एक अनमोल रत्न जुबिन गर्ग

‘स्वप्निल बोल बादलों से फुसफुसाते हैं और चांद से भी आगे तक पहुंचते हैं’

बेणुधर गोगोई

 

यह हम सभी के लिए बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि जुबिन गर्ग का असामयिक निधन हो गया। 18 नवंबर 1972 को मेघालय के तुरा में जन्मे जुबिन ने 52 वर्ष की आयु में सुदूर सिंगापुर के समुद्र में 19 सितंबर 2025 को अंतिम सांस ली। जुबिन के परिवार में 85 वर्षीय पिता मोहिनी मोहन बरठाकुर (कपिल ठाकुर), पत्नी गरिमा सइकिया गर्ग और छोटी बहन पामी वरठाकुर हैं। जुबिन की मां ईला घरठाकुर और बहन गायिका जंकी बरठाकुर ने पहले ही इस संसार को छोड़ दिया था।

हालांकि असम ने दशकों में कई गायकों को उभरते और चमकते देखा है, लेकिन जुबिन गर्ग ने एक ऐसी जगह बनाई जो कोई और नहीं पा सकता था। जहां अन्य सुपरस्टार्स के अनगिनत प्रशंसक होते हैं, वहीं जुबिन के पास कुझेक दुर्लभ ‘पंथ’ था। वे अवसर साक्षात्कारों में कहा करते थे कि उन्होंने 36,000 गाने गाए हैं, लेकिन यह कभी भी संख्याओं के बारे में नहीं था। वह जितने गायक थे, उतने ही कवि भी थे, एक ऐसे व्यक्ति जो एक ही सुर से दिलों की धडक़न बढ़ा सकते थे।

जुबिन को असल में जो चीज अलग बनाती थी, यह थी उनके प्रशंसकों के साथ उनका रिश्ता। जहां दूसरे सितारों के बड़े प्रशंसक हैं, वहीं उनके प्रशंसकों ने एक ऐसा समुदाय बनाया जो उनके संगीत में जीते हैं। वे साधारण श्रोता नहीं हैं, वे बेहद वफादार हैं। यह समुदाय जुबिन के जीवन के हर पड़ाव का जश्न ऐसे मनाते हैं जैसे वह उनका अपना हो। यही गहरी वफादारी है कि विवादों और आलोचनाओं ने शायद ही कभी उन पर कोई स्थायी छाप छोड़ी हो। यहां तक कि जब उन्होंने बहस छेड़ी या चुनौतियों का सामना किया, तब भी उनका ‘पंथ’ अडिग होकर उनके साथ रहा।

जुबिन आमतौर पर अराजनीतिक थे, लेकिन जब भी उन्हेें लगा कि किसी विषय पर उनका हस्तक्षेप मायने रखता है, तो कोई भी रुख अपनाने से वह परहेज नहीं करते थे। 2019 में सीएए विरोधी प्रदर्शनों के दौरान वह लाखों युवाओं के लिए एक प्रेरणा बन गए। विरोध प्रदर्शनों में उरकी उपस्थिति ने ऐसी भीड़ जुटाई जैसी शायद ही कोई और जुटा पाता। जिससे पता चलता है कि वे भावनाओं के साथ-साथ कार्रवाई को भी प्रेरित कर सकते हैं।

हालांकि बाद में उन्होंने अपने सार्वजनिक बयानों में संयम बरता, लेकिन वे मुखर रहे और अंत तक अपने विचार व्यक्त करने से कभी नहीं डरे।


‘जीबन बरठाकुर’ से ‘जुबिन गर्ग’ तक

एक पीढ़ी के लिए, वे बस ‘दुबिन दा’ थे, एक ऐसी आवाज, जिसमें आत्मा, खुशी, गम, चाहत, प्यार और विद्रोह सभी थे, एक ऐसा कलाकार जो मंच के साथ-साथ लोगों का हमदर्द दोस्त थी थे। लेकिन संगीत और प्रसिद्धि के पीछे जुबिन की एक कहानी छिपी है।

मेघालय के एक छोटे से कस्बे में जीवन बरठाकुर के रूप में जन्मे इस लडक़े को दुनिया ने जुबिन गर्ग के नाम से क्यों जाना? इसका जवाब पारिवारिक विरासत, व्याक्तिगत पसंद और दुनिया के महानतम कलाकारों में से एक के प्रति सम्मान का मिश्रण है।

जुबिन का जन्म 1972 में मेघालय के कुरा में एक असमिया ब्राह्मण परिवार में हुआ था, जहां कला एक शौक से कई गुणा बढक़र जीवन जीने का एक तरीका थी। उनके पिता मोहिनी मोहन बरठाकुर एक मजिस्ट्रेट के रूप में अपने काम को कविता और गीत लेखन के अपने जुनून के साथ संतुलित रखते थे, जो अक्सर कपिल ठाकुर के नाम से कविताएं लिखते थे। उनकी मां स्वर्गीय ईला बरठाकुर एक गायिका थी।

संगीत उनके भाई-बहनों में भी व्याप्त था। उनकी छोटी बहन जंकी बरठाकुर ने एक गायिका और अभिनेत्री के रूप में अपनी अलग पहचान बनाई, लेकिन 2002 में तेजपुर में एक स्टेज शो से वापसी के समय सडक़ दुर्घटना में उनकी मौत हो गई। इस क्षति ने जुबिन के जीवन पर हमेशा के लिए एक गहरा घाव छोड़ दिया। जुबिन की एलबम ‘शिशु’ जंकी की याद में समर्पित थी।

बहुत कम लोग जानते हैं कि जुबिन का पहला नाम असम से बहुत दूर एक अन्य दुनिया से आया था उनके माता-पिता ने उनका नाम जुबिन मेहता के नाम पर रखा, जो एक महान अक्स्ट्रिा थे और जिन्होंने भारतीय प्रतिभा को वैश्विक मंच पर पहुंचाया। मेहता ने मॉन्ट्रियल, लॉस एंजिल्स और न्यूयॉर्क में आक्स्ट्रा का नेतृत्व किया था। बरठाकुर परिवार के लिए वे कलात्मकता और उत्कृष्टता के प्रतीक थे और उनके बेटे के नाम के माध्यम से सम्मान पाने के योग्य व्यक्ति थे। नाम का यह चुनाव न केवल एक महान ऑर्केस्ट्रा के प्रति सम्मान को दर्शाता है, बल्कि संगीत में परिवार के विश्वास को भी दर्शाता है।

उनकी पहचान का दूसरा पहलू ‘गर्ग’ काफी बाद में आया। हालांकि उनका जन्म जीवन बरठाकुर के रूप में हुआ था, उन्होंने अपने उपनाम के रूप में ‘गर्ग’ का इस्तेमाल करने का फैसला किया। यह उपाधि उनके ब्राह्मण गोत्र (वंशज वंश) से आई थी। यह एक निजी फैसला था जिसने उन्हें एक अलग पहचान दी। ‘गर्ग’ चुनकर जुबिन ने अपेक्षित रास्ते से हटकर एक ऐसा नाम बनाया जो आत्मीय और अनोखा दोनों लगा। यह नाम संगीत जगत में अपनी अलग पहचान बनाते हुए परंपरा का भार भी समेटे हुए था, जिसने जुबिन गर्ग को तुरंत यादगार बना दिया।

कुल मिलाकर उनका नाम जुबिन गर्ग उनके जीवन का ही प्रतिबिंब था। कई मायनों में उनका नाम उनकी कहानी बयां करता है। एक ऐसे कलाकार जो वैश्विक दिग्गजों से प्रेरित थे और पारिवारिक बंधनों से बंधे थे तथा जिनमें असमिया परंपरा निहित थी। सुदूर वियना के एक आक्रेस्ट्रा के नाम पर रखे गए लडक़े से लेकर असमिया, हिंदी और बंगाली से लेकर 40 भारतीय भाषाओं में गीत गाकर मंच हिला देने वाले व्यक्ति तक, जुबिन का नाम हमें उनके बारे में उतना ही बताता है जितना उनका संगीत।


किशोर कुमार की तरह जुबिन गर्ग ने भी अपने प्रशंसकों की एक पीड़ी को प्रेरित किया, जिन्हें ‘जुबिन गर्ग’ कहा जाता है, जिन्होंने उनकी शैली, रचनात्मकता और जुनून को आगे बढ़ाया। ‘गाने की आने’ और ‘माया’ जैसे गीत उनकी कलात्मकता का सार प्रस्तुत करते हैं।

‘स्वप्निल बोल बादलों से फुसफुसाते हैं और चांद से भी आगे तक पहुंचते हैं’ जुबिन की रचनाएं एक ऐसा विस्मय और कल्पनाशीलता का भाव जगाते हैं जो बहुत काम संगीतकार ही पैदा कर पाते हैं। रचनात्मकता, हृदय और बुद्धि का यही मेल जुबिन को एक गायक से कहीं बढक़र बनाता है।

जुबिन को किसी की परवाह नहीं थी, एक ऐसी आवाज जो लोगों का सुर बन जाता था। संकट के समय भी वे हमेशा उन लोगों का साथ देते थे जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती और जो साधारण मनुष्य के लिए असाधारण थी। असम में हर व्यक्ति के पास जुबिन की एक कहानी हैं। कुछ लोगों के लिए यह कहानी व्यक्तिगत रूप से मिलने का रोमांच से भरी हुई थी, जो जुबिन के साथ भले ही कुछ पल के लिए ही सही, एक पल के लिए ही सही, लेकिन यह एक रोमांचक अनुभव था। कुछ लोगों के लिए तो जुबिन सिर्फ एक गायक ही नहीं, बल्कि वह उनके लिए भगवान स्वरूप थे। उनका संगीत उनके चाहने वालों के दैनिक जीवन का हिस्सा बन गया था।

जुबिन की लाइव शो और भारी भीड़ हमेशा से चर्चा का विषय रहा है। जुबिन जहां भी लाइव परफॉर्म करने जाते थे, युवाओं की भीड़ बेकाबू हो जाती थी। चिलचिलाती धूप हो या फिर मूसलाधार बारिश, बेपरवाह भीड़ को संभाल पाना मुश्किल हो जाता था। हजारों लोग उनके साथ गाते थे, उनकी आवाजें एक ऐसे कोरस में घुल-मिल जाती थी, जो सिर्फ जुबिन ही प्रेरित कर सकते थे।

किसी ने नहीं सोचा था कि यह दिन आएगा। उनके बिना भविष्य की कल्पना अवास्तविक लगती है। सिंगापुर में उनके अचानक निधन से पूरा राज्य और दुनिया भर में उनके प्रशंसक सदमे में हैं। जुबिन गर्ग सिर्फ असम में ही नहीं, बल्कि पूरे देश में एक आदर्श थे। वे एक ऐसे संगीतकार थे जिन्होंने लोगों को अपनी आवाज दी, अपने गीतों से पीढिय़ों को जोड़ा। उन्हें उनकी असाधारण प्रतिभा के लिए प्यार किया जाता था, लेकिन उनके निडर रवैए की भी प्रशंसा की जाती थी।

ये अपनी बात कहने से भी नहीं डरते थे, जो उन्हें गलत लगता था उसे चुनौती देने से कभी नहीं डरते थे। इसी ईमानदारी ने उन्हें असम के दिलों की धडक़न बना दिया। ऐसे ही जुबिन गर्ग को सिर्फ उनके संगीत की वजह से नहीं, बल्कि उनके जीवन जीने के तरीके की वजह से युवा दिल की धडक़न बना दिया।

जुबिन की आवाज में दिल को छू जाने वाली वह खूबसूरती थी, भले ही किसी को बोल समझ में न आ रहे हों। उनके गीतों का संबंध सीधा दिल से जुड़ा होता था। उनके गीत खुशी, गम, चाहत, प्यार अर्थात सब कुछ महसूस करा सकते थे।
बहरहाल, जुबिन जैसा कोई दूसरा कभी नहीं होगा। इस जीवन में तो बिल्कुल नहीं। उनके गीत अमर रहेंगे, उनकी आवाज हमारे दिलों में गूंजती रहेगी और उनकी यादें असम की कहानी में रची-बसी रहेंगी।

ह दैनिक पूर्वोदय में छप चुकी हैं।

 


Add Comment

Enter your full name
We'll never share your number with anyone else.
We'll never share your email with anyone else.
Write your comment

Your Comment