दक्षिण कोसल 26 को मनाएगा दशकीय स्वर्णिम पत्रकारिता उत्सव

छत्तीसगढ़ के जाने माने शख्सियत शिरकत करेंगे

दक्षिण कोसल टीम

 

दक्षिण कोसल के सम्पादक सुशान्त कुमार ने बताया कि वैकल्पिक पत्रकारिता की यह मुहिम लोकतंत्र की मजबूती के रूप में उभरी और दिन-प्रतिदिन समाज में अपनी जिम्मेदारियों और चुनौतियों को स्वीकार करते हुए अपने आपको स्थापित करने की कोशिश करते रहेगी। सूचना तकनीक की क्रांति ने एक ओर जहां सूचना पर वर्चस्व स्थापित किया है वहीं दूसरी ओर सोशल मीडिया के अनन्त अवसरों को हमारे सामने रखा है।

सूचना का इस्तेमाल किस हद तक समाज तथा आम इंसान के चेतना को बनाने में किया जा रहा है इसकी मिसाल हम वर्तमान दुनिया में रंगभेद, जातिवाद, नस्लभेद, पूंजीवाद, साम्राज्यवाद, ब्राह्मणवाद, अधिनायकत्ववाद महिला उत्पीडन, बच्चों के साथ अत्याचार, बेरोजगारी, गरीबी, भूखमरी, भय, आतंक, आदिवासियों की दिन प्रतिदिन हत्या, अव्यवस्था के रूप में मंदी, भूमि अधिग्रहण बिल, एट्रोसिटी कानून में संशोधन, भीमा कोरेगांव को लेकर झूठे बवाल, असहिष्णुता, दुर्भिक्षता,  भीड़ की हिंसा, आर्थिक चोट पहुंचाने के लिए महंगाई को बढ़ाते हुए नोटबंदी जीएसटी, बैंकों में हमारी पूंजी को लूटने और कृषि पर हमले के साथ देश नस्लीय राजनीतिक खबरों से जूझ रहा है।

सूचना व समाचार पित पत्रकारिता का रूप लेता जा रहा है। हमारे यहां तो विज्ञापन की दुनिया ने अखबारों को अपना दास बना लिया है। ऐसे समय में अपने विचारों को और राय को सही बनाए रखने के लिए पहल हमें खुद करनी होगी और तैयार करने होंगे ऐसे पत्रकारिता मंच कि जहां से हम आम आदमी की जिंदगी और उसकी समस्याओं से जुड़ी खबरों को प्रमुखता के साथ आप तक स्वतंत्र, निष्पक्ष और निडरता के साथ तेजी के साथ पहुंचा सकें।

उन्होंने कहा कि कार्पोरेट जगत, सरकार के दबाव, विभिन्न राजनीतिक पार्टियों तथा महत्वाकांक्षा से मुक्त लोगों से, लोगों के लिए, लोगों की पत्रकारिता की बात कही है। इसके अलावा भविष्य में पत्रिका खरीद कर पढऩे और ‘दक्षिण कोसल’ वेबसाइट को हरसंभव मदद करने की बात दुहराई है।

देश के हालातों पर सूचना के फलक में महत्वपूर्ण संस्थानों पर फासिस्टों का कब्जा, भारत के आदिवासियों पर हमले, विदेश नीतियों के साथ देश में विदेशी पूंजी के निवेश पर प्रभाव, बस्तर में पुलिस कैंप और विकास को लेकर विरोध, नुलकातोंग तथा खलको फर्जी एनकाउंटर के आलोक में भारत में फैले माओवाद की समस्याओं का समाधान, उत्तरप्रदेश के सोनभद्र में आदिवासियों के कत्लेआम और आदिवासी क्षेत्रों में आदिवासी महिलाओं के खिलाफ बलात्कार देख रहे हैं।

उन्होंने कहा कि भाजपा के जीत के बाद तेजी के साथ देश में हिन्दुत्व के एजेंडा को लागू करने में आ रही बदलावों पर लोगों की प्रतिक्रया, देश में बढ़ते दलितों, आदिवासियों और महिलाओं पर हमले देश में पांचवी और छठवीं अनुसूची लागू न होने से विसंगतियां, राम मंदिर का निर्माण, राम वन गमन पथ आधारित पुरानी व्यवस्था को कितना कारगर समझते है क्या उसे बदल देना उचित हुआ, अगर बदला तो क्या इस व्यवस्था से आप खुश हैं?

उन्होंने सवाल उठाया है कि गरीबी, भूखमरी, अशिक्षा, बीमारी, बेरोजगारी की समस्या, खुशहाल भारत के लिए आपकी क्या धारणा है?, क्या आने वाले समय में देश में संविधान और मनुस्मृति में से किस मातृ कानून पर देश चलेगा?, राजनैतिक अस्थितरता और मजबूत विपक्ष पर आपकी समझ क्या है?, सरकारी नौकरियों में बुद्धिजीवियों की जिम्मेदारी क्या है।

क्या उन्हें सच कहना चाहिए या फिर अपनी रोजीरोटी के लिए झूठ के साथ हो लेना चाहिए, एससी/एसटी अत्याचार निवारण कानून में बड़ी जीत, देश में बढ़ते मोब लिंचिंग की घटनाओं से क्या निष्कर्ष निकालते हैं? क्या भविष्य में वोट का अधिकार, बैंक और चुनाव सुरक्षित रहेंगे? जैसे कई सवालों से जूझ रहा था और कई शख्सियत इसका जवाब नहीं दे रहे थे, सवाल उठाना चाहता हूं तब हमारी जिम्मेदारी कौन तय करेगा?

सम्पादक सुशान्त कुमार ने कहा कि हमारी जिम्मेदारी है कि दीर्घ अवधि की धार्मिक असहिष्णुता के कारण भारत के अल्पसंख्यक समुदाय के प्रति बढ़ती हिंसा जो मुस्लिमों और दलितों की भीड़ द्वारा की जाने वाली हत्या की बढ़ती घटनाओं में स्पष्ट रूप से देखी जा सकती हैं, जो एक हद तक अल्पसंख्यक समुदाय के प्रति घृणा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक और हिन्दुत्व विचारधारा की शिक्षाओं का नतीजा है, कब सवाल उठायेंगे?

उन्होंने कहा कि ‘मैं निडर, स्वतंत्र और सिद्धांतों वाली मीडिया के सामाजिक मूल्य को इससे बेहतर शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकता। स्वतंत्र मीडिया, आर्थिक समृद्धि, सामाजिक विकास और ताकतवर लोकतंत्रों के लिए महत्वपूर्ण तत्व है। यह एक ऐसा अधिकार है जो मानवाधिकारों के सार्वभौम घोषणा के अनुच्छेद - 19 में उल्लेखित है और सभी सरकारों ने इसके प्रति प्रतिबद्धता व्यक्त की है।’

जहां तक धर्म और मीडिया का सवाल है, उन्होंने कहा कि खुशी और बेबाकी से आज के भारत में विचार, अभिव्यक्ति और विश्वास की स्वतंत्रता पर दिखाई पडऩे वाली मुख्य अड़चनों पर अपनी बात लगातार रखी है। इसे हास्यास्पद ही कहा जाना चाहिए कि खुल कर और सच्चाई से मीडिया की स्वतंत्रता पर बात रखने के कारण मेरी पत्रकारिता प्रतिबद्धता को अड़चनों का सामना करना पड़ रहा है।

यह भी बताया कि हमारी खबरों को किस तरह देखा जाता है और कैसा व्यवहार किया जाता है इससे ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि मैं इस बात को प्रकाश में ला सकें कि जनपक्षधर पत्रकारिता के उसूलों पर आगे बढऩे की चुनौती को अमल में कैसे लाएं? भारत कमजोर हो रहे ऐसे लोकतंत्रों में से एक है जो यह बात मानने को तैयार नहीं है।

हम समझते हैं कि इसलिए भारत की सच्ची कहानी बताना पहले से अधिक जरूरी है।वो कहते हैं कि पिछले कुछ सालों में हमने जिस तरह की पत्रकारिता की है इसके बरक्स मुख्यधारा के मीडिया धार्मिक अल्पसंख्यकों और उत्पीडि़त जातियों पर हमला करने वालों की वैचारिकी और सांगठनिक शक्ति पर बहुत कम पड़ताल की है या गंभीरता से काम नहीं किया है।

भारतीय न्यूज रूम में इन समूहों का प्रतिनिधित्व बेहद कम होने के चलते ऐसे हालात हैं। 15 फीसदी अगड़ी जातियों के लोग भारतीय मीडिया के 85 प्रतिशत पदों पर काबिज हैं और बाकी की जनता को केवल 15 प्रतिशत स्थान प्राप्त  है। सोशल मीडिया के साथ वेबसाईड और यू-ट्यूब ने नई सूचना क्रांति में बदलाव ला दिय है।

अब लोग अपने मीडिया के मालिक हो गए हैं। उन्होंने सचेत किया है कि शासक वर्ग की नजर लोगों की और उनके मदद से संचालित होने वाले मीडिया हाऊस पर है। वह नए नए कानून और बिल पास करवाने में लगे हुए हैं।

कार्यक्रम मे रायपुर प्रेस क्लब के अध्यक्ष प्रफुल्ल ठाकुर, सामाजिक कार्यकर्ता अंजू मेश्राम, अंध श्रद्धा उन्मुलन से जुड़े डॉ. आरके सुखदेवे, आदिवासी कार्यकर्ता, आरएस मार्को, धर्मेन्द्र ध्रुव, संतोष कुंजाम, वर्षा डोंगरे, सामाजिक कार्यकर्ता कन्हैयालाल खोब्रागढ़े, इस समय के हिन्दी के प्रतिष्ठित आलोचक सियाराम शर्मा, आम्बेडकरी विचारक संजय बोरकर, एमबी अनोखे, लेखक संजीव खुदशाह, सामाजिक कार्यकर्ता आलोक शुक्ला, छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के भीमराव बागड़े, जनकलाल ठाकुर।

राजगामी सम्पदा के विवेक वासनिक, पूर्व प्राचार्य और विचारक केएल टांडेकर, कृषक नेता तेजराम विद्रोही, सुदेश टीकम, अंजोरा कॉलेज के रजिस्ट्रार डॉ. आरके सोनवणे, बौद्ध कल्याण समिति के प्रमुख कांति फुले, सामाजिक कार्यकर्ता विप्लव साहू, अध्यापक और विचारक शशि गणवीर, पत्रकार दरवेश आनंद, अखिलेश खोब्रागढ़, पंकज शर्मा, प्रशांत सहारे, महेन्द्र लेंझारे, मिथलेस मेश्राम, साहित्यकार रमेश अनुपम, गोंडवाना सन्देश के पूर्व सहायक सम्पादक बीएल कोर्राम।

रायपुर कमिश्नर महादेव कावरे, पत्रकार दिलीप साहू, चिकित्सक डॉ. विजय उके, डॉ. विमल खुंटे, डॉ. प्रकाश खुंटे, डॉ. कमलकिशोर सहारे, डॉ. मिथलेश शर्मा, रंगकर्मी सलेमान खान, सामाजिक कार्यकर्ता एमडी वाल्दे, झारखंड से आदिवासी सामाजिक कार्यकर्ता एमआर जामुदा, भदंत धम्मतप, इस कार्यक्रम में शामिल होंगे। 


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  • 23/10/2024 विरेंद्र कुमार रंगारी

    वास्तविक सामाजिक उत्थान की जो बयार बह चली है उसे समुचित और निर्बाध गति की निरंतरता प्रदान करने के लिए दक्षिण कौशल समूह का साधुवाद एवम् मंगलकामनाएं।

    Reply on 26/10/2024
    जी, शुक्रिया
  • 23/10/2024 विरेंद्र कुमार रंगारी

    वास्तविक सामाजिक उत्थान की जो बयार बह चली है उसे समुचित और निर्बाध गति की निरंतरता प्रदान करने के लिए दक्षिण कौशल समूह का साधुवाद एवम् मंगलकामनाएं।

    Reply on 26/10/2024
    जी, शुक्रिया