पत्रकारिता, साहित्य और इतिहास पुरूष गणेश शंकर शर्मा का चले जाना

आदिवासियों के स्वतंत्रता संग्राम पर विद्रोह की चिनगारियां प्रकाशित

सुशान्त कुमार

 

नई दुनिया (इंदौर), युगधर्म (रायपुर), नव-भारत (रायपुर), नांदगांव टाइम्स (राजनांदगांव) में सम्पादकीय विभाग में कार्य किया। उनके आलेख एवं स्तम्भ नव-भारत टाइम्स (मुम्बई), राष्ट्रधर्म, साप्ताहिक हिंदुस्तान, सारिका, पराग आदि प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में विभिन्न विषयों के साथ प्रकाशित होते रहे हैं। 

सबेरा संकेत (राजनांदगांव) में कई लोकप्रिय स्तम्भ प्रकाशित हो चुके हैं। 1972 में शासकीय शिक्षा विभाग में आए। बाद में शिक्षा विभाग से प्राचार्य पद से सेवा निवृत्त हो चुके थे। इस बीच उन्होंने विभिन्न विधाओं पर अपनी कलम चलाई। कहानियों सहित विभिन्न विषयों पर उनकी लेखनी अनेक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रही है।

उनकी कृतियों में अब तक दर्जनों पुस्तकें। दो ग्रन्थ छत्तीसगढ़ हिंदी ग्रन्थ अकादमी द्वारा प्रकाशित हो चुकी है। पिछले कुछ वर्षों से ही इतिहास लेखन को अपना केन्द्र बनाया था। ‘अंग्रेज इस तरह आये हिन्दुस्तान में’ तथा आदिवासियों के स्वतंत्रता संग्राम पर विद्रोह की चिनगारियां प्रकाशित हो चुकी हैं, दूसरी-तीसरी कड़ी ‘अंग्रेज इस तरह गए हिन्दुस्तान से’ उनके महत्वपूर्ण ग्रंथ हैं।

शर्मा एन.सी.सी. (नेशनल कैडेट कोर) आफिसर भी रहे हैं, इस पर उनकी पुस्तक ‘कैडेट सहायिका’ संपूर्ण भारत में प्रचलित है, इसके कई संस्करण छप चुके हैं। उन्होंने अपना अंतिम समय मोतीनाथ मंदिर के सामने, भरकापारा, राजनांदगांव में इतिहास लेखन में बिताया है। दिन 23 फरवरी, साल 2023 को उन्होंने पत्रकारिता, साहित्य और इतिहास के क्षेत्र में अपना बहुमूल्य योगदान देते हुए राजनांदगांव संस्कारधानी को अलविदा कह गए।

उनके पुत्र चिकित्सक मिथलेश शर्मा के माध्यम से प्राप्त पुस्तिका ‘राजनांदगांव जिले का सांस्कृतिक वैभव’ गंभीर अध्ययन की मांग करती है। 

इस पुस्तक के बारे में यह कि यह पुस्तक छत्तीसगढ़ की संस्कारधानी राजनांदगांव पर केन्द्रित है। न केवल छत्तीसगढ़ में बल्कि मध्यप्रान्त- बरार एवं पुराने मध्यप्रदेश में भी राजनांदगांव की अपनी प्रतिष्ठा विभिन्न क्षेत्रों में रही है। नागपुर के प्रख्यात स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं मजदूर नेता रामभाऊ रूईकर ने यहां स्टेट कांग्रेस की स्थापना 1938 में ही कर दी थी, वहीं तत्कालीन बीएनसी मिल के श्रमिकों को उनके हक की लड़ाई छत्तीसगढ़ के वीर पुरुष ठाकुर प्यारेलाल सिंह ने आरम्भ की। 

इसमें उनका साथ रूईकर ने दिया। इसीलिए उस समय राजनांदगांव को राजनीति का एरीना कहा जाता था। साहित्य के क्षेत्र में आचार्य पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, मानस मर्मज्ञ डॉ. बलदेव प्रसाद मिश्र, नई कविता के सशक्त हस्ताक्षर गजानन माधव मुक्तिबोध और मंच संचालन के पितृपुरुष कवि डॉ. नंदूलाल चोटिया की यह कर्म भूमि रही है। वर्तमान साहित्य युग के प्रख्यात साहित्यकार विनोद शुक्ल भी राजनांदगांव की माटी के सपूत हैं। कला एवं संस्कृति का यह तीर्थ है। 

छत्तीसगढ़ी नाचा भी यहां की ही फिजाओं में इसके पुरोधा मदराजी दाऊ द्वारा न केवल अविष्कृत हुआ बल्कि उनकी देखरेख में पोषित होकर समृद्ध भी हुआ। हबीब तनवीर के ‘नया थिएटर’ को जिन कलाकरों ने वैश्विक ऊंचाइयों तक पहुंचाया वे नांदगांव की माटी के ही गुदड़ी के लाल थे- जैसे पद्मश्री गोविन्दराम निर्मलकर, मदन निषाद, फिदाबाई। वर्तमान में राजनांदगांव के आधुनिक विकास की कडिय़ों में भी नए-नए आयाम जुड़ रहें हैं।

प्रसिद्ध अधिवक्ता कनक तिवारी ने लिखा है कि राजनांदगांव के प्रसिद्ध शिक्षाविद अध्यापक इतिहासविद और लेखक गणेश शंकर शर्मा जी का पिछले वर्ष आज ही के दिन निधन हो गया था। उनको थोड़ी चोट लग गई थी। उनके पुत्र चंद्रशेखर से बात हुई थी। मैं उनसे मिलने जाने की सोच रहा था कि वे स्वस्थ हो जाएं तो मैं जाकर मिलूं। कुदरत को मंजूर नहीं था। उनके साथ की ढेरों यादें हैं।

मैं जब कभी कुछ कहता लिखता उचित टिप्पणी तुरंत आती। और मेरा हौसला बढ़ाते जानकारियां देते। घर जाकर भी मिला। बहुत स्नेहपूर्ण स्वभाव था उनका। ऐसा लगता है कि मेरे अंदर से कोई संवेदना कम हो गई है। उनका पूरा परिवार उनके कारण संस्कारशील हैं।


Add Comment

Enter your full name
We'll never share your number with anyone else.
We'll never share your email with anyone else.
Write your comment

Your Comment