मुक्तिबोध के पड़ोसी डॉ. शरद उबगड़े!
उनके नाम पर रिसर्च स्कॉलर अवार्ड शुरू
सुदीप ठाकुरराजनांदगांव के शासकीय दिग्विजय कॉलेज से एक सुखद खबर आई है। इस कॉलेज ने अपने एक पूर्व प्राध्यापक (दिवंगत) डॉ. एसआर उबगड़े के नाम पर एक रिसर्च स्कॉलर अवार्ड शुरू किया है। वैसे तो यह एक अकादमिक क्षेत्र की सामान्य खबर ही लगती है, लेकिन डॉ. उबगड़े से दिग्विजय कॉलेज के इतिहास का एक महत्वपूर्ण वक्फ़ा जुड़ा हुआ है, जिसकी चर्चा अमूमन कम ही होती है।

डॉ. उबगडे यानी डॉ. शरद उबगड़े उन शुरुआती प्राध्यापकों में से थे, जिनकी नियुक्ति 1958 में दिग्विजय कॉलेज की स्थापना के बाद हुई थी। दिग्विजय कॉलेज के प्रथम प्राचार्य और राजनांदगांव की दमदार शख्सियत किशोरीलाल शुक्ल और कॉलेज की नियुक्ति के लिए बनी समिति बहुत सजगता से नियुक्तियां कर रही थी।
इसी का नतीजा था कि गजानन माधव मुक्तिबोध और पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जैसी हस्तियों को भी प्राध्यापक नियुक्त किया गया।
अपनी स्थापना के कुछ समय बाद जब दिग्विजय कॉलेज राजनांदगांव के किले में स्थानांतरित किया गया तो बाहर से आने वाले प्राध्यापकों को किले के पिछले हिस्से में बने मकानों में आवास दिए गए।
डॉ. शरद उबगड़े बालाघाट के नजदीक सिवनी से यहां आए थे। और उनके पड़ोसी थे नागपुर से यहां आए मुक्तिबोध। शरद उबगड़े जीव विज्ञान के प्राध्यापक थे और मुक्तिबोध हिन्दी के। शरद उबगड़े अंतर्मुखी तो मुक्तिबोध मुखर। एक साझा था दोनों में कि दोनों मराठी थे।
उन दोनों के अलावा दूसरे प्राध्यापक भी यहां रह रहे थे। मुश्किल से 15- 20 घरों के बावजूद इसे राजनांदगांव में बरसों तक कॉलेज कॉलोनी के नाम से जाना गया। बहुत बाद में इस कॉलोनी में मेरे बड़े पिता (दिवंगत) प्राध्यापक इंदूभूषण का निवास भी रहा।
इस कॉलोनी में बचपन और पढ़ाई के दौरान खूब आना- जाना हुआ और इसकी एक वजह यह भी थी कि उबगड़े सर के पुत्र सुजीत मेरे मित्र हैं। स्कूल से कॉलेज तक हम साथ पढ़े।
मेरे अपने घर से दिग्विजय कॉलेज मुश्किल से चार सौ मीटर भी दूर नहीं था। अफसोस होता है कि तब इतनी समझ नहीं थी कि सर से या आंटी से ही पूछ लेते कि मुक्तिबोध के साथ उन लोगों के कैसे रिश्ते थे, क्या बातें होती थीं...।
मैंने जब भी सर को देखा बहुत शांत देखा। शायद यह दूसरों का अनुभव भी हो। कभी साइकिल से या कभी स्कूटर से आते जाते वह दिखाई दे जाते थे।
पूरी जिंदगी डॉ. शरद उबगड़े ने दिग्विजय कॉलेज में नौकरी की और जाहिर है कि ऐसे में वे उन लोगों में से रहे जिन्होंने मुक्तिबोध के अंतिम वर्षों को करीब से देखा था। यह अलग बात है कि इसकी चर्चा कम ही होती है। वैसे मुक्तिबोध ने विपात्र में उनका जिक्र किया है, जीव विज्ञान के प्राध्यापक के रूप में।
दिग्विजय कॉलेज के परिसर में स्थित जिस आवास में मुक्तिबोध रहते थे वहां अब मुक्तिबोध स्मारक बन गया है। उनके आवास की सीढ़ियां नीचे जिस मकान के बगल से जाती थी, वहीं उबगड़े सर रहते थे। दिग्विजय कॉलेज से रिटायर होने के बाद उबगड़े सर का परिवार नागपुर चला गया। 2014 में सर नहीं रहे।
अक्सर कहा जाता है कि भारत में अपने महान साहित्यकारों से जुडी स्मृतियों को पश्चिम की तरह नहीं सहेजा गया है। हालांकि राजनांदगांव में दो विशाल तालाबों, रानीसागर और बूढ़ा तालाब के बीच स्थित दिग्विजय कॉलेज में पीछे की ओर एक त्रिवेणी परिसर बनाया गया है।
वहां मुक्तिबोध, बख्शी जी और बलदेव प्रसाद मिश्र की मूर्तियां भी लगाई गई हैं। त्रिवेणी परिसर में एक भवन भी बनाया गया और शायद एक आवासीय परिसर भी।
शायद योजना यह थी कि यहां बाहर से आकर साहित्यकार रह कर शोध करें, लेकिन ऐसा कुछ होता तो नजर नहीं आया। वास्तव में मुक्तिबोध के निवास पर बनाए गए स्मारक को छोड़ दें, तो यह हिस्सा काफी उजड़ा-सा लगने लगा है।
लेखक पेशे से पत्रकार हैं और राजनांदगांव के निवासी हैं।
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