मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के नाम विजयशंकर पात्रे का पत्र

उच्च न्यायालय के आदेश के बाद भी पोस्टिंग नहीं

सुशान्त कुमार

 

मैं छत्तीसगढ़ का अनुसूचित जाति वर्ग का एक आम युवा हूं। मेरे पिताजी आठवीं तक ही शिक्षा प्राप्त कर सके, बिलासपुर की सडक़ों पर रिक्शा चलाए, बड़े संघर्षों से नगर सैनिक बने, 13 साल नगर सैनिक की नौकरी किए फिर जेल विभाग में प्रहरी के पद पर चयनित हुए और मुख्य प्रहरी के पद से 2018 में रायगढ़ जेल से सेवानिवृत्त हुए।

हमारे देश में हर निम्नवर्गीय कर्मचारी और गरीब माता पिता चाहते हैं कि उनका बेटा बेटी बड़े होकर अफसर बनें। मैं अपने परिवार में पहली पीढ़ी हूं, जो उच्च शिक्षा प्राप्त किया, मेरे पिता जी भी चाहते थे कि मैं कलेक्टर बनूं। लेकिन नौकरी में मेरी कोई खास दिलचस्पी नहीं थी।

बचपन में मुझे रेडियो सुनना पसंद था। रेडियों में बड़े बड़े लोगों का इंटरव्यू सुनता था। खासकर फिल्मों से जुड़े नामी हस्तियों का। मेरा प्रारंभिक रुझान संगीत और लेखन की तरफ था। पढ़ाई के साथ साथ संगीत सीखने का थोड़ा बहुत प्रयास भी किया, अंतत: फिल्म मेकर बनने का सपना देखने लगा।

कॉलेज के दिनों में सोचता था कि पढ़ाई के बाद फिल्म मेकिंग करना है। पढ़ाई तो इसलिए कर रहा था कि एक बार आशुतोष गोवारिकर जी का इंटरव्यू सुन रहा था उसमें उन्होंने कहा था कि जो भी युवा इस तरफ आना चाहते हैं पहले अपनी पढ़ाई पूरी करें, इसलिए पढ़ाई पूरी करने में लगा रहा।

कॉलेज के बाद मैं एक बार मुम्बई भी गया, मेरा एक दोस्त वहां रहता था। बमुश्किल मैं वहां तीन दिन ही रुका और मुझे समझ आ गया कि सपने तो अपनी जगह है लेकिन मेरे जैसे आर्थिक परिदृश्य के युवा के लिए मुंबई में सर्वाइव करना ही मुश्किल है। फिर मैं लौट आया यह सोच कर कि सही वक्त आने पर जरूर करूंगा।

फिर मैं अतिथि व्याख्याता के रूप में शैक्षणिक कार्य में लग गया, सही वक्त का इंतजार करते हुए लेकिन अभी भी नौकरी के लिए मैं उतना सीरियस नहीं था। लेकिन एक दिन आया जब पिताजी सेवानिवृत्त हो गए। आर्थिक स्थिति उतनी अच्छी नहीं थी।

 

 

एक दिन पिता जी बीमार हो गए। जिला अस्पताल में दिखाया उनका ईसीजी हुआ।डॉक्टरों ने कहा कि उनको सिम्स ले जाओ, उनका रिपोर्ट डॉक्टर को कुछ ठीक नहीं लग रहा था। पिताजी को सिम्स लेकर गया, वहां भी कॉर्डियोलॉजिस्ट नहीं थे वहां के डॉक्टर ने अपोलो हॉस्पिटल ले जाने को कहा मैं पिताजी को अपोलो अस्पताल लेकर गया।

मात्र 24 घंटे ऑब्जर्वेशन में रखे फिर दवाइयाँ लिख कर छुट्टी दिए। 24 घण्टे का अस्पताल का बिल 36 हजार था। 1 महीने की दवाइयोँ का बिल 3300 था। तब मुझे एहसास हुआ कि मेरे लिए एक अच्छी नौकरी कितना जरूरी है।

नौकरी में भी अन्य नौकरियों में मेरा रुचि नहीं था। मन में कहीं छुपा हुआ लगाव बस यही था अगर नौकरी करना पड़े तो प्रोफेसर की नौकरी ही करना है और अतिथि व्याख्याता के रुप में महाविद्यालय में काम कर भी रहा था।

2019 में जब सहायक प्राध्यापक भर्ती परीक्षा का विज्ञापन आया तो मैंने सोचा कि यह मेरे लिए अंतिम अवसर है। मेरे लिए जीने मरने वाली बात थी। नौकरी मेरे लिए बहुत जरूरी था। सहायक प्राध्यापक भर्ती परीक्षा के साथ साथ सहायक वन संरक्षक का भी भर्ती विज्ञापन आया था। दो परीक्षाएं एक साथ और दोनों ही मेरे विषय वनस्पति शास्त्र से जुड़े हुए। साथ में कोरोना काल भी चल रहा था। परीक्षाओं का डेट आगे पीछे हो रहा था। कभी डेट आया कभी कैंसिल हुआ।

फिर स्थिति ऐसी थी कि एसीएफ का डेट क्लियर था सहायक प्राध्यापक का नहीं। एसीएफ की तैयारी में लगे रहे। फिर अचानक से सहायक प्राध्यापक का डेट आ गया और समय बहुत ही कम था मैं एसीएफ की तैयारी में व्यस्त था मुझे तीन दिन बाद पता चला कि सहायक प्राध्यापक भर्ती परीक्षा का डेट आ गया है। मात्र 25 दिन बचे थे। पढऩा बहुत सारा था दिन रात परीक्षा की तैयारी में लग गए लक्ष्य था कि कम से कम तीन बार रिवीजन हो जाए। जैसे तैसे तैयारी किया परीक्षा का दिन आ गया, परीक्षा हो गए।

 

 

परीक्षा ठीक ही गया था लेकिन मन में एक मलाल था कि काश दो दिन और मिल गए होते और अच्छा हो जाता। नवंबर 2020 में परीक्षा हुआ था, जनवरी 2021 में रिजल्ट आया। इंटरव्यू के लिए मेरा चयन हो चुका था। अब इंटरव्यू के लिए डेट का इंतजार करने लगे। फिर जुलाई 2021 में इंटरव्यू शुरू हुआ। 6 जुलाई 2021 को डॉक्यूमेंट का वेरिफिकेशन हुआ और दूसरे दिन 7 जुलाई 2021 को मेरा इंटरव्यू था।

सब पहली बार हो रहा था पहले दिन वेरिफिकेशन, दूसरे ही दिन इंटरव्यू, पहले ही पंक्ति में इंटरव्यू, कोई था नहीं जिससे पूछ सकें कि कैसे होता है, बाकी सबका नंबर बाद में था। यूट्यूब में थोड़ा इंटरव्यू के विषय में ज्ञान लेकर गए थे जो कि कोई काम नहीं आया। 

7 जुलाई को 2021 को मेरा इंटरव्यू हुआ और बढिय़ा हुआ। 7 जुलाई से 14 जुलाई 2021 तक इंटरव्यू चलना था। इंतजार करते रहे अंतिम परिणाम का और अंतत: 14 जुलाई 2021 के शाम को अंतिम परिणाम जारी हुआ। चयन सूची देख रहा था ऊपर से नीचे तक 98 नंबर पर मेरा नाम था।

बड़े भाई बाजू में बैठे थे उनको बताया कि मेरा सेलेक्शन हो गया है मैं सहायक प्राध्यापक बन गया हूँ। उनको पहले भरोसा नहीं था कि मैं चयनित हो सकता हूं लेकिन जब उनको बताया तो बहुत खुश हुए और मुझे गले से लगा लिए। सबको फोन करके बताने लगे। दोस्त रिश्तेदारों का फोन भी आने लगे बधाई देने के लिए।

इसके बाद पोस्टिंग का इंतजार शुरू हो गया। 2021 में कोई पोस्टिंग ऑर्डर जारी नहीं हुआ। सब परेशान थे। अक्टूबर 2021 में धरना प्रदर्शन भी हुआ। मॉर्च 2022 में वनस्पति शास्त्र का पहला पोस्टिंग ऑर्डर जारी हुआ लेकिन उसमें मेरा नाम नहीं था। फिर दूसरा और तीसरा लिस्ट भी जारी होता गया उसमें भी मेरा नाम नहीं था साथ में अन्य 15 लोगों का नाम नहीं था।

पीएससी से चयनित होने के बाद एक अंधकार युग शुरू होगा इसका अंदाजा नहीं था।पोस्टिंग लिस्ट में नाम नहीं आने पर मंत्रालय उच्च शिक्षा विभाग गए लेकिन वहाँ भी कोई जानकारी नहीं मिली कि क्यों पोस्टिंग ऑर्डर में नाम नहीं है।

फिर एक साथी ने बताया कि कोर्ट में याचिका लगी है डब्ल्यूपीएस/3606/2021 जिसके कारण पोस्टिंग रुकी हुई है। वो लोग पहले ही उस केस में हस्तक्षेप कर चुके थे। मैं और अन्य तीन साथी भी जून 2022 में उच्च न्यायालय छत्तीसगढ़ के शरण में गए।

 

 

मेरा याचिका क्रमांक डब्ल्यूपीएस/3898/2022 था। सब केस को एक साथ क्लब कर दिया गया। तब से ऐसा एक भी सुनवाई का दिन नहीं बीता जिस दिन हम कोर्ट में उपस्थित नहीं हुए हों। वहाँ जाने से बहुत कुछ देखने और समझने को मिला। राज्य या विभाग को प्रतिनिधित्व करने वाला वकील बार बार बदलता था और बिना किसी तैयारी के ही कोर्ट में उपस्थित हो जाते थे।

जिसके कारण अनावश्यक ही सुनवाई में विलंब होता जाता। कोर्ट जो काम करने के लिए कहता उसे कभी भी टाईम पर पूरा नहीं किया जाता और टाईम बढ़ाने के लिए कोर्ट से निवेदन किया जाता। दो मिनट में जो केस निपट सकता है उसे दो ढाई साल लग गए।

केस यह था कि वनस्पति शास्त्र विषय में कृषि विज्ञान वाले लोग फार्म भर दिए थे। ऑनलाइन फार्म भरने के समय तो कुछ भी जानकारी भर कर परीक्षा में बैठ सकते हैं लेकिन जब इंटरव्यू के पहले डॉक्यूमेंट का वेरिफिकेशन होता है तब पता चलता है कि डॉक्यूमेंट सही है या नहीं हैं।

इस तरह गलत जानकारी भरकर कुछ लोग परीक्षा में बैठ गए इंटरव्यू के लिए भी सेलेक्ट हो गए लेकिन जब डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन हुआ तो रिजेक्ट हुए। तब फिर वे न्यायालय के शरण मे चले गए और न्यायलय तो स्टे ऑर्डर तो दे ही देते हैं। जितने कैंडिडेट थे उतने सीट कैटेगरी के हिसाब से रोकने को कह दिया जिसके कारण हम 15 लोगों की पोस्टिंग ऑर्डर रुक गई थी।

लेकिन इसकी जानकारी उच्च शिक्षा विभाग को देना चाहिए था कि क्योँ पोस्टिंग आर्डर रोकी गई है। कैंडिडेट अंधकार में रहता है अगर सही समय पर पता चलता तो हम भी न्यायालय में सही समय पर पहुँच सकते थे तथा केस की सुनवाई जल्दी हो सकती थी।

लगभग ढाई साल बाद  9 अक्टूबर 2023 को कोर्ट का निर्णय आया । जो लोग पीएससी से रिजेक्ट हुए थे उन्हें रिजेक्ट ही माना गया और चयनित लोगों को 1 महीने के अंदर पदस्थापना आदेश जारी करने का आदेश सचिव उच्च शिक्षा विभाग को दिया गया।

हम लोग कोर्ट का आदेश लेकर उच्च शिक्षा विभाग गए। इस समय राज्य में आचार संहिता चल रही थी। संयुक्त सचिव  उच्च शिक्षा विभाग हिना अनिमेष नेताम जी ने कहा कि अभी आचार संहिता चल रही है अभी पोस्टिंग ऑर्डर जारी नहीं कर सकते।हम लोग आचार संहिता खत्म होने का इंतजार करने लगे।

 

 

आचार संहिता खत्म हुआ, नया जनादेश मिला छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार बनी। महोदय आपको मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी मिली। उच्च शिक्षा विभाग की जिम्मेदारी मा. बृजमोहन अग्रवाल जी को मिला। जनवरी 2024 में आर प्रसन्ना उच्च शिक्षा विभाग के सचिव बनाये गए। हम सभी चयनित लोग कोर्ट का आदेश लेकर सचिव जी से मिलने पहुँचे निवेदन किया।

जनवरी बीता फरवरी बीता पोस्टिंग का कोई अता पता नहीं दूध का जला छांछ को भी फूंककर पीता है। कहीं फिर पोस्टिंग न रुक जाए सोच कर सचिव उच्च शिक्षा विभाग को समय रहते सचेत करने के लिए 27 फरवरी 2024 को पहला आवेदन लिखा...।

विषय था डब्ल्यूपीएस/6358/2022, यह याचिका सहायक प्राध्यापक भर्ती परीक्षा 2019 में आरक्षण अधिनियन 1994 को लागू करने के लिए लगाया गया है। मुझे इस याचिका से कोई खतरा नहीं है लेकिन मैंने कहा न कि दूध का जला छांछ को भी फूंक कर पीता है।

1 जून 2023 को वनस्पति शास्त्र विषय में एक पदस्थापना आदेश जारी हुआ था। इस आदेश में सिर्फ एक अभ्यर्थी का नाम था निहारिका सोरी जो कि अनुसूचित जनजाति वर्ग से प्रतीक्षा सूची में थी। अभी मुख्य चयन सूची के लोगों को पोस्टिंग मिलना बाकी था और प्रतीक्षा सूची वाले को पोस्टिंग मिल गया था।

याचिका डब्ल्यूपीएस/6358/2022 के अनुसार यदि आरक्षण अधिनियम 1994 लागू होगा तो अनुसूचित जनजाति वर्ग में 12 प्रतिशत आरक्षण कम हो जाएगा। लेकिन उच्च शिक्षा विभाग में पोस्टिंग की उल्टी गंगा बह रही थी प्रतीक्षा सूची वाले को पोस्टिंग दिया जा रहा था। 

इस खतरे की घंटी को भांपते हुए मैं 27 फरवरी 2024, 6 मार्च 2024 और 7 मार्च 2024 को सचिव उच्च शिक्षा विभाग को अवगत कराया कि याचिका डब्ल्यूपीएस/6358/2022 में अनुसूचित जनजाति से सीट रोकी जानी है त्रुटि वश अनुसूचित जाति से मेरी यानि कि विजय शंकर पात्रे की पोस्टिंग नहीं रोका जाए।

11 मार्च 2024 को पोस्टिंग आर्डर जारी हुआ, अनुसूचित जनजाति वर्ग के बचे हुए सभी अभ्यर्थियों को पोस्टिंग ऑर्डर जारी कर दिया गया और अनुसूचित जाति से मेरी पोस्टिंग रोक दिया गया। तब समझ आया कि उच्च शिक्षा विभाग में जो उल्टी गंगा बह रही थी वह अनजाने में नहीं बल्कि जबुझकर बहाई जा रही थी। 

इसकी मास्टरमाइंड विधि की सहायक प्राध्यापक झरना चौबे थी। प्रतिनियुक्ति में बैठी झरना चौबे विभाग को गुमराह करते हुए पहले ही प्रतीक्षा सूची की अभ्यर्थी को पोस्टिंग ऑर्डर दिला चुकी थीं 1 जून 2023 को। 

 

 

जब मैं झरना चौबे से मिलकर इस विषय में अवगत कराया तो वो मेरे तरफ इस तरह देखीं जैसे पकड़ी गई हों और फिर कहा कि तुम्हें कैसे पता...? मैं तो 1 जून 2023 के पोस्टिंग ऑर्डर के आधार पर संदेह व्यक्त करते हुए कहा था। लेकिन ये सारा खेल तो पूरी साजिश के साथ चल रहा था। तीन बार सप्रमाण आवेदन देने के बाद भी त्रुटि सुधार नहीं किये और दोषपूर्ण नियुक्ति आदेश 11 मॉर्च 2024 को जारी कर दिए। फिर आचार संहिता लग गया।

आचार संहिता के बाद पुन: 30 मई 2024 को आवेदन दिया कि त्रुटि सुधार कर मेरा पोस्टिंग ऑर्डर जारी किया जाए। मैं उच्च शिक्षा मंत्री मा. श्री बृजमोहन अग्रवाल जी के पास भी गया उनका आदेश जून 2024 के पहले हफ्ते में ही विभाग को मिल गए थे कि मेरी पोस्टिंग ऑर्डर जारी किया जाए। 18 जून 2024 को उच्च शिक्षा मंत्री जी इस्तीफा दे दिये उनके साथ ही मेरा पोस्टिंग ऑर्डर ठंडे बस्ते में चला गया। झरना चौबे मुझे ब्लॉक लिस्ट में पहले ही डाल चुकी है सचिव आर प्रसन्ना को पहले ही बरगला चुकी है।

इसलिए आर प्रसन्ना सत्य को अनदेखा कर रहे हैं, नही तो तीन बार आवेदन देने के बाद भी एक आईएएस का आँख न खुले विश्वास नहीं होता। स्तरहीन काम की उम्मीद तो किसी आईएएस से नहीं होता। मैंने आर प्रसन्ना के विषय में बहुत तारीफ सुना था। जब वे विभाग के सचिव बने तो हमें खुशी थी कि अब अच्छा काम होगा लेकिन इस विषय में आर प्रसन्ना बहुत ही घटिया काम किए...।

झरना चौबे जैसे दुष्ट भ्रष्ट असंवैधानिक जानबूझकर कोर्ट के आदेश को मैनिपुलेट तथा अवमानना करने वाली को प्रोटेक्ट कर रहे हैं यह बहुत ही घटिया काम है...मेरा पोस्टिंग आर्डर आज तक जारी नहीं हुआ है। जानबूझकर पद का दुरुपयोग करते हुए जारी नहीं किया जा रहा है। सचिव आर प्रसन्ना को कई बार आवेदन दे चुका हूं। मुख्य सचिव श्री अमिताभ जैन जी को भी 4 और 16 जुलाई 2024 को आवेदन दे चुका हूं।

 

 

पूर्व आयुक्त उच्च शिक्षा विभाग श्रीमती शारदा वर्मा जी को भी 10 जुलाई 2024 को आवेदन दे चुका हूँ। मुख्यमंत्री जी आपके जनदर्शन कार्यक्रम में भी दो बार 27 जून 2024 और 08 अगस्त 2024 को आपके हाथों में आवेदन दिया हूं। 27 जून 2024 का आवेदन क्रमांक - 2500724008745 तथा सुरक्षा संख्या 909 है तथा 8 अगस्त 2024 आवेदन क्रमांक -2500724016532 तथा सुरक्षा संख्या 878 है। आप और कोई भी दोनों आवेदनों की स्थिति ऑनलाइन देख सकते हैं।

27 जून 2024 के आवेदन में सचिव उच्च शिक्षा विभाग के शिकायत पर आपने उन्हें ही जांच अधिकारी बना दिया। 8 अगस्त 2024 के आवेदन में आयुक्त उच्च शिक्षा विभाग को भारसाधक अधिकारी बनाया है। लेकिन आज तक समाधान नहीं हुआ।आज 28 अगस्त 2024 की ताजा खबर यह है कि अपने आर प्रसन्ना जी को सचिव उच्च शिक्षा विभाग के अतिरिक्त आयुक्त उच्च शिक्षा विभाग भी बना दिया है।पीएससी तक एक पारदर्शिता थी, पीएससी के बाद अंधकार युग है...।

आदरणीय मुख्यमंत्री जी आपका और माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी का संकल्प तो सुशासन है... लेकिन छत्तीसगढ़ में यह सब देख कर लगता है कि राज्य, आपके कंट्रोल में नहीं है अफसरशाही चल रहा है और सुशासन लापता है...। आदरणीय मुख्यमंत्री जी आपसे निवेदन है कि मेरी पोस्टिंग ऑर्डर जारी करवा दीजिए...। 

उच्च न्यायालय का आदेश है। उच्च शिक्षा मंत्री जी का भी आदेश है। सचिव को बस आदेश ही जारी करना है। 

 

आपका स्नेहाकांक्षी

विजय शंकर पात्रे
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)


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