राजेन्द्र यादव का जीवन परिचय और रचना संसार

मुंशी प्रेमचंद द्वारा स्थापित ‘हंस’ का 25 वर्षों से अधिक संपादन

सुशान्त कुमार

 

राजेंद्र यादव की कृतियों पर कई शोधग्रंथ लिखे जा चुके हैं। वहीं, बहुत से शोधार्थियों ने उनके साहित्य पर पीएचडी की डिग्री प्राप्त की हैं। इसके साथ ही हिंदी विषय से परीक्षा देने वाले स्टूडेंट्स के लिए भी राजेंद्र यादव का जीवन परिचय और उनकी रचनाओं का अध्ययन करना आवश्यक हो जाता है। आइए अब हम सुप्रसिद्ध साहित्यकार राजेंद्र यादव का जीवन परिचय और उनकी साहित्यिक रचनाओं के बारे में विस्तार से जानते हैं।

नाम     राजेंद्र यादव (Rajendra Yadav)
जन्म     28 अगस्त, 1929 
जन्म स्थान     आगरा, उत्तर प्रदेश 
पिता का नाम     मिस्त्रीलाल यादव
माता का नाम     ताराबाई 
पत्नी का नाम     मन्नू भंडारी 
संतान     रचना 
शिक्षा     एम.ए. (हिंदी) आगरा विश्वविद्यालय
पेशा     लेखक, साहित्यकार, संपादक 
भाषा     हिंदी 
साहित्यकाल     आधुनिक काल 
विधाएँ     उपन्यास, कहानी, कविता, आलोचना, आत्मकथा, संपादन 
संपादन     ‘हंस’ 
पुरस्कार एवं सम्मान     “शलाका सम्मान” 
निधन     28 अक्टूबर, 2013 

आगरा में हुआ था जन्म

प्रख्यात साहित्यकार और संपादक राजेंद्र यादव का जन्म 28 अगस्त 1929 को उत्तर प्रदेश के आगरा शहर में हुआ था। उनके पिता का नाम ‘मिस्त्रीलाल यादव’ और माता का नाम ‘ताराबाई’ था। बता दें कि वे अपने तीन भाइयों और छ: बहनों में सबसे बड़े थे। 

हिंदी विषय में किया एमए

बताया जाता है कि राजेंद्र यादव को प्राथमिक शिक्षा उर्दू में दी गई थी। इसके बाद उन्होंने मैट्रिक की पढ़ाई झाँसी में की। फिर उनकी आगे की पढ़ाई आगरा में हुई यहाँ रहकर उन्होंने हिंदी विषय लेकर बीए किया और हिंदी विषय से ही एमए की डिग्री प्रथम श्रेणी से हासिल की। बता दें कि शिक्षा के दौरान ही उनका साहित्य के क्षेत्र में पर्दापण हो चुका था। उन्होंने विद्यालयी शिक्षा के दौरान ही ‘दास्तान-ए-अमीर हमजा’ नामक उपन्यास पढ़ लिया था। वहीं कवि ‘रामधारी दिनकर’ की कविताओं ने उनके किशोर मन पर अमित छाप छोड़ी थी।  

विस्तृत रहा कार्यक्षेत्र 

राजेंद्र यादव का कार्यक्षेत्र बहुत ज्यादा विस्तृत रहा। उन्होंने कभी आजीविका हेतु कलकत्ता में रहते हुए ‘ज्ञानोदय’ पत्रिका का संपादन किया तो कभी हिंदी अध्यापक के रूप में कार्य किया। लेकिन किसी भी कार्य में अधिक समय तक नहीं रह सके। इसके बाद वें कलकत्ता से दिल्ली आ गए और यही उनका स्थायी निवास स्थान बन गया। 

वैवाहिक जीवन 

राजेंद्र यादव की ‘मन्नू भंडारी’ से पहली मुलाकात कलकत्ता के बालीगंज में हुई थी। दोनों लेखक होने के नाते एक-दूसरे से परोक्ष रूप से परिचित थे। वहीं पहले उनकी पुस्तकों, लेखकों और साहित्यिक विषयों पर चर्चा होतीं थी। जो बाद में समय के साथ-साथ व्यक्तिगत चर्चाओं में बदलने लगी। इस तरह उनका 22 नवंबर 1959 को विवाह हुआ जिसके बाद उन्हें एक पुत्री ‘रचना’ की प्राप्ति हुई। 

राजेंद्र यादव की रचनाएँ

राजेंद्र यादव ने आधुनिक हिंदी साहित्य की विधाओं में अपनी लेखनी चलाई थी। इसके साथ ही उन्होंने ‘कमलेश्वर’ और ‘मोहन राकेश’ के साथ ‘नई कहानी आंदोलन’ की शुरुआत की थी। वे एक प्रख्यात साहित्यकार होने के साथ साथ एक प्रतिष्ठित संपादक भी थे जिन्होंने ‘हंस’ कथा मासिक पत्रिका का लगभग 25 वर्षों तक संपादन कार्य किया था। यहाँ राजेंद्र यादव का जीवन परिचय  के साथ ही उनकी संपूर्ण रचनाओं के बारे में विस्तार से बताया गया है, जो कि इस प्रकार हैं:-

कहानी-संग्रह

देवताओं की मूर्तियाँ 
खेल-खिलौने 
जहाँ लक्ष्मी कैद है 
अभिमन्यु की आत्महत्या 
छोटे-छोटे ताजमहल 
किनारे से किनारे तक 
टूटना 
ढोल और अपने पार 
चौखटे तोड़ते त्रिकोण 
वहाँ तक पहुँचने की दौड़ 
अनदेखे अनजाने पुल 
हासिल और अन्य कहानियाँ 

श्रेष्ठ कहानियाँ/प्रतिनिधि कहानियाँ/उपन्यास 

सारा आकाश 
उखड़े हुए लोग
शह और मात
एक इंच मुस्कान (मन्नू भंडारी के साथ)
मंत्र-विद्ध और कुलटा

कविता

आवाज तेरी है

आत्मकथा

मुड़-मुडक़े देखता हूँ
व्यक्ति-चित्र
औरों के बहाने

समीक्षा-निबंध-विमर्श

कहानी : स्वरूप और संवेदना 
प्रेमचंद की विरासत 
अठारह उपन्यास 
काँटे की बात (बारह खंड)
कहानी: अनुभव और अभिव्यक्ति 
उपन्यास : स्वरूप और संवेदना

संपादन

हंस 
वे देवता नहीं हैं 
एक दुनिया: समांतर 
कथा जगत की बागी मुस्लिम औरतें 
वक़्त है एक ब्रेक का 
औरत: उत्तरकथा 
पितृसत्ता के नए रूप 
पच्चीस बरस: पच्चीस कहानियाँ 
मुबारक पहला कदम
वह सुबह कभी तो आएगी 

अनुवाद

हंसनी – (आंतोन चेखव का नाटक) 
चेरी का बगीचा – (आंतोन चेखव का नाटक) 
तीन बहनें – (आंतोन चेखव का नाटक)
अजनबी – अल्बैर कामू
हमारे युग का एक नायक – लर्मंतोव 
एक मछुआ: एक मोती – स्टाइनबैक

86 वर्ष की आयु में हुआ निधन

राजेंद्र यादव ने कई दशकों हिंदी साहित्य जगत में अनुपम साहित्य का सृजन किया था। किंतु 28 अक्टूबर 2013 को 86 वर्ष की आयु में उन्होंने दुनिया से अलविदा कह दिया। लेकिन आज भी वे अपनी लोकप्रिय कृतियों के लिए जाने जाते हैं। हिंदी साहित्य के क्षेत्र में अपना विशेष योगदान देने के लिए उन्हें ‘शलाका पुरस्कार’ से सम्मानित किया जा चुका हैं। 


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