भूटान और भारत की साझेदारी लिख रही नया इतिहास

सुंदर और खूबसूरत वादियों के बीच भारतीयता की झलक

लखन वर्मा

 

यह सच है कि भूटान में वह अमीरी नहीं है जो हमें विलासिता की ओर ले जाती है. वह देश भारत के साथ संबद्ध होकर अपना निरंतर विकास करता रहा है. सबसे अच्छी बात तो यह दिखी कि वहां शिक्षा और स्वास्थ्य आम लोगों के लिए नि:शुल्क है और वह भी गुणवत्तापरक.

व्यापार और व्यवसाय से लेकर सामरिक रणनीति और वाणिज्यिक क्षेत्र में डेव्हलपमेंट के साथ सांस्कृतिक एवं राजनीतिक साझेदार के रूप में भूटान सदैव से भारत को अपना बड़ा भाई मानता रहा है. स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व भी भूटान भारत का अभिन्न अंग रहा. उसकी विरासत को स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी भारत ने अक्षुण्ण बनाए रखा.

सन् 1947 में स्वतंत्रता मिलते ही भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने भूटान पर अपनी कृपा दृष्टि बरसाई और उसकी स्वतंत्रता के लिए ब्रिटिश हुकूमत के साथ चर्चा में बने रहे. तिब्बत के साथ ही भूटान को लेकर उनकी नीति बहुत सटीक थी. चीन के साथ सांस्कृतिक संबंधों की आभा में उन्होंने तिब्ब्त और भूटान को खुशहाल बनाए रखने के लिए विशेष ध्यान दिया. गुटनिरपेक्ष आंदोलन का एक बहुत बड़ा योगदान पूरी दुनिया में आज भी यदि याद किया जाता है तो पंडित नेहरू की बदौलत. यही वजह है कि आज भी भूटान का राजशाही परिवार भारत के प्रति कृतज्ञ है.

वहां जाने पर स्पष्ट रूप से दिखा कि भारतीय सांस्कृतिक आभा से भूटान का कोना-कोना दिप-दिप कर रहा है. वहां की राजधानी थिम्पू से लेकर पारो, होवा, चुखा, पुनाखा,वांगची, फोडरंग,गासा, लुंत्सी, त्सीगैंग, त्सीयांगसी, सारपैंग, जैनगैंग, सांत्से, सैंड्रपजोंगखार, पेमागेलत्सेल,दगाना,ट्रोंग्सा,बूमथैंग एवं मोंगर तक भारतीय संस्कृति और उसकी पहचान पहाड़-पहाड़, जंगल-जंगल और यहां तक कि पशु-पक्षी भी किसी न किसी रूप में दे रहे थे.

वहां की बोली-भाषा चाहे भारतीय भाषाओं से अलग थी लेकिन उनकी बोलने से ऐसा लगता था मानो भारत के ही किसी प्रदेश का नागरिक अपनी भाषा में बोल रहा हो जैसे कि हम हिंदी भाषीय प्रदेश के लोग आंध्रा में चले जाएं, केरल चले जाएं, कर्नाटक, तेलंगाना चले जाएं या फिर पूर्वोत्तर के राज्यों में अथवा कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक सैकड़ों हजारों की संख्या में बोली-भाषाओं की विविधता मिलेगी. हम समझें न समझें लेकिन उन बोली-भाषाओं में भारतीय आत्मा की झलक हमें सहज ही दिखाई दे जाती है ठीक उसी प्रकार भूटान में भी ऐसा लगता है मानो भारत का ही कोई प्रदेश अपनी भाषा में बात कर रहा हो वहां के लोगों की मुस्कराहट और बातचीत की शालीनता और सरल आचरण व्यवहार भारतीय नागरिकों की तरह ही ध्यान आकर्षित करने लगी थी.

वहां कार्बन का उत्सर्जन कहीं नही दिखा

भूटान का प्राकृतिक परिवेश बड़ा ही सुदंर और मनोरम है. वहां के पहाड़ और जंगल वहां की प्रकृति को संतुलित रखते हैं. पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन इससे प्रभावित होता है. ग्रीन भूटान एंड क्लीन भूटान की वहां की सरकार की परिकल्पना सहज ही ध्यान आकर्षित करती है एक ओर जहां आज समूची दुनियां में डीकॉर्बनाइजेशन का हल्ला है और संसार में ग्लोबल वार्मिंग को लेकर वैश्विक चिंताओं के बीच कार्बन कटौती का प्रस्ताव है तो भूटान दुनियां का ऐसा देश दिखाई दिया जहां कार्बन का उत्सर्जन न्यून से न्यूनतम हैं. हमें वहां कार्बन का उत्सर्जन कहीं नही दिखा. सड़कें नीट और क्लीन थीं, दोनों किनारों पर हरियाली की चादर बिछी थी और आने जाने वाले लोग बड़े व्यवस्थित तरीके से यातायात में अपना योगदान दे रहे थे. सड़कों पर दूर तलक चांदी जैसी हरित चांदनी खिली हुई थी जो यात्री और पर्यटकों का ध्यान सहज ही अपनी ओर आकर्षित करती थी.

वैसे तो भूटान भारत के मुकाबले बहुत छोटा सा देश है. जनसंख्या भी बहुत नहीं है लेकिन उसके नागरिक इतने व्यवस्थित हैं कि भारत के किसान, मजदूर और मेहनतकश लोग सहज ही याद आने लगते हैं. वैसे सांख्यिकी बताती है कि भूटान के कुल भू-भाग का क्षेत्रफल 38,394 वर्ग कि.मी है और जनसंख्या पर नजर डालें तो पापुलेशन इंडेक्स के मुताबिक भूटान की कुल जनसंख्या लगभग सवा आठ लाख की है. इस दृष्टिकोण से देखें तो वह हमारे छत्तीसगढ़ से भी छोटा है. इसके बावजूद भूटानी लोग छत्तीसगढ़ के निवासियों की तरह ही श्रमशील हैं. वे भारत में जाकर कामकाज करते हैं. दिहाड़ी करते हैं, व्यापार व्यवसाय भी करते हैं और नौकरियां भी करते हैं. इसी में उनका परिवार प्रसन्न रहता है. लगता है जैसे छत्तीसगढ़ के बस्तर इलाके के सुदूर वनांचल का कोई आदिवासी तमाम अभावों के बीच भी खुशियों के गीत गा रहा हो.

यही वजह हैं कि भूटान को ब्यूटीफूल भूटान की संज्ञा से सुशोभित किया गया है. राजा के मुकुट में ब्यूटीफूल भूटान, ग्रीन एंड क्लीन भूटान, संस्कारित भूटान का नगीना चमकता हुआ पूरी दुनिया को अपनी ओर आकर्षित करता है. वहां के राजाओं का इतिहास देखें तो वह भी पारंपरिक रूप से समृद्ध है. वे भारत के साथ मिलकर अपने देश भूटान की सुख-समृद्धि के लिए जी जान न्योछावर कर देते हैं.

वहां पांच राजाओं के इतिहास में पहले उग्येन वांगचुक (1907'926), फिर उनके सुपुत्र जिग्मे वांगचुक (1926'952), तृतीय राजा के रूप में उनके सुपुत्र जिग्मे दोरजी वांगचुक (1952'972), चौथे राजा के रूप में उनके सुपुत्र जिग्मे सिंग्ये वांगचुक (1972-2006) तक शासन किए और अब पांचवें राजा के रूप में उनके उत्तराधिकारी सुपुत्र जिग्मे खेसर नामग्याल वांगचुक (2006 से वर्तमान तक) शासन कर रहे हैं. इस दृष्टिकोण से देखें तो वांगचुक परिवार भूटान का बेहद शक्तिशाली परिवार है और राजसत्ता की डोर इसी परिवार के हाथ रही है यही वजह है कि पूरी दुनिया में वांगचुक परिवार सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है.

हालांकि पहले राजा उग्येन वांगचुक दूसरे जिग्मे वांगचुक और तीसरे जिग्मे दोरजी वांगचुक भगवान को प्यारे हो चुके हैं लेकिन चौथे राजा जिग्मे सिंग्ये वांगचुक आज भी वहां की प्रजा को अपना आर्शीवाद दे रहे हैं वैसे तो वार्धक्य ने उन्हें विश्राम के लिए कह दिया है लेकिन इसके बाद भी वे अपने उत्तराधिकारी राजा वर्तमान जिग्मे खेसर नामग्याल वांगचुक को राजसत्ता के विषय में और जनता के खुशहाली के साथ अपने अनुभवों को लाभ समय-समय पर देते रहते हैं.

वैसे भूटान में तीन स्तरों पर व्यवस्था हमें आकर्षित करती है जिनमें पहले लेयर में राजा, दूसरे में प्रधानमंत्री और तीसरे में धर्म गुरू प्रमुख रूप से आते हैं लेकिन अंतिम फैसला राजा का ही मान्य होता है. धर्म गुरूओं में गुरू पद्म संभव को गुरू दिन पोछे के भी नाम से जाना जाता है. सबसे ध्यान खींचने वाली बात यह रही कि यहां के धार्मिक स्थलों में पुजारियों द्वारा पैसों की मांग नहीं की जाती. भक्तगण चाहें तो स्वेच्छा से दान कर सकते हैं. यहां के होटलों में बैरा (खाना परोसने वाले) द्वारा ग्राहकों से टिप नहीं मांगा जाता बल्कि वहां टिप बॉक्स रखा होता है. ग्राहक चाहें तो उसमें टिप डाल सकते हैं. इस देश में पेट्रोल और डीजल पर कोई टैक्स नहीं लिया जाता. 53 रूपये प्रति लीटर डीजल और 63 रूपये प्रति लीटर पेट्रोल मिलता है जबकि भारत के सहयोग से अर्थव्यवस्था संचालित है.

देखें तो भूटान भी अपनी सीमाओं को लेकर कई बार परेशान होता रहा है. चीन से उसे बार-बार असुरक्षा और खतरे की सुगबुगाहट मिलती रहती है. स्वतंत्रता के पूर्व यहां बर्मा, भारत, चीन और आस-पास की संस्कृतियां प्रभावित करती रहीं है. इतिहासकार बताते हैं कि भूटान की तवारीख और वहां का इतिहास बड़ा रहस्यमय और कठिनाईयों से भरा रहा है. चूंकि भूटान के चौतरफा पहाड़ों की बड़ी-बड़ी श्रृखंलाएं फैली हुई हैं मानों भूटान को पहाड़ों ने घेर रखा हो. इसीलिए भूटान को छिपी हुई पवित्र भूमि के नाम से भी पुकारा जाता है. भगवान का कमल उद्यान भी यहां के लोगों की पसंद में शुमार है. कहते है कि भूटान की उत्पत्ति संस्कृत के “भोटंत” से हुई है जिसका अर्थ है तिब्बत का अंत. भूटान को “थंडर ड्रैगन” की भूमि भी कहा जाता है. वहां की भाषा में इसे “ड्रुक युल” कहा जाता है.

भूटान में बौद्ध धर्म प्रचलित

भूटान में वैसे तो बहुतेरे धर्म फैले हुए हैं लेकिन प्रमुख रूप से बौद्ध धर्म को लोगों ने अंगीकार किया है. वहां के लोगों से बात करें और राजपत्र देखें तो स्पष्ट होता है बौद्ध धर्म की प्रमुखता है. वहां की नागरिक सुमित्रा राणा ने स्पष्ट किया कि भूटान में 75 प्रतिशत बौद्धिष्ट और 23 प्रतिशत हिंदू तथा 2 प्रतिशत अन्य धर्म प्रचलित हैं. इस्लाम, इसाई एवं अन्य धर्म के लोग तो हैं लेकिन उन्हें अपने धर्म स्थल बनाने की अनुमति नहीं है जबकि बौद्धस्तूप और हिंदू मंदिर बहुतायत में देखने को मिल जाएंगे. लोग पूजा-पाठ के साथ ही स्तूपों में ध्यान-साधना करते हैं. कहते हैं कि तत्संगमठ पारो घाटी में पद्मसंभव और उनके शिष्यों के ध्यान का प्रतीक मौजूद है यहां एक मंदिर भी है जिसे कुर्जे मंदिर के रूप में जाना जाता है.

भूटान की राजधानी थिम्पू में जब हम 28 अप्रैल 2025 को पहुंचे तो वह अद्भुत शहर लगा. चका-चक सड़कें, शहर की रंगीने, सुंदर आबोहवा और नायाब स्थापत्य कला देखकर चकित होना पड़ा कि लकड़ी के इतने नक्काशी वाले सुंदर-सुंदर घर बने कैसे होंगे. याद आया हमारा छत्तीसगढ़ और बस्तर का वह वन प्रदेश जहां लकड़ियों के मचान बनाकर आदिवासी समुदाय के लोग रहा करते थे इन भुटानियों ने इसे और प्रगतिशील बनाकर बड़े सुंदर रूप प्रस्तुत कर दिया है.

भूटान के थिम्पू में बुद्धा प्वाइंट मेमोरियल स्ट्रपा (छोर टेन) हैरीटेज म्यूजियम, टाकिन चिड़िया घर, हिंदू मंदिर, पेंटीग स्कूल, संगेगांग व्यू पांइट, फोर्ट व्यू पाइंट जैसे कुछ स्थल इतने दर्शनीय है कि पर्यटक वहां जाए बिना रह नहीं सकता. वहां का राष्ट्रीय पशु टाकीन हैं और राष्ट्रीय पक्षी रेवेन (कौआ) बड़ी शोभा देते हैं. लोग इनकी सुरक्षा के प्रति बेहद सर्तक रहते हैं. कहा जाता है कि छत्तीसगढ़ की पहाड़ी मैना की तरह वहां की राष्ट्रीय पक्षी रेवेन(कौआ) भी देखने में बड़ी खूबसूरत होते हैं. राष्ट्रीय पशु टाकीन गाय की शरीर में बकरी के सर जैसा दिखता है. टाकीन की उत्पत्ति टुचले द्रगपा कूनले द्वारा की गई. इसे डॉन्ग जिंम त्से के नाम से भी जाना जाता है कुछ लोग इसे बकरी गाय के नाम से भी पहचानते हैं.

राष्ट्रीय पक्षी के रूप में कौआ अपनी अलग ही छाप छोड़ता नजर आता है. कावं-कावं की धुन के साथ वह पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है. इसे रेवेन या कॉर्वस कोरैक्स भी कहा जाता है साथ ही साथ इस पक्षी को शाही ताज की सेवा करने वाला पक्षी कहा जाता है, और यह पक्षी देवता गोन्पो जारोडोनचेन का भी प्रतिनिधित्व करता है - जो रेवेन के सिर वाले महाकाल हैं. वहां का राष्ट्रीय खेल तीरंदाजी है.यहां के तीरंदाज दुनिया में अपनी सानी रखते हैं.

चिमी ल्हाखांग मंदिर लामा द्रुकपा क्यूनले को समर्पित

भूटान में, “फर्टिलिटी टेंपल” की बड़ी महत्ता है. इन्हें चिमी ल्हाखांग मंदिर को कहा जाता है, जो लोबेसा गांव में स्थित है. इसे प्रजनन क्षमता मंदिर के रूप में जाना जाता है और विशेष रूप से संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वाले दंपतियों द्वारा पूजित किया जाता है. चिमी ल्हाखांग मंदिर लामा द्रुकपा क्यूनले को समर्पित है, जिन्हें "डिवाइन मैडमैन" के नाम से भी जाना जाता है. यह मंदिर पुनाखा घाटी में एक पहाड़ी पर स्थित है. जिन दंपत्तियों का बच्चा पैदा नहीं होता वे फर्टीलिटी टेंपल में आराधना करते है और देवता को प्रसन्न कर संतान की प्राप्ति का अनुष्ठान करते हैं.

क्राइम इंडेक्स देखने पर आश्चर्य होता है कि अरे! भूटान में तो क्राइम रेट बेहद स्लो है एक ओर जहां पूरी दुनिया में गोला-बारुद चल रहा है, हत्याओं के सिलसिले अमेरिका से लेकर यूरोप होते चीन और अरब तक नई कहानी कह रहे हैं तो भूटान इनसे दूर महात्मा बुद्ध के शांति के गीत गा रहा है. बताते है कि जनसंख्या का घनत्व कम होने की वजह से ही यहां अपराध की दर न्यून है. लोग रूल एंड रेगूलेशन का सम्मान करते है. यातायात नियमों का पालन करने के साथ ही छोटी गाड़ियों की स्पीड 40 कि.मी और बड़ी की 20 कि.मी की रफ्तार से अधिक नहीं है. यहां भारत की तरह ही जिला कोर्ट, हाईकोर्ट और सुप्रीमकोर्ट की न्यायिक व्यवस्था है. जहां राजशाही के नियमों के तहत न्याय किया जाता है.

भूटान देश पर्यटन की दृष्टि से सबसे समृद्ध है. देश-दुनियां के लोग शांति के तलाश में आते हैं और भूटान की खूबसूरत वादियों में घूमकर उन्हें सुकून मिलता है यही वजह है कि पर्यटन उद्योग भूटान के प्रमुख उद्योगों में एक है. यहां पारो में एकमात्र अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है जो समुद्र तल से 2,243 मीटर (7300 फीट) की ऊँचाई पर एक गहरी घाटी में स्थित है. यह पारो शहर से 6 किमी और राजधानी थिम्पू से 55 किमी दूर है. आसपास की चोटियाँ 5,500 मीटर (18,000 फीट) जितनी ऊँची हैं, इसलिए इसे दुनिया के सबसे चुनौतीपूर्ण हवाई अड्डों में से एक माना जाता है. मजे की बात यह है कि इतने बड़े चुनौतीपूर्ण हवाई अड्डे पर आज तक कोई विमान दुर्घटना नहीं हुई और बहुत सुरक्षित तरीके से विमानों का उड्डयन एवं लैंडिंग होता है.

भूटान में शराब की खपत तो होती है लेकिन लोग संयमित हैं. जगह-जगह देशी शराब बनने के बाद भी लोग शराब के अतिरेक में सड़कों पर नहीं लोटते और न ही दुर्घटनाओं को जन्म देते हैं बल्कि होटलों और रेस्टोरेंट आदि में शराब आसानी से उपलब्ध है. शराब की विसंगतियों से होने वाले अपराध को लेकर वहां का कानून बड़ा ही सख्त है.

भूटान में 80 प्रतिशत भू-भाग पहाड़ों से घिरा हैं. बस 7 प्रतिशत जमीन पर ही खेती होती हैं यही वजह है कि भूटान के लोग भारतीय खाद्यान पर निर्भर होते हैं.फूड आईटम और फलों की आमद भारत से होती है. यह जरूर है कि शीतल प्रदेश होने के चलते ड्राई फ्रूट्स की पैदावार होती है जिसका निर्यात भारतीय प्रदेशों में किया जाता है. भारत और भूटान को विभाजित करने वाली नदी से लोग भारतीय प्रदेशों में प्रवेश करते है और रोजी-रोटी के लिए आते-जाते है. यहां कृषि यंत्र औजार, खाना पकाने तथा खाना बनाने का तरीका और चूल्हा धान रखने की कोठी छत्तीसगढ़ की तरह ही है. यहां की औजार छत्तीसगढ़ के औजारों से मिलते-जुलते है. यहां के शहर पारो के संग्रहालय में बांस से निर्मित सामान ध्यान खींचते है.

29 अप्रैल 2025 को पुनाखा में जब हमारा जाना हुआ तो उसने तो और भी प्रभावित किया. दोचुला के पास पुनाखा फोर्ट (जोन किला), छिमीलहांग मंदिर, ससपेंशन ब्रिज ने सहज ही ध्यान खींचा. पुनाखा में नदी पूनाथांगचू (फोचू और मोछू) संगम होकर पुनाथांगचू बन गया. यह भी एक अद्धूत संगम है जहां एम रीवर, एफ रीवर छूवाटर जिनमें मो फीमेल हैं और फो मेल है. इस प्रकार पुलिंग स्त्रीलिंग नदियों का मिलन भारतीय संस्कृति की तरह पर्यटकों को मोह लेता है.

भारत भूटान को रक्षा के क्षेत्र में सहायता प्रदान करता है

भूटान में द्जोंखा (DZONGKHA) राष्ट्रीय भाषा के रूप में प्रचलित है, जबकि खेंगखां, शारशोप्खा,लोमत्सम्खा स्थानीय बोली है. इसमें खेंगखां को सेंट्रल भूटान, शारशोप्खा को इस्टर्न भूटान और लोमत्सम्खा साउदर्न भूटान में बोला जाता है. यहां की अंतरराष्ट्रीय भाषा के रूप में अंग्रेजी भाषा का प्रचलन है. वैसे बोडी भाषा के साथ ही अन्य भाषाओं का भी प्रयोग किया जाता है. हिंदी भी यहां पांव पसार रही है जबकि ट्राइबल इलाकों में अपनी बोली है.

30 अप्रैल का दिन पारो का रहा जहां लाईपेरीबौटनिक्ल पार्क, छूनजोन संगम म्यूजियम और फोर्ट व्यू म्यूजियम आकर्षण के केंद्र में रहे. भूटान में जीविकोपार्जन के रूप में कृषि, पशु पालन और जल विद्युत ऊर्जा प्रमुख रूप से विद्यमान है. मछली पालन में भी लोगों की आजीविका चलती है और हाथ से बने उत्पादों की भी बहुतायत है. पशु पालन में याक पशु का महत्व बहुत है. इसका दूध उपयोग में आता है तो मांस और ऊन भी लोगों को रोजगार देता है.

भारत के सहयोग से जलविद्युत परियोजना का डेव्हलेपमेंट तेजी के साथ हो रहा है. चार विद्युत परियोजनाएं चलित हैं तो दो पर काम प्रगति पर है इसमें भी लोगों को रोजगार बड़ी संख्या में मिला है.

1 मई 2025 को ड्रगेल जोंग और फोर्ट टाइगर वेस्ट व्यू, बोंगड़े जागटो फेलरी (मंदिर और टेंपल) हाईस्टोन देखने को मिला. इस देश में धार्मिक स्वतंत्रता है.संविधान में उल्लेख है कि धार्मिक संस्थाएं और व्यक्तित्व राजनीति से ऊपर रहेंगे.

थिम्पू में हिंदू देवी पंचायन मंदिर सरकार द्वारा वित्तपोषित राजा द्वारा अनुमोदित और 2019 में प्रतिष्ठित औपचारिक रूप से 23 सितंबर को खोला गया.

वहां कि सेना को रॉयल भूटान आर्मी (RBA) के नाम से जाना जाता है जबकि राजा की रक्षा के लिए रॉयल बॉडीगार्डस (RBG) तैनात है. इन्हें भारतीय सेना द्वारा प्रशिक्षित किया जाता है साथ ही साथ भारत की ओर से भी सेना की तैनाती की गई है जो भूटान की सीमाओं की सुरक्षा करती है. इसके लिए भारत की ओर से निरंतर सुरक्षा सहयोग प्रदान किया जाता है. भूटान की आंतरिक सुरक्षा के लिए भूटानी पुलिस तैनात रहती है इसे रॉयल भूटान पुलिस (RBP) कहते है. रॉयल भूटान आर्मी (RBA) का मुख्यालय राजधानी थिम्पू में स्थित है.

भूटान के महाराज जिग्मे खेसर नामाग्याल वागंचूक सेना के सुप्रीम कमांडर इन चीफ हैं जबकि सेना प्रमुख बाटू शेरिंग है. इस समय रॉयल भूटान आर्मी (RBA) में 8 हजार जवान हैं जो देश की अलग-अलग सीमाओं पर तैनात हैं. भारतीय सेना ने भूटानी सेना की ट्रेनिंग के लिए इंडियन मिलिट्री ट्रेनिंग टीम (IMTRAT) बनाया है यहीं पर RBA और RBG की ट्रेनिंग होती है इसके आलावा भारत देश के पुणे स्थित NDA और देहरादून स्थित IMA में भी भूटानी सेना को ट्रेनिंग दी जाती है. सैन्य प्रशिक्षण सन् 1961-62 से प्रारंभ हुआ. भारतीय अलगावादी संगठनों को निशाना बनाया गया जिसे रॉयल आर्मी ने खत्म किया.

भारत भूटान को रक्षा के क्षेत्र में सहायता प्रदान करता है जिसमें प्रशिक्षण, उपकरण और अन्य सहायता शामिल है. बीएसएफ और एसएसबी साथ मिलकर काम करते हैं वैसे तो भूटान में वायु सेना नहीं है लेकिन भारतीय वायु सेना निरंतर भूटान की सुरक्षा में उड़ान भरती रहती हैं.

लैंगिक समानता बढ़ाने में महत्वपूर्ण प्रगति हासिल की

भूटान भारत और चीन के बीच हिमालय में छिपा एक छोटा सा भूमि से घिरा हुआ देश है, जिसमें ऊंचे पहाड़ और गहरी घाटियाँ हैं, जिसके कारण मानव बस्तियों के पैटर्न बिखरे हुए हैं. सकल राष्ट्रीय खुशी (GNH) देश की विशिष्ट विचारधारा है जो इसकी विकास योजना को सूचित करती है. भूटान की राजनीतिक और आर्थिक स्थिति स्थिर है. इसने सामाजिक अन्याय और क्षेत्रीय असंतुलन को दूर करने के निरंतर प्रयासों के साथ गंभीर गरीबी को खत्म करने और लैंगिक समानता बढ़ाने में महत्वपूर्ण प्रगति हासिल की है. भूटान की अर्थव्यवस्था खेती के लिए उपयुक्त है, और देश की ऊँचाई और जलवायु की विशाल सीमा भूटान के खेतों को विभिन्न प्रकार की फसलों और मवेशियों का समर्थन करने की अनुमति देती है.

दूसरी ओर, कृषि के लिए उपयुक्त भूमि की मात्रा भूटान के कुल क्षेत्रफल का एक छोटा प्रतिशत है; मुख्य रूप से कठोर जलवायु, खराब मिट्टी और खड़ी ढलानों ने सरकार को वन विकास और घास के मैदानों से आच्छादित भूमि का एक बड़ा क्षेत्र छोड़ने के लिए मजबूर किया है. मध्य भूटानी घाटियाँ, जो अपेक्षाकृत कम, अच्छी तरह से पानी वाली और उपजाऊ हैं, में खेती की गई भूमि का सबसे अधिक प्रतिशत है. भूटान 20वीं सदी के उत्तरार्ध से ही कृषि उत्पादकता को बढ़ाने के लिए खेती और वानिकी पद्धतियों में प्रगतिशील संशोधनों को लागू कर रहा है. फलों की खेती को लोकप्रिय बनाने के लिए कई बाग़ बनाए गए हैं और हज़ारों फलों के पौधे किसानों को सौंपे गए हैं. लघु-स्तरीय सिंचाई योजनाओं के विकास को भी प्राथमिकता दी गई है. यह क्षेत्र अभी भी भूटान के सकल घरेलू उत्पाद में एक प्रमुख योगदानकर्ता है और 21वीं सदी की शुरुआत में देश के कार्यबल के लिए प्रमुख रोज़गार है.

भूटान दुनियां का खुशहाल देश है

भूटान दुनियां का ऐसा देश है जिसके पास न उन्नत अर्थव्यस्था है न उपजाऊ जमीन, न जनाधिक्य है न पर्याप्त श्रमबल इसके बाद भी भूटान दुनियां का खुशहाल देश है. खूबसूरत और अनुपंम प्रदेश है. कई अन्य चीजों के अलावा, भूटान अपनी बाहरी गतिविधियों के लिए भी जाना जाता है. अगर आप रोमांच के शौकीन हैं, तो मो चू नदी पर राफ्टिंग और कयाकिंग का मज़ा लें. मो चू दोनों नदियों में से ज़्यादा कोमल है और इसका बहाव स्थिर है. इसलिए, यह शुरुआती लोगों द्वारा पसंद की जाती है और बच्चों और बुजुर्गों के लिए सुरक्षित है. दूसरी ओर, पो चू में नदी की धाराएँ तेज़ होती हैं और यह पेशेवरों के लिए ज़्यादा उपयुक्त है.

भूटान हमारा इस्तकबाल कर रही थी

जब डीएल वर्मा, कौशल वर्मा, अरूण बघेल, नेतराम वर्मा, तेजबहादुर बंछोर, नंदकुमार चंद्राकर, मोहन हरमुख, जितेंद्र दिल्लीवार के साथ हम लखन वर्मा लौटे तो भूटान हमारी यादों में जगमगा रहा था. हम हवाई जहाज में थे और सूरज की रौशनी भूटान की यादों के साथ हमारा इस्तकबाल कर रही थी. भारतीय और भूटानी संस्कृति की साझी बयार लिए जब हम भारत की धरती पर उतरे तो बस्तर के आदिवासियों के गीत भूटान के आदिवासियों से मिलने लगे थे. भूटान के महाराजा की राजशाही के गुण वहां के किला की सुंदरता दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत के साथ कदमताल कर रहे थे मानों दोनों देश मिलकर एशिया महाद्वीप में मित्रता का इतिहास रचने की ओर अग्रसर हों. यही वजह है कि भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी को वहां का सर्वोच्च सम्मान दिया गया है. भूटान के महामहिम राजा ने 17 दिसंबर, 2021 को भूटान के 114वें राष्ट्रीय दिवस समारोह के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भूटान के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ऑर्डर ऑफ द ड्रुक ग्यालपो से सम्मानित किया. यह पुरस्कार भारत-भूटान मित्रता को मजबूत करने में प्रधानमंत्री के योगदान को मान्यता देता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी महामहिम द्वारा यह पुरस्कार प्राप्त करने वाले पहले विदेशी नागरिक हैं.

लेखक दक्षिण कोसल के सलाहकार सम्पादक भी हैं।


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