सावरकर के आखिरी दिन

कीर की पुस्तक में सावरकर के आखिरी दिनों का विस्तृत वर्णन

प्रेमकुमार मणि

 

आज भोर में जगा तब पता नहीं कैसे बचपन की कुछ यादें कौंधीं. ऐसे ही उतरते जाड़ों में हमारे हाई स्कूल में सावरकर की शोकसभा हुई थी. उस वक्त मैंने सावरकर का नाम भी नहीं सुना था. आज कुछ लोगों ने सावरकर का नाम इतना विकृत और बदनाम कर दिया है, जैसे वह कोई देशद्रोही हों. यद्यपि मैं उनके विचारों और स्थापनाओं से सहमत नहीं हूँ, लेकिन उनके व्यक्तित्व, खास कर उनके बौद्धिक आवेग का आकर्षण अनुभव करता रहा हूँ.

यह सही है कि आज़ादी केलिए किए गए संघर्ष में उनका रास्ता कांग्रेस और गांधी से तनिक भिन्न था और इसे उन्होंने कभी छुपाया नहीं. लेकिन हमारे देश में पंथ-निरपेक्ष लोग ही इतने कट्टरपंथी हैं कि वे अपने रास्ते के सिवा तमाम दूसरे रास्तों को गलत और अपवित्र मानते हैं,नफरत की हद तक.

सावरकर का दोष यही था कि वह आधुनिक भारत के अनेक उल्लेखनीय हस्तियों जैसे रवीन्द्रनाथ टैगोर, जवाहरलाल नेहरू, भीमराव आम्बेडकर, सुभाषचंद्र बोस और मानवेंद्रनाथ राय की तरह गांधीवाद के आलोचक थे. लेकिन इसकी सजा सावरकर ने कुछ अधिक झेली. संभवतः इसलिए कि उनकी आलोचना अधिक तीखी थी. सावरकर को सचमुच पाखण्ड से नफरत थी. वह चाहे सेकुलरवाद का ही पाखंड क्यों न हो.

विनायक दामोदर सावरकर ( 1883 '966) का निधन 1966 के 26 फरवरी को हुआ था. धनञ्जय कीर ने उनकी विस्तृत जीवनी (576 पृष्ठों की) लिखी है, जिसे प्रतिष्ठा प्राप्त है. कीर साहब ने जोतिबा फुले, भीमराव आम्बेडकर और बालगंगाधर तिलक की भी जीवनियां लिखी हैं. उनके महत्वपूर्ण लेखन केलिए 1971 में उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था.

कीर की पुस्तक में सावरकर के आखिरी दिनों का वर्णन विस्तृत रूप में है. सावरकर मुंबई में हैं. ताशकंद-वार्ता से क्षुब्ध हैं. 11 जनवरी 1966 को प्रधानमंत्री शास्त्री की मृत्यु ताशकंद में ही हो जाती है. 19 जनवरी 1966 को इंदिरा गांधी भारत की प्रधानमंत्री पद पर आती हैं. सावरकर अपनी उम्र के 83 वें साल में हैं. उन्हें महसूस होता है कि जीवन में जो करना था,कर लिया. वह इस निर्णय पर आते हैं कि भोजन त्याग कर जीवन समाप्त कर लूँ. इस निर्णय के बाद उन्होंने 3 फरवरी से भोजन त्याग कर दिया.

उन्हें उम्मीद थी कि 20 फरवरी तक वह मृत हो जाएंगे. उन्होंने निदेश दिए कि उनकी अंत्येष्टि किसी धार्मिक संस्कार के साथ न हो. उनका शव मनुष्य के कन्धों या जानवरों से खींची जाने वाली किसी गाड़ी से न ढोया जाय. उनका शवदाह पारम्परिक लकड़ी की चिता पर नहीं, विद्युत् शवदाह से हो. किसी तरह का कोई श्राद्ध, पिंड-दान या अन्य धार्मिक संस्कार उनकी मृत्यु के बाद न हो. इस के बाद वह उपवास पर चले गए. उनके निजी डाक्टर साठे उनकी देख-रेख कर रहे थे.

4 फरवरी को वह सामान्य रहे. 5 फरवरी से उनके लिए चिंता होने लगी. उस रोज कांग्रेस के सांसद सुभाष पुरंदरे का टेलीग्राम आता है- ' आपकी अविस्मरणीय देशभक्ति को सलाम. '

6 फरवरी को गोलवलकर, अटलबिहारी वाजपेयी , नारायणराव कजरोलकर आदि के टेलीग्राम. रोज अख़बार हेल्थ बुलेटिन छाप रहे हैं.

12 फरवरी को आवाज लड़खड़ाने लगती है. पैरों में सूजन . लेकिन पूरी तरह होश में.

16 फरवरी को नींद ठीक से आई. उसी रोज बाबू जगजीवन राम का टेलीग्राम - ' मच कंसर्नड अबाउट योर हेल्थ. प्रे गॉड अर्ली रिकवरी.'

18 फरवरी को आल इंडिया रेडियो द्वारा उनका हेल्थ बुलेटिन प्रसारित किया जाता है. वह क्रिटिकल स्थिति में आ गए हैं.

22 फरवरी को महाराष्ट्र कांग्रेस के महासचिव आदम आदिल साहब उन्हें देखने आते हैं. उसी रोज गृहमंत्री गुलजारीलाल नंदा की ओर से एक हजार रूपए उनकी देख-रेख केलिए भेजे गए हैं. सदाशिव पवार उनका नाई है, जो उनकी हजामत नितप्रति बनाता है, क्योंकि गन्दा और जैसे-तैसे रहना सावरकर को बिलकुल मंजूर नहीं था.

सावरकर मृत्यु के निकट पहुँच रहे हैं. 26 फरवरी के पूर्वाह्न 11 बज कर 10 मिनट पर उनकी सांस हमेशा केलिए थम जाती है. यह शनिवार का दिन था. उनका शरीर अंतिम दर्शनों केलिए साढ़े चार बजे उनके आवास सावरकर सदन पर रखा जाता है. कोई धार्मिक क्रिया नहीं. अगले रोज अंत्येष्टि होनी है.

महाराष्ट्र सरकार के चीफ सेक्रेटरी डी आर प्रधान, सरकार की ओर से श्रद्धांजलि देने आते हैं. सावरकर के पोते प्रफुल्ल चिपलूनकर दिल्ली से हवाई जहाज से आ गए हैं. केंद्र सरकार की ओर से केंद्रीय सूचना मंत्री राज बहादुर श्रद्धांजलि देने आए हैं.

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के अध्यक्ष श्रीपद अमृत डांगे, विख्यात विद्वान और राजनेता कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी, समाजवादी नेता जॉर्ज फर्नांडिस, मुंबई के मेयर माधवन गंगाराम जोशी, एन जी गोरे, लता मंगेशकर, पी के सावंत और महाराष्ट्र सरकार के अनेक मंत्री सावरकर सदन आकर श्रद्धांजलि देते हैं.

28 फरवरी को उनकी अंत्येष्टि बिना किसी धार्मिक ताम-झाम के होती है

राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, दूसरे राजनेताओं की ओर से उन्हें वाचिक श्रद्धांजलि दी जाती है. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने उन्हें राष्ट्रीय आंदोलन का जुझारू और प्रेरक व्यक्तित्व बताया तो इंदिरा गाँधी ने समकालीन भारत की एक महान हस्ती के अवसान पर दुःख व्यक्त किया. कम्युनिस्ट नेता डांगे के अनुसार ' वीर सावरकर की मृत्यु से भारतीय इतिहास के महान साम्राज्यवाद विरोधी क्रान्तिकारी का अवसान हो गया. '

28 फरवरी को ही लोकसभा में कम्युनिस्ट नेता हीरेन मुखर्जी और जनसंघ के सदस्य यु एम त्रिवेदी ने प्रश्नकाल के तुरत बाद सदन को बताया कि सावरकर नहीं रहे. हीरेन मुखर्जी ने कहा यद्यपि वह इस सदन के सदस्य नहीं रहे, लेकिन देश के प्रति की गई उनकी सेवा उल्लेखनीय है. लोकसभा के सचिव द्वारा सावरकर के परिवार को शोक जताने वाल पत्र भेजा गया.

4 मार्च को दिल्ली सिटीजन कौंसिल द्वारा दिल्ली में शोकसभा आयोजित की गई, जिस में केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री सत्यनारायण सिंह, रक्षामंत्री यशवंतराव चौहान, समाजवादी नेता राममनोहर लोहिया, एम सी चागला आदि ने उन्हें भावपूर्ण श्रद्धांजलि दी.

धनञ्जय कीर ने सावरकर को गांधी से अधिक तार्किक-बौद्धिक माना है और उनकी तुलना मानवेंद्रनाथ राय व जवाहरलाल नेहरू जैसे बौद्धिक से की है. लेकिन यह भी कहा है कि नेहरू और राय के बहुत पहले उन्होंने भारतीय राजनीति को सेक्युलरवाद और आधुनिकता के बोध से जोड़ा था.

सावरकर का हिंदुत्व आज भी बहुत लोगों की समझ के परे है. निःसंदेह उन्होंने हिन्दू समाज में सुधार की कोशिश की. हिन्दू धर्म और हिन्दू समाज एक ही नहीं है. वह हिन्दू धर्म के नहीं, हिन्दू समाज के उत्थान और सशक्तिकरण के आग्रही थे. इसके लिए नेहरू की तरह वैज्ञानिक सोच को वह जरूरी मानते थे. मध्ययुगीन धार्मिक ख्यालों की जगह वह विज्ञान द्वारा प्रदत्त तार्किक परिदृष्टि और आधुनिक बोध को रेखांकित करते थे.

वह राम नाम जपने में नहीं, उन्हें एक सांस्कृतिक व्यक्तित्व मानने और उसका लोकतान्त्रिक इस्तेमाल करने में यकीन करते थे. जैसा कि कुछ हद तक समाजवादी नेता लोहिया ने किया था. लेकिन, जैसा कि उनके जीवनी लेखक कीर ही कहते हैं, उनमें अंतर्विरोध भी कम नहीं थे. जिन्ना ने अलग पाकिस्तान की मांग जरूर की, लेकिन कभी इस्लाम ज़िंदाबाद का नारा नहीं उछाला. सावरकर के लोगों ने हिन्दू धर्म की जय के नारे लगाए, जो उनके विचारों को गड्ड-मड्ड कर देता है.

समीक्षा सब की होनी चाहिए. आस्तिक-नास्तिक, गांधी-नेहरू, सावरकर-जिन्ना सबकी. व्यक्ति पूजा या अंध-निन्दा चाहे गांधी की हो या सावरकर की हमें अंधे-युग में ही धकेलेगा.


Add Comment

Enter your full name
We'll never share your number with anyone else.
We'll never share your email with anyone else.
Write your comment

Your Comment