जनविरोधी अध्यादेशों, क्रूर कानूनों, फर्जी मुठभेडों और साम्प्रदायिक-जातीय उत्पीड़नों से भरा योगी सरकार


 

रिहाई मंच अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने कहा कि योगी आदित्यनाथ के चार साल के कार्यकाल में नागरिक स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की आज़ादी, संवैधानिक नैतिकता के पतन और लोकतांत्रिक मूल्यों के ह्रास के लिए न केवल देश के भीतर बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आलोचना की गई।

प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय संगठनों ने जनता के मौलिक और लोकतांत्रिक अधिकारों के मामले में पुलिसिया दमन पर रिपोर्टें प्रकाशित कीं और सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग के लिए योगी सरकार को निशाना बनाया।

रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने कहा कि योगी आदित्यनाथ की सत्ता के पिछले चार सालों में देशद्रोह, यूएपीए, रासुका जैसे क्रूर कानूनों के दुरुपयोग करते हुए जन आंदोलनों का दमन का किया गया, पत्रकारों पर फर्जी मुकदमें कायम किए।

ये चार साल फर्जी इनकाउंटरों में मुसलमानों, पिछड़ों और दलित समाज के नवजवानों की हत्या के अलावा साम्प्रदायिक व जातीय उत्पीड़न की घटनाओं का साक्षी रहा है।

इन तमाम घटनाओं में सरकार की इशारे पर पुलिस प्रशासन की भूमिका पीड़ितों के खिलाफ उत्पीड़कों के पक्ष में रही।

उन्होंने कहा कि प्रदेश की जनता पर अपनी विचारधारा को थोपने हेतु विविधता में एकता के सिद्धान्त को व्यवहारिक रूप से खारिज करते हुए धर्मनिपेक्षता पर हमले किए गए।

नागरिक आंदोलनों के दमन के लिए यूएसएसएफ, रिकवरी कानून, ऐंटी भू मफिया के अलावा पहले से मौजूद क्रूर कानूनों को और दमनकारी बनाने का प्रयास किया गया।

आरक्षण के मुद्दे पर होने वाले भारत बंद और सीएए/एनआरसी व किसानों के आंदोलनों के दमन के लिए साजिशें की गयीं, बल प्रयोग किया गया और फर्जी तरीके से आंदोलन के नेताओं पर मुकदमे थोपे गए।

ऐंटी रोमियो स्क्वाड बना कर भारतीय संस्कृति की पवित्रता के बहाने से व्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों का हनन किया गया तो वहीं संविधान की मंशा के विरुद्ध जा कर लव जिहाद व धर्मांतरण कानून बनाए गए और उसके सहारे साम्प्रदायिक रूढ़ियों को पुनर्जीवित और विकसित करने का प्रयास किया गया।

जातीय श्रेष्ठता और राजनीतिक वफादारी के चलते चिनमयानंद और सेंगर जैसे बलात्कार आरोपियों को बचाने के प्रयास किए गए और हाथरस और उन्नाव में बलात्कार पीड़िता के परिवार को बंधक बनाया गया।

सरकारी दमन और साम्प्रदायिक व जातीय उत्पीड़न की घटनाओं पर रिपोर्ट करने वाले कई पत्रकारों पर मुकदमे कायम कर जेल भेज दिया गया, उनकी ज़मानतों में रोड़े अटकाए गए।

सोशल मीडिया पर सरकार की आलोचना करने वालों को धमकियां दी गयीं और उन्हें जेल जाना पड़ा।

 


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