गोण्डीयन इकोनॉमी (हाटुम)  

नारायन मरकाम

 

इकोनॉमी कि गति प्रकृति की ओर हाटुम के प्रकार साप्ताहिक वार्षिक रोजाना (7 घंटे) रोजाना (21 घंटे) थी।

इकोनॉमी में संतुष्टि थी...इसलिए ठगी चोरी नहीं थी.... क्योंकि जनता में नैतिकता थी और यह सब इसलिए क्योंकि  उनका ऐजुकेशन सिस्टम गोटूल था।

हाटुम में पेन नियंत्रण था। जिससें धोखाधड़ी की संभावना नहीं थी। इसलिए लेन - देन में संतुष्टि थी। लोगों में खुशी थी।

पुलिस ,जेल, कोर्ट कि जरुरत नहीं थी।

जमीन/भूमि अहस्तांतरणीय थीं।  

इसलिए बेटियां चल संपत्ति पर और बेटे अचल संपत्ति अधिकार रखते थे।

पर बेटों की सम्पत्ति भी टोटोमिक वंश की सयुंक्त सम्पत्ति होती थी।

इससे बेटी की बेटी के पास पुन: अपने मां के पिता कुल- वंश- टोटम  कि अचल संम्पत्ति की वाहक बनने का सुअवसर सदैव बना रहता था। 

इससें कोयतोरियन समुदाय हमेशा एकजुट रहा।

भूमि हमेशा अक्षुण्य बना रहा। खुशहाली इंडेक्स उच्चतम स्तर पर सतत रहा।

मुद्रा चूंकि खुशी थी इसलिए यह हमेशा प्रवाहमान थी।

वर्तमान मुद्रा की खोज ने विनाशक प्रभाव डाला।

इस पर अर्थशास्त्री रिकार्डो रचित ‘वेल्थ आफ नेशन’ में  ‘मुद्रा और भूमि’ का घालमेल, ‘स्वर्ण मान’ और  आगे चलकर किंस, राबिनसन तक के अर्थशास्त्री बाजार इकोनॉमी को पूर्ण और अपूर्ण प्रतियोगिता में परिभाषित कर मानव जीवन अवधारणा को गलाकाट प्रतियोगिता में बदलकर रख दिये।

जहां बाजार मतलब...लालच...लाभ... छलकपट ... यह अवधारणा मानव जीवन को खोखली करते जा रही है। यह पृथ्वी पर एक कैंसर की तरह की बिमारी है।

इसे हाटुम इकोनॉमी से आपरेशन करना पड़ेगा

अमर्त्य सेन  जैसे कुछ आधुनिक अर्थशास्त्री और फिनलैंड स्वीटजरलैंड जैसे अति आधुनिक देश अब पुन: उसी तरह की खुशी की इकोनॉमी कि कल्पना कर रहे है।

आज इकोनॉमी को मार्गदर्शित करने के लिए पुनेम उस रूप में मौजूद नहीं है। मुझे पूरा विश्वास है।

जिस इकोनॉमी ने हजारों वर्षों तक दुनिया को संचालित करते हुए बड़ी बड़ी मुरियान/ मेहुला/मोहनजोदड़ो जैसी सभ्यताये दिये उसे इस दुनिया में प्रकृति और मानवता को बचाने पुन: वापस लाना पड़ेगा।

गोण्डीयन इकोनॉमी,वैसे हाटुम (बाजार) हमारे हर संस्कार टोण्डा-मण्डा-कुण्डा में आज भी हैं।

बस अपने रुढिय़ों - परम्पराओं को सहेजना और अपने डीएनए के कोडिंग को पढऩा सीखना है। 


लेखक केबीकेएस बुम गोटूल यूनिवर्सिटी बेड़मामाड़ से जुड़े हैं।


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