एक बात में जवाब देना है तो, हां... हम विफल हो गए...
मौत के साथ बसवराजू ही इस अवैध संगठन का अंतिम महासचिव था
दक्षिण कोसल टीमछत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले में नक्सलियों और सुरक्षाबलों के बीच हालिया मुठभेड़ में मारे गए भाकपा माओवादी के शीर्षस्थ नेता यानी महासचिव नंबाला केशवाराव उर्फ बसवराजू तथा अन्य माओवादियों के संबंध में माओवादियों की दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी ने तीन पेज का बड़ा बयान जारी करते हुए बसवराजू के मुठभेड़ पर अपना पक्ष रखते हुए कहा है कि सुरक्षा में मुख्य जिम्मेदारी निभाने वाले सीवयपीसी मेंबर, माड आंदोलन को गाइड करने वाले यूनिफाइड कमांड के एक सदस्य की गद्दारी के कारण इतना बड़ा नुकसान उठाना पडा।

जनता को अपने जल-जंगल-जमीन से बेदखल कर यहा के संपदाओं को कारपोरेटों को सौंपने के मकसद से चल रहे इस कगार अभियान में यह सफलता कुछ गद्दारों की वजह से मिली। कई तरह की बातों के बीच नक्सलियों की दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी के प्रवक्ता विकल्प ने कहा कि नारायणपुर जिला, माड क्षेत्र के गुंडेकोट जंगल में 21 मई को घटित नारायणपुर मुठभेड़ को हत्याकांड़ कहा है और बताया कि बसवाराजू के माड़ में मौजूद रहने के बारे में पुलिस खुफिया वालों को पहले से जानकारी थी।
पिछले 6 महीनों में माड क्षेत्र से अलग-अलग यूनिटों के कुछ लोग कमजोर होकर पुलिस अधिकारियों के सामने आत्मसमर्पण कर गद्दार बन गए इन लोगों से हमारे गोपनीय समाचार उनको अपडेट होते गया। महासचिव को निशाने पर लेकर जनवरी और मार्च महीनों में समाचार आधारित दो बड़ा अभियानों का संचालन किया गया, लेकिन इसमें सफल नहीं हुए। इन अभियानों के बाद पिछले डेढ़ महीने में उस यूनिट के 6 लोग दुश्मन के सामने सरेंडर किए।
बसवाराजू के सुरक्षा में मुख्य जिम्मेदारी निभाने वाले सीवयपीसी मेंबर भी इनमें शामिल हैं। माड आंदोलन को गाइड करने वाले यूनिफाइड कमांड के एक सदस्य भी इस बीच गद्दार बन गए। इससे उन लोगों का काम और आसान हो गया। ये सभी गद्दार लोग रेक्की सहित ऑपरेशन में भी शामिल हुए। इन लोगों के कारण से इतना बड़ नुकसान उठाना पडा।
इन दोनों पक्षों के बीच में युद्ध शुरू होता है
माओवादियों ने घटना की सिलसिलेवार जानकारी देते हुए कहा कि योजना के तहत 17 मई से नारायणपुर और कोंडागाव डीआरजी वालों का डिप्लायमेंट ओरछा के तरफ से शुरू किए 18 को दंतेवाड़ा, बीजापुर के डीआरजी, बस्तर फाइटर्स के जवानों ने अंदर गए। 19 तारीख सबेरे 9 बजे तक हमारे यूनिट के नजदीक पहुंच गए। अभियान से एक दिन पहले यने 17 तारीख को उस यूनिट का एक पीपीसी मेंबर अपने पत्नी के साथ भाग गए। ये लोग कहां गए जानकारी लेना बाकी है। इन लोगों के भाग जाने के बाद वहां से डेरा बदली किया गया।
19 तारीख सबेरे पुलिस फोर्स नजदीक गांव तक पहुंचने का समाचर मिलने के बाद वहां से निकलकर जाते समय रास्ते में सबेरे 10 बजे पुलिस जवानों से पहली मुठभेड़ हुई। उसके बाद दिन भर 5 बार मुठभेड़ हुई। इन मुठभेड़ों में किसी को कोई नुकसान नहीं हुआ। उनके घेराव क्षेत्र से बाहार निकलने के लिए 20 तारीख दिन भर कोशिश किये थे, लेकिन सफल नहीं हुए। 20 रात को हजारों पुलिस बल नजदीक से घेर लिए। 21 सबेरे फायनल ऑपरेशन को अंजाम दिए। एक तरफ अत्याधुनिक हथियारों से लैस हजारों गुण्डा बल, आपरेशन में सुरक्षा बलों को खाने पीने का व्यवस्था हेलिकाफ्टरों से किया जाता है। माओवादियों ने कहा कि उनके पास 60 घण्टों से खाने पीने के लिए कुछ नहीं था और भूखे थे...।
जबकि पुलिस का कहना है कि महासचिव बसवराजू और डीकेएसजेडसी और पीएलजीए संरचनाओं के अन्य वरिष्ठ दस्तों की उपस्थिति के बारे में छत्तीसगढ़ एसआईबी से प्राप्त खुफिया जानकारी के आधार पर छत्तीसगढ़ पुलिस की संयुक्त डीआरजी टीमों ने 18 मई 2025 को नारायणपुर, बीजापुर और दंतेवाड़ा की सीमा क्षेत्र में अबूझमाड़ के जंगलों में इस निर्णायक अभियान के लिए प्रस्थान किया।
तलाशी अभियान के दौरान 21 मई को सुबह के समय माओवादियों ने सुरक्षा बलों पर अंधाधुंध गोलीबारी की। प्रतिकार में सुरक्षा बलों ने बहादुरी और कुशलता से अवैध और प्रतिबंधित सीपीआई (माओवादी) संगठन के खिलाफ संघर्ष किया, जिसमें 27 सशस्त्र माओवादियों के शव बरामद हुए और ऑपरेशन के दौरान एके-47, इन्सास, एसएलआर, 303 राइफल, कार्बाइन, सुरखा आदि सहित बड़ी संख्या में हथियार बरामद किए गए।
माओवादियो ने कहा कि बीआर दादा (बसवाराजू) को अपने बीच में सुरक्षित जगह में रख कर प्रतिरोध किए। पहले राउंड में डीआरजी के कोटलू राम को मारे गए। बताते हैं कि माओवादियों का एक टीम आगे बढक़र उनके घेराव को तोडऩे में सफल हुई लेकिन भारी शेलिंग के कारण बाकी लोग उस रास्ते से नहीं निकल सके। घेराव को तोड़ते हुए टीम मुख्य टीम से अलग हो गई। सभी ने नेतृत्व को बचाने की अपनी जिम्मेदारी को बखूबी निभाते हुए अपने नेता को आखिरी तक छोटा खरोंच भी आने नहीं दिया। सभी शहीद (यहां माओवादियों ने मारे गए सभी नक्सलियों को शहीद कहा) होने के बाद बीआर दादा को जिंदा पकड़ लिया, हत्या किया।
वे कहते हैं कि उनकी संख्या कुल 35 थी, इसमें 28 माओवादी मारे गए। माओवादी एक शव अपने साथ ले गए थे। इस मुठभेड़ से 7 नक्सली सुरक्षित निकल कर आए। एक अन्य माओवादी नीलेश का लाश उनके पीएलजीए को मिला है। पुलिस फोर्स वापस जाते समय इंद्रावती नदी किनारे आइईडी विस्फोट में एक जवान रमेश हेमला मारे गए। जो कुछ साल पहले माओवादियों के उसी क्षेत्र में एलओएस कमांडर के रूप में काम कर चुके थे।
माओवादियों ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि बीआर दादा के सुझाव पर ही शांति वार्ता के लिए अनुकूल माहौल के लिए सरकारी सशस्त्र बलों पर कार्रवाइयों पर रोक लगा रखे थे। 40 दिनों में ऐसा एक भी कार्रवाई नहीं किए थे। इस समय में षड्यंत्र के तहत केंद्र, राज्य सरकार ने मिलकर इतना बड़ा हमला को अंजाम दिया।
मुख्य नेतृत्व का सुरक्षा को लेकर पार्टी ने क्या किया?
माओवादियों ने सवाल उठाया और खुद जवाब देते हुए कहते हैं कि सभी के मन में सवाल उठना साधारण बात है। एक बात में जवाब देना है तो हां... हम विफल हो गए। जनवरी महीने तक यह यूनिट 60 के ऊपर संख्या से रहती थी। प्रतिकूल परिस्थितियों में आसान मोबिलिटी के लिए संख्या को घटाया गया। उस कंपनी से इस बीच में कुछ सीनियर लोग कमजोर होकर सरेंडर किए। घटना के समय संख्या 35 थी। अप्रैल और मई में बड़े अभियानों का अंदेशा हमें पहले से थी लेकिन सुरक्षित जगह में जाने के लिए बसवराजू तैयार नहीं थे।
बसवराजू के हवाला से प्रवक्ता कहते हैं कि सुरक्षा के बारे में पूछने से उनका जवाब था, ‘मेरे बारे में आप लोग चिंता नहीं करना, मैं ज्यादा से ज्यादा और दो या तीन साल इस जिम्मेदारी को निभा सकता हूं। युवा नेतृत्व के सुरक्षा पर आप लोग ध्यान देना हैं, शहादतों से आंदोलन कमजोर नहीं होते, शहदतें बेकार नहीं होते, इतिहास में ऐसा नहीं हुआ, इतिहास में शहदते क्रांतिकारी आंदोलन को ताकत दिया।
अभी भी मुझे विश्वास है... इन शहदतों के प्रेरणा से क्रांतिकारी आंदोलन कई गुणा ताकत के साथ नये सिरे से उभर कर सामने आएगी, इस फासीवादी सरकार की दुष्ट योजना साकार नहीं होंगेे, अंतिम जीत जनता की होगी’ कई माओवादियों के समझाने से भी दादा (बसवाराजू) ने नहीं सुने। प्रतिकूल स्थिति में कैडर के साथ रहते हुए नजदीकी मार्गदर्शन देने तय किए।
वे कहते हैं कि इस सफलता को बड़ी उपलब्धि कहते हुए सरकार और प्रतिक्रांतिकारी लोग जश्न मना रहे हैं। हम भी मान रहे हैं उन लोगों के लिए यह बड़ी उपलब्धि है, कारपोरेट हिंदू राष्ट्र निर्माण करने की अपनी योजना को अमल करने की दिशा में यह एक उपलब्धि जरूर है। नया भारत, विकसित भारत के नाम से देश को कारपोरेट हिंदू राष्ट्र में तब्दील करने की आरएसएस-भाजपा के योजना से असहमत देश के करोड़ों लोग इस नुकसान को लेकर चिंता में है।
वे कहते हैं कि इतिहास में 21 मई अंधेरे दिन के रूप में दर्ज होंगे। मजबूत दुश्मन को सामना करते समय क्रांतिकारी (नक्सली) आंदोलन ऐसे नुकसानों को सामना करने की संभावना रहता है। बसवराजू का दृढ़ विचार व लंबा योगदान से निर्मित आंदोलन है, उनके मार्गदर्शन में काम करते हुए विकसित हुए दृढ़ कैडर हैं और अनुभवी कामरेडों से लैस केंद्रीय कमेटी मौजूद हैं।
इन पर आधार होकर क्रांतिकारी आंदोलन इस प्रतिकूल स्थिति से उभरेंगे, सरकार अपनी पूरी ताकत को इस्तेमाल कर रहा है, इतना ही नहीं साम्राज्यवादियों का मदद भी मिल रहा है। देश व अंतरराष्टीय कानून व नियमों का उल्लंघन करते हुए देश के अंदर सेना इस्तेमाल हो रहा है, बड़ा आर्टिलरी व टैंको का इस्तेमाल हो रहा है। इससे सशस्त्र क्रांतिकारियों (नक्सलियों) को भौतिक रूप से निर्मूलन करने में कुछ हद तक सफल होते होंगे, लेकिन क्रांतिकारी विचारों को खत्म करना संभव नहीं है।
पत्र में माओवादियों का तर्क है कि जनता को अपने जल-जंगल-जमीन से बेदखल कर यहा के संपदाओं को कारपोरेटों को सौंपने के मकसद से चल रहे इस कगार अभियान में यह सफलता इन गद्दारों के वजह से मिली।
पत्र के अंत में अनेक देश और विश्व की परिस्थितियों में अपनी बाते रख और इस मुठभेड़ को हत्याकांड करार देते हुए अपने मारे गए साथियों सीसी स्टाफ के राज्य कमेटी स्तर के नागेश्वर राव उर्फ मधू उर्फ जंग नवीन, सीसी स्टाफ के संगीता, भूमिका, विवेक, सीवयपीसी सचिव कामरेड चंदन उर्फ महेश, सीवयपीसी सदस्या सजंति के साथ गुड्डू रामे, लाल्सू, सूर्या, मासे, कमला, नागेश, रागो, राजेश, रवि, सुनिल, सरिता, रेश्मा, राजु, जमुना, गीता, हुंगी, सनकी, बदरू, नीलेश, संजु सहित 28 नक्सलियों को शहीद ठहराया।
नक्सलियों द्वारा जारी विज्ञप्ति पर बस्तर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक सुन्दरराज पी ने कहा कि 25 मई को भाकपा (माओवादी) दंडकारण्य स्पेशल ज़ोनल कमेटी के प्रवक्ता द्वारा 21 मई को अबूझमाड़ क्षेत्र में हुई मुठभेड़ के संबंध में एक प्रेस वक्तव्य जारी किया गया, जिसमें भाकपा (माओवादी) के महासचिव बसवराजू उर्फ बीआर दादा उर्फ गंगन्ना सहित कुल 27 माओवादी कैडरों के मारे जाने की पुष्टि की गई। यह ऐतिहासिक अभियान सुरक्षा बलों के जवानों द्वारा सफलतापूर्वक संपन्न किया गया था।
आईजीपी ने माओवादी संगठन के इस बयान को तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत करने और जनभावनाओं को भटकाने का निराशाजनक प्रयास बताया। उन्होंने इस प्रेस नोट को अधकचरा, भ्रामक और साजिशपूर्ण बताते हुए कहा कि यह एक नेतृत्वविहीन और बिखरती हुई संगठन की प्रासंगिकता बनाए रखने की अंतिम कोशिश है।
आईजीपी सुंदरराज ने स्पष्ट किया कि 21 मई 2025 भारत के वामपंथी उग्रवाद विरोधी इतिहास में एक निर्णायक दिन के रूप में याद किया जाएगा। मारे गए बसवराजू, जो कि माओवादी संगठन के सर्वोच्च नेता थे, की मौत से संगठन को केवल सैन्य स्तर पर ही नहीं, बल्कि मनोवैज्ञानिक रूप से भी गहरा आघात पहुंचा है। माओवादी आंदोलन के मुख्य गढ़ में 27 सशस्त्र उग्रवादियों का खात्मा सुरक्षा बलों की दृढ़ता और प्रभावशीलता का प्रत्यक्ष प्रमाण है।
पुलिस अधिकारी का कहना है कि माओवादी बयान में बसवराजू की मौत को ‘बलिदान’ के रूप में प्रस्तुत करने के प्रयास की कड़ी आलोचना करते कहा कि यह दशकों की हिंसा को महिमामंडित करने वाला झूठा प्रचार है। बसवराजु कोई शहीद नहीं था, बल्कि वह आतंक और हिंसा के युग का मुख्य सूत्रधार था-जिसने हजारों निर्दोष आदिवासियों, महिलाओं और बच्चों की हत्या करवाई, और सैकड़ों सुरक्षाबलों को आईईडी धमाकों और घात लगाकर किए गए हमलों में मौत के घाट उतारा। ऐसे व्यक्ति को ‘जननायक’ के रूप में चित्रित करना न केवल भ्रामक है, बल्कि उन वीरों और नागरिकों का घोर अपमान है जिन्होंने बस्तर की शांति और समृद्धि के लिए अपने प्राणों की आहुति दी।
पुलिस महानिरीक्षक के अनुसार यह प्रेस वक्तव्य माओवादी कैडरों के गिरते मनोबल को संबल देने की विफल कोशिश है। लगातार चलाए जा रहे खुफिया आधारित अभियानों के कारण संगठन टुकड़ों में बिखर चुका है और अब मूलभूत समन्वय बनाए रखने में भी असमर्थ दिख रहा है।
मौत के साथ बसवराजु ही इस अवैध संगठन का अंतिम महासचिव था
एक महत्वपूर्ण संदेश देते हुए आईजीपी सुंदरराज ने कहा कि -‘अब माओवादी कैडरों के पास एकमात्र सम्मानजनक विकल्प यह है कि वे आत्मसमर्पण करें, हिंसा का रास्ता छोड़ें और समाज की मुख्यधारा में लौटें। सरकार लगातार पुनर्वास और शांतिपूर्ण जीवन की पेशकश कर रही है। परंतु यदि कुछ तत्व अब भी इस अवसर को नजरअंदाज करते हैं, तो उनका अंत निकट और निश्चित है।’
पुलिस महानिरीक्षक आगे कहा कि भाकपा (माओवादी) संगठन आज पूर्णत: विघटन की कगार पर है, जहां न तो कोई सक्षम नेतृत्व बचा है और न ही कोई रणनीतिक दिशा। बसवराजू के बाद उनके उत्तराधिकारी को लेकर चर्चाएं अब बेमानी हैं। उनकी मौत के साथ ही यह आंदोलन अपनी वैचारिक और संचालन क्षमता भी खो चुका है। यह माना जा सकता है कि बसवराजू ही इस अवैध संगठन का अंतिम महासचिव था।
पुलिस महानिरीक्षक ने दोहराया कि ‘संकल्प-नक्सल मुक्त बस्तर मिशन’ अब केवल एक सपना नहीं, बल्कि तेजी से साकार होती हुई हकीकत है। एक समय आतंक और हिंसा का प्रतीक रहा माओवादी आंदोलन अब अपने अंतिम दौर में पहुंच चुका है, जबकि शांति और विकास की नई सुबह बस्तर में दस्तक दे चुकी है।
पुलिस ने बसवराजु पर कहा कि -‘केंद्रीय सैन्य आयोग (सीएमसी) प्रमुख उनका पदोन्नति वैचारिक से सैन्य आक्रामकता की ओर एक बदलाव को दर्शाता है, जो गुरिल्ला और मोबाइल युद्ध रणनीतियों और पीएलजीए (पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी) को मजबूत करने पर केंद्रित है। वे विशेष रूप से विस्फोटकों, आईईडी के उपयोग, सैन्य गठन, पुलिस थानों पर हमलों आदि में सैन्य प्रशिक्षण के विशेषज्ञ थे।’
पुलिस का कहना है कि छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ क्षेत्र में सुरक्षा बलों द्वारा एक संयुक्त माओवादी विरोधी अभियान चलाया गया। इस अभियान के मुख्य उद्देश्य हैं- सुरक्षा विहीन क्षेत्रों को भरने के लिए नए सुरक्षा शिविरों की स्थापना, माओवादी प्रभावित जिलों में राज्य विकास योजनाओं का प्रभावी कार्यान्वयन ताकि नागरिकों के लिए क्षेत्र का सर्वांगीण विकास सुनिश्चित किया जा सके, और सशस्त्र दस्तों और माओवादियों के पूरे ईको सिस्टम के खिलाफ प्रभावी अभियान चलाना। इसके परिणामस्वरूप, सुरक्षा बलों ने माओवादियों के सशस्त्र दस्तों और उनके ईको सिस्टम तंत्र को भारी नुकसान पहुंचाया है, जिससे उनके प्रभाव क्षेत्र में महत्वपूर्ण कमी आई है।
वे कहते हैं कि अबूझमाड़ लगभग 5000 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला हुआ है, जो नारायणपुर, बीजापुर, कांकेर और दंतेवाड़ा जिलों में स्थित है, जो अत्यधिक कठिन और ऊबड़-खाबड़ इलाका है, जिसमें घने जंगल माओवादियों के सशस्त्र दस्तों एवं मायोवादियों के शीर्ष नेतृत्व के लिए सुरक्षित ठिकाने व आश्रयस्थली प्रदान करते हैं। पिछले दो और आधे वर्षों में, सुरक्षा शिविरों की स्थापना और माओवादी विरोधी अभियानों के कारण माओवादियों का गढ़ महत्वपूर्ण रूप से कमजोर हुआ है।
बहरहाल खबर यह है कि माओवादियों के महासचिव बसवाराजू समेत आठ नक्सलियों के शवों का अंतिम संस्कार सोमवार (26 मई) को नारायणपुर में पुलिस और प्रशासन की निगरानी में किया गया। अंतिम संस्कार की पुष्टि नारायणपुर पुलिस द्वारा जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में की गई है। इससे पहले स्थानीय लोगों का कहना था कि पुलिस परिजनों पर नारायणपुर में ही अंतिम संस्कार करने का दबाव बना रही थी। पुलिस को आशंका था कि यदि शव परिजनों को सौंपा गया और अंतिम संस्कार सार्वजनिक रूप से हुआ, तो यह बसवाराजू को माओवादी ‘नायक’ के तौर पर महिमामंडित कर सकता है।
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02/07/2025
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