पत्थलगड़ी केस वापसी के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति कर रही है झारखंड सरकार

 ग्लैडसन डुंगडुंग


सरकार गठन के तुरंत बार मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने पत्थलगड़ी से संबंधित सभी मुदकमों को वापस लेने की घोषणा की थी, जिसके लिए सरकार ने खूंटी, पश्चिमी सिंहभूम एवं सरायकेला-खड़सावां जिलों में जिला लोक अभियोजक, पुलिस अधीक्षक एवं उपायुक्त की तीन सदस्यी समिति का गठन किया था।

लेकिन इन समितियों ने सभी मामलों को वापस लेने के बजाय सिर्फ खनापूर्ति की है और इन्ही प्रतिवेदनों को मुख्यमंत्री ने स्वीकृति दी है।

ज्ञात हो कि पत्थलगड़ी मामले में भाजपा सरकार ने 30 मुकदमें दर्ज किये थे, जिनमें 23 मामले खूंटी जिले में, सरायकेला-खड़सावां में 5 मामले एंव पश्चिमी सिंहभम में 2 मामले दर्ज करते हुए 11,776 लोगों को अभियुक्त बनाया गया था, जिनमें 316 नामजद एवं 11,435 बेनाम लोग शामिल हैं।

30 मुकदमों में से 20 मामले देशद्रोह से संबंधित हैं, जिसमें खूंटी जिले में 18 एवं सरायकेला-खड़सावां जिले से संबंधित 2 मामले हैं। देशद्रोह के मामले में 11,544 लोगों को अभियुक्त बनाया गया था, जिनमें 259 नामजद एवं 11,285 बेनाम लोग शामिल हैं।

झारखंड सरकार के द्वारा गठित पश्चिमी सिंहभूम एवं सरायकेला-खरसावां जिले की समितियों ने सभी 7 मामलों को वापस लेने की सिफारिश की है जबकि खूंटी जिले की समिति ने दर्ज 23 मामलों में से सिर्फ 12 मामलों को ही वापस लेने की सिफारिश की है।

सबसे हास्यास्पद बात यह है कि समितियों ने दर्ज 30 मुकदमों में से सिर्फ 19 मामलों को वापस लेने की सिफारिश की है, जिनमें 13 मामले द्रेशद्रोह से संबंधित हैं एवं 6 अन्य अपराधिक मामले हैं। समितियों ने 7 मामलों में सिर्फ भारतीय दंड संहिता की धारा 121ए एवं 124ए को हटाने की सिफारिश की है जबकि 4 मामलों में कोई मंतब्य नहीं दिया है।

जिन 11 मामलों को बरकरार रखा गया है वे सभी खूंटी जिले से संबंधित हैं, जो खूंटी के मुंडा आदिवासियों के साथ सरासर अन्याय है।

इसलिए मैं मांग करता हूं कि झारखंड सरकार खूंटी जिले की समिति के सिफारिश को खारिज करते हुए पत्थलगड़ी से संबंधित तीनों जिलों के सभी 30 मामलों को वापस लें। यही आदिवासियों को असली न्याय देना होगा। 


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