हमारे संविधान के सर्जक और निर्माता बाबा साहब आम्बेडकर हैं
वरिष्ट अधिवक्ता कनक तिवारी से रू-ब-रू
सियाराम शर्माबहुत दिनों बाद कल कनक तिवारी जी से मिलन हुआ। पिछले डेढ़ -दो वर्षों से वे लगातार अलग-अलग शारीरिक पीड़ाओं से गुजर रहे हैं। शारीरिक रूप से काफी कमजोर दिखे। लगातार चल रही दवाओं के कारण खाने पीने के शौकीन कनक जी के मुंह का स्वाद बिगड़ गया है। स्वाभाविक भूख नहीं लगती।

शारीरिक कमजोरी और थोड़ी मद्धिम पड़ती आवाज के बावजूद उनकी बौद्धिक उत्तेजना, बातचीत का प्रवाह और रस पूर्व की तरह बरकरार है। उन्हें सुनने का सुख एक बेहतर संगीत सुनने के सुख से मिलता जुलता है। उनकी बातचीत में अब भी संगीत का जादू है। पर सुलाने वाला नहीं, सुबह की नींद से जागने वाला।
वे संविधान के मर्मज्ञ हैं। संविधान को जीते हैं। ओढ़ते और बिछाते हैं। उन्होंने कहा कि हमारा संविधान प्रो पीपुल नहीं है। व्यवस्था के पक्ष में झुका हुआ है। हमारे संविधान के सर्जक और निर्माता बाबा साहब आम्बेडकर हैं पर कांग्रेस के दबाव में वे जैसा संविधान बनाना चाहते थे वैसा बना नहीं पाये।
महात्मा गांधी और भगत सिंह कनक जी के पसंदीदा व्यक्तित्व हैं पर आज डॉक्टर आम्बेडकर के प्रति उनका उत्कट लगाव देखकर मैं चकित हुआ। आम्बेडकर को याद करते हुए उनकी आंखें सजल हो आयीं।
बीमारी के दौरान एक प्रसंग का जिक्र करते हुए भी उनकी आंखें भीग गयी और आंसू की एक बूंद कपोल पर देर तक ठहरी रही। दर्द की बेचैनी, निरंतर जागरण और कबीर के जागरण और रुदन बाली स्थिति में उन्होंने गहराती रात में युवा महिला डॉक्टर को बेल बजाकर बुलाया और नींद न आने की शिकायत की।
रात पाली की महिला डॉक्टर ने नींद की इंजेक्शन दी। नींद फिर भी आंखों से दूर। वैसे ही बेचैनी और छटपटाहट। ड्यूटी वाली डॉक्टर को उन्होंने पुनः आवाज दी और नींद न आने की शिकायत की तब उसने आत्मविश्वास के साथ कहा-"दवा आपके शरीर में दी जा चुकी है और अब नींद आ जाएगी। आप सो जाओगे"।
उस युवा डॉक्टर की आवाज में ना तो डांट थी, न झल्लाहट । वात्सल्य, मातृत्व और अधिकार का मिला-जुला भाव था। उन्होंने उस युवा डॉक्टर में मां की छवि देखी। उनकी आंखें एक बार पुनः छलछला आई। स्त्रियों के भीतर मातृत्व और वात्सल्य का यह गुण पुरुष के लिए कितना दुर्लभ है!
आम्बेडकर को याद करते हुए या युवा डॉक्टर में मां की छवि देखकर एक संविधान मर्मज्ञ, कानून विद् और बौद्धिक व्यक्तित्व की यह संवेदनशीलता मुझे भीतर तक छू गई। लगा कनक जी की विद्वता और बौद्धिकता रुखा, थोथा और नीरस न होकर करुणा से भीगी है।
यह प्रेम और करुणा ही है जो ज्ञान को वह रचनात्मक ऊंचाई देता है जिसे मुक्तिबोध ज्ञानात्मक संवेदना और संवेदनात्मक ज्ञान कहते थे। कनक जी की बौद्धिकता और संवेदनशीलता का यह नया आयाम है। नई दिशा। उनके साथ बीती कल की शाम यादगार रही। सच कहूं तो उनके पास से उठने का जी नहीं कर रहा था। मैं अभिभूत और आविष्ट था।
लेखक उतई कॉलेज में हिन्दी के प्रोफेसर हैं और भिलाईनगर में निवास करते हैं।
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