चेहरे पर मुखौटा लिए हुए
जीना अभी बाकी है
सुनीता सिन्हाहम यहां कवयित्री सुनीता सिन्हा की छह कविताओं का उल्लेख कर रहे हैं। सुनीता आम लोगों की कवयित्री हैं। वह पिछले कई सालों से ‘दक्षिण कोसल’ के लिए कविताएं लिख रही हैं। पेशेगत रूप से नर्स का कार्य करते हुए वह कविताओं को रचते चली जाती हैं।

समाज, व्यवस्था, राज्य और मनुष्य पर वह कई कविताओं की रचना कर चुकी हैं। यहां हम उनकी चुनाव पर ‘चेहरे पर मुखौटा लिए हुए’ से लेकर मन में चलती उहापोह के बीच ‘मैं खुश हूं’ से ‘मन की ना सुनो तुम’ तक की कविताओं में हालिया समय में जीवन में घट रही घटनाओं से साक्षात्कार कराती कविताओं को प्रकाशित कर रहे हैं।
(1)
चेहरे पर मुखौटा लिए हुए
ये चुनावी लहर है
ना जाने कैसा ये भंवर है
ना बच सका है, कोई
ना लेने वाला ना देने वाला
जो अभी लुटा रहा हैं
वो बाद में उन्हें ही लुटेगा
जानते हैं सब ये
फिर भी तैयार खड़े हैं
चेहरे पे मुखौटा लिए
एक दूसरे को,
फसते - फसाते जा रहे हैं
ये चुनावी लहर है
ना जाने कैसा ये भंवर है
अंगूठा छाप मुठ्ठी खोल
हाथ उठा खड़ा रहेगा
पड़ा लिखा नव जवान
उसके पीछे मुठ्ठी बांध
उसी की ही निगरानी करेगा
ये चुनावी लहर है
हर प्रत्याशी नेता,
अपने आप को समझता अभिनेता है
बाते करेंगे गांव सजाने की
पर समय कहां...
खुद के घर की ऊंची बिल्डिंग
बनाने को...
ग़लती सिर्फ़ इनकी नहीं
असली हिस्सेदारी तो हमारी है
जानते सब हैं,
ना दिखते, समझदारी है
किस्सा सिर्फ़ ये नहीं
हाथ मिलाव वोट पाओं
और जीत जाओं अंगूठा दिखाओं
ये चुनावी लहर है
ना जाने कैसा ये भंवर हैं
(2)
जीना अभी बाकी है
शायद मैं ये नौ महीने का दर्द भूल जाऊंगी
पर ये नौ महीने का संघर्ष नहीं भूल सकूंगी
सबके साथ होने के बावजूद खुद को अकेले पाना
सच कहूं कि तुम्हारा साथ भी दिखावा लगता हैं
जब अकेले में अकेला छोड़ देते थे
और सब के बीच में हाथ थाम लेते थे
और मज़ा तो तब मुझे आता था
जब इसमें भी मैं आप का पूरा साथ देती थी
और हां...
शायद आपने मुझे नाजुक या नासमझ
समझ के बेवकूफ बनाया था
और कहा करते थे बड़ा बेटा हूं
जिम्मेदारी बहुत है बस यही कह कर
मुझसे दूर आपने भागा था
और ये 9 महीने के दर्द में
मुझे अकेला छोड़ा था,
कैसे कहूं की आपको मुझसे
आने वाले बच्चे से प्यार है
कहते है ऐसे समय में लोग
मिलो दूर रहकर भी साथ निभाते हैं
पर आपने तो साथ होकर भी
दूरियां निभाई है
मैंने आईने मे खुद को देखा
तो पता चला कि मेरे
चेहरे की रंगत और रौनक दोनों जा रही है
जो अभी भी आपके प्यार
मिलने से वापस आ सकती है
अरे आपको क्या पता हमने भी तो
बेटी होकर सबको संभाला था
सबके होते हुए भी बाप की
जिम्मेदारी कंधे पर संभाली थी
तपती बुखार हो या
लोगों के शब्दों के बाण
सबको अपने अंदर ले कर
खुद के साथ सबको संवारी थी
फिर भी मैंने अभी हार कहां मानी हैं
अभी तो मेरे अंदर पल रही
शिशु को सुरक्षित बाहर
जो लानी है
रंगत और रौनक को
मैंने भी छोड़ दी
आत्मविश्वास के संग
जीना अभी बाकी है
(3)
मैं खुश हूं
कुछ अपनो के साथ
कुछ अपने पन के साथ
कुछ पुराने चेहरे के साथ
तो कुछ नए चेहरे के साथ
मैं खुश हूं.....
जिंदगी के हर उस रास्ते पर
जो हर मोड़ पर बदलता रहता है
कभी किसी के साथ मिलने पर
तो कभी किसी के दूर जाने पर
मैं फिरभी खुश हूं
अपने हर उस सफर के साथ
हर उस बेखबर अंजाम के साथ
कभी भीड़ में खुद को तलाशती
तो कभी अकेले में खुद से मिलती
मैं खुश हूं
खुद को संभाल लेने में
सुकून भरी सास लेने में
अपनी ही मस्ती में धुन हू
मैं आज भी खुश हूं
हां मैं खुश हूं
(4)
नए जीवन को हवा देते रही...
बेपरवाह आंखें...
लाख परवाह करें मेरी सब
पर तुम्हारी एक परवाह का इंतजार था
तेरी एक हल्की मीठी मुस्कान
प्यारभरी बातें सुनने के लिए
दिन से लेकर रात तक इंतजार था
क्या ख़बर है तुम्हें...
राते गुजरते इंतजार में
पर तुम अपनी उन ख्वाइशों
की गहरी नींद में ऐसे उड़ान
भर के सोए हुए थे, की
सारी रात पास बैठकर
बस तुम्हें निहारती हुए
अपनी शिशकियों को
ऐसे अपने ही अन्दर दफन करते गई
और तुम्हारे उड़ान को सिराहने रख नए जीवन को हवा देते रही...
बस सिर्फ और सिर्फ़
तुम्हारी एक मिठी मुस्कान के लिए?
और जब तुम नींद से जागो तो
आपके बेपरवाह आंखों में
बस अपनी एक परवाह देखना चाहती थी
आपके गोद पर सिर रखकर ऐसे सोना चाहती हूं
जहां से कोई मुझे जगा ना सके
और आसमानों में टिमटिमाते तारों के बीच में
एक कोना बनाना चाहती हूं जहां से
आपकी मीठी मुस्कान को निहार सकूं...
(5)
मन...
क्या चाहता है मेरा मन
हर पल दौड़ता भागता
दिन भर गुना भाग करता
ना जाने क्या-क्या सोचता है मेरा मन
क्या चाहता है मेरा मन
अंदर ही अंदर निगलता मुझे
किसी के आस-पास भी रहने
नहीं देता है मेरा मन
क्या चाहता है मेरा मन
सबको पता है और मुझे भी
मरना है एक दिन सबको
फिर भी हर पल अपने
ही मरने की सोचता है मेरा मन
क्या चाहता हैं मेरा मन
ना जाने कौन सी बीमारी है
जिसका पता मुझे नहीं
पर सब कहते हैं
कैसा ये अलगाव है
जिसका पता तुझे नहीं हैं
क्या चाहता है मेरा मन
कोई सुनता नहीं
मेरी मन की बात
सिर्फ आंसू और रुमाल के अलावा
काश कोई बिन बोले
पड़ ले मेरी मन की बात
ना चाह किसी को पाने की
ना चाह किसी को खोने की
बस तलाशता रहता है अपनापन
ना जाने क्या चाहता है मेरा मन
(6)
मन की ना सुनो तुम...
मन की ना सुनो तुम
खुद से ये कहो तुम
खुश रहूंगी सदा में
खुद से ये कहो तुम
मन की ना सुनो तुम
ये मन है .....
ना खोना होश तुम
ना गवाना जोश तुम
ना कर किसी पर विश्वाश
क्योंकि हो जायेगा निराश
मन की ना सुनो तुम
खुद से ये कहो तुम
मन.....
मन एक भ्रम है
ये जानते हो तुम
फिर अपने अंतरमन को
क्यों नहीं पहचानते हो तुम
मन की ना सुनो तुम
खुद से ये कहो तुम
खुश रहूंगी सदा मैं
खुद से ये कहो तुम
बहरहाल इस भयानक समय में व्यक्ति को अपने आप से प्यार करने की जरूरत है और अपने आप को पहचानने की भी जरूरत हैं जीना अभी बाकी है, इसे नया आयाम देने की जरूरत है।
Add Comment