एनआईए ने फादर स्टेन स्वामी को जमानत देने से इंकार कर दिया
रूपेश कुमार सिंह, स्वतंत्र पत्रकारएनआईए की एक विशेष अदालत ने आज 83 वर्षीय प्रसिद्ध मानवाधिकार कार्यकर्त्ता फादर स्टेन स्वामी को जमानत देने से इंकार कर दिया।

भीमा कोरेगांव व एल्गार परिषद् के झूठे मामले में 8 अक्टूबर 2020 को गिरफ्तार किये गए फादर स्टेन स्वामी अग्न्याशय की बीमारी से ग्रसित हैं और दोनों कान से सुन भी नहीं पाते हैं। इसके अलावे भी उन्हें कई अन्य बीमारियां हैं।
एनआईए का कहना है कि फादर स्टेन का माओवादियों से सम्बन्ध है, क्योंकि वे विस्थापन विरोधी जनविकास आंदोलन, पीयूसीएल व पीपीएससी नामक संगठन से जुड़े हुए हैं।
जबकि सच्चाई यह है कि विस्थापन विरोधी जनविकास आंदोलन पूरे देश में विस्थापन के खिलाफ लड़ रहे विस्थापितों के सगठनों का एक मोर्चा है, जिससे दर्जनों संगठन जुड़े हुए हैं।
पीयूसीएल, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का एक प्रसिद्ध संगठन है और पीपीएससी विचाराधीन बंदियों की रिहाई के लिए झारखण्ड में काम करने वाला संगठन रहा है। इन सभी संगठनों के कई कार्यक्रम लगातार होते रहते हैं।
आज भी रांची के समाज विकास केंद्र में विस्थापन विरोधी जनविकास आंदोलन के द्वारा एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया था, जिसमें मैं भी एक वक्ता था और भी कई वक्ता थे।
अब सवाल उठता है कि एनआईए जब फादर स्टेन का प्रत्यक्ष रिश्ता माओवादियों से नहीं जोड़ सका, तो आखिर विस्थापन विरोधी जनविकास आंदोलन, पीयूसीएल व पीपीएससी के बहाने उनके रिश्ते को माओवादियों से जोड़ने की कोशिश क्यों कर रही है?
आखिर इन्हीं संगठनों को क्यों टारगेट किया जा रहा है? इसका जवाब यही है कि सरकार अब इन संगठनों के बहाने शायद कई सरकार विरोधी आवाज को कैद करने की साजिश कर रही है।
हमें सरकार के इस कुत्सित प्रयास का पुरजोर विरोध करना चाहिए और भीमा कोरेगांव व एल्गार परिषद् के झूठे मामले में जेल में कैद फादर स्टेन समेत तमाम मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की रिहाई की मांग पर देशव्यापी अभियान चलाना चाहिए।
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