छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ में हुई पुलिस मुठभेड़ में 31 ‘नक्सलियों’ की मृत्यु

इस साल अब तक 188 माओवादी, 15 सुरक्षाकर्मी और 47 नागरिक मारे जा चुके हैं

दक्षिण कोसल टीम/द वायर स्टाफ

 

छत्तीसगढ़ पुलिस ने दावा किया है कि शुक्रवार (चार अक्टूबर) को राज्य के अबूझमाड़ क्षेत्र में सुरक्षा बलों के साथ हुई एक मुठभेड़ के दौरान 31 कथित माओवादी मारे गए हैं. सुरक्षा बलों को कोई नुकसान नहीं हुआ है. पुलिस इसे बड़ी सफलता मानते हुए, पिछले 24 साल का सबसे बड़ा अभियान बता रही है.

हालांकि, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश की सिविल लिबर्टीज कमेटी (सीएलसी) ने सुप्रीम कोर्ट से इस मुठभेड़ की न्यायिक जांच की मांग की है. 

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक़, सीएलसी के अध्यक्ष गद्दाम लक्ष्मण ने मांग की है, ‘सरकार को कथित मुठभेड़ में मारे गए माओवादियों के नाम और उनकी तस्वीरें जारी करनी चाहिए. उनके शवों को उनके परिवार के सदस्यों को सौंप दिया जाना चाहिए और उनका अंतिम संस्कार सम्मानजनक तरीके से किया जाना चाहिए.’

स्वतंत्र रूप से घटना की मीडिया रिपोर्टिंग कराने की मांग करते हुए लक्ष्मण ने कहा , ‘सरकार को इस मामले में मीडिया को स्पष्टीकरण देना चाहिए. पत्रकारों को मुठभेड़ स्थल पर जाने की अनुमति देनी चाहिए ताकि हत्याओं के पीछे की सच्चाई का पता लगाया जा सके.’ 

दरअसल, छत्तीसगढ़ में बेगुनाह आदिवासियों को भी निशाना बनाने का इतिहास रहा है. मई 2013 में बीजापुर के एड्समेट्टा गांव में तकरीबन 1,000 सुरक्षाबलों ने ‘बीज पंडुम’ पर्व मना रहे आदिवासियों पर गोली चला दी थी, जिसमें 8 आदिवासी मारे गए थे. सुरक्षाबलों ने कहा था कि ये सभी माओवादी थे और यह कार्रवाई उन्होंने माओवादियों द्वारा की गई गोलीबारी के जवाब में की थी.

लेकिन हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की जांच में सामने आया था कि यह एनकाउंटर फ़र्ज़ी था और एक भी मृतक माओवादी नहीं था.

एक अन्य मामले में बीजापुर जिले के सारकेगुड़ा में सुरक्षाबलों द्वारा जून 2012 में 6 नाबालिग समेत 17 लोगों की हत्या कर दी गई थी. 28 जून की रात आदिवासी किसी पर्व के लिए एकत्र हुए थे. सुरक्षाबलों ने उसे नक्सलियों की बैठक समझ कर फायरिंग शुरू कर दी. जांच में सामने आया था कि एक भी मृतक नक्सली नहीं था.

नक्सलियों को गिरफ़्तार क्यों नहीं किया गया?

मीडिया से बात करते हुए दंतेवाड़ा एसपी गौरव राय ने कहा, ‘हमें सूचना मिली थी कि 40-50 माओवादी एक बैठक के लिए इकट्ठा हो रहे हैं. हमने डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड (डीआरजी) दंतेवाड़ा, डीआरजी नारायणपुर और एसटीएफ टीमों के साथ एक संयुक्त अभियान चलाया. 4 अक्टूबर को जब हमारी टीमों ने माओवादियों की घेराबंदी की तो भारी गोलीबारी हुई…’

सुरक्षा बलों पर हिंसा का रास्ता अपनाने का आरोप लगाते हुए सीएलसी के लक्ष्मण ने कहा है, ‘सरकार को सूचना थी कि शीर्ष माओवादी नेता बैठक कर रहे हैं. पुलिस के पास उन्हें गिरफ्तार करने का मौका था, लेकिन उन्होंने उन पर हमला कर दिया और मार डाला.’

सीएलसी का आरोप है कि पुलिस न केवल माओवादियों का बल्कि निर्दोष आदिवासियों का भी सफाया कर रही है. सरकार को सलाह देते हुए लक्ष्मण ने कहा है, ‘सरकार को यह समझना चाहिए कि हिंसा से जवाबी हिंसा ही होगी. उसे हिंसा के बजाय बातचीत के ज़रिये मुद्दों को सुलझाने की कोशिश करनी चाहिए.’

माओवादियों के लिए सुरक्षित माने जाने वाले अबूझमाड़ में इतना बड़ा ऑपरेशन कैसे हुआ?

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक़, सुरक्षा बलों को स्टेट इन्फॉर्मेशन ब्यूरो (एसआईबी) से अबूझमाड़ के थुलथुली गांव के आसपास वरिष्ठ माओवादी कैडरों की मौजूदगी की जानकारी मिली थी. संदेह था कि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) की सशस्त्र शाखा पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी (पीएलजीए) की कंपनी नंबर 6 और प्लाटून 16 के सदस्यों के साथ–साथ दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी (डीकेएसजेडसी) के वरिष्ठ सदस्य भी मौजूद हैं.

अबूझमाड़ को लंबे समय से माओवादियों का सुरक्षित ठिकाना बताया जाता रहा है. यह एक दुर्गम इलाका है जिसकी पर्याप्त जानकारी सरकार के पास भी नहीं है. ‘अबूझमाड़‘ का अर्थ हुआ, ‘जिसे समझा न जा सके’. अबूझमाड़ घने जंगलों, पहाड़ियों और जैव विविधता से भरा इलाका है. अभी तक सरकार भी इस इलाके में सर्वेक्षण नहीं कर पाई है.

दंतेवाड़ा एसपी बताते हैं, ‘डीआरजी के जवान कई घातक मुठभेड़ों का हिस्सा रहे हैं और रात के ऑपरेशन करने का उनका अनुभव उनके लिए बहुत फायदेमंद रहा. मानसून के कारण नदी और नालों में पानी भरा हुआ था, जिससे पहाड़ी इलाकों में चलने में दिक्कतें आ रही थीं, लेकिन हमारे जवानों ने बहादुरी दिखाई.’

बताया गया है कि शुक्रवार की सुबह से पहले सुरक्षा बलों ने माओवादियों के ठिकाने को घेर लिया था. लेकिन मुठभेड़ की शुरुआत दोपहर में हुई और सात–आठ घंटे तक चली. सुरक्षा बलों का दावा है कि अब उन्होंने अबूझमाड़ के लगभग 50 प्रतिशत हिस्से को कवर कर लिया है.

बस्तर आईजी पी. सुंदरराज ने बताया कि शनिवार देर शाम तक 16 मृत नक्सलियों की पहचान कर ली गई थी. एक नाम की चर्चा सबसे अधिक है– नीति उर्फ़ उर्मिला.

द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक़, नीति डीकेएसजेडसी यानी नक्सलियों की राज्य स्तरीय समिति की सदस्य थीं. 46 वर्षीय नीति के सिर पर सरकार ने पच्चीस लाख रुपये का इनाम रखा था. नीति साल 1998 से संगठन का हिस्सा थीं. डीकेएसजेडसी का सदस्य बनने से पहले वह बस्तर संभाग की पूर्व प्रभारी भी रही थीं.

इस युद्ध में इस साल अब तक 188 माओवादी, 15 सुरक्षाकर्मी और 47 नागरिक मारे जा चुके हैं. राज्य के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने हालिया घटना के बाद कहा है कि नक्सलवाद को खत्म करने की हमारी लड़ाई तभी खत्म होगी जब हमें पूरी सफलता मिलेगी और इसके लिए हमारी डबल इंजन वाली सरकार पूरी तरह प्रतिबद्ध है.


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