बाबा गुरू घासीदास के जयंती के सृजक डॉ. भीमराव आम्बेडकर
सात अकाट्य सिद्धांत और ब्यालिस अमृत वाणी
पीडी सोनकरभगवान गोतम बुद्ध ने एक नई रास्ता चुना जिसमें सभी वर्गों, सभी धर्मों, दबे कुचले लोगों को साथ लिया। इस के आधार पर साल 1789 में फ्रांस में क्रांति आया। इसका भी मूल सिद्धांत स्वतंत्रता, समनानता और बन्धुत्व ही था।

इतिहासकार प्रोफेसर पीडी सोनकर ने हाल ही में महापुरूषों के जयंती समारोह में ऐतिहासिक संदर्भ की व्याख्या करते हुए कहते हैं कि छठी सदी में बौद्ध एवं जैन धर्म में क्रांति आया। गुरू घासीदास संत कम कांतिकारी विचारक ज्यादा रहे हैं।
वो वैचारिक बदलाव चाहते थे सामाजिक बदलाव, आर्थिक बदलाव, सांस्कृतिक बदलाव के साथ राजनैतिक बदलाव पर जोर दिया और यही कारण था कि गुरू ने अपने पुत्र बालकदास जी को शासक बनाया। राजा बनकर सारे शक्तियों पर अधिकार हासिल किया।
गुरू घासीदास जी को मालूम था कि राजनैतिक अधिकार के बिना कुछ नहीं हो सकता। इसी सिद्धांत को बाबा साहेब आम्बेडकर जी ने संविधान में अनुच्छेद में बदल दिया। संसद में जाने का इशारा किया कि - ‘सत्ता होगा तो कोई भी अपने ओर आंख दिखाने का प्रयास नहीं करेगा।’ शक्ति प्राप्त करने के लिए तीन अचूक मंत्र भी दिए शिक्षित बनो, संघर्ष करो और संगठित रहो।
प्रोफेसर सोनकर कहते हैं कि गुरू घासीदास अपने अकाट्य सात सिद्धांत हमें दिए और उसके पालन के लिए जगह-जगह जाकर रावटी (प्रचार) किया। यह कि (1) सतनाम को मानो, विश्वास रखो। (2) जीव हत्या, मांसाहार मत करो। (3) चोरी डकैती, नशापान मत करो। (4) पर स्त्री को माता मानो। (5) अपराह्न में हल मत जोतो’। (6) मूर्ति पूजा जाति-पांति ऊंच-नीच में मत पड़ो। (7) कोई भी मां कुलीन नहीं जनय। इसके अलावा गुरू ने ब्यालिस अमृत वाणी भी दिए।
उन सब में चलकर मानव-मानव बन सकता है और गुरू जी ने ज्ञान की कसौटी में कस कर कहते हैं कि -‘मनखे-मनखे एक बरोबर’।
उन्होंने ऐतिहासिक जानकारी देते हुए कहते हैं कि गुरू घासीदास जी के जयंती 18 दिसम्बर को भारत वर्ष के हर कोने में मानाया जाता है।
इस संदर्भ में ऐतिहासिक जानकारी यह है कि डॉ. आम्बेडकर ने लंदन के लायब्रेरी में अंग्रेजी का लिखा गुरू के संदर्भ में पढ़ा।
फिर अपने मित्रों को जो छत्तीसगढ़ के थे, जिसमें वकील नकुल ढ़ीढ़ी, केजूराम खापर्डे, सुकुलदास गेन्ड्रे, रामेश्वर टण्डन आदि को बताया और कहा - गुरू घासीदास जी के सिद्धांत को छत्तीसगढ़ में बताना है लोगों में जागृति लाना है।
इसी से दादा नकुल ढ़ीढ़ी अपने गांव भोरिंग (महासमुन्द) में 1938 में 18 दिसम्बर को गुरू घासीदास जयंती को भव्य समारोह के रूप में मनाते हैं।
प्रोफेसर सोनकर कहते हैं कि डॉ. आम्बेडकर द्वारा गुरू मुक्तावनदास जी के मामले में वकालत कर गुरू मुक्तावन दास को हत्या के केस से मुक्त किया। गुरू मुक्तावन दास जो निर्दोष था उन्हें फसाया गया था। यही लोग बाबा साहेब के बौद्ध धर्म अपनाते समय नागपुर में साथ-साथ खड़े थे।
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