मनमोहन सिंह को नायक बनाते समय एक बार सोनी सोरी को भी याद कर लिए होते
महान लेखकों-पत्रकारों
सिद्धार्थ रामूआप सोनी सोरी और उनके साथ हुई उस भयानक अपराध को भूल चुके होंगे, जिसके बारे सुनकर-जानकर एक बार पूरा देश कांप उठा था। जब मनमोहन ने यह बयान दिया कि नक्सल-माओवाद देश की आंतरिक शांति के लिए सबसे बड़ा खतरा है। यह कहते ही सबको पता चल गया था कि अब आदिवासी इलाकों के खनिज संपदा और अन्य प्राकृतिक साधनों पर कार्पोरेट के कब्जा का विरोध कर रहे आदिवासियों और उनके साथ देने वाले अन्य लोगों पर नक्सल-माओवादी के नाम पर कहर टूटेगा।

इस कहर का शिकार आदिवासी महिला सोनी सोरी भी हुईं। नक्सली-माओवादी समर्थक होने के नाम पर गिरफ्तार किया गया, उन्हें भायनक यातना दी गई। उनके गुप्तांगों में गोलियां और पत्थर ठूंसा गया।
यह सब उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित डाक्टरों की जांच में पाया गया। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सोनी सोरी का मेडिकल परीक्षण कोलकाता के नीलरतन सरकारी मेडिकल कालेज एंड हॉस्पिटल में किया गया जहां पाया गया कि 'उनके गुप्तांगों में गोलियां और पत्थर' डाले गए।
सोनी सोरी की तरफ से दायर याचिका में आरोप लगाया गया है कि सिर्फ़ इतना ही नहीं, उन्हें हिरासत में बिजली के झटके भी दिए गए। इस मामले में सोनी सोरी ने अंकित गर्ग को नामज़द अभियुक्त बनाया है।
बाद यहीं नहीं रूकी, उसी अंकित गर्ग को बहादुरी के लिए राष्ट्रपति का पदक प्रदान किया गया है। उस समय गई संगठनों ने पूछा था कि "क्या हिरासत में यातनाएं देना कोई बहादुरी का काम है जिसे सरकार प्रोत्साहित कर रही है?"
यह तो सिर्फ एक याद दिलाने के लिए उदाहरण है, जो चर्चा में आ गया था। मनमोहन सिंह के नक्सलवाद-माओवाद के इस बयान के बाद पूरी भारतीय मशीनरी को तथाकथित नक्सलियों-माओवादियों को कुचलने में लगा दिया गया। जिसकी अगुवाई गृहमंत्री चिदंबरम ने की। उनका एक शिकार सोनी सोरी भी बनीं।
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