सेतु प्रकाशन के मालिक अमिताभ राय पर दबाव बनाइए

गंभीर हालातों में एम्स में भर्ती आनन्द स्वरूप वर्मा की पोस्ट पढ़िए

सिद्धार्थ रामू

 

वह पैसा न दे, तो उसे नाता तोड़ने की हिम्मत जुटाइए। वह देगा ही, उसे देना ही पड़ेगा।

आनन्द स्वरूप वर्मा ने आज एक एम्स अस्पताल से एक पोस्ट लिखी है। पोस्ट नीचे है। जिसमें उन्होंने साफ लिखा है कि सेतु प्रकाशन का मालिक अमिताभ राय उनका ढाई लाख रूपया नहीं दे रहा है। पिछले 9 महीन से वे तकादा कर रहे हैं। अब वह फोन भी नहीं उठा रहा है।

इस अमिताभ राय के पैरोकार और सलाहकार हिंदी के कई प्रगतिशील कहे जाने वाले लेखक रहे हैं। दक्षिणपंथी, वामपंथी और बहुजनवादी कई लेखक उससे नजदीकी से जुड़े हुए हैं। उसके लिए किताबे लिखने की पैरोकारी भी करते हैं। सबकी जिम्मेदारी है कि तत्काल वर्मा जी का पैसा उस पर दबाव डालकर दिलाएं।

हिंदी के चर्चित और प्रतिष्ठित कवि मदन कश्यप जी को भी इसमें हस्तक्षेप करना चाहिए। उनका अमिताभ राय से काफी नजदीकी है।

चर्चित और प्रतिष्ठित मेरे आदरणी ओमप्रकाश कश्यप जी ने सेतु प्रकाशन के लिए कई किताबें तैयार की हैं। ऐसे कई सारे लोग हैं।

इस प्रकाशन को स्थापित और शीर्ष प्रकाशकों में एक बनाने में स्मृति शेष मंगेलश डबराल जैसे लोगों ने अहम भूमिका निभाई थी। इसके ऊपर अशोक वाजपेयी का बरहस्त है।

आनन्द स्वरूप वर्मा ने सारे रास्ते बंद होने के बाद ही फेसबुक पर लिखा होगा।

वर्मा के व्यक्तित्व और कृतित्व के किसी पहलू से किसी की सहमति-असहमति हो सकती है। लेकिन सार्वजनिक तौर जो कुछ भी उन्होंने लिखा है, उस विश्वास न करने का कोई कारण नहीं है।

सभी लोगों की जिम्मेदारी है कि जल्द से जल्द वर्मा जी का पैसा दिलाएं।

वैसे अन्य उपाय भी हैं, लेकिन यह बाद की बात है।

मैं सूर्यकांत त्रिपाठी निराल के इस बात से सहमत हूं कि यदि कोई प्रकाशक पैसा नहीं देता है, तो मजदूर की मजदूरी न देने जैसा है। मजदूर का यह हक है कि वह किसी भी तरीके से अपना पैसा वसूले। चाहे उसे लाठी का सहारा ही क्यों न लेना पड़े।

निराल जी ने खुद एक प्रकाशक से अपना पैसा वसूलने के लिए लाठी का सहारा लिया था, लेकिन यह अंतिम उपाय है।

 

मित्रो, मुझे आज एम्स में एक महीने हो गए। अगस्त से अब तक चौथी बार इसमें आना हुआ है। बड़े दुर्लभ मामलों में एम्स इतने लंबे समय तक मरीज को अस्पताल में रखता है। इस बीच मैंने अपने प्रकाशक सेतु प्रकाशन के मालिक अमिताभ राय से अनुरोध किया कि वह मुझे कुछ अग्रिम राशि का भुगतान कर दें। उनके लिए मैंने दो-तीन किताबें पहले की हैं और अभी Mass Psychology of Fascim शीर्षक पुस्तक का अनुवाद कर रहा हूं। पहले अकेले ही कर रहा था लेकिन लगातार देर होने की वजह से प्रकाशक से अनुमति लेकर मैंने इसके कुछ अध्याय प्रमोद मलिक से करवाया । प्रमोद जी वर्षों तक जनसत्ता कोलकाता संस्करण में कार्यरत थे और अभी विभिन्न इलेक्ट्रॉनिक चैनलों से होते हुए दिल्ली में news24 में काम कर रहे हैं। पुस्तक का अनुवाद पूरा हो चुका है लेकिन इसको रिवाइज करने का जब समय आया तभी मेरी तबीयत खराब हो गई और मुझे अस्पताल आना पड़ा।

इस पुस्तक का कुल पारिश्रमिक मुझे लगभग ढाई लाख मिलेगा। अभी जब भी मैं पैसे के लिए फोन करता हूं वह या तो फोन उठाते नहीं है और जब उठाते हैं तो यही कहते हैं कि बहुत जल्दी कुछ करुंगा। पिछले वर्ष सितंबर से यही सिलसिला चल रहा है।

इस पोस्ट के माध्यम से मैंअपने और सेतु प्रकाशन के भी शुभचिंतकों से अनुरोध करता हूँ कि वे अमिताभ राय पर दबाव डालेँ ताकि मेरी समस्या आंशिक तौर पर हल हो सके। यह पोस्ट मुझे बहुत मजबूर हो कर लिखना पड़ा है।

-आनन्द स्वरूप वर्मा

 


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