अर्थ तंत्र बनाम स्वतंत्रता

सत्ता हस्तांतरण से उत्पन्न स्वतंत्रता को तोड़ या छोटा कर दिया जाए

संजय अलंग

 

विश्व इतिहास के सभी काल खण्ड़ों में विश्व का जो भी भाग, राष्ट्र, समुदाय, नस्ल या जाति तत्समय विश्व की सर्वोच्च ताकत होती है वह विश्व की उस समय की सर्वाधिक श्रेष्ठ और उपयोगी माने जाने वाली वस्तुओं और सामग्री पर अपना नियंत्रण चाहती है।

स्वभाविक रूप से वह वस्तु सर्वाधिक माँग और लाभ वाली महंगी वस्तु भी होती है। अतः सत्ता या शक्ति यह चाहती है कि, उस सर्वाधिक उपयोगी और महंगी वस्तु पर उसका नियंत्रण रहे। इस कारण से वह शक्ति उसके उत्पादन और व्यापार पर नियंत्रण चाहती है। पिछली कई शताब्दियों से ऐसी शक्ति पश्चिमी जगत ही रही है।

पिछली शताब्दी के प्रथम उत्तरार्ध तक ऐसी सर्वाधिक माँग वाली उपयोगी और सर्वाधिक महंगी वस्तु कालीमिर्च और अधिक विस्तारित रूप में मसाला थी और उसका सर्वाधिक उत्पादन का क्षेत्र दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया ही था।

बाद में इसमें अफीम भी जुड़ी। अतः इस क्षेत्र पर नियंत्रण की चाह पश्चिम जगत की साम्राज्यवादी आकाँक्षा का चरम था। इसलिए यह कालीमिर्च और मसाले तथा बाद में अफीम साम्राज्यवादियों के यहाँ रूके रहने का सबसे बड़ा कारण दिखता है।

जब धीर-धीरे कालीमिर्च, मसालों और अफीम की विश्व व्यापार की सर्वोच्च स्थिति को पेट्रोल ने हथिया लिया और उसके उत्पादन के क्षेत्र पश्चिम एशिया में पाए गए, तो भारत स्थित साम्राज्यवादी शक्ति की रूचि भारत से हट कर अरब क्षेत्र आदि में आधिक जागृत हो गई और अभी तक है।

अतः यह तथ्य भी उभरता है कि, विश्व व्यापार में मात्र कालीमिर्च, मसालों और अफीम के सर्वोच्च्य व्यापारिक पण्य के पद से च्युत हो जाने के कारण साम्राज्यवादी स्वार्थ सत्ता हस्ताँतरण के लिए उद्दत हो गया; जो यह भी चाहता था कि, अब कालीमिर्च, मसालों और अफीम को पदच्युत करने वाले पण्य, पेट्रोल, के उत्पादन क्षेत्र के ठीक बगल में इण्ड़िया अर्थात भारत जैसा विशालतम देश नहीं उदित हो, जो उसकी ही सत्ता और व्यापारिक हित को चुनौती दे सके।

इस कारण सत्ता हस्तांतरण से उत्पन्न स्वतंत्रता को राष्ट्र को तोड़ या छोटा कर के ही दिया जाए। अतएव स्पष्ट है कि, भारत की स्वतंत्रता कालीमिर्च, मसाले और अफीम के विश्व व्यापार के सर्वोच्च पद से हट जाने की स्वभाविक परिणिति थी और उसका विभाजन आगे सामने आए विश्व व्यापार के नए तत्व पेट्रोल के उत्पादन क्षेत्र के बगल में बड़ा और सशक्त राष्ट्र नहीं बनने देने की कूटनीति।

इसमें भी साम्राज्यवादी ही सफल रहे। कालीमिर्च, मसाले और अफीम अत्यधिक महत्वपूर्ण थे। कालीमिर्च तो सर्वोच्चय स्थिति पर थी ही।

पर उदाहरण हेतु मात्र उन्नीसवीं शताब्दी के केवल अफीम व्यापार को उल्लेखित करते हुए विश्व अर्थव्यवस्था पर दृष्टि ड़ालें तो परिदृष्य यह उभरता है कि, अंग्रेज उपनिवेशों, विशेषकार भारत, की लूट से उत्पन्न धन से अमेरिका से सूती वस्त्र खरीदते, अमेरिकी इस व्यापार से प्राप्त धन से चीन से चाय खरीदते और फिर चीनी इसी धन से पुनः भारत की अफीम अंग्रेजों से खरीदते।

मात्र बंगाल के भारतियों को अफीम बोने को मजबूर कर और उस के व्यापार पर एकाधिकार कर अंग्रेजो ने एशिया के साथ हुए व्यापार घाटे को व्यापार लाभ में बदल दिया।

अपनी पूरी नौसेना का व्यय भार सम्हाला, ब्रिटेन की आर्थिक स्थिति मजबूत की, हिन्द महासागर में अपना व्यापार प्रधान कर दिया, युद्धों के समस्त व्यय निकाले आदि। उन्नीसवीं शताब्दी में सिंगापुर का अधिकाँश राजस्व अफीम प्रबन्धन से ही आया।

चीन के राष्ट्रवाद के उदय में इस भावना का बहुत हाथ रहा कि, पश्चिम ने साजिश के तहत चीन को बर्बाद करने को अफीम को हथियार की तरह उपयोग किया।

महारानी विक्टोरिया का काल उपनिवेशवादी लूट से सशक्त हुआ काल था।


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