दुनिया की सबसे साधारण चीजें और उनसे पैदा होने वाली नैसर्गिक उत्सुकता अर्थात गाबो की किताबें
गाबो उर्फ़ गाब्रीएल गार्सीया मारकेज़
अशोक पाण्डेनाना-नानी का घर, दुनिया की सबसे साधारण चीजें और उनसे पैदा होने वाली नैसर्गिक उत्सुकता गाबो की किताबों में बहने वाले मैजिकल रियलिज्म तक पहुँचने की चाभी हैं.

गाबो की पैदाइश अपने ननिहाल में हुई थी. तब से लेकर आठ बरस का होने तक वे आराकाटाका में अपने नाना-नानी के उसी घर में रहे जिसमें माँ और नानी के अलावा प्रौढ़, बूढ़ी और बुढ़ाती हुई मौसियों, मामियों और नौकरानियों समेत ढेर सारी औरतें रहती थीं. यदि बालक गाबो को मर्द गिना जाता तो नाना को छोड़कर वह घर का इकलौता मर्द था.
ये तमाम औरतें एक रहस्यमय और काल्पनिक संसार की स्थाई निवासिनियां थीं. अंधविश्वास और ख़ब्त से भरे इस संसार में सबसे असाधारण लगने वाली चीजें तक बिलकुल मामूली लगने लगती थीं.
एक दोपहर फ्रांसिस्का नाम की एक मौसी, जो न थकने वाली मजबूत महिला थीं, अपना कफन बुनने बैठ गईं.
“आप कफन क्यों बना रहीं हैं?” बालक गाबो ने पूछा.
”क्योंकि मैं मरने वाली हूं, बच्चे” उन्होंने उत्तर दिया. और कुछ दिनों बाद जब कफन बुनने का काम पूरा हो गया, वे अपने बिस्तर पर लेटीं और वास्तव में मर गईं.
रसोई के पीछे एक किचन गार्डन था. दोपहर को वहां जब भी कोई मेंढक टर्राने लगता, नानी मेंढक से कहतीं, “अब जाओ. कल आना. कल दूंगी तुम्हें नमक.”
फिर नानी गाबो से कहतीं कि वह पड़ोस में रहने वाली एक जादूगरनी थी जो मेंढक का रूप धर कर आई थी.
एक तरफ स्त्रियों से बना ऐसा चमत्कारपूर्ण संसार था जिसके हर सदस्य का सारा लाड़ गाबो को मिलता था. दूसरी तरफ नाना थे – कर्नल निकोलस रिकार्दो मारकेज़. कर्नल ने अपनी जवानी में कई लड़ाइयों में हिस्सा लिया था और वे उस दौर के तमाम किस्से नाती को सुनाया करते. औरतों से भरे घर में रहने वाले इन दो मर्दों के बीच गहरी दोस्ती पनपी. ‘वन हंड्रेड ईयर्स ऑफ़ सॉलीट्यूड’ का कर्नल ऑरेलियानो बुएनदिया का चरित्र इन्हीं नाना के व्यक्तित्व के गिर्द बुना गया है.
गंभीर और बूढ़े कर्नल ने नन्हे गाबो का बहुत ध्यान रखा. वे उसके सारे प्रश्न सुनते और उनके जवाब देते. एक बार पास के गाँव में सर्कस लगा. दोनों वहां गए. वहां रखे गए एक जानवर को गाबो ने दिलचस्पी के साथ देखना शुरू किया तो नाना जी बोले, “इसे ऊँट कहते हैं.”
वे आगे बोलते इसके पहले ही पास में खड़े एक आदमी ने उनसे मुखातिब होते हुए कहा, “माफ़ कीजियेगा कर्नल, यह ऊंट नहीं, एक ड्रोमीडेरी है.”
कर्नल का आत्मसम्मान आहत हुआ. उन्होंने उस आदमी से उलटा सवाल पूछा, “क्या फर्क होता है दोनों में?”
“मुझे नहीं पता,” आदमी बोला, “लेकिन इसे ऊँट नहीं ड्रोमीडेरी कहा जाता है.”
कर्नल बहुत पढ़े-लिखे नहीं थे लेकिन नई चीजें सीखने की उनकी ललक लगातार बनी रही थी. उस दोपहर वे सर्कस से उदास लौटे और सीधे दफ्तर में घुस गए जहाँ उनकी किताबें रखी रहती थी. गाबो के सामने उन्होंने एक मोटी पुस्तक को देर तक उलटा-पलटा और आखिर में एक पन्ने पर ठहरने के बाद ऊँट और ड्रोमीडेरी का अंतर बताया. दोनों को यह अंतर ताजिन्दगी याद रहा.
फिर उन्होंने उस किताब को गाबो की गोद में रखते हुए कहा, “इस किताब को न सिर्फ सब कुछ मालूम रहता है, यह गलत भी कभी नहीं होती.”
बढ़िया बाइंडिंग और तकरीबन दो हज़ार पेज वाली वह डिक्शनरी उस दिन के बाद से उन दोनों की साझा ज़िंदगी में किसी दोस्त की तरह शामिल हो गई. जब भी किसी बात को लेकर संशय होता, वे कहते, “चलो देखें, डिक्शनरी क्या कहती है!”
नाना-नानी का घर, दुनिया की सबसे साधारण चीजें और उनसे पैदा होने वाली नैसर्गिक उत्सुकता गाबो की किताबों में बहने वाले मैजिकल रियलिज्म तक पहुँचने की चाभी हैं.
बीते दिन यानी 17 अप्रैल को गाबो उर्फ़ गाब्रीएल गार्सीया मारकेज़ को इस दुनिया से गए पूरे दस बरस बीत गए. इस अरसे में उनकी लिखी हर किताब लगातार और ज्यादा जीवित होती गयी है.
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