आज दक्षिण कोसल मनाएगा दशकीय स्वर्णिम पत्रकारिता उत्सव
कई शख्सियत होंगे पत्रकारिता सम्मान से सम्मानित
दक्षिण कोसल टीमछत्तीसगढ़ राज्य के राजनांदगांव में आज दक्षिण कोसल अपना एक दशकीय स्वर्णिम पत्रकारिता उत्सव का आयोजन किया है। यह उत्सव छत्तीसगढ़ के मुख्य, विशिष्ट, अति विशिष्ट अतिथियों के गरिमामय उपस्थिति में सम्पन्न होगा। इस उत्सव में राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत जाने-माने शख्सियतों को ‘दक्षिण कोसल दशकीय पत्रकारिता सम्मान’ से सम्मानित किया जाएगा।

दक्षिण कोसल के सम्पादक सुशान्त कुमार ने बताया कि वैकल्पिक पत्रकारिता की यह मुहिम लोकतंत्र की मजबूती के रूप में उभरी और दिन-प्रतिदिन समाज में अपनी जिम्मेदारियों और चुनौतियों को स्वीकार करते हुए अपने आपको स्थापित करने की कोशिश कर रहा है। सूचना तकनीक की क्रांति ने एक ओर जहां सूचना पर वर्चस्व स्थापित किया है वहीं दूसरी ओर सोशल मीडिया के अनन्त अवसरों को हमारे सामने रखा है।
सूचना का इस्तेमाल किस हद तक समाज तथा आम इंसान के चेतना को बनाने में किया जा रहा है इसकी मिसाल हम देश में उभरते हुए चुनौतियों के रूप में देख रहे हैं। इस आयोजन में ‘देश की वर्तमान उभरते हुए चुनौतियों के बीच दक्षिण कोसल की पत्रकारिता’ पर राय व्यक्त करने राज्य से नामी वक्ताओं को आमंत्रित किया है।
उन्होंने सवाल उठाया है कि खुशहाल भारत के लिए आपकी क्या धारणा है?, क्या आने वाले समय में देश में संविधान और मनुस्मृति में से किस मातृ कानून पर देश चलेगा?, राजनैतिक अस्थितरता और मजबूत विपक्ष पर आपकी समझ क्या है?, सरकारी नौकरियों में बुद्धिजीवियों की जिम्मेदारी क्या है।
क्या उन्हें सच कहना चाहिए या फिर अपनी रोजीरोटी के लिए झूठ के साथ हो लेना चाहिए? देश में बढ़ते मॉब लिंचिंग की घटनाओं से क्या निष्कर्ष निकालते हैं? क्या भविष्य में वोट का अधिकार, बैंक और चुनाव सुरक्षित रहेंगे? जैसे कई सवालों से होकर दक्षिण कोसल यह उत्सव रखा है?
सम्पादक सुशान्त कुमार ने कहा कि हमारी जिम्मेदारी है कि दीर्घ अवधि की धार्मिक असहिष्णुता के कारण भारत के अल्पसंख्यक समुदाय के प्रति बढ़ती हिंसा जो मुस्लिमों और दलितों की भीड़ द्वारा की जाने वाली हत्या की बढ़ती घटनाओं में स्पष्ट रूप से देखी जा सकती हैं, जो एक हद तक अल्पसंख्यक समुदाय के प्रति घृणा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक और हिन्दुत्व विचारधारा की शिक्षाओं का नतीजा है, कब सवाल उठाएंगे?
उन्होंने कहा कि वसूलों और मूल्य के स्वतंत्र मीडिया संचालित नहीं किया जा सकता है। आर्थिक समृद्धि, सामाजिक विकास और ताकतवर लोकतंत्रों के लिए महत्वपूर्ण तत्व है। यह एक ऐसा अधिकार है जो मानवाधिकारों के सार्वभौम घोषणा के अनुच्छेद - 19 में उल्लेखित है और सभी सरकारों ने इसके प्रति प्रतिबद्धता व्यक्त की है।’
यह भी बताया कि हमारी खबरों को किस तरह देखा जाता है और कैसा व्यवहार किया जाता है इससे ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि हम इस बात को प्रकाश में ला सकें कि जनपक्षधर पत्रकारिता के उसूलों पर आगे बढऩे की चुनौती को अमल में कैसे लाएं? भारत कमजोर हो रहे ऐसे लोकतंत्रों में से एक है जहां इन सारे चीजों को मानने को तैयार नहीं है।
हम समझते हैं कि इसलिए भारत की सच्ची कहानी बताना पहले से अधिक जरूरी है। वो कहते हैं कि पिछले कुछ सालों में हमने जिस तरह की पत्रकारिता की है इसके बरक्स मुख्यधारा के मीडिया धार्मिक अल्पसंख्यकों और उत्पीडि़त जातियों पर हमला करने वालों की वैचारिकी और सांगठनिक शक्ति पर बहुत कम पड़ताल की है या गंभीरता से काम नहीं किया है।
भारतीय न्यूज रूम में इन समूहों का प्रतिनिधित्व बेहद कम होने के चलते ऐसे हालात हैं। 15 फीसदी अगड़ी जातियों के लोग भारतीय मीडिया के 85 प्रतिशत पदों पर काबिज हैं और बाकी की जनता का प्रतिनिधित्व करने वाले 15 प्रतिशत स्थान हासिए के पत्रकारों से वंचित हैं। सोशल मीडिया के साथ वेबसाईड और यू-ट्यूब ने नई सूचना क्रांति में बदलाव ला दिया है।
अब लोग अपने मीडिया के मालिक हो गए हैं। उन्होंने सचेत किया है कि शासक वर्ग की नजर लोगों की और उनके मदद से संचालित होने वाले मीडिया हाऊस पर है। वह इस पर अंकुश लगाने तत्पर है तथा नए-नए कानून और बिल पास करवाने में लगे हुए हैं।
उत्सव में रायपुर प्रेस क्लब के अध्यक्ष प्रफुल्ल ठाकुर, अंध श्रद्धा उन्मुलन से जुड़े डॉ. आरके सुखदेवे, डॉ. दिनेश मिश्र, आदिवासी कार्यकर्ता आरएस मार्को, धर्मेन्द्र धु्रव, संतोष कुंजाम, वर्षा डोंगरे, सामाजिक कार्यकर्ता कन्हैयालाल खोब्रागढ़े। इस समय के हिन्दी के प्रतिष्ठित आलोचक सियाराम शर्मा, आम्बेडकरी विचारक संजय बोरकर, एमबी अनोखे, सामाजिक कार्यकर्ता आलोक शुक्ला, छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के भीमराव बागड़े, जनकलाल ठाकुर।
राजगामी सम्पदा के विवेक वासनिक, पूर्व प्राचार्य और विचारक केएल टांडेकर, कृषक नेता तेजराम विद्रोही, सुदेश टीकम, दाऊ श्री वासुदेव चंद्राकर कामधेनु विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार डॉ. आरके सोनवणे, बौद्ध कल्याण समिति के प्रमुख कांति फुले, सामाजिक कार्यकर्ता विप्लव साहू, रामलाल गुप्ता, लक्ष्मीनारायण कुंभकर, अध्यापक और विचारक शशि गणवीर, पत्रकार दरवेश आनंद, अखिलेश खोब्रागढ़े, पंकज शर्मा, प्रशांत सहारे, महेन्द्र लेंझारे, मिथलेस मेश्राम, साहित्यकार रमेश अनुपम, गोंडवाना दर्शन के पूर्व सहायक सम्पादक बीएल कोर्राम।
रायपुर कमिश्नर महादेव कावरे, पत्रकार दिलीप साहू, चिकित्सक डॉ. विजय उके, डॉ. विमल खुंटे, डॉ. प्रकाश खुंटे, डॉ. कमलकिशोर सहारे, रंगकर्मी सुलेमान खान, हरजिंदर सिंह मोटिया, गुलाम हैदर मंसुरी, जयप्रकाश नायर, सामाजिक कार्यकर्ता एमडी वाल्दे, यही नहीं झारखंड से आदिवासी मामलों के सामाजिक कार्यकर्ता एमआर जामुदा, भदंत धम्मतप, बिलासपुर से कवि हरीश पंडाल, इस कार्यक्रम में शामिल होंगे।
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