क्या इस चुनाव भाजपा विजयी रथ का पहिया रूक जाएगा?
क्या यह लोकतंत्र और संविधान के लिए जरूरी है?
तुहिन देबमोदी के अमृतकाल में कोरोना काल में दर दर की ठोकर खाते प्रदेश के मजदूर, गंगा में बहती लाशें, ऑक्सिजन सिलिंडर के अभाव में मरते बच्चों और भाजपा शासन काल के दौरान लड़ाकू मजदूर नेता शंकर गुहा नियोगी, दरसराम साहू, रमेश परिदा की हत्या की घटनाओं को भी भूलाया नहीं जा सकता!

21 अप्रैल को प्रधानमंत्री और भाजपा के सबसे बड़े स्टार प्रचारक नरेंद्र मोदी द्वारा राजस्थान के बांसवाड़ा में चुनावी सभा में खुल्लम खुल्ला मुसलमानों को घुसपैठिया और देश का दुश्मन नंबर एक करार देते हुए मुस्लिम समुदाय और कांग्रेस पर हल्ला बोल भाषण को इस लोकसभा चुनाव का सबसे बड़ा हेट स्पीच (घृणा भाषण) कहा जा रहा है। नरेंद्र मोदी के इस भाषण पर पूरे देश में खलबली मची है (सिवाय चुनाव आयोग के)। यह माना जा रहा है कि लोकसभा चुनाव के प्रथम चरण में भाजपा की कमजोर स्थिति को देखते हुए अपने मार्गदर्शक आरएसएस के मार्गदर्शन में मोदीजी ने नग्न रूप से हिंदू ध्रुवीकरण का पांसा फेंका है।
विदित हो कि नफरती भाषण के जरिए जनता को भड़काने में दुनिया के सबसे बड़े और सबसे पुराने फासीवादी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के राजनैतिक उपकरण भारतीय जनता पार्टी का कोई मुकाबला नहीं है। अमरीका के वॉशिंगटन डी सी की एक शोध संस्थान ने 2023 में पूरे देश में धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ घृणा भड़कानेवाले भाषण का ब्यौरा देकर बताया है कि कुल 668 पंजीकृत नफरती भाषण की घटनाएं घटी हैं। और कुल घटनाओं का 75 प्रतिशत, भाजपा शासित राज्यों में केंद्र शासित प्रदेश एवम दिल्ली के हैं। अगर इनके राजनीतिक निहितार्थ को देखें तो महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, उत्तराखंड, कर्नाटक सूची की प्रथम पंक्ति में है।
और साल के प्रथम अर्ध की तुलना में नफरती भाषण के मामले साल के दूसरे छह महीने में बढ़ गए हैं। सबसे तेज घृणा भड़कानेवाले भाषण अगस्त से नवंबर में जब राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना के विधानसभा चुनाव हो रहे थे उस समय दिए गए। असल में देखा जाए तो आरएसएस के सरसंघचालक गुरु गोलवलकर की किताब "विचार पुंज" में हिंदुओं को ब्रिटिश साम्राज्यवाद से न लड़कर अपने दुश्मनों - मुसलमान, ईसाई और कम्युनिस्टों से लड़ने को कहा गया था। इसीलिए इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि फासिस्ट आरएसएस के मार्गदर्शन में भाजपा सहित पूरा संघ परिवार जो धन कुबेर पूंजीपति कॉरपोरेट घरानों द्वारा भारतीय जनता की लूट को सुगम बनाने और गरीब मेहनतकश जनता को तबाह करने की गारंटी सुनिश्चित करने में दिन रात मेहनत कर रहे हैं।
भारत की आम जनता, इस चौतरफा लूट के लिए जिम्मेदार देशी विदेशी कॉरपोरेट घरानों के खिलाफ उठ खड़े न हो जाएं इसीलिए गुरु गोलवलकर के विचारों के अनुसार मोदी समेत तमाम संघी मनुवादी फासिस्ट नफ़रत, विभाजन और हिंसा अभियान को देश भर में फैला रहे हैं। इसीलिए जब देश की जनता मतदान के लिए जाएं तो उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि दिल्ली की सीमाओं पर मोदी सरकार की तीन कॉरपोरेट परस्त कृषि विरोधी कानूनों के खिलाफ शांतिपूर्ण संघर्ष कर रहे 750 किसान शहीद हुए थे।
लखीमपुर खीरी में गाड़ी से कुचल कर किसानों की हत्या करवाने वाले बाहुबली भाजपा मंत्री अजय मिश्र टेनी व मंत्री पुत्र को भी नहीं भूलना चाहिए, क्योंकि इन जैसे हत्यारों, राम रहीम गुरमीत जैसे बलात्कारियों, जो अक्सर जमान/पैरोल पर रिहा होकर बीजेपी को समर्थन करने की अपील करते हैं, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ संघ (आरएसएस)/भाजपा के आधार स्तंभ हैं। और तो और यह भी नहीं भूलना चाहिए कि वह फासिस्ट संघ परिवार का राजनैतिक अंग भाजपा ही है, जो तथाकथित "धर्मसंसद" के जरिए मुसलमानों का हत्याकांड करवाने का आह्वान करने वाले आतंकवादी ढोंगी सन्यासी यति नरसिंहानंद या महात्मा गांधी की गोडसे द्वारा किए गए हत्या को जायज़ ठहराने वाले धीरेंद्र शास्त्री जैसे पाखंडियों को नफरत की आग फ़ैलाने के लिए खुला छोड़ते हैं।
दुनिया के सबसे बड़े और सबसे पुराने फासीवादी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के मार्गदर्शन में भाजपा, लोकसभा चुनाव के बाद अडानी अंबानी जैसे महाभ्रष्ट कॉरपोरेट घरानों का हिंदुराष्ट्र बनाने जा रही है जहां बाबासाहेब आंबेडकर के बनाए भारत के मौजूदा संविधान को खत्म कर अमानवीय मनुस्मृति को लागू करेगी, जिसके अनुसार तमाम गरीब मेहनतकश, दलित/उत्पीड़ित, आदिवासी अन्य पिछड़े वर्गों की जनता और अल्पसंख्यकों सहित महिलाओं को इंसान नहीं गुलाम का दर्जा दिया गया है।
इसीलिए योगी आदित्यनाथ के राज में हाथरस में दलित युवती के निर्मम बलात्कार, हत्या और प्रशासन द्वारा रात के अंधेरे में उनकी लाश को जला देने के साथ साथ देश के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में मेडल जीतने वाली महिला पहलवानों को अत्याचारी भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह को बचाने के लिए दिल्ली पुलिस द्वारा उनके बूटों तले कुचलवाने की घटना को भी जनता को याद रखना चाहिए। छत्तीसगढ़ में रमन सिंह के राज में एक आदिवासी बहुल राज्य में, आदिवासियों से आदिवासियों को लड़ाने के खूनी खेल "सलवा जुड़ूम" के नाम पर सैकड़ों आदिवासियों का सशत्र बलों द्वारा जनसंहार/झूठे मुठभेड़ों में हत्या, आदिवासी महिलाओं पर सामूहिक बलात्कार सहित भीषण अत्याचार, लाखों आदिवासियों का पड़ोसी राज्यों में पलायन तथा लम्बे तक आदिवासियों को छत्तीसगढ़ की जेलों में सड़ाने की घटना को भी याद रखना है।
क्योंकि वर्तमान विष्णुदेव साय की भाजपा सरकार भी उन्हीं घोर आदिवासी विरोधी नीतियों को दृढ़ता से लागू कर रही है। किस तरह बलात्कार के बाद पीड़िता के परिवार के लोगों को चुन चुन कर मारने वाले उन्नाव के बलात्कारी भाजपा विधायक कुलदीप सेंगर को इस संस्कारी पार्टी ने संरक्षण दिया। गुजरात में संघी फासिस्ट गुंडों द्वारा मुस्लिम अल्पसंख्यकों के सफाया अभियान के दरम्यान पांच माह की गर्भवती बिल्किस बानो के दुधमुंहे बच्चे सहित उनके परिवार के 7 लोगों की हत्या, गैंग रेप के बाद निर्मम यातनाये देकर बिल्किस बानो को मरने के लिए छोड़ देने वाले 11 जघन्य "संस्कारी" ब्राम्हणवादी अपराधियों को जेल से मुक्त करने वाली भाजपा पार्टी को जनता कैसे भुला सकती है?
क्या बस्तर समेत राज्य के कई क्षेत्रों में ( बीरनपुर, कवर्धा सहित) अल्पसंख्यक विशेषकर मसीही आदिवासी समुदाय पर भीषण हमला करने वाले फासिस्ट संघ परिवार के जुल्मों (कुख्यात रोको रोको ठोको नीति) को भुलाया जा सकता? वैसे ही भाजपा शासित गुजरात के ऊना में दलित युवकों द्वारा मृत पशु के चमड़े निकालने पर (जो की उनका पेशा है) उन्हें पिटाई कर अर्धनग्न अवस्था में जीप में बांध कर घसीटने या मध्य प्रदेश में भाजपा नेता द्वारा आदिवासी युवक पर पेशाब करने की घटना, जो कि भाजपा के आदिवासी, दलित प्रेम को दर्शाता है (?) को कोई कैसे भुल सकता है?
"बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ" का नारा देकर, जम्मू के कठिया में मासूम बच्ची आसिफा की धर्मस्थल में बलात्कार कर हत्या और भाजपा/आरएसएस के द्वारा अपराधियों को छुड़ाने के लिए जुलूस निकालने और राजस्थान के राजसमंद में अफराजुल नामक मजदूर को कुल्हाड़ी से काटकर हत्या कर उसका वीडियो बनाने वाले अपराधियों को बचाने के लिए भाजपा/ संघ द्वारा प्रदर्शन और फंड इकठ्ठा करने को क्या लोग भूल सकते हैं?
वैसे तो मोदी के अमृतकाल में, कोरोना काल में दर दर की ठोकर खाते प्रदेश के मजदूर, गंगा में बहती लाशें, ऑक्सिजन सिलिंडर के अभाव में मरते बच्चों और भाजपा शासन काल के दौरान लड़ाकू मजदूर नेता शंकर गुहा नियोगी, दरसराम साहू, रमेश परिदा की हत्या की घटनाओं को भी भूलाया नहीं जा सकता। लेकिन घोर जन विरोधी फासिस्ट बीजेपी सोचती है कि जनता की याददाश्त कमजोर है। यह इस देश की जनता को साबित करने की जरूरत है कि उनकी याददाश्त बिल्कुल ठीक है।
जनता को मोदी सहित पूरी भाजपा को याद दिलाने की जरूरत है कि हरियाणा के नूह से लेकर मणिपुर तक नफ़रत और विभाजन की जहरीली राजनीति और संस्कृति फैलाने वाली भाजपा द्वारा प्रदेश और देश की आम जनता को बेवकूफ बनाने का धंधा अब नहीं चलेगा। उसे इस बात का जवाब देना पड़ेगा कि क्यों नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के दस साल में देश में पिछले 75 सालों में अभूतपूर्व गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी और मंहगाई बढ़ी है और क्यों इस "अमृतकाल" में अडानी जैसे महाभ्रष्ट कॉरपोरेट सबसे ज्यादा चांदी काट रहे हैं?
क्यों ईडी और सीबीआई का इस्तेमाल कर महाभ्रष्ट कॉरपोरेट घरानों से भाजपा को सबसे ज्यादा चुनावी चंदा (इलेक्टोरल बॉन्ड) मिला है? और क्यों भाजपा को चंदा देने के बाद इन कॉरपोरेट घरानों को देश को ज्यादा लूटने का लाइसेंस/ठेका दिया गया है? यही भाजपा सरकार पूरे देश में कॉरपोरेट घरानों के लठैतों की तरह, दलित, मुस्लिम, किसान, मज़दूर, मेहनतकश वर्ग की गर्मी उतारने के लिए मानवाधिकार संविधान को पैरों तले रौंदती है। अगर जनता ने इन निरंकुश जुल्मी नफरती हिंसक फासीवादियों को अभी नहीं रोका तो ये फिर उसी संविधान की शपथ लेंगे जिसे ये सिर्फ एक कागज का टुकड़ा मानते हैं और फिर सत्ता में आकर ये न सिर्फ देश की जनता को तबाह कर देंगे बल्कि हिटलर की तरह उनके ये वशंज पूरे देश को मिटा डालेंगे।
अभी फिलिस्तीन में पूरे देश ने देखा कि कैसे अमरीकी साम्राज्यवाद की शह पर उसका शिकारी कुत्ता फासिस्ट हत्यारा इजरायल ने 35000 से अधिक बेगुनाह फिलिस्तीनियों जिसमें 20000 से अधिक बच्चे और मरीज हैं, को गाज़ा पट्टी, वेस्ट बैंक, लेबनान और सीरिया में मार डाला है और लगातार मानवता के खिलाफ युद्ध अपराध कर रहा है। ऐसे आतंकी दुष्ट देश इजरायल को ये संघी फासीवादी कितनी निर्लज्जता के साथ खुलकर समर्थन कर रहे हैं सिर्फ इसके अंध मुस्लिम विरोध के नाम पर। धुर दक्षिणपंथी जनविरोधी भारतीय जनता पार्टी, येन केन प्रकारेण पूरे देश के चुनाव को जीतने के लिए अपनी नफरती अभियान (हेट स्पीच) को चरम रूप में ले जा चुकी है।
अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं की रिपोर्ट के अनुसार देश में पिछले 75 सालों में सबसे अधिक गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी और महंगाई है। अमीरी और गरीबी के बीच असमानता की खाई ब्रिटिश गुलामी के समय से भी ज्यादा है। आइए हम बेहतर भविष्य के लिए लोकतंत्र, शांति, धर्मनिरपेक्षता, जाति आधारित आरक्षण, संविधान की रक्षा के लिए धार्मिक कट्टरता, नफ़रत और विभाजन के उन्माद के खिलाफ आवाज उठाएं और बड़ी संख्या में जाकर मतदान करें और नफ़रत की बेल को उखाड़ कर फेंक दें।
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