डॉ. भीमराव आंबेडकर का महापरिनिर्वाण एक काला दिन

तिरंगा को आज आंबेडकर के याद में झुका देना था?

सुशान्त कुमार

 

उनके तीन जादुई अस्त्र संविधान रूपी ज्ञान, उनकी विचारधारा और उनका धम्म तीन महत्तवपूर्ण नियामत हमारे पास हैं। इस सार्वजनिक हस्ती के ज्ञानवर्धक खजाने को व्यापक रूप से खंगालने की जरूरत है। डिजिटल और सोशल मीडिया का उपयोग करके गीत, व्याख्यान, कविता, निबंध प्रतियोगिता और अन्य संभावनाओं से जुड़े ज्ञान का पता लगाया जाना चाहिए।

हमारे बीच लाखों लोग भारत में जाति और सांप्रदायिकता के सामाजिक वायरस से ग्रसित और गंभीर रूप से पीडि़त हैं। 

शासक वर्ग हमेशा अधिक शातिर रूप में काम करता है, जिसे हम आज भारत में देख रहे हैं। तो हां, यह बुरा सपना है जो आसन्न अंधेरे और पीड़ा के रूप में संकेत देता है।

उसकी कृतज्ञता का वापस भुगतान नहीं किया जा सकता है। उन्होंने लाखों लोगों के लिए जो किया वह चुकाया नहीं जा सकता है। उनका अध्ययन और लेखन हमारे लिए मार्गदर्शक की तरह हैं।

वह हमारे समय के रोल मॉडल हैं। इस अनिश्चित समय में उन्हें अवश्य पढ़ा जाना चाहिए और विरोधी जो बताने की कोशिश कह रहें हैं उसकी जांच होनी चाहिए। उन्होंने संविधान सभा में खड़े होकर 7 से लेकर 27 बार तक संविधान में मौजूदा तर्कों का जवाब दिया। 

वह आशाहीन समय में आशा का अग्रदूत हैं। वह लोगों से बेहद प्यार करते थे। बाबासाहेब आम्बेडकर व्यक्ति और समाज के लिए उपयोगी तत्व की तरह हैं। उन्होंने अपने स्वयं के मानव व्यक्तित्व की उच्चतम संभव स्तर पर बुद्धि की ऊंचाइयों में पहुंचकर व्यापक लोगों के सपने को साकार किया है।

उनमें प्रज्ञा, करुणा, शील, व्यक्ति स्वतंतत्रता, निडरता, संस्कार, रचनात्मकता और सामाजिक रूप से प्रतिबद्ध होने के वैश्विक निशानी है। उन्होंने व्यक्ति में निहित संभावनाओं को खोज निकाला।

जब बाबासाहेब आंबेडकर ने बॉम्बे विश्वविद्यालय से स्नातक किया, तो उनके पास असाधारण योग्यता नहीं थी और स्नातक के बाद यह कल्पना करना मुश्किल था कि वे ज्ञान के बोधिसत्व अर्थात सर्वोच्च स्तर तक पहुंच जाएंगे।

उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय में अध्ययन करना शुरू किया, पहले कुछ महीनों के लिए, एक दिन में छह घंटे, और फिर प्रति दिन 12'8 घंटे हर विषय पर महारत हासिल की। जब उन्होंने अपनी पीएचडी पूरी की, तो उनके पास केवल 2 साल और कुछ महीनों के लिए उनके पास आवश्यक संसाधन तक नहीं थे।

कड़ी मेहनत और धैर्य उन्हें मिला जहां वह ज्ञान के सबसे ऊंचे शिखर पर खड़े हो कर भी जीवन भर खुद को एक छात्र के रूप में जीवित रखा। उसकी ऊंचाई उस बोधि वृक्ष की याद दिलाती है जो ज्ञान रूपी फल के साथ झुकी हुई है।

न्याय के प्रति उनकी प्रतिबद्धता अटल थी। वह अपने लोगों के लिए अपना जीवन बलिदान करने के लिए तैयार थे। उन्होंने अपने आस-पास के अज्ञानी लोगों के ज्ञान चच्छु को धैर्य के साथ आलोकित किया।

उन्होंने दोस्तों और दुश्मनों के साथ संवाद किया और प्यार से मनाने की कोशिश की। उन्होंने ज्ञान का गहरा पान किया। बाबासाहब ने दूसरों के लिए अपनी आखिरी सांस ली। और ऐसे कायदे बनाए जिसे पीडि़तों के खिलाफ तोड़ पाना मुश्किल हैं। 

उन्होंने व्यक्तिगत कठिनाइयों को अनदेखा किया। उनकी माँ की मृत्यु, गरीबी, प्यारे बच्चों और दुलारी पत्नी की दर्दनाक मौतें, भयानक शारीरिक व्याधियों के बावजूद अपने चारों ओर फैले भेदभाव के खिलाफ़ दलितों, आदिवासियों, पिछड़े और अल्पसंख्यकों जैसे समुदायों के लिए सबसे गंभीर हालातों में अनुशासन में बंध कर कार्य किए। बावजूद जाति और सांप्रदायिकता का सामाजिक वायरस आज तक जारी है। जिसे खत्म करना हम सबकी जवाबदेही हैं। 

परिणामस्वरूप आम्बेडकरवादी जनता के बीच बढ़ती ताकत और उभरती नई संभावनाएँ दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। समय के साथ बताने की जरूरत हैं कि हमारे पास ज्ञान के क्या क्या खजाने नालंदा विश्वविद्यालय में जलने के बाद भी बचे हुए हैं। 

बाबासाहेब आम्बेडकर के प्रयासों के कारण समर्पित बौद्धिक वर्ग का उदय हुआ। भारतीय समाज के विभिन्न वर्गों के बीच जागरूकता का विकास हुआ और दलित वर्ग संघर्षों के बाद दलित मुक्ति आंदोलन बन गया। 

बाबासाहेब को पीडि़त वर्ग अपने रोल मॉडल के रूप में देख रहे हैं। भारत भर में आम्बेडकरवादी चेतना और ज्ञान पर विश्व स्तर पर अंतरराष्ट्रीय जागरूकता बढ़ रही है।

अभी भी बहुत कुछ करने की जरूरत है और इतना कुछ किया जा सकता है कि जिस पर सोचा नहीं जा सकता। आम्बेडकरवादी आंदोलन, बाबासाहेब आम्बेडकर द्वारा स्वयं प्रारंभ किए गए असंख्य संभावनाओं से भरा स्त्रोत मात्र हैं और कुछ भी नहीं।


Add Comment

Enter your full name
We'll never share your number with anyone else.
We'll never share your email with anyone else.
Write your comment

Your Comment