नियोगी जी एक व्यक्ति नहीं, धारा थीं और धारा हैं!!!

नियोगी से एक बार रायपुर में मुलाकात हुई थी!

सुशान्त कुमार

 

मैं जब पांचवी पढ़ता था तब से ही छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा को जानता हूं। शंकर गुहा नियोगी के कामों से प्रभावित होकर जो लोग छत्तीसगढ़ में आए थे उनमें से डॉक्टर जाना, डॉ. बिनायक सेन, डॉ. गुुण, डॉ. राजीवलोचन, डॉ. पवित्र गुहा, सुधा भारद्वाज, डॉ. इलिना सेन, राजेन्द्र सायल और स्थानीय लोगों में भीमराव बागड़े, जनक लाल ठाकुर, एजी कुरैशी, कला दास डेहरिया, बसंत साहू, मेघदास वैष्णव, प्रेम नारायण वर्मा, शेख अंसार से मैंने बातचीत की है। 

मैं कई दशकों से छमुमो की रैलियों को खड़े होकर अपने सामने से गुजरते देखा है। मैं इन कार्यक्रमों में कभी अकेले, कभी दोस्तों के साथ, कभी पत्रकार के रूप में अतिथि के रूप में आजतक शामिल होते आया हूं। इन नेताओं और बुद्धिजीवियों के मुख से और इनके साहित्य के द्वारा शंकर गुहा नियोगी के कामों और उनके काम करने के तरीके के बारे में जानता रहा। मैंने पाया है कि नियोगी अपने आप को कम्युनिस्ट नहीं कहते थे लेकिन सारा कार्य कम्युनिस्ट विचारधारा की धुरी पर टिक कर भारतीय परिवेश में लोकतांत्रिक मूल्यों पर प्रयोग कर रहे थे।

इस वर्ष उनकी यूनियन छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष भीमराव बागड़े और उनके साथी पुनाराम और तुलसीराम ने मुझे नियोगी के शहीदी दिवस तथा भगत सिंह जयंती पर होने वाले कार्यक्रमों में हिस्सा लेने के लिए और वक्ता के रूप में अपना अभिमत रखने बुलाया।

 

 

मैंने देखा कि सुबह से ही समारोह की तैयारी चल रही थी? राजनांदगांव के रेल्वे स्टेशन से लगे ऑटो स्टैंड पर आगंतुक मजदूरों के लिए भोजन की व्यवस्था की गई थी। वहीं से पूरे राजनांदगांव शहर में तय दूरी पर रैली का आयोजन किया गया था। इस रैली में राजनांगांव के निगम कर्मचारी, एबिस और राजाराम मेज प्रोडक्ट के कर्मचारी, भिलाई एसीसी के कर्मचारी, जो विशेष रूप से अपने टी शर्ट के साथ कार्यक्रम में शामिल थे। रसमड़ा, अंजोरा, कमल साल्वेंट, बिलासपुर वेल्कम फैक्टरी और दूर-दराज के श्रमिक इस शहादत दिवस के लिए एकजुट हुए थे। 

दोपहर होने तक रैली इमाम चौक में सभा के रूप में परिवर्तित हो चुकी थी। हजारों की संख्या में महिलाओं और पुरूषों ने इस रैली में शामिल होकर अपनी भागीदारी तय की। 

जो भी व्यक्ति सभास्थल में आ रहे थे सभी शंकर गुहा नियोगी और भगतसिंह के तैल चित्रों में पुष्पांजलि अर्पित कर अपना स्थान ग्रहण कर रहे थे। इन सभी जांबाज लोगों से मिलने का और बातचीत का मौका मिला? 

छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के सभी कार्यक्रमों में मुझे ससम्मान आमंत्रित किया जाता है और वक्ता के रूप में बोलने का अवसर प्रदान किया जाता है। तब महसूस होता है कि मैं बचपन से आजतक इस आंदोलन के तपिश में से ही निखर कर पत्रकारिता में नई ऊर्जा के साथ कार्य करने में सक्षम हो पाता हूं। 

 

 

मैंने देखा और पाया है कि यह लड़ाई मात्र भीमराव बागड़े की लड़ाई नहीं है या ना ही छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा और उनके श्रमिकों और किसानों की ही लड़ाई नहीं है बल्कि यह आम नागरिकों की भलाई और उनके अधिकारों की भी लड़ाई है। 

इस रैली के दौरान आप बारीकी से देखेंगे कि शंकर गुहा नियोगी की काम करने की शैली की झलक आपको आज भी मिलती है? रैली को बड़े नेताओं द्वारा सजाया संवारा जाता है। सभी नेता बोलने से पहले श्रमिकों में उत्साह भरने के लिए नारा लगवाते हैं। श्रद्धा सुमन अर्पित कर प्रसाद का वितरण और माथे पर गुलाल लगाते हैं। और अंत में जीत की आश पैदा करते हैं।

कई दशकों से मैं यह रैली और टूटते बिखरते संगठन को देखते आ रहा हूं लेकिन यकिन मानिए आज भी हजारों मजदूर अपनी छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा यूनियन पर भरोसा करते हैं अपने शहीद साथियों और नेता शंकर गुहा नियोगी को आत्मीयता के साथ याद करते हैं ? कई श्रमिक भाव-विभोर हो उठते हैं? 

28 सितंबर को एक शानदान रैली का आयोजन, भीमराव बागड़े, बिजेन्द्र तिवारी, एजी कुरैशी, पुनाराम, तुलसीराम, विरेन्द्र ऊके के नेतृत्व में आयोजित हुई जिसमें हजारों की संख्या में मजदूर महिला पुरुष कामगारों ने हिस्सा लिया?

 

 

रैली के अंत में विभिन्न राज्यों से आए अतिथियों के अलावा यूनियन के प्रमुख और अध्यक्ष भीमराव बागड़े ने सभा में कहा है कि छत्तीसगढ़ में शंकर गुहा नियोगी के नेतृत्व में अगस्त 1989 से भिलाई, कुम्हारी, उरला, टेड़ेसरा के हजारों श्रमिक शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे थे, उस आंदोलन को कमजोर करने उद्योगपतियों ने 28 सितम्बर 1991 की रात जब वह सोये हुए थे उन्हें गोली मारकर हत्या की गई।

उन्होंने कहा कि सिम्पलेक्स के मालिक उद्योगपति मूलचंद शाह सहित 9 लोगों को सीबीआई द्वारा आरोपी बनाया गया था, सेशन कोर्ट दुर्ग द्वारा गोली मारने वाले पल्टन मल्लाह को फांसी तथा बाकी पांच आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा दी गई, उक्त प्रकरण में उच्च न्यायालय में अपीलें पेश की गई, न्यायालय द्वारा मात्र एक आरोपी अर्थात गोली मारने वाले पल्टन मल्लाह को आजीवन कारावास की सजा दी गई बाकी सभी आरोपियों को बरी कर दिया गया था। 

 

 

सीबीआई ने शराब कंपनी के मालिक कैलाशपति केडिया को आरोपी नहीं बनाया था, जबकि नियोगी ने अपने ऑडियो कैसेट में हत्या की साजिश में केडिया व मूलचंद शाह का नाम रिकार्ड किए थे, जो कैसेट न्यायालय में पेश हो चुकी हैं, के बावजूद केडिया को आरोपी नहीं बनाया गया। वह आरोपी खुलेआम विदेश में रह रहा हैं। उन्होंने बताया कि उक्त प्रकरण की दोबारा जांच कराने राष्ट्रपति से निवेदन किए थे। महामहिम ने छत्तीसगढ़ सरकार के मुख्य सचिव को समुचित कार्यवाही हेतु पत्र भी भेजा गया, किंतु छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा जांच नहीं कराई जा रही है।

बागड़े ने बताया कि लोकसभा चुनाव में देश के मेहनतकशों ने मोदी सरकार को संदेश दिया है कि कारपोरेट घरानों के हितों के लिए किया गया श्रम कानूनों में संशोधन वापस लिया जाना चाहिए। ईडी, सीबीआई की मनमानी के खिलाफ आम जनता ने संदेश दिया हैं। इलेक्ट्राल बांड के नाम पर कारपोरेट घरानों से ली गई घूस के खिलाफ न्यायपालिका को न्याय करना होगा पूरे देश में एक चुनाव की बात इसलिए बोला जा रहा है ताकि पूरे पांच वर्ष आम जनता के पास जाने की जरूरत ना पड़े। 

वंदना मेश्राम ने कहा कि समर्थन मूल्य गारंटी का कानून अभी तक नहीं बनाया गया, डॉ. बाबा साहेब आम्बेडकर द्वारा बनाए गए संविधान को बदलने की कोशिशें जारी है, उसे बचाने संघर्ष की जरूरत बताई है। मेहनतकशों को अधिकार पाने ट्रेड यूनियन अधिनियम 1926 बनाया गया था, उसे भी उद्योगपतियों के पक्ष में संशोधित किया गया है। जाति-धर्म के नाम पर हिंसा फैलाई जा रही है। एससी, एसटी, ओबीसी का आरक्षण बचाने निजीकरण को रोकने की जरूरत गिनाई हैं। 

 

 

बागड़े का कहना है कि सिम्पलेक्स सहित 12 इंजीनियरिंग व कुम्हारी डिस्टलरी के 1152 श्रमिकों के प्रकरण सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है, भिलाई केडिया डिस्टलरी की नीलामी के पूर्व भिलाई डिस्टलरी की प्रापर्टी बायलर, टंकियां, मशीनें चोरी छुपे कुम्हारी डिस्टलरी में ले जाई गई।

इंजीनियरिंग तथा केमिकल कंपनियों के प्रकरण सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन बताया। उन्होंने कहा कि शासन (इंदौर परिसमापक) द्वारा जप्ति कर नीलामी करके मजदूरों की दावा राशि भुगतान लंबित है।

जामुल के नेताओं ने बताया कि एसीसी जामुल सीमेंट भिलाई कम्पनी में सुरक्षा के उपकरण की अनदेखी के कारण श्रमिक आबिद मोहम्मद एक अगस्त को बिजली करंट से दुर्घटना का शिकार हुआ था जिससे उनकी घटना स्थल कम्पनी में ही मृत्यु हो गई थी।

प्रगतिशील सीमेंट श्रमिक संघ के नेतृत्व में हुए मजदूर आंदोलन (काम बंद) के कारण मुआवजा का भुगतान रात 12 बजे किया गया उसके पश्चात 2 अगस्त को श्रमिक सागर तथा 6 अगस्त को श्रमिक घनश्याम तथा 8 अगस्त को श्रमिक सुदामा निर्मलकर के अलावा 12 अगस्त को श्रमिक मुकेश निर्मलकर दुर्घटना में घायल हुए हैं।

सभा में बताया गया कि कंपनी द्वारा 32 हजार से कम वेतन पाने वाले श्रमिकों को स्वास्थ्य सुविधा नहीं दी जा रही है बल्कि 50 हजार से अधिक वेतन पाने वालों को स्वास्थ्य सुविधा दी जा रही है। बिजेन्द्र तिवारी ने कहा कि रिटायर किए गए श्रमिकों को अंतिम वेतन पर ग्रेच्युटी भुगतान के बजाए मात्र बेसिक पर भुगतान किया जा रहा है, सभी श्रमिकों के लिए सीमेंट वेज बोर्ड लागू नहीं किया जा रहा है। भेदभाव किया जा रहा है, पूर्व का एग्रीमेन्ट नवम्बर 2024 में समाप्त होने वाला है, इसलिए श्रमिकों को आंदोलन के लिए चेताया है।

 

 

बहरहाल छमुमो अध्यक्ष बागड़े ने इसके अलावा राजनांदगांव, भिलाई, दुर्ग, जामुल, उरला, बिलासपुर के विभिन्न उद्योगों में कार्यरत मजदूरों से जुड़ी ढेरों समस्याओं पर बेबाकी से अपनी बात रखी।

जन संस्कृति मंच के धारदार कवि बासुकि प्रसाद उन्मत ने नियोगी पर 2022 में रची गई अपनी कविता को पढ़ा। वक्ताओं में नरोत्तम शर्मा (किसान संघ एक्टू, रायपुर), उदय भट्ट (राष्ट्रीय सचिव, पुणे-बम्बई), प्रदीप साहू, बिलासपुर, भुवन साहू, एसीसी, हेमंत साहू, अभनपुर से मजदूर साथियों एक्टिविस्ट और दूर-दूर से आए हुए नियोगी जी के मित्रों ने अपनी बात रखी?

इस सभा में खास बात यह है कि यहां सिर्फ मजदूरों किसानों की बात नहीं होती बल्कि आदिवासियों की बात, महिलाओं की बात, पत्रकारों की बात और देश की सभी समस्याओं की बारीकी से पड़ताल होती है?

नेताओं ने रैली में नारों के माध्यम से उद्घोष कर रहे थे कि शंकर गुहा नियोगी ने संघर्ष और निर्माण का सूत्र हम सबको दिया है? इस पूरे कार्यक्रम के दौरान मीडिया साथियों की अहम भूमिका रही विशेषकर सोशल मीडिया ने इसे प्रमुखता से समाचार बनाया है। लगता है सभी ने यहां से नई ऊर्जा लेकर घर वापसी की है?

अंत में मेरी मुलाकात दक्षिण कोसल को पढऩे और जानने वालों से भी होती है जो लगातार लोगों से, लोगों का और लोगों के लिए समर्पित हमारे मीडिया हाऊस को जानते हैं पहचानते हैं। बहरहाल देखते हैं श्रमिकों का यह आंदोलन कब बिन मांगों, बिना नेताओं और बिना प्रदर्शन के अधिकार सम्पन्न लोगों की लोकतांत्रिक लड़ाई में समाहित हो पाती है। 


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