चिकित्सा के बाजारीकरण पर सवाल उठाती फिल्म ‘मानव मार्केट’
दावा किया जा रहा है कि फिल्म बॉक्स ऑफिस में नया रिकॉर्ड गढ़ेगा
दक्षिण कोसल टीम‘डॉक्टर भगवान का रूप होता है’, यह वाक्य समाज में वर्षों से गूंजता आया है। चिकित्सा क्षेत्र जो कभी सेवा, करुणा और समर्पण का प्रतीक हुआ करता था, अब धीरे-धीरे एक मुनाफाखोर उद्योग में बदलता जा रहा है। जहां बीमारी व्यापार बन चुकी है और मरीज ग्राहक। इस बदलती सोच और बाजारीकरण के बीच सबसे ज़्यादा पीडि़त आम जनमानस हैं।

इस नवनिर्मित हिंदी फीचर फिल्म ‘मानव मार्केट’ के निर्माता कैलाश चंद्र अग्रवाल का कहना है कि चिकित्सा के क्षेत्र में स्वास्थ्य संबंधी अनियमितताएं तेजी के साथ बढ़ रहे हैं। उन्हीं आम लोगों की पीड़ा को बहुत ही संवेदनशील और मनोरंजकपूर्ण ढंग से इस फिल्म में दर्शाया गया है।
बताते चले कि कैलाश चंद्र अग्रवाल मेघा इंवेस्टमेंट कम्पनी में पार्टनर, प्लेनेटलिंक सोल्यूशन प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी के डायरेक्टर और वान्या फिल्म्स प्रोडक्शन में पार्टनर हैं। इनका बचपन से ही कला के क्षेत्र से लगाव रहा है। कैलाश अग्रवाल अपने स्कूल और कॉलेज जीवन से ही कला और साहित्य से जुड़े रहे हैं।
फिर जिंदगी की भाग-दौड़ में वे इस क्षेत्र से दूर हो गए और आगे चलकर इन्होने इंवेस्टमेंट और सॉफ्टवेयर कम्पनी की शुरूआत की और अपने काम में व्यस्त हो गए पर कला-साहित्य से नाता बना रहा। अब हिंदी फीचर फिल्म ‘मानव मार्केट’ के जरिए कैलाश चंद्र अग्रवाल अपनी नई पारी की शुरूआत फिल्म जगत से कर रहे हैं।
उन्होंने ‘दक्षिण कोसल’ को बताया कि जब ‘मानव मार्केट’ की कहानी फिल्म के लेखक तथा निर्देशक गुलाम हैदर मंसूरी से सुनी तो उन्हें यह विषय अच्छा लगा। पर उन्हें फिल्म के क्लाईमेक्स को लेकर बड़ा असमंजस था। शुरू से ही कलाकार होने के नाते उन्हें यह अच्छी तरह से पता था कि फिल्म का क्लाईमेक्स फिल्म को सफल बनाने के लिए बहुत अहमियत रखता है, पर जब उन्हें क्लाईमेक्स के बारे में बताया गया तो इन्हें बहुत खुशी हुई। इस फिल्म की क्लाईमेक्स बहुत ही शानदार और उनकी उम्मीदों से ज्यादा सकारात्मक और बेहतर था।
कहते हैं कि वे शूटिंग के दौरान बड़े पशोपेश में थे कि आखिरकार हो क्या रहा हैं? शूटिंग देखकर उन्हे कुछ समझ में नहीं आ रहा था पर निर्देशक गुलाम हैदर मंसूरी की प्रतिभा पर उन्हें पूरा भरोसा था इसलिए उन्होंने बिना रोके-टोके फिल्म को तैयार होने दिया।
ये सवाल पूछे जाने पर कि इतनी असमंजसता में होने के बावजूद भी उन्होंने कभी निर्देशक को टोका क्यों नहीं?, तो कैलाश अग्रवाल का कहना था कि -‘उन्हें अपने निर्देशक पर पूरा भरोसा था कि भले मुझे समझ ना आ रहा हो पर निर्देशक हैदर, जो करेंगे वो अच्छा ही करेंगे’ और फिर उस दिन से सारी असमंजसताओं का समाधान तब हो गया जब उन्होंने पूरी फिल्म एक बैठक में देख डाली।
उन्होंने ‘दक्षिण कोसल’ को बताया कि मैं फिल्म देखकर बड़ा खुश था, और आश्चर्यचकित भी कि इतने संवेदनशील मुद्दे को कोई इतने रोचक और रोमांचक ढंग से सिल्वर स्क्रीन पर उतार भी सकता हैं!
उन्होंने बताया कि कई कॉमेडी और फनी सीन्स पर वे खूब हंसे भी और कई जगह लोगों से जुड़ी मार्मिक दृश्यों में वे आंसू बहाते हुए रोए भी। फिल्म को देखते हुए उन्हें इस बात का यकीन हो गया था कि एक निर्माता के रूप में और फिल्म के कई हिस्सों के शूट के समय मौजूद होने के बाद वह एकाएक फिल्म से अनायस ही जुड़ते चले गए।
उनका दावा है कि दर्शक निश्चित ही हिन्दी फीचर फिल्म ‘मानव मार्केट’ से भी जुड़ेगी और दूसरों को भी इस फिल्म को सपरिवार देखने के लिए प्रेरित करेगी, क्योंकि यह शत-प्रतिशत आम लोगों के जीवन और स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों पर आधारित फिल्म है।
कैलाश अग्रवाल का कहना है कि जिस तरह आज देश के अलग-अलग राज्यों की फिल्म राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश और प्रदेश का नाम रौशन कर रही हैं वैसे ही हमारी फिल्म ‘मानव मार्केट’ भी हर स्तर पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराएगी और फिल्म निर्माण के क्षेत्र में भारत के मध्य क्षेत्र की तरफ दर्शकों का ध्यान आकर्षित करवाएगी।
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