दिग्गज पत्रकार और दलित वॉयस के संपादक वीटी राजशेखर का निधन

दलित अधिकारों के एक प्रबल समर्थक 

दक्षिण कोसल टीम

 

मकतूब के अनुसार 17 जुलाई 1932 को कर्नाटक के वोंटीबेट्टू में जन्मे राजशेखर ने 1970 के दशक से जाति-विरोधी आंदोलन के बौद्धिक विमर्श को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

1981 में राजशेखर ने ‘दलित वॉयस’ पत्रिका शुरू की, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसित पत्रिका बन गई। ह्यूमन राइट्स वॉच ने इसे ‘भारत की सबसे व्यापक रूप से प्रसारित दलित पत्रिका’ बताया। पत्रिका और इसकी वेबसाइट का प्रकाशन 2011 में बंद हो गया, लेकिन इसका प्रभाव अभी भी जारी है।

राजशेखर ने अपने कॅरियर की शुरुआत ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के साथ एक पत्रकार के रूप में की, जहां उन्होंने 25 साल तक काम किया। वहां उनके कार्यकाल और दलित वॉयस के साथ उनके बाद के काम ने उन्हें दलित अधिकारों के एक प्रबल समर्थक और जाति-आधारित उत्पीडऩ, ब्राह्मणवाद और संघ परिवार के कट्टर आलोचक के रूप में स्थापित किया।

अपने पूरे जीवन में राजशेखर को अपने मुखर विचारों के लिए महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ा। 1986 में, कथित ‘हिंदू विरोधी’ लेखन के लिए उनका पासपोर्ट जब्त कर लिया गया था, और उन्हें आतंकवादी और विध्वंसकारी गतिविधियों (टाडा) अधिनियम के तहत बेंगलुरु में गिरफ्तार किया गया था। 

राजशेखर ने बाद में ह्यूमन राइट्स वॉच को बताया कि उनकी गिरफ्तारी दलित वॉयस में उनके द्वारा लिखे गए संपादकीय के कारण हुई थी। संपादकीय को पुन: प्रकाशित करने वाले एक अन्य लेखक को भी गिरफ्तार किया गया था। पिछले कुछ वर्षों में, उन पर समुदायों के बीच कथित रूप से वैमनस्य भडक़ाने के लिए राजद्रोह अधिनियम और भारतीय दंड संहिता की धाराओं के तहत आरोप लगाए गए।

राजशेखर एक समृद्ध लेखक  भी हैं, उन्होंने जाति, उत्पीडऩ और सामाजिक न्याय पर दर्जनों किताबें लिखी हैं। 2005 में, उन्हें लंदन इंस्टीट्यूट ऑफ साउथ एशिया बुक ऑफ द ईयर अवार्ड मिला। 2018 में, उन्हें नेशनल कॉन्फ़ेडरेशन ऑफ़ ह्यूमन राइट्स ऑर्गनाइज़ेशन द्वारा स्थापित मुकुंदन सी मेनन पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

उनके पुत्र सलिल शेट्टी, जो एमनेस्टी इंटरनेशनल के महासचिव रह चुके हैं, उनके परिवार में हैं। राजशेखर का अंतिम संस्कार आज गुरुवार को कर्नाटक के उडुपी में उनके गृहनगर ओन्थिबेट्टू में होगा।


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