वह स्कूल जहां सबके सपने सच होते हैं

रायपुर में न्यू लर्निंग सेंटर का रंगारंग कार्यक्रम

श्रेया के

 

इन्हीं गतिविधियों के साथ-साथ बच्चों ने ‘वी हेव ए ड्रीम’ की प्रस्तुति की तैयारियां भी पूरे जोश और उत्साह से कीं। कार्यक्रम में चार नृत्य, दो अंग्रेज़ी कविताओं की प्रस्तुति, भाषण और एक नाटक प्रस्तुत किया।

जब शहर के अधिकांश विद्यालयों में गर्मी की छुट्टियां मनाई जा रही थीं, उस समय न्यू लर्निंग सेंटर के बच्चे और शिक्षक इस समय का उपयोग कुछ सार्थक और मजेदार चीजेें करने में कर रहे थे। समापन पर आयोजित यह कार्यक्रम बच्चों के सपनों, श्रम और सामूहिक प्रयासों का प्रेरणादायक उदाहरण बनकर सामने आया। इस साल न्यू लर्निंग सेंटर ने एक नया शिक्षा सम्मान का घोषणा किया ‘बदलाव की नई लहर’ और चुनिंदा टीचर्स, महिला लीडर्स, स्टूडेंट्स और पैरेंट्स को यह पुरस्कार देकर सम्मानित किया।

टीचर्स में टेरीज़ा सेन गुप्ता, उषा वालैय्या, झरना साहू और त्रिवेणी साहू को सम्मानित किया गया, महिला लीडर्स में अंजू मेश्राम, राजिम तांडी, चुन्नी साहू और रमा गजबिए को सम्मानित किया गया, पैरेंट्स में उस पहले पीढ़ी को जिन्होंने हिम्मत करके बिरगांव के बस्ती से कई किलोमीटर दूर न्यू लर्निंग सेंटर के सपोर्ट से अपने बच्चों को एक इंग्लिश मीडियम सीबीएसई स्कूल एसबीपीइए में अपने बच्चों को भेजने की हिम्मत की नूरजहां खातुन, भारती कनौजे, तीज बाई संघारे, सबा परवीन व खुशबून निसा को सम्मानित किया गया।

साथ में न्यू लर्निंग सेंटर के स्टूडेंट्स का पहला पीढ़ी - जिन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए छत्तीसगढ़ के बाहर टॉप यूनिवर्सिटीज में एडमिशन पाकर नए इतिहास रच रहे हैं- उन पर एक छोटा प्रेजेंटेशन प्रोजेक्ट किया गया और उनको भी शिक्षा सम्मान के साथ सम्मानित किया गया। इनमें से रायगढ़ की गायत्री सारथी जो पुणे के सावित्रीबाई फुले यूनिवर्सिटी में एमए जेंडर स्टडीज कर रही है, बिरगांव की टेमिन साहू जो बांग्लादेश के एशियन यूनिवर्सिटी ऑफ़ विमेन में बीए पॉलिटिक्स फिलोसफी और इकोनॉमिक्स कर रही हैं, राजनांदगांव से काजल श्यामकुमार जो अज़ीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी भोपाल में बीए कर रही हैं, मज़दूर नगर से पूजा साहू जो अमरकंटक के आईजीएनटीयू में बीए कर रही है और बिरनपुर की रुक्सार बी जो रायपुर के कुसुमताई दाबके कॉलेज में एलएलबी की पढ़ी कर रही है - ये पांच स्टूडेंट शामिल थे।

पुरस्कार के बाद कई लोगों को शुक्रियादा किया गया- ख़ासकर के वैष्णवी को जो बिहार के पोखरामा फाउंडेशन अकैडमी की टीचर हैं, जिन्होंने समर कैम्प के लिए रायपुर में अपना समय बिताकर बच्चों के इंग्लिश क्लासेज लिए। साथ में करुणा बुद्ध विहार समिति और युवा थिएटर आर्टिस्ट और डांसर ध्रुव, कपिल, रोनी और रीना का भी खास शुक्रिया किया।

उल्लेखनीय प्रस्तुति और भाषण में मज़दूर नगर के स्टूडेंट्स द्वारा ‘कंस्टीट्यूशन सांग’ और कैलाश नगर और बिरगांव के स्टूडेंट्स द्वारा ‘सी इट थ्रू’ कविता की प्रस्तुति की गई। गिन्नी माही के गाने ‘फैन बाबा साहेब दी’ पर नृत्य की प्रस्तुति भी इन में से एक थी। क्लास 9 के स्टूडेंट रिज़वान आलम ने अपने शिक्षा के सफर पर एक भावनात्मक स्पीच दिया जिसमें उसने पढ़ाई छोडऩे और फैक्ट्री में काम करने के और फिर वापिस पढ़ाई करने के निर्णय के अनुभव को साझा किया। उसने इस बात पर गौर किया की बच्चों के लिए औपचारिक शिक्षा में टिकना कितना मुश्किल होता है स्कूल और घर से लेकर समाज तक कितनी रुकावटों को पार करना होता है।

उसने कहा कि फेलियर के डर के बिना न्यू लर्निंग सेंटर जैसे जगहों की ज़रूरत है बच्चों को शिक्षा में टिक कर आगे बढऩे की जहां बच्चे अपने टैलेंट व रुचि को और बहतर करने की भी जगह मिले। क्लास 9 की आकांक्षा कनौजे ने इस पर जोड़ते हुए सपनों पर एक स्पीच दिया, और कहा कि बच्चों को सपने देखने की हिम्मत के लिए सकारात्मक, सेफ और जॉयफुल सीखने के जगहों की ज़रूरत है इस विषय पर उसने खुद की लिखी गई अंग्रेज़ी में कविता को भी पढ़ा और उसका हिंदी अनुवाद भी किया।

शाहीन परवीन ने अपने बस्ती में क्रिकेट टूर्नामेंट के दौरान ‘सेव गाजा’ स्टिकर पहनने के करण किसी पर एफआईआर दर्ज होने पर बात रखते हुए अपने लायर बनने के सपने से जोड़ते हुए एमपैथी और न्याय के मतलब पर स्पीच दिया, जिसमें उसने हमको इजऱाइल- फिलिस्तीन के इतिहास का भी एक छोटा झलक दिया। क्लास 9 की सफक़ परवीन ने अपने जीवन से जोड़ते हुए समाज में महिलाओं की स्थिति पर बात रखते हुए लडक़ों को शिक्षित करने की ज़रूरत पर बात रखा और उसकी क्लासमेट कविता संघारे ने एक मीनिंगफुल शिक्षा क्या है, उस पर अपना सोच साझा किया।

सम्मा परवीन और रोशनी कोठारी ने एक किवता नुमा परफॉरमेंस किया जिसको उन दोनों ने ही लिखा था। नृत्य में एक ही लडक़ी की दो सोच बनकर उन दोनों ने अंदरूनी कश्मकश को दर्शाया एक जो समाज क्या कहेगा, ये सोचती है... और दूसरी जो अपने सपनों के पीछे भागना चाहती है। ये उस उलझन की कहानी थी जो हम सब कभी न कभी महसूस करते हैं।

न्यू लर्निंग सेंटर की फाउंडिंग टीम महिला एक्टिविस्ट सरस्वती साहू, लेखिका और मानवाधिकार कार्यकर्ता रिनचिन और टीचर और एक्टिविस्ट श्रेया खेमानी ने न्यू लर्निंग सेंटर की शुरुवात के बारे में बताते हुए एक अर्थपूर्ण, जॉयफुल और निडर शिक्षा की ज़रूरत पर बात राखी और बच्चों, टीचर्स और पैरेंट्स के सपनों देखने की हिम्मत को सलाम किया। न्यू लर्निंग सेंटर के वर्किंग ग्रुप से जेनी इंदवार ने उच्च शिक्षा एक्सेस पर बात रखा और रेखा वर्मा, लिली लकड़ा, और चंचल साहू ने स्टूडेंट्स, टीचर्स, महिला लीडर्स और पैरेंट्स को सम्मानित किया।

कार्यक्रम में ‘वी हैव ए ड्रीम’  नाटक न्यू लर्निंग सेंटर द्वारा प्रकाशित ‘ड्रीम हाउस’ किताब पर आधारित थी जो क्लासरूम में हुई चर्चाओं से ही निकल कर आई है। इसकी शुरुवात क्लास में पूछी गयी एक छोटे से सवाल से हुई। ‘आपका ड्रीम हाउस कैसा होगा’। इसके जवाब हमें दुनिया भर की सैर कराया - झारखण्ड के जंगलों से कश्मीर के बर्फीले चोटियों तक, तमिलनाडू के समुद्र तट से, ज्योतिबा और सावित्रीबाई फुले के पुणे शहर तक, और फिर दूर देश फ्रांस के रास्ते होकर वापिस अपने ही बिरगांव की फक्ट्रियों तक... किताब की ताकत और आजादी।

बच्चों और शिक्षकों ने नाटक के गर की थी - ‘बाबासाहेब की विशाल कार्डबोर्ड मूर्ती और बर्फीले का निवास’ नामक घर के ढांचे तक। नाटक के अंत में बच्चों ने सभी उपस्थित साथियों को समाज के ढांचों पर विचारने को मजबूर कर दिया। उन्होंने अपनी एक सपनों की दुनिया की कल्पना प्रस्तुत की जिसके शब्दों को बच्चों ने खुद लिखा था। आखरी सीन में अपने ‘सबका निवास’ के घर में पूरे जनता को आमंत्रित करते हुए उन्होंने कहा ‘हमने अपना ड्रीम हाउस का नाम सबका निवास रखा है क्यूंकि-

हम एक ऐसी दुनिया की कल्पना करते हैं जहाँ कोई जात पात न हो, 
जहां हम सब मिलजुलकर रहे,
जहां किसी मालिक के लिए काम करना ना पड़े,
जहां सरकार हमारी बस्ती ना तोड़ें,
जहां मुझसे कोई ये सवाल ना करे कि तुम लडक़ी हो या लडक़ा,
जहां मुझे गधा ना बोला जाए...
जहां हमारे परिवार की परिभाषा अलग हो,
जहां हम सवालों को पूछने से डरे ना,
जहां रट के नहीं समझ के पढ़ाई करे,
जहां हमारे रिश्ते जबरदस्ती के नहीं प्यार के हो...

स्टेज अंधेरे में डूब गया और फिर अचानक से उनका ‘सबका निवास’ रोशनी से चमकने लगा। पूरे जनता में तालियां इतनी ज़ोर से बजने लगी कि ऐसे लगा कि हम किसी हिट पिक्चर देखने सिनेमा हॉल में थे। बैकग्राउंड में एकतारा कलेक्टिव के फ़िल्म ‘एक जगह अपनी’ के साउंडट्रैक से शीतल साठे के ताकतवर आवाज़ में रैदास की कविता ‘बेगमपुरा’ का गाना बजने लगा।

तालियों के ऊपर उनकी बुलंद आवाज़ ने हम सबको एक बेहतर दुनिया देखने की और हिम्मत दी। किसी पैरेंट के आंख में आंसू तो किसी के चेहरे पर मुस्कान और गर्व। अंत में बच्चों ने एक बार फिर हमें आमंत्रित किया ‘आइए आप भी... हमारे इस सपने के घर में... हमारे इस सपनों की दुनिया... हमारे बेगमपुरा में’ आज के दौर में जहां प्यार से ज़्यादा हिंसा, युद्ध, भेदभाव, असमानता और नफऱत हमारे रोजमर्रे के जीवन को नियंत्रित करते हैं, बच्चों का यह नाटक हमें याद दिलाती है कि एक बेहतर दुनिया अभी भी संभव है - और शायद, उसे हासिल करने के लिए हमको अपने बच्चों के सपनों और उम्मीदों में ही हिम्मत मिल सकती है।

हॉल में लोगों की भारी संख्या उपस्थिति थी लगभग 200 लोग थे जिसमे बच्चों के माता-पिता, स्थानीय नागरिकों तथा न्यू लर्निंग सेंटर के पुराने सहयोगियों की भी बड़ी संख्या में उपस्थिति रही। कार्यक्रम में कई अतिथि उपस्थित थे। मुख्य अतिथियों में अंजू मेश्राम मैम (डायरेक्टर, एसबीपीईए स्कूल), टेरेसा सेन गुप्ता (शिक्षिका एवं सामाजिक कार्यकर्ता), उषा मैम (प्रिंसिपल, सावित्री बाई फुले एजुकेशनल अकैडमी, सड्डू), झरना एवं त्रिवेणी (पूर्व शिक्षिकाएं, शहीद स्कूल), कैलाश नगर के करुणा बुद्ध विहार से एसके गोंडाने जी और अन्य साथी और भिलाई के प्रबुद्ध जन कल्याण समिति से हेमराज मेश्राम विशेष रूप से मौजूद रहे।


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