छत्तीसगढ़ में मुठभेड़ में माओवादी शीर्ष नेता नंबाला केशवराव मारा गया

बसव राजू के बाद कौन होगा अगला महासचिव?

दक्षिण कोसल टीम

 

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार बसव राजू 1985 में भूमिगत हो गए थे। तेलंगाना और आंध्र प्रदेश दोनों राज्यों के लिए, मंगलवार को अबूझमाड़ में मुठभेड़ में मारा गया बसव राजू माओवादी पार्टी का पर्याय था। 70 वर्षीय बसव राजू आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम का रहने वाला था और वारंगल के रीजनल इंजीनियरिंग कॉलेज का छात्र था।

तेलंगाना के एक शीर्ष खुफिया अधिकारी ने बताया, ‘वह आरईसी वारंगल के छात्र संघ अध्यक्ष थे। उन्होंने रेडिकल स्टूडेंट्स यूनियन के बैनर तले चुनाव लड़ा था।’

उस समय बसव राजू को उनके जन्म के नाम नंबाला केशव राव के नाम से जाना जाता था। तेलंगाना के अधिकारी ने बताया, ‘यह वह समय था जब पूरा वारंगल कट्टरपंथी संगठनों से प्रभावित था। वह 1980 के दशक में उनके महत्वपूर्ण सदस्यों में से एक था।’

ऐसा माना जाता है कि बसव राजू 1985 में भूमिगत हो गया था। अधिकारी ने कहा, ‘वह तब से प्रमुख अभियानों का नेतृत्व कर रहा था और पीपुल्स वार ग्रुप में ऊंचे पदों पर पहुंच गया था।’

पीपुल्स वार ग्रुप (पीडब्लूजी) और माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर का 2004 में विलय हो गया और सीपीआई (माओवादी) का गठन हुआ।

खुफिया अधिकारियों ने कहा कि बसव राजू की मौत भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के लिए एक बड़ा झटका है , क्योंकि वह प्रतिबंधित संगठन के उत्तरी और दक्षिणी कमांड के बीच की कड़ी था। गणपति या मुप्पला लक्ष्मण राव द्वारा प्रतिबंधित संगठन के महासचिव का पद छोडऩे के बाद, बसव राजू ने उनकी जगह ली।

तेलंगाना के एक अन्य माओवादी विरोधी पुलिस अधिकारी ने बताया, ‘गणपति (70) को एक समय नक्सलबाड़ी को पार्टी की दक्षिणी कमान के साथ जोडऩे के लिए जाना जाता था। उन्हें पार्टी को एक छतरी के नीचे लाने के लिए देश भर में यात्रा करने के लिए जाना जाता था। बसव राजू ने उनके पदचिन्हों पर चलते हुए यह काम किया।’

अधिकारी ने दावा किया, ‘वह न केवल उनके वैचारिक प्रमुख थे, बल्कि उनके लड़ाकू प्रमुख भी थे, जो बहुत कम उम्र से ही पार्टी में पले-बढ़े थे। उनकी मृत्यु एक बड़ा झटका है और इस वजह से पार्टी को भंग भी किया जा सकता है।’ उन्होंने आगे कहा कि पार्टी में कोई ऐसा व्यक्ति नहीं है जो बसव राजू की तरह कैडर को एक साथ ला सके। ‘उनके बिना माओवादियों के लिए फिर से संगठित होना लगभग असंभव है।’

अधिकारियों ने कहा कि 2011 में 56 साल की उम्र में किशनजी (मल्लोजुला कोटेश्वर राव) की हत्या के बाद, बसव राजू की मौत से पार्टी की तेलुगु जड़ों को नुकसान पहुंचेगा। एक अधिकारी ने कहा, ‘वैचारिक युद्ध में, इस मौत की वजह से पार्टी का मनोबल काफी कम होगा।’ शीर्ष अधिकारियों ने कहा कि पिछले कुछ सालों में पार्टी को तेलंगाना से कोई नया सदस्य नहीं मिला है, इसलिए पुराने कैडर की मौत प्रतिबंधित संगठन के लिए घातक है।

एक अधिकारी ने कहा, ‘हम बाकी पोलित ब्यूरो से यथाशीघ्र आत्मसमर्पण करने को कहेंगे।’

नवभारत टाइम्स के अनुसार माओवादियों के सबसे बड़े कमांडर नंबाला केशव राव उर्फ बसवराजू की एनकाउंटर में मौत के बाद सुरक्षा एजेंसियां अब यह पता लगाने में जुटी हैं कि नक्सलियों का अगला नेता कौन होगा?

70 साल का बसवराजू इस प्रतिबंधित संगठन के महासचिव था। इस पोस्ट के लिए दो नाम सामने आ रहे हैं, थिप्पिरी तिरुपति उर्फ देवजी और मल्लोजुला वेणुगोपाल राव उर्फ सोनू। तिरुपति माओवादी पार्टी की सशस्त्र शाखा सेंट्रल मिलिट्री कमीशन (सीएमसी) के प्रमुख हैं। वहीं, वेणुगोपाल राव को फिलहाल पार्टी का आइडियोलॉजी सेल की जिम्मेदारी है। सुरक्षा एजेंसियां यह जानने की कोशिश कर रही हैं कि इन दोनों में से कौन बसवराजू की जगह लेगा।

नक्सली संगठन में नेतृत्व का खतरा

डेढ़ करोड़ के इनामी बसवराजू की मौत के बाद नक्सली संगठन में नेतृत्व का खतरा मंडराने लगा है। तेलुगु राज्यों से पार्टी में भर्ती लगभग बंद हो गई है और सुरक्षा बलों के हमलों में माओवादी नेता बड़ी संख्या में मारे जा रहे हैं। उसके दो संभावित उत्तराधिकारियों में शामिल तिरुपति तेलंगाना के मडिगा (दलित) समुदाय से है, जबकि वेणुगोपाल राव ब्राह्मण है। ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ की रिपोर्ट के मुताबिक, नक्सली तिरुपति को सर्वोच्च कमांडर बनाना चाहते हैं क्योंकि दलित होने के कारण वह आदिवासियों में पैठ बना सकता है। ये दोनों बसवराजू के बाद सेकेंड लाइन लीडरशिप में शामिल रहे। देवजी 62 साल और सोनू 70 साल का है। देवजी तेलंगाना के जगतियाल से है और सोनू पेद्दापल्ली इलाके का रहने वाला है।

इस मुठभेड़ को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने एक ऐतिहासिक उपलब्धि बताया. उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर लिखा, नक्सलवाद के खात्मे की लड़ाई में एक ऐतिहासिक उपलब्धि। आज छत्तीसगढ़ के नारायणपुर में हमारे सुरक्षा बलों ने एक बड़े ऑपरेशन में 27 खूंखार माओवादियों को ढेर किया है, जिनमें सीपीआई (माओवादी) के महासचिव और नक्सल आंदोलन की रीढ़, नामबाला केशव राव उर्फ़ बसवराजु भी शामिल हैं। भारत की नक्सलवाद के खिलाफ तीन दशक लंबी लड़ाई में यह पहला मौका है जब महासचिव स्तर के शीर्ष नेता को हमारी सुरक्षा बलों ने मार गिराया है। इस बड़ी कामयाबी के लिए मैं हमारे बहादुर सुरक्षा बलों और एजेंसियों की सराहना करता हूं.।

वह आगे लिखते हैं, ‘साथ ही यह भी साझा करते हुए खुशी हो रही है कि ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट के पूरा होने के बाद छत्तीसगढ़, तेलंगाना और महाराष्ट्र में 54 नक्सलियों को गिरफ्तार किया गया है और 84 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है.ज्

गृहमंत्री लिखते हैं, ‘मोदी सरकार 31 मार्च 2026 से पहले नक्सलवाद को समाप्त करने के लिए संकल्पबद्ध है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एक्स पर पोस्ट में उनकी मौत की पुष्टि की। प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्हें ‘इस उल्लेखनीय सफलता के लिए हमारे बलों पर गर्व है।’ उन्होंने कहा, ‘हमारी सरकार माओवाद के खतरे को खत्म करने और हमारे लोगों के लिए शांति और प्रगति का जीवन सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है।’

देश के बुद्धिजीवियों ने इस घटना पर अपनी मिलीजुली प्रतिक्रिया दी हैं। आम्बेडकरी लेखक सिद्धार्थ रामू ने लिखा है कि शहीद बसवराज की शहादत को क्रांतिकारी सलाम। आपने चारुमजूमदार की क्रांतिकारी विरासत को जिंदा रखा, उसे आगे बढ़ाया, उसे एक नई मंजिल पर ले गए। न्याय के संघर्ष में कोई हार अंतिम हार नहीं होती है, अभी तक यह हार-जीत का सिलसिला है। 

आप पूरे जज़्बे, साहस और क्रांतिकारी स्प्रिट के अन्याय के खिलाफ़ लड़े। आपने अपने हिस्से कार्यभार बखूबी पूरा किया। आने वाली पीढय़िां अपने हिस्से का काम जरूर ही करेंगी। आप उनकी प्रेरणा का स्रोत बनेंगे।फ़िलहाल मैं आपको आंसुओं की कुछ बूँदें फूलों के रूप में समर्पित कर रहा हूं।

वामपंथी लेखिका सीमा आजाद लिखती हैं कि हरी सैन्य वर्दी में जमीन पर सूखे पत्तों के बीच मृत एक बुजुर्ग, जिनकी खुली आँखें जंगल को अब भी निहार रही हैं, की तस्वीर कल से सोशल मीडिया पर शेयर की जा रही है, इस खबर के साथ कि सीपीआई माओवादी के महासचिव कॉमरेड वासवराज मुठभेड़ में मारे गए। निश्चित ही यह अंतरराष्ट्रीय स्तर की बड़ी खबर है।

सीपीआई माओवादी से कोई सहमत या असहमत हो सकता है, लेकिन इस पर कोई दो- राय नहीं हो सकती कि इस पार्टी के नेतृत्वकर्ता लड़ते हुए उस जंगल के अंदर ही मारे जा रहे हैं, जिसे बचाने का दावा वो करते हैं। माओवादी नेतृत्व के जो लोग मुठभेड़ में नहीं मारे गए वो फर्जी मुठभेड़ में पकडक़र मार दिए गए। जो इन दोनों तरीकों से नहीं मारे गए, वे आदिवासियों के बीच जंगल में रहते हुए स्वास्थ्य सेवाओं की कमी से मारे गए। अपने उद्देश्य के लिए यह समर्पण कहीं और देखने को नहीं मिलता।

इस मौत पर लिखते हुए मुझे याद आ रहा है कि जब मुझे गिरफ्तार किया गया था, तो एटीएस के एक अधिकारी ने मुझसे पूछा था, आप मानवाधिकार वाले तभी क्यों बोलते हैं जब हम उन्हें मारते हैं, जब वो मारते हैं, तब आप लोग चुप रहते हैं। उस समय मैंने उनका जो भी जवाब दिया था, लेकिन अब इसका एक और स्पष्ट जवाब है मेरे पास। ऐसे समय में जबकि माओवादी हथियार रखकर शांतिवार्ता की अपील कर रहे हैं, इस तरह की हत्या क्यों की गई कि जो माओवादियों को आगे की हिंसा के लिए प्रेरित करे?

इस साल जनवरी से हो रही आदिवासियों/माओवादियों की हत्याएं इसका प्रमाण हैं कि सरकार की मंशा माओवाद को खत्म करना नहीं, बल्कि लोगों पर ‘स्टेट पावर’ का प्रदर्शन करना है। 

पिछले दो महीने से माओवादी हथियार रखकर सरकार से शांति वार्ता की अपील कर रहे हैं, ढेरों मानवाधिकार संगठन और बुद्धिजीवी व्यक्ति शांतिवार्ता में जाने के लिए सरकार से अपील कर रहे हैं। ऐसे समय में भी उनसे बातचीत न करके उन्हें मारते जाना गैर न्यायिक हत्या और मानवाधिकार का उल्लंघन ही माना जाएगा।
भाकपा (माले) ने कहा है कि वह नारायणपुर-बीजापुर में सीपीआई (माओवादी) के महासचिव कामरेड केशव राव समेत कई माओवादी कार्यकर्ताओं और आम आदिवासियों की न्यायतेर नृशंस हत्या की कड़ी भर्त्सना करती है।

उसने कहा है कि जिस प्रकार केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने उत्सवी अंदाज में इस समाचार को साझा किया है उससे स्पष्ट है सरकार ऑपरेशन कगार को न्याय व्यवस्था से परे सामूहिक विनाश के अभियान की ओर ले जा रही है। ताकि कॉरपोरेट लूट और माओवाद दमन के नाम पर आदिवासी इलाके में कार्पोरेट लूट और भारी सैन्यकरण के खिलाफ आदिवासी प्रतिवाद को कुचल दिया जा सके और नागरिकों की हत्याओं को वैध ठहराया जा सके।

केंद्रीय कमेटी की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि हम सभी न्याय पसंद भारतवासियों से अपील करते हैं कि इस जनसंहार की न्यायिक जांच तथा अपनी ओर से युद्धविराम घोषित कर चुके माओवादियों के खिलाफ चल रही सैन्य कार्यवाही को तत्काल बंद करने की मांग जोरदार तरीके से उठायें। 

आल इंडिया पीपुल्स फ्रन्ट (एआईपीएफ)के राष्ट्रीय समिति के अध्यक्ष, आम्बेडकरी लेखक और पूर्व पुलिस अधिकारी एसआर दारापुरी ने कहा है कि आज राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के महासचिव सहित 27 सदस्यों की न्यायेतर हत्या की निंदा करते हुए प्रस्ताव पारित किया गया। हम माओवादी पार्टी की राजनीतिक विचारधारा से सहमत नहीं हैं, लेकिन जिस तरह से केंद्र और राज्य सरकारें माओवादियों और निर्दोष आदिवासियों का सफाया कर रही हैं, वह  निंदनीय है।

यह सर्वविदित तथ्य है कि समाज सेवा में लगे लोगों ने केंद्र सरकार और छत्तीसगढ़ राज्य सरकार से माओवादियों से बातचीत शुरू करने का आग्रह किया था। बताया जाता है कि माओवादी नेतृत्व ने नागरिक स्वतंत्रतावादियों द्वारा दिए गए सुझाव को स्वीकार भी कर लिया था, लेकिन छत्तीसगढ़ सरकार ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया और माओवादियों के कार्यकर्ताओं की घेराबंदी और हत्या का सिलसिला बदस्तूर जारी है।

यह उल्लेखनीय है कि यह कोई अकेली घटना नहीं है, बल्कि बुद्धिजीवियों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और असहमति जताने वालों को गिरफ्तार करने और उन पर मनगढ़ंत मामले दर्ज करने की एक बड़ी फासीवादी योजना का हिस्सा है। भीमा कोरेगांव में हुई गिरफ्तारियां और हाल ही में प्रो. अली खान की गिरफ्तारी इसके ज्वलंत उदाहरण हैं। इस सरकार द्वारा आरोपित किए गए कई लोग निर्दोष पाए गए हैं। एआईपीएफ का मानना है कि देश में विकसित हो रही यह फासीवादी प्रवृत्ति लोकतंत्र और राष्ट्र के लिए अच्छी नहीं है।

एआईपीएफ उन सभी राजनीतिक और सामाजिक संगठनों के साथ है, जो हत्याएं रोकने और समस्या के समाधान के लिए बातचीत शुरू करने का आह्वान कर रहे हैं।

बताते चले कि केंद्र सरकार ने साल 2026 तक देश भर से नक्सलवाद को समाप्त करने का संकल्प लिया है। माओवादियों के खिलाफ ऑपरेशन कगार से उनके उन्मुलन में तेजी आई हैं। गृह मंत्रालय की 14 मई के रिपोर्ट के अनुसार साल 2025 के पहले चार महीने तक ही 197 माओवादी मारे जा चुके हैं। 

 


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