सांसद रहे मधुसूदन यादव का लगभग जीत तय, क्या उन्हें रोका जा रहा हैं?

घर-घर दूध बांटने से लेकर सांसद तक की उपलब्धि उनके नाम

सुशान्त कुमार

 

यादव तीन बार पार्षद, लोकसभा, महापौर व विधान सभा समेत कुल छह बार चुनाव लड़ चुके हैं। यह उनका सातवां चुनाव हैं। वे नगर निगम में सभापति व कार्यकारी महापौर भी रह चुके हैं। यह भाजपा की मजबूरी भी है कि वह मधुसूदन यादव को भाजपा ने राजनांदगांव नगर निगम से अपना महापौर प्रत्याशी बनाया है। उनके जोर में यहां कोई भी नहीं है।  

उनका बेमिसाल राजनैतिक रिकॉर्ड हैं। वे 2004 में मधुसूदन यादव पहली बार 1 साल के लिए महापौर बने थे। 2005 में फिर भाजपा से चुनाव लडक़र राजनांदगांव निगम के महापौर बने। दूसरी बार भाजपा ने उन्हें 2015 में चुनाव लडऩे के लिए अपना महापौर प्रत्याशी बनाया। 2009 में राजनांदगांव लोकसभा से चुनाव लडक़र 15वीं लोकसभा के लिए सांसद भी मधुसूदन यादव निर्वाचित हुए थे। वर्ष 2014 में महापौर का चुनाव रिकार्ड 35 हजार मतों से जीता था। साल 2018 में डोंगरगांव विधानसभा सीट पर उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा था। 

यह साफ दिखता है कि जाति आधार पर पिछड़े वर्ग से आने वाले इस महत्वपूर्ण सांसद बन चुके प्रत्याशी को भाजपा ने महापौर के रूप में चुनाव में उतारकर विधान सभा और लोकसभा में जाने से रोकने का ही काम किया है। सांसद से नीचे लगातार महापौर पद पर टिकट देना पिछड़े वर्ग के दयनीय हैसियत को भी दर्ज करता है।

यह वह प्रत्याशी है जिसके नाम पर आम नागरिकों के बीच समस्याओं के समाधान की कुंजी है। वह किसी भी नागरिक को नाखुश नहीं करते हैं। पिछड़े वर्ग का होने के बावजूद उनकी लोकप्रियता का ग्राफ काफी ऊंचा हैं। वह लगातार पार्टी और बड़े नेताओं के महत्वाकांक्षा के शिकार होते नजर आते हैं, लेकिन खुश हैं।

साल 1990 से राजनीतिक सफर की शुरुआत करने वाले राजनैतिक प्रतिभावान यादव 55 वर्ष के है। मधुसूदन यादव का जन्म 22 अगस्त 1970 को राजनांदगांव में हुआ है। उनके पिता का नाम दुर्गा प्रसाद यादव तथा माता का नाम थगिया देवी है। मधुसूदन यादव का जन्म एक गरीब ग्वाले परिवार में हुआ। पिछड़े वर्ग से आने वाला उनका परिवार गौ पालन और दूध बेचने का व्यवसाय करता था। मधुसूदन यादव ने 12वीं तक शिक्षा हासिल की और परिवार के काम में हाथ बंटाने लगे। वे सायकिल से घर-घर दूध बाटने जाते थे।

हर हीरे में कालिख और दाग का होना लाजिमी हैं, इन पर भी कालिख और बदनामी के दाग लगे हैं। अनमोल इंडिया कंपनी की स्कीम का प्रचार करने के आरोप में इस भाजपा प्रत्याशी मधुसूदन पर एफआईआर है। इसका मामला विशेष न्यायालय राजनांदगांव में चल रहा है। और भी कई सारे निजी आरोप? जानकारी को यदि सही माने तो अन्य प्रत्याशियों की तुलना में मधुसूदन राजनीतिक और धन से धनी हैं।

इनके पास 35 लाख रुपए की कृषि भूमि स्वयं के नाम पर और 30 लाख रुपए की भूमि पत्नी के नाम पर दर्ज है। 10 लाख रुपए का प्लाट रायपुर में है जबकि तीस लाख रुपए का प्लाट मोतीपुर में है। मधुसूदन के पास 6 लाख रुपए की एलआईसी पॉलिसी है जबकि पत्नी के पास साढ़े चार लाख की पॉलिसी है। लेकिन अन्य राजनेताओं के तुलना में बहुत कम धन बटोर पाए हैं।

आरक्षण के हिसाब से यह पद अनारक्षित मुक्त है। भाजपा ने पिछड़े वर्ग से मधुसूदन के रूप में बड़े चहरे पर दांव लगाया है। वहीं कांग्रेस ने सामान्य वर्ग से निखिल द्विवेदी को उतारकर इस मुकाबले को रोचक बना दिया है। बताया जा रहा है कि ब्राह्मण और बनिया वोट इन्हीं को मिलेगा। इस दंगल में भाजपा और कांग्रेस, दोनों दल नामांकन रैली के बहाने शक्ति प्रदर्शन कर चुके हैं। वहीं निर्दलीय प्रत्याशी पूर्व प्राचार्य केएल टांडेकर के नाम वापसी ने दलित पिछड़े समुदाय को चौंकाया है।

राजनांदगांव में इस प्रसिद्ध चेहरे ने कई आंदोलनों का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया है। चुनावी समर में इनके हटने से भाजपा-कांग्रेस को दलित वोटों के दबाव का सामना नहीं करना पड़ेगा। राजनीतिक दृष्टि से यह बौद्ध समाज के लिए नुकसानदायक साबित हुआ है।  

मधुसूदन यादव भाजयुमो और भाजपा के कई पदों पर काम कर चुके हैं। वर्तमान में वे प्रदेश उपाध्यक्ष भी हैं। इस कारण उनके पास लंबा राजनीतिक अनुभव है। मधुसूदन यादव को विधानसभा अध्यक्ष डॉ रमन सिंह का करीबी माना जाता है।  इस कारण से भी मधुसूदन पर काफी सारा दबाव नजर आता हैं। साल 1995 में वह पहली बार पार्षद चुने गए। फिर लगातार तीन बार राजनांदगांव नगर निगम के पार्षद रहे। 2004 में पहली बार 1 साल के लिए महापौर बने।

फिर 2005 में हुए निकाय चुनाव में दोबारा निर्वाचित होकर महापौर पर बने। 2009 में राजनांदगांव लोकसभा सीट से भाजपा की टिकट पर चुनाव लडक़र डोंगरगढ़ राज परिवार से आने वाले कांग्रेस के दिग्गज नेता देवव्रत सिंह को 1,19,074 वोट से चुनाव हराया। 2015 में फिर से मधुसूदन यादव ने भाजपा प्रत्याशी के तौर पर महापौर का चुनाव लडक़र 35 हजार से अधिक मतों के अंतर से कांग्रेस प्रत्याशी को हराकर महापौर बने।

यह आज तक अनुत्तरित है कि क्यों कर उन्हें डोंगरगांव विधान सभा क्षेत्र से  लड़ाया गया था? 2018 में विधान सभा चुनाव में डोंगरगांव विधान सभा से उन्हें विधायक का टिकट दिया गया। पर कांग्रेस के कद्दावर नेता दलेश्वर साहू से उन्हें हार का सामना करना पड़ा। अब भाजपा ने उन्हें फिर से अपना प्रत्याशी बनाया है।

आगे बहुत कुछ देखना बाकी हैं। बहरहाल नगरीय निकाय निर्वाचन 2025 अंतर्गत नगर पालिक निगम राजनांदगांव के महापौर पद के लिए 11 अभ्यर्थी एवं पार्षद पद के लिए 176 अभ्यर्थी चुनाव लड़ेंगे। महापौर पद से 2 एवं पार्षद पद से 54 अभ्यर्थियों ने अपनी अभ्यर्थिता वापस लिया। महापौर पद से अजीत जैन एवं पूर्व प्राचार्य डॉ. केएल टांडेकर ने अपनी अभ्यर्थिता वापस ली है।

प्रेक्षक आईएएस जयश्री जैन, कलेक्टर एवं जिला निर्वाचन अधिकारी संजय अग्रवाल की उपस्थिति में रिटर्निंग ऑफिसर खेमलाल वर्मा द्वारा नगरीय निकाय निर्वाचन 2025 अंतर्गत नगर पालिका निगम राजनांदगांव के महापौर पद एवं पार्षद पद के लिए अभ्यर्थियों को प्रतीकों का आबंटन कर दिया गया है।

महापौर पद के लिए पत्रकार और अब राजनीति में आम आदमी पार्टी के अभ्यर्थी कमलेश स्वर्णकार को झाडू, भारतीय जनता पार्टी के अभ्यर्थी मधुसुदन यादव को कमल, इंडियन नेशनल कांग्रेस के अभ्यर्थी निखिल द्विवेदी को हाथ।

पहले जोगी कांग्रेस में रह चके और अब बहुजन समाज पार्टी के अभ्यर्थी शमसुल आलम को हाथी, जोहार छत्तीसगढ़ पार्टी के अभ्यर्थी महेन्द्र लाल जंघेल को छड़ी, शिव सेना के अभ्यर्थी माखन यादव को तीर-कमान, निर्दलीय अभ्यर्थी अधिवक्ता लव रामटेके की पत्नी दीपा रामटेके को लैपटॉप, निर्दलीय अभ्यर्थी केवल रजक को चक्की, निर्दलीय अभ्यर्थी राजेश गुप्ता (चम्पू) को सीटी, निर्दलीय अभ्यर्थी राकेश कुमार ठाकुर को बांसुरी, निर्दलीय अभ्यर्थी संदीप शुक्ले को ‘क्रिकेट कोच’ की सीसीटीवी कैमरा प्रतीक आबंटित किया गया है।


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