तब पता चला कि उसे दुर्लभ आनुवंशिक बीमारी है
जहां व्यक्ति की अनोखी आनुवंशिक संरचना के अनुसार इलाज संभव होगा
मनोज अभिज्ञानएक नवजात शिशु के साथ कुछ विशेष दिक्कतें थीं। डॉक्टरों ने कई संभावनाओं पर चर्चा की-शायद मेनिन्जाइटिस, शायद सेप्सिस? लेकिन जब बच्चा महज एक सप्ताह का था, तब पता चला कि उसे दुर्लभ आनुवंशिक बीमारी है—CPS1 की कमी, जो हर 13 लाख में सिर्फ एक बच्चे को होती है।

यह बीमारी अमोनिया को शरीर से निकालने में विफलता की वजह से होती है, जिससे दिमाग पर गहरा असर पड़ता है। बच्चा यदि बच भी जाए, तो उसे गम्भीर मानसिक और विकासात्मक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता, और अंततः लिवर ट्रांसप्लांट की आवश्यकता होती। इस बीमारी में आधे से ज्यादा बच्चे जन्म के पहले सप्ताह में ही मर जाते हैं।
चिकित्सा विशेषज्ञों ने परिवार को ‘कम्फर्ट केयर’ का विकल्प दिया, यानी कड़े इलाज से परहेज करते हुए बच्चे को पीड़ा से बचाना। परिवार ने बच्चे को मौका देने का साहस दिखाया। और यह मौका इतिहास बन गया। अब नौ महीने का बच्चा पहली बार किसी भी उम्र के व्यक्ति में कस्टमाइज्ड जीन-एडिटिंग ट्रीटमेंट पाने वाला पहला मरीज बन गया है।
यह इलाज विशेष रूप से उसके जीन के दोष को ठीक करने के लिए डिजाइन किया गया था। यह तकनीक, जिसे बेस एडिटिंग कहा जाता है, मानव जीवन की जटिलताओं को डीएनए के सूक्ष्म अक्षरों तक पहुंचकर सुधारने का रास्ता खोलती है।
यह इलाज सिर्फ उस बच्चे के लिए ही नहीं, बल्कि करोड़ों दुर्लभ आनुवंशिक बीमारियों से पीड़ित लोगों के लिए उम्मीद की किरण है।
सबसे विकसित देश अमेरिका में ही 3,000 से ज्यादा ऐसी बीमारियां हैं, जिनके लिए दवाएं विकसित करना कंपनियों के लिए महंगा और तकरीबन असंभव माना जाता है। लेकिन इस इलाज ने दिखाया कि व्यक्तिगत, लक्षित जीन एडिटिंग से इन रोगों को बिना वर्षों की महंगी रिसर्च के भी ठीक किया जा सकता है।
कैसे? जीन एडिटिंग की दवा को फैटी लिपिड कणों में लपेटा जाता है ताकि वह खून में टूटे नहीं। ये कण शरीर के लिवर तक पहुंचकर वहां डीएनए के उस हिस्से को ढूंढते हैं जो गलत हो गया है। इस प्रक्रिया में CRISPR नामक ‘मोलेक्यूलर GPS’ का इस्तेमाल होता है, जो डीएनए की लाखों लकीरों में से बिलकुल सही जगह पहुंच कर उस एक अक्षर को बदल देता है।
ये जादूगरी सिर्फ उस बच्चे के लिए ही नहीं, बल्कि भविष्य में सिकल सेल, सिस्टिक फाइब्रोसिस, हंटिंग्टन और मस्कुलर डिस्ट्रॉफी जैसे जटिल रोगों के इलाज में भी क्रांति ला सकती है। यह तकनीक स्वास्थ्य सेवा की दुनिया को हमेशा के लिए बदल सकती है।
इस पूरी कहानी की शुरुआत तब हुई जब एक जीन-एडिटिंग शोधकर्ता को एक इमरजेंसी मेल मिला। उस बच्चे की बीमारी से निपटने के लिए उनके पास केवल छह महीने थे-वो भी बेहद सीमित समय। रिसर्चर्स ने दिन-रात एक करके, कई विश्वविद्यालयों, कंपनियों और संस्थानों के सहयोग से, इस इलाज को कई महीनों में तैयार किया। यह कोई सामान्य वैज्ञानिक प्रक्रिया नहीं थी, बल्कि जीवन और मृत्यु की दौड़ थी।
यह इलाज न केवल चिकित्सा का नया युग है, बल्कि यह विज्ञान की नायाब मिसाल भी है-जहां हम समझते हैं कि जीवन के जटिल रहस्यों को डीएनए के स्तर पर समझकर ही सही दिशा में बढ़ा जा सकता है। यह तकनीक भविष्य की चिकित्सा को हर व्यक्ति के लिए अलग बनाती है, जहां व्यक्ति की अनोखी आनुवंशिक संरचना के अनुसार इलाज संभव होगा।
यह किसी मेडिकल कहानी से कहीं आगे है, यह विज्ञान, दार्शन और भविष्य की सोच का संगम है। यह दिखाता है कि मानव जाति न केवल अपनी सीमाओं को चुनौती दे रही है, बल्कि उस सीमा को भी नए सिरे से परिभाषित कर रही है जिसे हम ‘अवधि’ और ‘असंभव’ मानते थे। जहां जीनोम की गुत्थियों को सुलझाने का काम कला बन गया है, और चिकित्सा विज्ञान ने एक नया अध्याय खोल दिया है, जिसमें ‘जीवन’ को न केवल बचाना, बल्कि बेहतर बनाना भी शामिल है।
इस चिकित्सा के आगे बढ़ने से सवाल उठते हैं—क्या हम जल्द ही उन बीमारियों को भी समाप्त कर देंगे जिन्हें अब तक लाइलाज माना जाता रहा है? क्या यह तकनीक भविष्य में मानव विकास को नई ऊँचाइयों तक ले जाएगी, या कहीं इस असीम विज्ञान के दुष्प्रभाव हमारे अस्तित्व के सवाल भी खड़े कर देंगे?
पर एक बात स्पष्ट है, इस कहानी ने हमें दिखा दिया है कि विज्ञान और तकनीक का भविष्य जितना रोमांचक है, उतना ही चुनौतीपूर्ण भी। ऐसा भविष्य जहां जीवन को परिभाषित करना सिर्फ डॉक्टरों या वैज्ञानिकों का काम नहीं, बल्कि हर मानव का सपना होगा।
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