आम आदमी पार्टी भारतीय राजनीति के इतिहास में कैसे याद की जाएगी?

स्वास्थ्य और शिक्षा के संदर्भ में प्रतियोगी राजनीति का मुद्दा बना दिया

सिद्धार्थ रामू

 

उसने भाजपा और कांग्रेस दोनों को जनकल्याणकारी मुद्दों पर प्रतियोगी राजनीति करने के लिए बाध्य कर दिया। दिल्ली चुनाव के चुनावी वादों को देखकर इसको कोई भी समझ सकता है।

जनकल्याणकारी योजनाओं को रेवड़ी कहने वाली भाजपा ने खुद को इसके चैंपियन की रूप में प्रस्तुत किया। कांग्रेस भी पीछे नहीं रही। इसका असर हिंदू पट्टी के अन्य हिस्सों में भी पड़ा, हालांकि बिहार और यूपी पर इसका कोई खास असर नहीं दिखता।

जिन नकारात्मक चीजों के लिए आम आदमी पार्टी याद रखी जाएगी-

1- आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की राजनीति का पूरी तरह हिंदुत्वीकरण-भाजपाईकरण कर दिया-

दिल्ली पहले भी जनसंघ-भाजपा-आरएसएस का गढ़ था, लेकिन मध्यवर्ग और नागरिक समाज का एक हिस्सा धर्मनिपेक्षता पर विश्वास करता था। वह कांग्रेस का समर्थक था। जनसंघ-भाजपा की हिंदुत्वादी राजनीति को दिल से स्वीकार नहीं करता था। आम आदमी ने खुद को अधिक सेअधिक हिंदू साबित करने का भाजपा से होड़ किया।

CAA का समर्थन, धारा-370 के खात्में, यहां तक जम्मू-कश्मीर के राज्य के रूप में खात्में का समर्थन, बजरंगबली, लक्ष्मी-गणेश, पंडे-पुरोहितों को मानदेय न जाने कितनी बातें आम आदमी पार्टी राजनीति में लेकर आई। इस तरह आम आदमी पार्टी ने दिल्ली के हिंदुत्ववीकरण और भापाईकरण को मजबूत बनाया। धर्मनिपेक्ष राजनीति की जमीन को दिल्ली में पूरी तरह खिसका दिया।

2- भ्रष्टामुक्त, शुचितापूर्ण और नैतिक राजनीति भी हो सकती है, आदमी पार्टी ने वोटरों की उम्मीद को पूरी तरह तोड़ दिया-

आम आदमी पार्टी राजनीति का वैकल्पिक चेहरा बनकर आई थी। भ्रष्टाचार मुक्त राजनीति, शुचितापूर्ण राजनीति और नैतिकता पर खड़ा होकर राजनीति का स्वप्न और वादा लेकर आम आदमी पार्टी आई थी, इस सब को उसने अपने की कर्मों से रौंद दिया।

आज की तारीख में शायद की किसी को आम आदमी पार्टी के संदर्भ में इनमें से किसी बात पर विश्वास हो। ऐसा भाजपा या कांग्रेस या किसी अन्य के दुष्प्रचार अभियान के चलते नहीं हुआ। आम आदमी पार्टी ने यह सबकुछ अपने खुद के कर्मो और आचरण से साबित किया।

3- व्यक्तिवादी और परिवावादी राजनीति की जगह सामूहिक नेतृत्व वाली-लोकतांत्रिक राजनीति संभव है, इस उम्मीद को आम आदमी पार्टी ने तोड़ दिया-

आम आदमी पार्टी एक सामूहिक नेतृत्व के रूप में सामने आई थी। जिसमें पूरे देश और दुनिया के कई चेहरे शामिल थे। भले ही केजरीवाल इसका सबसे चर्चित चेहरा रहे हों। आम आदमी पार्टी में सामूहिक या लोकतांत्रिक राजनीति का केजरीवाल ने नामों-निशान मिटा दिया।

असहमति दर्ज कराने वाले या सवाल उठाने वाले हर व्यक्ति को किनारे लगा दिया। आम आदमी पार्टी का मतलब सिर्फ और सिर्फ केजरीवाल और उनकी जी हजूरी करने वाले हो गए।

किसी पार्टी की तुलना में आम आदमी पार्टी सबसे ज्यादा व्यक्ति केंद्रित और अलोकतांत्रिक पार्टी बन गई। सामूहिक नेतृत्व वाली लोकतांत्रिक पार्टी की हर उम्मीद को आम आदमी पार्टी ने तोड़ दिया।

4- जनहित के लिए कुर्बानी राजनीति और राजनेता का गुण होना चाहिए, इस उम्मीद को आम आदमी पार्टी ने पूरी तरह कुचल दिया-

आम आदमी पार्टी ने खुद को जनहित के लिए कुर्बानी देने वाली और जनता के लिए कष्ट और कठिनाई उठाने वाली पार्टी के रूप में प्रस्तुत किया था, कुछ समय ऐसा करते हुए दिखी भी थी। कई सारे लोग इस पार्टी से इस भावना के साथ जुड़े थे।

आज आदमी पार्टी पेड़ वर्करों की एक पार्टी है। केजरीवाल के जनकल्याणकारी कामों से भावात्मक तौर जुड़ी जनता के एक हिस्से को छोड़ दिया जाए तो आम आदमी पार्टी में आज शायद कोई ऐसा नेता और कार्यकर्ता मिले, जो बिना किसी आर्थिक फायदे के पार्टी के साथ खड़ा हो।

5- आम आदमी पार्टी और केजरीवाल ने पाखंड का सबसे बड़ा मिशाल कायम किया-

राजनीति पाखंडियों का अखाड़ा है, जिसमें कहा कुछ और किया कुछ और जाता है। राजनीति झूठ-फरेब का खेल है। इस समझ और अनुभव का आम आदमी पार्टी ने सबसे बड़ा उदाहरण प्रस्तुत किया। केजरीवाल ने आराम से भगत सिंह और आंबेडकर का इस्तेमाल किया। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है।

6- एक एनजीओ ( NGO) वादी और नौकरशाह संवेदना और विचारहीन व्यक्ति महानता के सारे दावों के बाद भी कितना बौना होता है, केजरीवाल इसका नमूना बना-

आम आदमी पार्टी अपने अवसान और खात्में की ओर बढ़ रही है,यह बात मैं दिल्ली चुनाव के नतीजे के आधार पर नहीं कर रहा हूं, यह नतीजा भी यही साबित करता है। यह बात मैंने 6 जुलाई 2023 जनचौक में लिखे अपने लेख में कही थी, जिसका शीर्षक था, ‘क्यों अब आम आदमी पार्टी के विकास और विस्तार का दौर खत्म हो चुका है’।

यह लेख तब लिखा गया था, जब केजरीवाल की पार्टी को पंजाब में भरी जीत मिली थी, गुजरात में उसने दमदार प्रदर्शन किया था और उसे राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिल था। ऐसा मैं क्यों सोचता था, आज भी उसी पर क्यों कायम हूं, इस लेख में उसके कारण दिए गए थे। आज भी मुख्य कारण वही हैं-

“आम आदमी पार्टी भी परंपरागत सत्ताधारी पार्टी में बदल चुकी है। परंपरागत राजनीतिक दलों के सारे दुर्गुण साफ-साफ उसके भीतर दिख रहे हैं। भ्रष्टाचार मुक्त राजनीति के उसके दावे की पोल खुल चुकी है। उसके नेताओं और खुद केजरीवाल की सादगी और आम आदमी की तरह जीवन जीने की बातों का सच भी सामने आ चुका है।

वे सभी तीन तिकड़म और दांव-पेंच वह भी करती है, जो अन्य पार्टियां करती हैं। हालांकि केजरीवाल और आम आदमी पार्टी का असली चरित्र बहुत पहले ही सामने आ चुका था,जब एक-एक करके देश-विदेश से नए भारत के निर्माण के लिए उसके साथ आए लोग उसका साथ छोड़ दिए। फिर भी जनता के एक हिस्से में उसका यह आकर्षण बना रहा, लेकिन यह भी धीरे-धीरे खत्म हो रहा है।

पानी, बिजली, दवाई-पढ़ाई और जन-कल्याणकारी कार्यक्रम आम आदमी पार्टी के प्रति आकर्षण का एक बड़ा कारण रहा है, एक हद तक उसने इन वादों को पूरा भी किया। जिसने लोगों के मन में उसके प्रति भरोसा पैदा किया।

लेकिन अब यह मुद्दा आम आदमी पार्टी के विकास और विस्तार में मदद नहीं दे सकता है। इसका पहला कारण यह है कि इस मुद्दे को सभी पार्टियों ने अपना घोषणा पत्र और चुनावी वादों का हिस्सा बना लिया है और उसे लागू भी कर रही है।”


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