
मैं अभिनय में भी, अभिनय करता रहा...
मंच पर अभिनय करता
तो हमेशा
दूसरों से बेहतर होने का
अभिनय करता रहा
किरदार के मर्म को
आत्मसात करने की बजाय,
बाजार में...
सर्वश्रेष्ठ होने के मर्म को
आत्मसात करता रहा
नाटक की उपयोगिता
और उसकी संवेदनाओं
को समझने से ज्यादा
मैं नाटक की कोरी सफलता
और दूसरों से सर्वश्रेष्ठ
होने का अभिनय करता रहा।
लिखता रहा कविता...
किसी सच के लिए नहीं
न किसी विद्रोह के लिए
न विरोध के लिए
न प्रेम के लिए...
सिर्फ इसलिए
कि मैं छपना चाहता
सर्वश्रेष्ठ पत्रिकाओं में
बौद्धिक जुगाली में
प्रशंसा के लिए
मैं लिखता रहा कविता
करता रहा अभिनय
कवि होने का...
छलता रहा खुद को
करता रहा हरपल
अभिनय...
लिखता रहा कहानी
पढ़ता रहा साहित्य
खोजता रहा
आम आदमी का दर्द
करता रहा षड्यंत्र
करता रहा अभिनय...
आम आदमी की आवाज
आम आदमी के दर्द पर
अपनी महत्वाकांक्षाओं का
महल खड़ा करता रहा...
लिखता रहा साहित्य...
रचता रहा अभिनय के
नित नए आयाम।
लिखता रहता साहित्य
करता रहता आलोचना
खेलता रहता नाटक
निरंतर जारी रहता हैं
मेरा अभिनय...
शब्दों की संवेदनाओं
कहानी की जरूरत
से ज्यादा
शब्दों की सजावट
और स्वयं की बनावट
का अभिनय ही
मेरी पूंजी रही
हमेशा...
बैठना चाहता था,
मैं सर्वश्रेष्ठ कुर्सी पर
पहुंचना चाहता था,
मैं शिखर तक...
लेकिन अपनी कमजोरियों को
अपनी विसंगतियों
को जानता था,
मैं और खूब समझता था
अपने अभिनय की बारीकियों को...
दूसरों की कमियों पर नजर
भ्रष्ट और उपयोगी लोगों
पर पकड़
ज्ञान की कीमत
सिर्फ वही समझ सकता है
जो अभिनय करना जानता हैं।
Your Comment
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20/09/2022
Ashish kumar rawat
मुझे आपकी कविता बहुत अच्छी लगी और हम आपसे बात करना चाहते हैं हम इस समय पेंटिंग की पढ़ाई शांतिनिकेतन के कलाभवन से MFA कर रहे हैं जो आपकी कविता का विषय है हम भी उसी पर काम कर रहे हैं
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