एग्जिट पोल: एक विश्लेषण
मनोवैज्ञानिक युद्ध का एक औजार
प्रमोद जैनकभी चुनाव की संभावनाओं का आधार बताने वाला एग्जिट पोल अब चुनाव का एक औजार बन गया है! मनोवैज्ञानिक युद्ध का एक औजार. एग्जिट पोल के आंकड़े कुछ इस तरह ही रहेंगे क्योंकि दरअसल जिन पोलर्स ने यह पोल किए हैं, उनके ऊपर क्रेडिट एबिलिटी का एक बड़ा संकट था क्योंकि उन्होंने जो ओपिनियन पोल किया था, यदि आंकड़ा उसका आसपास नहीं दिए जाते तो लोगों का ओपिनियन पोल पर भरोसा उठ जाता जो हमेशा नॉरेटिव बनाने के लिए भारतीय जनता पार्टी का एक औजार है! और और जो लोग फंडिंग करते हैं उनके लिए तो काम करना ही पड़ता है!

अब आप क्रोनोलॉजी समझिए यह सिर्फ यूं ही नहीं किया गया बाकायदा इसके रूप रेखा बनाई गई पहले प्रशांत किशोर जैसे लोगों को एक्टिव किया गया, यहां तक की जिन लोगों ने ओपिनियन पोल किया था उन लोगों ने भी कोर्स करेक्शन के नाम पर लगातार सोशल मीडिया पर आकर और अखबारों के माध्यम से इस नॉरेटिव को सेट करने की कोशिश की जो एग्जिट पोल के प्रोजेक्शन में दिखाया गया!
पहले से ही यह सेट करने की कोशिश की दक्षिण में सीट बढ़ रही है उड़ीसा में बीजेपी अच्छा करेगी और बंगाल में बीजेपी अच्छा करेगी! पर क्यों कर रही है इसका कोई जस्टिफिकेशन नहीं है?
अब आप कुछ विसंगतियां देखिए आज तक के ओपिनियन पोल में तमिलनाडु में कांग्रेस को 12 से 14 सीट बताई गई है जबकि कांग्रेस कुल 9 सीटों पर लड़ी, कर्नाटक में 33 सीटों का प्रोजक्शन बताया गया, कोई आधार नहीं केरल में दो से चार सीट बता रहे हैं.
जबकि वहां तिरुवंतपुरम और त्रिचुर को लेकर कहीं भारतीय जनता पार्टी फील्ड में भी नहीं है, तमिलनाडु में चार सीट बताई जा रही है वहा अन्नामलाई को छोड़कर किसी की चर्चा तक नहीं है! प्रज्वल रवना कैसे का कोई फर्क कर्नाटक पर पड़ता हुआ दिखाई नहीं दिया है!
कमोबेश सारे ओपिनियन पोल एक ही रेंज में दिखा ये जा रहे हैं एक ही वोट प्रतिशत बता रहे हैं जो सामान्य रूप से असामान्य बात है!
वहीं भाजपा 300 और एनडीए 350 - 375, आंध्र प्रदेश में 42% वोट पाने के बावजूद वाईएसआर रेड्डी 2 से 4 सीट प्राप्त करते हुए नजर आ रहे हैं जबकि राजस्थान में कांग्रेस का 38% वोट शेयर बताया है वहां भी इतनी ही सीट है कांग्रेस को दी जा रही है!
याने किस प्रतिशत पर कितना कन्वर्जन आफ सीट है अस्पष्ट है! वोट शेयर का जितना अंतर दोनों गठबंधन के बीच बताया जा रहा है वह तो इस बात का परिचय है,
भाजपा के पक्ष में सुनामी होनी चाहिए लेकिन फिर भी यदि डेढ़ सौ 200 तक विपक्ष को पहुंचता हुआ बताया जा रहा है तो यह समझ के परे है!
ज़ी टीवी के प्रोजेक्शन में हरियाणा की 10 सीटों में से भारतीय जनता पार्टी को 15 - 16 सीट जाती हुई दिखाई दी, हिमाचल के चार सीट में से 4 से 6 ऐसे भी टीवी क्लिप अभी मौजूद है, एक चैनल ने लोकतांत्रिक जन शक्ति पार्टी को 6 सीट दे दिए जबकि वह लड़े पांच में ही! झारखंड में एक चैनल कम्युनिस्ट माला पार्टी की तीन सीट बता रहा है जबकि वह लड़ी ही एक् सीट पर है. स्पष्ट लगता है सब प्रायोजित है!
जिन सीटों पर स्विंग स्टेट मानी जा रही थी वहां भी बड़ी चतुराई से काम लिया गया है राजस्थान, महाराष्ट्र हरियाणा जैसे राज्यों में जहां सर उठाकर स्विंग स्पष्ट नजर आ रही थी, वहां कांग्रेस को मिलने वाली सीटों को कंजरवेटिव विश्लेषण किया गया है!
जबकि कर्नाटक और बंगाल जहां हालात भाजपा के इतना अनुकूल नहीं है वहा बीजेपी को भारी सीट दी गई है, पंजाब जहां गांव में भाजपा को घुसने न दिए जाने के बोर्ड लगा रखे हैं, वहां भी दो-तीन सीट दिया जाना गले नहीं उतरता है! बिहार में नीतीश को तेजस्वी से ज्यादा सीट दी गई है, वहा डेंट को कंजरवेटिव किया गया है!
तेलंगाना में भारतीय जनता पार्टी की टेली बढ़ाई गई है, वहां यह बताया जा रहा है बीआरएस खत्म हो रही है, पर सारा वोट क्या बीजेपी की तरफ शिफ्ट होगा वहां भी अजीब तर्क दिया जा रहा है!
जबकि उड़ीसा में यदि बीजू जनता दल का ग्राफ गिरता है तो फिर भाजपा विरोध का वोट कांग्रेस की तरफ शिफ्ट ना होकर वह भी भारतीय जनता पार्टी की तरफ हो रहा है यह तर्क भी समझ के परे है, तेलंगाना में अलग उड़ीसा में अलग स्टैंडर्ड!
एक बात और भारत में एग्जिट पोल का इतिहास शत प्रतिशत सफलता वाला नहीं रहा है अधिकांश एग्जिट पोल गलत साबित होते हैं अभी पिछले चुनाव में मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ को लेकर अधिकांश एग्जिट पोल गलत साबित हुए थे!
पिछले बंगाल चुनाव में लोग भारतीय जनता पार्टी की सरकार बना रहे थे लेकिन हुआ क्या था? सन 2004 में भी एग्जिट पोल पूरी तरह फ्लॉप हुए थे!
लेकिन इसका यह मतलब भी नहीं हम पूरी तरह एग्जिट पोल को खारिज कर दें, कुछ इनका आधार रहा होगा लेकिन इतना तय है विश्लेषण करते समय एक टारगेट को ध्यान में रखा गया है! क्योंकि एग्जिट पोल अर्ध सत्य प्रस्तुत करते हुए लग रहे हैं!
एक सवाल और है की एग्जिट पोल में ऐसी जरूरत क्यों पड़ी? क्योंकि अब ना तो परसेप्शन बनाने की जरूरत है, ना चुनाव होना बाकी है लेकिन अभी काउंटिंग बाकी है और कई बार खेल काउंटिंग में होता है! बिहार चुनाव में बड़े करीब से लोगों ने देखा है!
यह सारी कवायदे इसीलिए है, ताकि विपक्ष के कार्यकर्ताओं का मनोबल तोड़ा जा सके, और गणना वाले दिन फिर बहुत करीब की सीटों पर कुछ खेल हो सके!
एग्जिट पोल बिल्कुल मेरे लिए ऐसा ही है जैसा मैंने खुद के अनुमान शेयर किए हैं, मतलब किसी व्यक्ति विशेष के अनुमान मुझे यह एग्जैक्ट पोल नजर नहीं आता आप क्या सोचते हैं?
4 जून तक तो हम परिणाम की प्रतीक्षा कर ही सकते हैं!
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