दक्षिण कोसल ने मनाया ‘एक दशकीय स्वर्णिम पत्रकारिता उत्सव’

50 शख्सियातों को दशकीय पत्रकारिता सम्मान

सुशान्त कुमार

 

उत्सव के शुरू में उद्घोषक शशि गणवीर ने कहा कि आज हम यहां एक विशेष अवसर पर एकत्रित हुए हैं-हमारी राजनीतिक पत्रिका की 10वीं वर्षगांठ का जश्र मनाने के लिए। यह सिर्फ एक तारीख नहीं है, बल्कि एक दशक का सफर है जो साहस, सत्य की खोज और लोकतंत्र के प्रति हमारे दृढ़ संकल्प का प्रतीक है। दस साल पहले, जब हमने इस पत्रिका की नींव रखी थी, तो हमारा उद्देश्य था कि हम निडरता से उन मुद्दों को उठाएं जो हमारे समाज और देश के भविष्य को प्रभावित करते हैं। 

उन्होंने कहा कि भावना मानव की प्रकृति है-यह बिना अभिव्यक्ति के संचारित नहीं होता, क्रोध, खुशी, दुख असंतुष्टि प्रेस की स्वतंत्रता के बिना लोगों का तंत्र स्थापित नहीं हो सकता। उन्होंने अपने वक्तव्य में लोकतंत्र में पत्रकारिता का दायित्व, सांस्कृतिक विविधता और एकता को बढ़ावा देना, पत्रकारिता का इतिहास, पत्रकारिता का महत्व, सूचना प्रसारण युग-सोशल मीडिया, प्रबोधन का दूसरा चरण, गलत सूचना और प्रचार का बढऩा, लोकतंत्र का क्षरण, कम जानकारी वाली जनता, सांस्कृतिक और शैक्षणिक कमी, आर्थिक परिणाम, वैश्विक परिणाम पर अपनी बात रखी।

 

 

कैग के आडिटर संजय बोरकर ने कहा कि साहित्यकार, मूर्तिकार और पत्रकार महत्वपूर्ण व्यक्तियों में गिने जाते हैं। उन्होंने कहा कि पहले अखबार छपता था उसके बाद बिकता था लेकिन अब अखबार पहले बिकता है और उसके बाद छपता है।

दिग्विजय कॉलेज के पूर्व प्राचार्य केएल टांडेकर ने कहा कि कॉलेज में स्मारिका निकालने में 700 से अधिक छात्र छात्राओं और 100 से अधिक शिक्षकीय स्टॉप के बावजूद पत्रिका निकालना संभव नहीं होता वहां दक्षिण कोसल का प्रकाशन आश्चर्यचकित करता है। उन्होंने निष्पक्ष पत्रकारिता की बात स्वीकार की। उन्होंने दक्षिण कोसल को दलित चिंतन की पत्रिका करार दी है। 

दक्षिण कोसल के सलाहकार सम्पादक डॉ. विजय उके ने कहा कि देश के वर्तमान उभरते हुए चुनौतियों के बीच मीडिया का होना बहुत जरूरी है, विशेषकर बहुजन मीडिया के रूप में दक्षिण कोसल उस दिशा में कार्यरत है और उसे हमें मदद करनी चाहिए। 

 

 

कोल्हान नितिर तुरतुंग, झारखंड से एमआर जामुदा ने कहा कि यह वह पत्रिका है जिसने मुझे पहली बार सोनी सोरी और जेल की परिस्थितियों से अवगत कराया। सुदूर जंगल में आदिवासियों की हालातों से लेकर मैदानी क्षेत्र तक इसने अपनी धारदार कलम का उपयोग किया है। 

अपने आधार वक्तव्य में दक्षिण कोसल के सम्पादक सुशान्त कुमार ने कहा कि साल 1989 - 90 से शुरू हुआ पत्रकारिता जीवन दक्षिण कोसल के रूप में आप सबों के सामने हैं। वैकल्पिक पत्रकारिता की यह मुहिम लोकतंत्र की मजबूती के रूप में उभरी और दिन-प्रतिदिन समाज में अपनी जिम्मेदारियों और चुनौतियों को स्वीकार करते हुए अपने आपको स्थापित करने की कोशिश करते रहेगी। सूचना तकनीक की क्रांति ने एक ओर जहां सूचना पर वर्चस्व स्थापित किया है वहीं दूसरी ओर सोशल मीडिया के अनन्त अवसरों को हमारे सामने रखा है।

 

 

सूचना का इस्तेमाल किस हद तक समाज तथा आम इंसान के चेतना को बनाने में किया जा रहा है इसकी मिसाल हम वर्तमान दुनिया में रंगभेद, जातिवाद, नस्लभेद, पूंजीवाद, साम्राज्यवाद, ब्राह्मणवाद, अधिनायकत्ववाद महिला उत्पीडऩ, बच्चों के साथ अत्याचार, बेरोजगारी, गरीबी, भूखमरी, भय, आतंक, आदिवासियों की दिन प्रतिदिन हत्या, अव्यवस्था के रूप में मंदी, भूमि अधिग्रहण बिल, एट्रोसिटी कानून में संशोधन, भीमा कोरेगांव को लेकर झूठे बवाल, असहिष्णुता, दुर्भिक्षता, भीड़ की हिंसा, आर्थिक चोट पहुंचाने के लिए महंगाई को बढ़ाते नोटबंदी, जीएसटी, बैंकों में हमारी पूंजी को लूटने और कृषि पर हमले के साथ भारत जोड़ों की राजनीति जैसी खबरों में देख चुके हैं। सूचना व समाचार पित पत्रकारिता का रूप लेता जा रहा है। 

हमारे यहां तो विज्ञापन की दुनिया ने अखबारों को अपना दास बना लिया है। ऐसे समय में अपने विचारों को और राय को सही बनाए रखने के लिए पहल हमें खुद करनी होगी और तैयार करने होंगे ऐसे पत्रकारिता मंच की जहां से हम आम आदमी की जिंदगी और उसकी समस्याओं से जुड़ी खबरों को प्रमुखता के साथ आप तक स्वतंत्र, निष्पक्ष और निडरता के साथ तेजी के साथ पहुंचा सकें।

 

 

सम्पादक सुशान्त कुमार ने कहा कि आपको सच और आलोचना कड़वा लग सकता है लेकिन सत्य है कि आप भविष्य में पत्रिका खरीद कर पढ़ेंगे और दक्षिण कोसल वेबसाइट को हरसंभव मदद करेंगे। 

उद्घोषक महादेव वाल्दे ने दक्षिण कोसल को कहा कि हमें निडर, निर्भीक, स्वतंत्र, निष्पक्ष और बहुजन मीडिया या दलित चिंतक साहित्य की जरूरत हैं, तो इसका स्थायी कार्यालय हो जहां कार्य हो सकें। एक बार मदद करके भूल नहीं जाना है। उसकी शतत यथासंभव अधिक सहयोग करना जरूरी है। 

 

 

उनका कहना है कि दक्षिण कोसल पत्रिका को अगर जीवित रखना है और खासकर बहुजन लोगों की समस्या को उजागर करना है तो पत्रिका को नियमित निकालना जरूरी है। उन्होंने कहा आर्थिक संकट से उबारने के लिए उपस्थित बुद्धिजीवियों में से 100 लोग भी प्रतिमाह 500 रुपए देते हैं तो दक्षिण कोसल पत्रिका निकालने में आसानी हो सकती है।

उन्होंने कहा वह प्रतिमाह 1000 रुपए आर्थिक सहयोग प्रदान करने की घोषणा करते हैं। और आशा करते हैं कि दक्षिण कोसल के सभी समर्थक प्रतिमाह 500 रुपए से लेकर 1000 रुपए तक सहयोग प्रदान कर इसे नियमित निकालने में सहयोग करेंगे। 

कार्यक्रम को इण्डियन ऑयल कॉरपोरेशन (आईओसी) के मैनेजर आरएस मार्को, भदंत धम्मतप, पूर्व प्राचार्य केएल टांडेकर, किसान नेता तेजराम विद्रोही, कामधेनु विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार डॉ. आरके सोनवणे, छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के भीमराव बागड़े, सामाजिक कार्यकर्ता कन्हैयालाल खोब्रागढ़े तथा राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित सामाजिक कार्यकर्ता मधुलिका रामटेके ने संबोधित किया।

 

 

इस उत्सव में दक्षिण कोसल ने अपने 10 साल के अनुभव के आधार पर समाज के विशिष्ट लोगों में से कुछ को विशिष्ट और अतिविशिष्ट सम्मान से सम्मानित किया। विशिष्ट सम्मान के तहत संतोष कुंजाम, शशि गणवीर, दीपांकर खोब्रागढ़े, भदंत धम्मतप, कन्हैयालाल खोब्रागढ़े, गिरीश पंकज, डॉ. दादूलाल जोशी, जनकलाल ठाकुर, कांति फुले, विप्लव साहू, दरवेश आनंद, आरके सुखदेवे, युगल सोनटके, प्रशांत सहारे, नागेश बोरकर, वर्षा डोंगरे, महेन्द्र लेंझारे, सुशील गजभिए, केएल टांडेकर, बीपी मेश्राम, ज्ञानचंद टेम्बुरकर, माताभिख अनोखे, बीएल कोर्राम, रमेश अनुपम, हरजिंदर सिंह ‘मोटिया’ को सम्मानित किया। 

वहीं अतिविशिष्ट सम्मान से मरणोपरांत नरेन्द्र बन्सोड़, अर्जुन सिंह ठाकुर को सम्मानित किया। अतिविशष्ट सम्मान में ही महादेव कावरे, शरद उके, दिलीप साहू, आरके सोनवणे, एमआर जामुदा, डॉ. विजय उके, संजय बोरकर, डॉ. विमल खुंटे, डॉ. कमल किशोर सहारे, सुलेमान खान, एमडी वाल्दे, विवेक वासनिक, प्रभाकर ग्वाल, डॉ. केबी बन्सोड़े, अजय खुंटे, सियाराम शर्मा, आरएस मार्को, संजीव खुदशाह, राजेन्द्र रंगारी, प्रफुल्ल ठाकुर, अंजु मेश्राम, सुनील वर्मा को दक्षिण कोसल दशकीय पत्रकारिता सम्मान से सम्मानित कर सुशोभित किया। 

बहरहाल कार्यक्रम के विषय को लेकर अतिथियों के बीच हम किसी निर्णय पर नहीं पहुंच पाएं। प्रिंट के रूप में दक्षिण कोसल को मैगजीन रूप में निकालने की आवश्यकता को सभी ने स्वीकारा लेकिन दमदारी के साथ किसी ने अपनी बात नहीं रखी कि दक्षिण कोसल की नियमित प्रकाशन के लिए आर्थिक संसाधनों को इकट्ठा करने में हमारी भूमिका क्या होनी चाहिए? 

 

 

कार्यक्रम के दौरान नामदेव टाइम्स के सम्पादक दिनेश नामदेव ने दक्षिण कोसल के सम्पादक सुशान्त कुमार को इस अवसर पर अपनी पत्रिका की ओर से कार्यक्रम की सफलता के लिए प्रतीक चिह्न के रूप में मोमेन्टो प्रदान किया तथा सामाजिक कार्यकर्ता प्रतिमा वासनिक ने पुष्पगुच्छ से सम्पादक को सम्मानित किया। 

उत्सव के दौरान पूर्व प्राचार्य केएल टांडेकर और चिकित्सक डॉ. आरके सोनवणे ने दक्षिण कोसल को 10 - 10 हजार रुपए आर्थिक सहयोग की घोषणा की। आभार प्रदर्शन में बौद्ध कल्याण समिति के अध्यक्ष कांति फुले, टैंट, माइक, डिजाइन, भोजन व्यवस्था, आयोजक मंडल और तमाम आगंतुकों के सम्मान में धन्यवाद ज्ञापित किया गया। 

इस गरिमामयी उत्सव में श्रमिक नेता जयप्रकाश नायर, सुलेमान खान, हरजिंदर सिंह मोटिया, प्रेमनारायण वर्मा, बिलासपुर से हरीश पंडाल, जगतारन प्रसाद डहरे, डॉ. दुर्गा प्रसाद मेरसा, टेकचंद पांडल, दुर्ग से लक्ष्मीनारायण कुंभकर सचेत, राजेश जगने, राजकुमार चौधरी, लोक असर के सम्पादक दरवेश आनंद, दिग्विजय कॉलेज के पत्रकारिता विभाग के बेबीनंदा जागृत, डीपी नोन्हारे, सालिकराम बन्सोड़, बौद्ध कल्याण समिति के अध्यक्ष कांति फुले, मानिक घोड़ेसवार, संदीप कोल्हाटकर, संजय हुमने, एएस वासनिक, साहित्यकार दादूलाल जोशी, संतोश कुंजाम, वर्षा डोंगरे, जिला पंचायत सदस्य विप्लव साहू, पत्रकार प्रशांत सहारे, मनोज देवांगन, मिथलेश मेश्राम, बंटी रामटेके सहित सैकड़ों बुद्धिजीवी, पत्रकार, संपादक, लेखक, डॉक्टर, बहुजन चिंतक और बड़ी संख्या में महिलाएं उपस्थित थी। 


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