छत्तीसगढ़ में आंबेडकरी आंदोलन के प्रथम ध्वजवाहक दादा नकुलदेव ढ़ीढ़ी
गुरु घासीदास जयंती के जन्मदाता
गणेश कोशलेछत्तीसगढ़ में आंबेडकरी आंदोलन के ध्वजवाहक, महिलाओं व वंचित वर्गों की बुलंद आवाज, लोगों में मान-सम्मान स्वाभिमान जगाने वाले व सामाजिक, राजनीतिक सोच पैदा करने वाले, गुरु घासीदास जयंती के जन्मदाता, गिरौदपुरी में दार्शनिक स्थल व मेला की शुरुआत करने वाले, छत्तीसगढ़ राज्य के स्वप्न द्रष्टा व प्रथम जेलयात्री मंत्री नकुल देव ढ़ीढ़ी पर गणेश कोशले ने अपनी पीएचडी पूरी की है। ‘दक्षिण कोसल’ हर्ष के साथ आज नकुल देव ढ़ीढ़ी की जयंती पर कोशले की खोजपरख पीएचडी को सम्पादित कर प्रकाशित कर रहा है।

मंत्री दादा नकुलदेव जी छत्तीसगढ़ अंचल के महान क्रांतिकारी प्रखर नेता थे। वह अधिक पढ़े-लिखे नहीं थे मगर अपने जीवन अनुभव से लगातार उन्होंने दलितो, वंचितो के उत्थान के लिए आजीवन संघर्ष करते रहें। अपने वचनों और संकल्पों को निर्वाहन करते हुए मानवता की सेवा में हमेशा तत्पर रहते थे। अपने साथियों के साथ महज़ 16 वर्ष की उम्र में तमोरा महासमुंद जंगल सत्याग्रह में भाग लिया। स्वतंत्रता आंदोलन की लहर को गांव गांव में फैलाया। समाज के लोगों ने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में बढ़-चढ़ कर भाग लिया।
देश को स्वतंत्र करने में बहुमूल्य योगदान दिया। देश की सामाजिक व्यवस्था के चलते समाज में हो रहे छुआछूत, ऊंच-नीच, भेदभाव का मुखर होकर विरोध करते रहे। वह समाज में पौनी-पसारी (मांगलिक कार्यों में राऊत, नाई, धोबी) अधिकर की मांग करते रहे। समाज में जनजागृति फैलाने के लिए समाजिक संगठन बनाकर समाज को एक नई दिशा दिया। अपने निष्ठापूर्ण कार्यों से मंत्रीजी के नाम से विख्यात हो गए। सामाजिक न्याय के लिए जीवन पर्यंत संघर्ष करते रहे समाज के ऊपर जब भी जातीय दंगा व घटनाएं होती थी वहां न्याय दिलाने पहुंच जाते थे। विरोधियों द्वारा उनके कार्यों को रोकने के लिए लगातार प्रयास करते रहते थे इसीलिए उनके नाम पर फर्जी एफ आई आर दर्ज कराकर कोर्ट कचहरी में हमेशा उलझा कर रखते थे। देश में दलित, शोषित और वंचितों को मंदिर प्रवेश का अधिकार नहीं था उन्होंने छत्तीसगढ़ में मंदिर प्रवेश के लिए आंदोलन चलाएं।
बालक बालिकाओं के लिए लगातार शासन से शिक्षा का अधिकार एवं छात्रावास की मांग करते रहे। उन्होंने स्वयं के संसाधन लगाकर बालकों के लिए महासमुंद में छात्रावास संचालित किया। छत्तीसगढ़ के महान संत गुरु घासीदास की जयंती की शुरुआत अपने गृहग्राम भोरिंग में किया। गुरु घासीदास जी के जन्म स्थली गिरौदपुरी में तीन दिवसीय मेला का आयोजन करवाया और उनके जयंती पर अवकाश घोषित करवाया। आम्बेडकर जी के मार्गदर्शन में सक्रिय राजनीतिक में हिस्सा लिया। अपने क्षेत्र के लोगों की मुद्दों को लेकर चुनाव लड़े। पृथक छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के लिए प्रथम आन्दोलन चलाया समर्थक साथियों के साथ जेल भेज दिया। किसी के भी साथ अन्याय-अत्याचार होने पर समता सैनिक दल के साथ न्याय दिलाने के लिए पहुंच जाते थे।
छत्तीसगढ़ अंचल में अंबेडकर के कारवां को गति प्रदान कर रहे थे। महाकारूणिक गौतम बुद्ध की शिक्षा से अत्यधिक प्रभावित थे उनकी मानवतावादी शिक्षाओं को छत्तीसगढ़ अंचल में फैलाने का महान् कार्य किया। अपने आगे का जीवन गौतम बुद्ध के शिक्षा (बौद्ध धम्म) अनुसार निर्वाह किया। 16 अगस्त 1975 को अचानक उनके सीने में असहनी दर्द उठा और 61 वर्ष की अवस्था में लगभग प्रात: 4 बजे माटीपुत्र मंत्री दादा नकुलदेव जी चिर निद्रा में सो गए।
जीवन परिचय
दादा नकुलदेव जी का जन्म 12 अप्रैल 1914 को ग्राम भोरिंग, जिला महासमुंद में हुआ था। इनके पिता का नाम अमरसिंह और माता का नाम कौशल्यादेवी थीं। बालक बचपन से ही बहुत होनहार और मेधावी थे। इनके पिता का मुख्य व्यवसाय कृषि थी वह प्रतिष्ठित संपन्न किसान था। उनका प्रारंभिक शिक्षा दीक्षा अपने पैतृक गांव में हुआ। उन्होंने 1926 में कक्षा चौथी की परिक्षा उत्तीर्ण हुए। सामाजिक विषमता के चलते पढ़ाई-लिखाई में बाधा उत्पन्न हो रही थी इसलिए वह उच्च शिक्षा से वंचित हो गए। सामाजिक व्यवस्था के चलते पढऩे लिखने का अधिकार नहीं था। उनके माता पिता ने अपने इकलौता प्राणप्रिय पुत्र को अपने से दूर नहीं भेजा।
तथा कौन-सा उन्हें शिक्षा के बाद नौकरी करनी थी? उस समय लोगों में ‘उत्तम कृषि, नीच नौकरी’ की भावना थीं अर्थात अंग्रेजी नौकरी से कृषि कार्य को बहुत अच्छा माना जाता था। संपन्न किसान परिवार घर गृहस्ती की देखरेख कौन करेगा? यह सोचकर पिता ने उनका विवाह कर घर गृहस्ती की जिम्मेवारी सौंप दिया। उनकी पत्नि का नाम दमयंतीन (नि:संतान) थीं तथा दूसरी पत्नि चमरीन बाई से रेवलसिंह और भीष्मदेवसिंह दो पुत्र प्राप्त हुए।
लाखों-करोड़ों लोगों के दिलों में राज करने वाले जीवन भर मानव समाज के उत्थान के लिए कार्य करते रहें। 16 अगस्त 1975 को अचानक उनके सीने में असहनी दर्द उठा और 61 वर्ष की अवस्था में लगभग प्रात: 4 बजे माटीपुत्र मंत्रीजी दादा नकुलदेव जी चिर निद्रा में सो गए। आज वह भले ही शारीरिक रूप में नहीं रहे लेकिन उनके द्वारा किए गए मानव कल्याण के कार्यों से लोगों के दिलों हमेशा जिंदा रहेंगे।
नकुलदेव का कार्य एवं योगदान
जंगल सत्याग्रह
नकुलदेव बचपन से माता-पिता और गुरुओं की प्रेरणा एवं मार्गदर्शन से क्रांतिकारी भावनाओं से ओतप्रोत थे। बचपन से ही उत्साही एवं ओजपूर्ण व्यक्तित्व के कारण 16 वर्ष की उम्र में भी 25 वर्ष के नौजवान युवा लगता था। अपने साथियों के साथ महज़ 16 वर्ष की उम्र में तमोरा महासमुंद जंगल सत्याग्रह में भाग लिया और अपने साथियों के साथ गिरफ्तारी दिया।
मंडली का गठन
प्रारंभिक दिनों में वह अपने गांव में रामलीला, रासलीला का मंचन करता था। इसके माध्यम से अपने धार्मिक छवि को प्रस्तुत किया। खुद भी ‘रामचरितमानस’ और अन्य धर्मग्रंथों को कंठस्थ कर लिया था। वह हिंदू धर्म शास्त्रों के ज्ञाता बन गए तथाकथित हिंदू पंडित भी उनसे धार्मिक बहस करने से बचते थे। लेकिन समाज में व्याप्त छुआछुत, भेदभाव, जातिवादी व्यवस्था के चलते उन्हें हेय दृष्टि से देखा जाता था। गांव में अपने साथियों के साथ मिलकर 1932 में लीला मंडली का गठन किया था।
स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान
देश में अंग्रेज सरकार के खिलाफ लोगों का जनाक्रोश पनप रहा था। ऐसे समय में कांग्रेस और गांधीजी को सुनहरा अवसर मिला लोगों की आक्रोश को स्वतंत्रता आंदोलन की ओर मोड़ दिया। छत्तीसगढ़ अंचल में नकुलदेव देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत थे, राष्ट्र के प्रति अपनी दायित्व को भली-भांति समझ रहे थे। अपनी मातृभूमि को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराने के लिए स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े थे। 1933 में गांधी का छत्तीसगढ़ दूसरी बार आगमन हुआ। यहां आने का मुख्य उद्देश्य अछूतोंद्धार और सभी वर्गों को स्वतंत्रता आंदोलन में जोडऩा था।
नकुलदेव अपने समर्थकों के साथ गांधी से मुलाकात किया। सामाजिक प्रतिनिधियों ने समाज के ऊपर घटित घटनाओं और व्याप्त अमानवीय व्यवस्था से गांधी को अवगत कराया। गांधी ने लोगों से राष्ट्रीय कांग्रेस के कार्यक्रमों में भाग लेने और स्वतंत्रता आंदोलन को सफल बनाने का आह्वान किया। नकुलदेव ने लोगों में देश भक्ति की भावना जागृत किया। स्वतंत्रता आंदोलन की लहर को गांव गांव में फैलाया। समाज के लोगों ने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में बढ़-चढ़ कर भाग लिया। देश को स्वतंत्र करने में बहुमूल्य योगदान दिया।
सामाजिक संगठन का निर्माण
1935-36 भोरिंग में विभिन्न धर्मों के ज्ञाता ईसाई मिशनरी विद्वान एमडीएम गुरुजी का आगमन हुआ। वहां गुरुजी ने गुरुकुल कांगड़ी विद्यालय संचालित किया। विद्यालय के माध्यम से नकुलदेव उनके मित्रों को सभी धर्मों की शिक्षा मिलता था। उन्होंने हिंदू धर्म के शास्त्रों में असमानता, छुआछुत के कारणों की जानकारी दिया। महान् संत गुरु घासीदास और उनका सतनाम आन्दोलन की महत्वपूर्ण योगदान से अवगत करवाया। उनके सहयोग से सामाजिक सुधार के लिए श्रीपथ प्रदर्शक सभा का गठन किया। असंगठित समाज को नई दिशा देने के लिए अखिल भारतीय सतनामी समाज समिति का गठन हुआ सर्वसम्मति से इस समिती का उन्हें महामंत्री बनाया। उनके निष्ठापूर्ण कार्यों से मंत्रीजी के नाम से विख्यात हो गए।
गुरु घासीदास जयंती के जन्मदाता
गुरु घासीदास के जन्म से संबंधित जानकारी प्राप्त करने के लिए उनके जन्मस्थल गिरौदपुरी गए। छत्तीसगढ़ के विभिन्न स्थानों का दौरा किए तथाकथित रावटी के स्थानों पर गए परंतु वहां जंगल-झाड़ी के अलावा जन्म संबंधित कोई भी प्रमाण नहीं मिला। ऐतिहासिक सरकारी दस्तावेजों में गुरु घासीदास के जन्म से संबंधित जानकारी के लिए रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग, कलकत्ता अभिलेखागार में खोज करवाया। उसी आधार पर छत्तीसगढ़ के महान संत गुरु घासीदास जयंती की प्रथम शुरुआत 18 दिसंबर 1938 को ग्राम भोरिंग में आयोजित किया।
गुरु घासीदास जी के जन्म जयंती के जानकारी के संबंध में उनको जानकारी बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर जी से मिला। जब अंबेडकर जी 1930 में गोलमेज सम्मेलन लंदन में थे तब वहां की लाइब्रेरी में आरवी रसेल द्वारा 1916 में लिखित पुस्तक 'कास्ट एंड ट्राइब सेंट्रल प्रोविजन' नामक शीर्षक पुस्तक में 'सतनामी सेक्ट' को पढऩे को मिला जिसमें उनको क्रांतिकारी संत गुरु घासीदास के सामाजिक कार्यों को पढऩे को मिला। जिसकी जानकारी छत्तीसगढ़ के अपने साथियों के माध्यम से नकुलदेव को बताया। गुरु घासीदास के वंशज गुरु मुक्तावान दास को हत्या के आरोप में आजीवन कारावास की सजा हो गई थी। जब रायपुर जेल में रखे हुए थे तो उनके अनुयाई मिलने पहुंच जाते थे उनसे मिलने वालों की ताता लगा रहता था।
पुलिस वाले परेशान होकर उसे अमरावती जेल में भेज दिया। लेकिन उनके अनुयायी वहा भी पहुंच जाते थे। अमरावती जेल के अन्य कैदियों ने इसका कारण जानना चाहा तब मुक्तावन दास ने बताया ‘मैं समाज का गुरु हूं मेरे विरोधियों ने षड्यंत्रपूर्वक मुझे हत्या के आरोप में फंसाया दिया है मैंने किसी की हत्या नहीं किया।’ कैदियों ने मुक्तावन से आम्बेडकर जी को अपनी केस देने का सुझाव दिया। तब उन्होने अपनी केस अंबेडकर जी को दिया। आम्बेडकर ने उनकी केस का अध्ययन किया। अपने कानूनी प्रयास से उन्हें 19 मई 1938 को मुक्तावन को आजीवन सजा से मुक्त करवाया।
मुक्तावन दास जेल से छुटने पर अंबेडकर जी से मिलकर कृतज्ञता प्रकट किया एवं उनके समर्थक हो गया। आम्बेडकर के साथ कार्य करने के लिए प्रेरित हुए। गुरु गोसाई मुक्तावन दास जी ने भंडारपुरी दशहरा पर्व में अंबेडकर जी को छत्तीसगढ़ आमंत्रित किए लेकिन उच्च स्तरीय षड्यंत्र के कारण नकुलदेव एवं मुक्तावनदास को नजरबंद कर दिए। इस षड्यंत्र के चलाते उस समय आम्बेडकर का आगमन नहीं हो पाया और एक बड़ी सामाजिक क्रांति से छत्तीसगढ़ वंचित हो गया। गुरु घासीदास के जन्मस्थल गिरौदपुरी में 1961 में तीन दिवसीय (फागुन शुक्ल पक्ष की पंचमी, षष्ठी, सप्तमी) मेला आयोजन प्रारंभ करवाया।
शासन से लगातार जयंती के अवसर में सरकारी अवकाश की मांग कर रहे थे। सन् 1970 में गुरु घासीदास जयंती पर अवकाश घोषित किया। 16 जून 1983 में गुरु घासीदास विश्वविद्यालय की स्थापना हुआ और गुरु घासीदास संघर्ष, समन्वय व सिद्धांत नामक महत्वपूर्ण पुस्तक का प्रकाशन हुआ। भारत सरकार द्वारा सन् 1987 गुरु घासीदास के सम्मान में टिकट जारी किया। सतनाम पंथ के प्रतीक कुतुबमीनार से ऊंचा जैतखाम का निर्माण करवाया गया है।
असमानता के विरुद्ध संघर्ष
देश में व्याप्त छुआछूत-भेदभाव एक विकराल बीमारी थी छत्तीसगढ़ इससे अछूता नहीं था। यहां निचले तबके के लोगों को कुआं से पानी भरने नहीं देते थे, एक घाट में नहा नहीं सकते हैं, नाई बाल नहीं काटते, धोबी कपड़ा नहीं धोता, एक साथ उठना-बैठना मना रहता था। नकुलदेव इस कुव्यवस्था के विरुद्ध जीवन भर संघर्ष करते रहें। यहां के दलित शोषित पीड़ित तबकों को मंदिर में प्रवेश के अधिकार के लिए आंदोलन चलाया।
1949 में एक घटना के कारण उन्होंने प्रतिज्ञा लिया कि ‘जब तक सभी गांवों में नाई द्वारा समाज के लोगों का हजामत नहीं बनाएंगे, तब तक मैं अपनी दाढ़ी-मूंछ और सिर के बाल नहीं कटाऊंगा।’ उन्होंने आजीवन दाढ़ी-मूंछ और सिर के केस कर्तन नहीं करवाया। इस प्रतिज्ञा के कारण लोग उन्हें भीष्मपिता की उपाधि देते हैं। लोगों को शिक्षा के प्रति जागरूक किया। लडक़ा लड़कियों की शिक्षा के लिए लगातार प्रयास करते रहते थे। गरीब छात्रों के लिए अपने संसाधन से महासमुंद में छात्रावास चलाएं।
राजनीतिक यात्रा
नकुलदेव ने महंत किशुनदास गेंड्रे जी एवं सुकुलदास बंजारे के मार्गदर्शन में अंबेडकर जी से भेंट किया। आम्बेडकर से पहली मुलाकात से वह बहुत प्रभावित हुए उनके सक्रिय कार्यकर्ता बनकर कार्य करने लगे। छत्तीसगढ़ में हो रहे अन्याय-अत्याचार शोषण के खिलाफ सामाजिक, राजनीतिक जनजागृति के लिए कार्यकर्ताओं के निवेदन पर आम्बेडकर ने छत्तीसगढ़ आना स्वीकार किया। अपने व्यस्त दिनचर्या के बाद भी 14 दिसंबर 1945 को रायपुर आना तय हो गया। सप्रे मैदान रायपुर में आम्बेडकर का विशाल महारैली हुआ।
1951 महाकोसल में राजनीतिक दल के रूप में शेड्यूल कास्ट फेडरेशन का गठन हुआ। संगठन के माध्यम से दलित, शोषित, वंचित वर्गों में सामाजिक एवं राजनीतिक चेतना की शुरुआत हुआ। सुखरु प्रसाद बंजारे अपने मधुर आवाज़ से जागृति गीतों के माध्यम से लोगों की भीड़ इकट्ठा करते थे। नकुलदेव सामाजिक राजनीतिक आर्थिक उत्थान के लिए अपने क्रांतिकारी विचार रखते थे। देश की प्रथम आम चुनाव 1952 में शेड्यूल कास्ट फेडरेशन (हाथी चुनाव चिन्ह) से नकुलदेव रायपुर लोकसभा से चुनाव लड़े। कांग्रेस के प्रत्याशी एवं सतनामी समाज के गुरु गोसाई अगमदास के विरुद्ध संसाधनहिन होने के बाद भी मैदान में स्वाभिमान से डटे रहे।
इस चुनाव में जीतें नहीं लेकिन विरोधी प्रत्याशी को धूल चटाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी और सम्मानजनक वोट प्राप्त किया। देश में उनकी ख्याति बढने लगी। 24 मार्च 1954 को दलितों वंचितों के सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक सुधार के लिए केंद्र सरकार के समक्ष 16 सूत्री मांगों को लेकर दिल्ली में अपने संगठन के बैनर तले डीपी कामले ने अन्ना सत्याग्रह प्रारंभ किया उन्हें कुछ दिन बाद रात में पुलिस के द्वारा उठाकर जेल ले गया जिसके बाद भगवानदास ने 6 अप्रैल 1954 से सत्याग्रह को आगे बढ़ाया। इस सत्याग्रह में नकुलदेव जी महाकौशल क्षेत्र से अपने साथियों के साथ सम्मिलित हुए।
विनोवा भावे को भूदान में प्राप्त हजारों एकड़ भूमि को गरीबों मजदूरों में वितरण करने की लगातर मांग एवं आंदोलन करते रहे। 1957 लोकसभा चुनाव में रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (हाथी चुनाव चिन्ह) से चुनाव लड़ें। इस चुनाव में भी उनको सफलता प्राप्त नहीं हुआ लेकिन निराश नहीं हुए और सामाजिक परिवर्तन की इस लड़ाई में मैदान में डटे रहे। उन्होंने कहा ‘सत्ता आती है और जाती है, परंतु हमारे संगठन बनी रहनी चाहिए। संगठित रहने से कोई भी असामाजिक तत्व हमें हानि नहीं पहुंचा सकते। सत्ता पार्टी के लोग या विरोधी पार्टी के लोग केवल शोषित समाज का शोषण करते हैं।’
नकुलदेव आरपीआई के संस्थापक सदस्य थे। 1961 में आरपीआई महाकोसल का अध्यक्ष नियुक्त हुए। समाज की रक्षा हेतु समता सैनिक दल का गठन किया। जहां भी वंचित समाज के साथ अन्याय-अत्याचार होता था समता सैनिक दल के साथ पहुंच जाते थे। देश में हो रहे छुआछूत, भेदभाव, असमानता, अन्याय-अत्याचार के खिलाफ मुखर होकर आंदोलन करते रहें। देश में शासन के गलत नीति से बढ़ रहे महंगाई, बेरोजगारी के खिलाफ विपक्ष की भूमिका का निर्वहन करते थे। रिपब्लिकन पार्टी सत्ता से कोसों दूर थी परंतु जनसंघर्ष में नकुलदेव हर कदम पर आगे रहें।
पहले सतनामी गौतम बुद्ध
गुरु घासीदास और उनके आन्दोलन तथा विचारों को समाज पूर्णता भूल गया था। नकुलदेव ने बौद्ध धम्म की गहराई से अध्ययन किया। तथागत बुद्ध के विचारों से बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने प्राचीन बौद्ध धम्म को सतनाम पंथ के अनुकूल पाया। तथागत बुद्ध को दुनिया का पहला सतनामी कहते थे। तथागत बुद्ध सतनाम के मार्ग पर चलकर विश्व में परचम लहराया। गुरु घासीदास के संदेशों का लिखित प्रमाण नहीं होने पर तथागत बुद्ध के सभी सिद्धांतों को गुरु घासीदास की वाणी के रूप में प्रचारित किए और आज भी वहीं विचार प्रचलित है। 14 अक्टूबर 1956 नागपुर में अपने साथियों के साथ अंबेडकर जी के ऐतिहासिक धम्म दीक्षा ग्रहण समारोह में शामिल हुए। बुद्ध के मानवतावादी विचारों से लोग बहुत प्रभावित हुए और नकुलदेव के प्रयासों से क्षेत्र बौद्धमय हो गया।
छत्तीसगढ़ राज्य की मांग
नकुलदेव मध्यप्रदेश राज्य गठन के पूर्व से ही (1951 सीपी एंड बरार के समय से) पृथक छत्तीसगढ़ राज्य के लिए आवाज उठाते रहे। साल 1970 आरपीआई के बेंगलुरु अधिवेशन में पृथक छत्तीसगढ़ राज्य के लिए प्रस्ताव पारित करवाया। राष्ट्रीय स्तर पर सत्याग्रह एवं जेल भरो आंदोलन का प्रस्ताव पारित करवाया। लेकिन देश में 1971 के युद्ध स्थिति के कारण आंदोलन को स्थगित करना पड़ा। 1971 को पाकिस्तान में गृहयुद्ध प्रारंभ हो गया भारत के हस्तक्षेप से स्वतंत्र बांग्लादेश अस्तित्व में आया। नकुलदेव बांग्लादेश से आए शरणार्थियों की कठिनाइयों को भली-भांति समझकर उनके सहयोग करने में लगे रहे।
शासन को शरणार्थी समस्या की समाधान के लिए महत्वपूर्ण सुझाव दिए।आपातकाल समाप्ति के उपरांत 17 अक्टूबर 1972 को पृथक छत्तीसगढ़ राज्य की मांग को लेकर रायपुर में आंदोलन प्रारंभ किया। नकुलदेव को कांग्रेस शासन ने 27 अक्टूबर 1972 को आंदोलन कर रहे 19 सहयोगी कार्यकर्ताओं के साथ जेल भेजा दिया। नकुलदेव ने कहा-‘छत्तीसगढ़ में निवास करने वाले लाखों अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़े वर्ग एवं गरीब, मजदूर, किसान जिनके विकास के लिए पृथक छत्तीसगढ़ राज्य की मांगकर रहे हैं यह हमारा अधिकार है। हमें हाथ में हथकड़ी लगाकर जेल ले जा रहे हैं जैसे मैं कोई भयंकर अपराध किया हूं। आने वाली पीढ़ी इस घटना को याद रखेगी और जरूर बदला लेगी।’
महाकोसल की विभिन्न स्थानों में पृथक छत्तीसगढ़ राज्य की मांग को लेकर आंदोलन हुए जिसमें महासमुंद में सुखरु प्रसाद बंजारे एवं भागवत कोसरिया के नेतृत्व में 45 कार्यकर्ताओं ने गिरफ्तारी दिया। सभी आंदोलनकारी को 31 अक्टूबर 1972 को रिहा किया। महासमुंद में सभी आंदोलनकारीयों का भव्य स्वागत किया गया। क्षेत्रीय नेता जीवनलाल साव ने कहा कि इस ऐतिहासिक आंदोलन का बहुत बड़ा महत्व है। छत्तीसगढ़ राज्य एक दिन जरुर बनेगा तब आप सभी की त्याग और बलिदान को लोग सम्मान से याद करेंगे।’
छत्तीसगढ़ में भीषण अकाल
साल 1974 क्षेत्र में सूखा पड़ा, लोगो की दैनिक दशा अत्यंत ही कष्टदायक हो गया था। लोग दाने-दाने के लिए मोहताज थे तथा भूख से मर रहे थे। इस भीषण अकाल में लोग गांव छोडक़र जीवनयापन के लिए अन्यत्र पलायन करने को मजबूर हो रहे थे। 26 अक्टूबर 1974 को नकुलदेव के नेतृत्व में आरपीआई के बैनर तले भंडारपुरी में रात्रिकालीन विशाल सभा का आयोजन किया। इस सभा में नकुलदेव ने अपनी बात रखते हुए उपस्थित लोगों से विशेष अपील किया भूख से मरने वाले व्यक्तियों की सूचना शासन के उच्च अधिकारियों को देवें।
उन्होंने शासन से अपनी विभिन्न मांग रखें-
1. शासन प्रत्येक स्थान में राहत कार्य खोले और भुखमरी से पीड़ित जनता को काम देवें।
2. सस्ते दर पर अनाज विक्री केंद्र खोले।
3. पेयजल की व्यवस्था करें और जलाशयों में पानी भरवाये।
4. महंगाई पर रोक लगावे सस्ते दरों में कपड़े उपलब्ध करवाये।
5. कालाधन रखने वाले की संपत्ति पर कब्जा करें, और उसे जनता में बंटवाये।
उनकी मांगों के आधार पर 1975 में शासन ने राहत कार्य खोलें। गरीबों को राहत कार्य के लाभ मिले इसके लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए। राहत कार्य प्रभारियों से भी उनकी बहस होती थी, कितने स्थानों पर उनकी फर्जीवाड़ा की खबर मिलती रहती थी। फिर भी अकाल में जनसाधारण को ध्यान रखकर राहत के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाया। इस भीषण अकाल में लोगों की सहायता के लिए अपने कार्यकर्ताओं के साथ लगे रहे।
निष्कर्ष
मंत्री दादा नकुलदेव छत्तीसगढ़ में आम्बेडकरी आंदोलन के सजक प्रहरी थे। छत्तीसगढ़ अंचल में आम्बेडकर के कारवां को गति प्रदान कर रहे थे। उन्होंने छुआछूत, ऊंच नीच, भेदभाव, अन्याय अत्याचार शोषण के खिलाफ जीवन भर संघर्ष करते रहे। मानव मानव में समानता स्थापित करने अपना जीवन समर्पित किया। प्रथम गुरु घासीदास जयंती की शुरूआत किया। पृथक छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के लिए आंदोलन चलाने एवं जेल गए। दलितों पिछड़ों को मंदिर जाने का अधिकार नहीं था उन्होंने मंदिर प्रवेश के लिए आंदोलन चलाएं। अशिक्षा के खिलाफ समाज में शिक्षा का मुहिम चलाया। सदियों से चली आ रही अमानवीय व्यवस्था के खिलाफ मुहिम छेड़ा। समाज में फैली अंधविश्वास, पाखंड, ढोंग, कुरीतियों, कुप्रथाओं को खत्मकर समाज को विज्ञानवाद से जोडऩे का प्रयास किया।
शोधाथी बिलासपुर छत्तीसगढ़ में निवासरत हैं।
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